आत्मनिर्भर भारत

ग्वार की खेती…

ग्वार की फलियों का उपयोग सब्जी बनाने में किया जाता है। इसके अलावा ग्वार का उपयोग हरा चारा एवं हरी खाद के तौर पर भी किया जाता है। बहु-उपयोगी फसल होने के कारण इसकी खेती करने वाले किसान कम समय में अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। ग्वार शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में उगाई जाने वाली दलहनी फसल है जो कि एक अत्यन्त सूखा एवं लवण सहनशील है। अत: इसकी खेती असिंचित व बहुत कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जा सकती है। ग्वार शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के गऊ आहार से हुई है जिसका तात्पर्य गाय का भोजन है। विश्व के कुल ग्वार उत्पादन का ८० प्रतिशत भाग अकेले भारत में पैदा होता है। जोकि ६५ देशों में निर्यात किया जाता है। ग्वार की खेती प्रमुख रूप से भारत के उत्तर-पश्चिमी राज्यों (राजस्थान, हरियाणा, गुजरात, उत्तरप्रदेश एवं पंजाब) में की जाती है। है। हमारे देश के कुल ग्वार उत्पादक क्षेत्र का लगभग ८७ प्रतिशत क्षेत्र राजस्थान के अंतर्गत आता है। राजस्थान में ग्वार की खेती मुख्यत: चुरू, नागौर, बाड़मेर, सीकर, जोधपुर, गंगानगर, सिरोही, दौसा, बीकानेर, हनुमानगढ एवं झुन्झुनू में की जाती है।

ग्वार की बुवाई के लिए उपयुक्त समय

ग्वार की खेती गर्मी एवं वर्षा दोनों मौसम सफलतापूर्वक की जा सकती है। गर्मी के मौसम में फसल प्राप्त करने के लिए इसकी बुवाई फरवरी-मार्च महीने में करनी चाहिए। वर्षा के मौसम में फसल प्राप्त करने के लिए इसकी बुवाई जून-जुलाई महीने में करें।

उपयुक्त मिट्टी एवं जलवायु

ग्वार की खेती लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। अच्छी पैदावार के लिए उचित जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी सर्वोत्तम है। इसकी खेती रेतीली मिट्टी, हल्की क्षारीय एवं लवणीय मिट्टी में भी की जा सकती है। मिट्टी का पीएच स्तर ७.५ से ८ होना चाहिए। पौधों के अच्छे विकास के लिए सूखे एवं गर्म मौसम की आवश्यकता होती है। कम वर्षा होने वाले क्षेत्रों में भी इसकी खेती की जा सकती है।

बीज की मात्रा एवं बीज 

बीजों के अच्छे जमाव व फसल को रोगमुक्त रखने के लिए बीज को सबसे पहले बाविस्टिन या कैप्टान नामक फफूंदीनाशक दवा से २ ग्राम/किलो बीज की दर से उपचारित करें। पौधों की जड़ों में गांठों का अधिक निर्माण हो व वायुमंडलीय नाइट्रोजन का भूमि में अधिक यौगिकीकरण हो इसके लिए बीज को राईजोबियम व फॉस्फोरस सोलूबलाइजिंग बैक्टीरिया (पीएसबी) कल्चर से उपचारित करें। छिड़काव विधि से खेती करने पर प्रति एकड़ जमीन में ८ से १० किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। क्यारियों में खेती करने पर प्रति एकड़ भूमि में ५.६ से ६.४ किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम बीज को २ ग्राम बाविस्टिन या कैप्टान से उपचारित करें। इसके बाद प्रति किलोग्राम बीज को २ से ३ ग्राम राइजोबियम कल्चर से भी उपचारित करें।

उन्नत किस्में

हरे चारे हेतु – एचएफजी-११९, एचएफजी-१५६, ग्वार क्रांति, मक ग्वार, बुंदेल ग्वार-१ (आईजीएफआरआई-२१२-१), बुंदेल ग्वार-२, आरआई-२३९५-२, बुंदेल ग्वार-३, गोरा-८०

हरी फलियों हेतु – आईसी-१३८८, पी-२८-१-१, गोमा मंजरी, एम-८३, पूसा सदाबहार, पूसा मौसमी, पूसा नवबहार, शरद बहार

दाने के लिए – मरू ग्वार, आरजीसी-९८६, दुर्गाजय, अगेती ग्वार-१११, दुर्गापुरा सफेद, एफएस-२७७, आरजीसी-१९७, आरजीसी-४१७

खेत की तैयारी एवं बुवाई की विधि

खेत तैयार करते समय सबसे पहले एक बार गहरी जुताई करें और कुछ दिनों तक खुला रहने दें। इसके बाद २ से ३ बार हल्की जुताई करें। जुताई के समय प्रति एकड़ भूमि में ८० से १०० क्विंटल तक गोबर की खाद मिलाएं। जुताई के बाद खेत में पाटा लगाकर मिट्टी को समतल एवं भुरभुरी बना लें।

बीज की बुवाई के लिए खेत में क्यारियां तैयार करें।

क्यारियों में बुवाई करने पर सिंचाई एवं खरपतवार नियंत्रण में आसानी होती है। सभी क्यारियों के बीच ३० सेंटीमीटर की दूरी रखें। पौधों से पौधों की दूरी १५ सेंटीमीटर होनी चाहिए।

सिंचाई एवं खरपतवार नियंत्रण

वर्षा के मौसम में वर्षा होने पर सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। गर्मी के मौसम में ७ से १० दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। बुवाई के करीब १ सप्ताह बाद ही खरपतवार की समस्या शुरू हो जाती है।

खरपतवारों पर नियंत्रण के लिए निराई-गुड़ाई

फसल की तुड़ाई, ग्वार की खेती यदि फलियों के लिए की जा रही है तो फलियों की तुड़ाई नर्म एवं हरी अवस्था में करें। बुवाई के ५५ से ८० दिनों के बाद फलियों की तुड़ाई की जा सकती है। हर ४ से ५ दिनों के अंतराल पर फलियों की तुड़ाई करें। यदि बीज या दाने प्राप्त करने के लिए ग्वार की खेती की गई है तो फलियों का रंग पाला होने के बाद ही तुड़ाई करें। फलियों को पक कर तैयार होने में करीब १२० दिनों का समय लगता है।

महत्व

ग्वार एक बहुउद्देशीय फसल है जिसका प्राचीनकाल से ही मनुष्य एवं पशु आहार के लिए महत्व रहा है।

इसमें प्रोटीन, घुलनशील फाइबर, विटामिन्स (के, सी, ए), कार्बोहाइड्रेट के साथ-साथ प्रचुर मात्रा में खनिज, फॉस्फोरस, कैल्शियम, आयरन एवं पौटेशियम आदि भी पाया जाता है।

इसकी ताजा व नरम हरी फलियों को  सब्जी के रूप में खाया जाता है जो कि पौष्टिक होती है।

ग्वार फली विभिन्न रोगों जैसे – खून की कमी, मधुमेह, रक्तचाप, आंत की समस्याएं में लाभकारी है एवं हड्डियों को मजबूत करने, दिल को स्वस्थ रखने, रक्त परिसंचरण को बेहतर करने के साथ-साथ मस्तिष्क के लिए भी गुणकारी है।

इसका उपयोग पशुओं के चारे के रूप में होता है। तथा दुधारू पशुओं में दूध उत्पादन में बढ़ोतरी करता है।

इसका प्रयोग खेतों में हरी खाद के रूप में भी किया जाता है जिसके लिए फसल में फूल आने के बाद एवं फली पकने से पहले मिट्टी पलटने वाले हल से भूमि में दबा दिया जाता है।

यह वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का भूमि में स्थिरीकरण करती है जिससे जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ती है।

इसके दानों में ग्लेक्टोमेनन नामक गोंद होता है जो संपूर्ण विश्व में ‘ग्वार गमऽ के नाम से प्रचलित है। जिसका इस्तेमाल खाद्य पदार्थों जैसे- आइसक्रीम, पनीर, सूप में किया जाता है।

ग्वार गम का प्रयोग कई प्रकार के उद्योग-धंधों व औषधि निर्माण में किया जाता है। पेट साफ करने, रोचक औषधि तैयार करने, कैप्सूल व गोलियां बनाने में भी इसका प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा खनिज, कागज व कपड़ा उद्योग में भी ग्वार गम महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

कागज निर्माण के समय ग्वार गम को लुगदी में मिलाया जाता है जिससे कागज ठीक से फैल सके और अच्छी गुणवत्ता का कागज तैयार किया जा सके।

कपड़ा उद्योग में यह मांडी लगाने के उपयोग में लाया जाता है।

श्रृंगार वस्तुओं जैसे लिपिस्टिक, क्रीम, शेम्पू और हैण्ड लोशन में भी ग्वार गम का प्रयोग किया जाता है

ग्वार गम का प्रयोग कई प्रकार के उद्योग-धंधों व औषधि निर्माण में किया जाता है। पेट साफ करने, रोचक औषधि तैयार करने, कैप्सूल व गोलियां बनाने में भी इसका प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा खनिज, कागज व कपड़ा उद्योग में भी ग्वार गम महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कागज निर्माण के समय ग्वार गम को लुगदी में मिलाया जाता है जिससे कागज ठीक से फैल सके और अच्छी गुणवत्ता का कागज तैयार किया जा सके। कपड़ा उद्योग में यह मांडी लगाने के उपयोग में लाया जाता है। श्रृंगार वस्तुओं जैसे लिपिस्टिक, क्रीम, शेम्पू और हैण्ड लोशन में भी ग्वार गम का प्रयोग किया जाता है

सिंघाड़ा की खेती…

सिंघाड़ा तालाबों में पैदा होने वाली एक नगदी फसल है। मध्यप्रदेश में सिंघाड़े की खेती लगभग ६००० हेक्टेयर में किया जाता है। सिंघाड़े के कच्चे व ताजे फलों का ही उपयोग मुख्यत: किया जाता है इसके अलावा पके फलों को सुखाकर उसकी गोटी से आटा बनाया जाता है जिससे बने व्यंजनों का उपयोग उपवास में किया जाता है। सिंघाड़ा की खेती… सिंघाड़े में मुख्य पोषक तत्व प्रोटीन ४.७ प्रतिशत एवं शर्करा २३.३ प्रतिशत होते हैं इसके अलावा इसमें कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा, पोटेशियम, तांबा, मैगनीज, जिंक एवं विटामिन सी भी सूक्ष्म मात्रा में उपलब्ध होते हैं। सामान्यत: तालाबों में होने वाले सिंघाड़े की फसल की खेती उन्नत कृषि तकनीक अपनाकर निचले खेतों जिनमें पानी का भराव जुलाई से नवम्बर – दिसम्बर माह तक लगभग एक से दो फीट तक होता है आसानी से की जा सकती है।

सिंघाड़ा तालाबों में पैदा होने वाली एक नगदी फसल है। मध्यप्रदेश में सिंघाड़े की खेती लगभग ६००० हेक्टेयर में किया जाता है। सिंघाड़े के कच्चे व ताजे फलों का ही उपयोग मुख्यत: किया जाता है इसके अलावा पके फलों को सुखाकर उसकी गोटी से आटा बनाया जाता है जिससे बने व्यंजनों का उपयोग उपवास में किया जाता है। सिंघाड़े में मुख्य पोषक तत्व प्रोटीन ४.७ प्रतिशत एवं शर्करा २३.३ प्रतिशत होते हैं इसके अलावा इसमें कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा, पोटेशियम, तांबा, मैगनीज, जिंक एवं विटामिन सी भी सूक्ष्म मात्रा में उपलब्ध होते हैं।
सामान्यत: तालाबों में होने वाले सिंघाड़े की फसल की खेती उन्नत कृषि तकनीक अपनाकर निचले खेतों जिनमें पानी का भराव जुलाई से नवम्बर – दिसम्बर माह तक लगभग एक से दो फीट तक होता है आसानी से की जा सकती है। इस तकनीक को अपनाकर खासकर धान के क्षेत्र जैसे बालाघाट, सिवनी आदि के कृषक निचले खेतों में अपनी उपज में प्रति एकड़ डेढ़ गुना वृद्धि कर सकते हैं।
भूमि एवं जलवायु:
सिंघाड़े की खेती उष्ण कटिबन्धीय जलवायु वाले क्षेत्रों में की जाती है। इसकी खेती के लिए खेत में एक से दो फीट पानी की आवश्यकता होती है। इसकी खेती स्थिर जल वाले खेतों में की जाती है साथ ही साथ खेतों में ह्युमस की मात्रा अच्छी होनी चाहिये। सिंघाड़ा उत्पादन हेतु दोमट या बलुई दोमट मिट्टी जिसका पी. एच. ६.० से ७.५ तक होता है अधिक उपयुक्त होती है।
सिंघाड़ा किस्में:
सिंघाड़े मेंं कोई उन्नत जाति विकसित नहीं की गई हैं परन्तु जो किस्म प्रचलित है उनमें जल्द पकने वाली जातियां हरीरा गठुआ, लाल गठुआ, कटीला, लाल चिकनी गुलरी, किस्मों की पहली तुड़ाई रोपाई के १२० – १३० दिन में होती है। इसी प्रकार देर से पकने वाली किस्में – करिया हरीरा, गुलरा हरीरा, गपाचा में पहली तुड़ाई १५० से १६० दिनों में होती है।

नर्सरी:
सिंघाड़े की नर्सरी तैयार करने हेतु दूसरी तुड़ाई के स्वस्थ पके फलों का बीज हेतु चयन करके उन्हे जनवरी माह तक पानी में डुबाकर रखा जाता है।
अंकुरण के पहले फरवरी के द्वितीय सप्ताह में इन फलों को सुरक्षित स्थान में गहरे पानी में तालाब या टांकें में डाल दिये जाते है। मार्च माह में फलों से बेल निकलने लगती है व लगभग एक माह में १.५ से २ मीटर तक लम्बी हो जाती है। इन बेलों से एक मीटर लंबी बेलों को तोड़कर अप्रैल से जून तक रोपणी का फैलाव खरपतवार रहित तालाब में किया जाता है। रोपणी लगाने हेतु प्रति हेक्टेयर ३०० किलोग्राम सुपर फॉस्फेट, ६० किलोग्राम पोटाश व २० किलोग्राम यूरिया तालाब में उपयोग की जाती है साथ ही साथ रोपणी को कीट एवं रोगों से सुरक्षित रखना अति आवश्यक है। कीट एवं रोगों की रोकथाम हेतु आवश्यकता पडऩे पर उचित कीटनाशी एवं कवकनाशी का उपयोग करें।
फसल रोपाई:
फलों की तुडाई: जल्द पकने वाली प्रजातियों की पहली तुड़ाई अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में एवं अंतिम तुड़ाई २० से ३० दिसम्बर की जाती है। इसी प्रकार देर पकने वाली प्रजातियों की प्रथम तुड़ाई नवम्बर के प्रथम सप्ताह में एवं अंतिम तुड़ाई जनवरी के अंतिम सप्ताह तक की जाती हैं। सिंघाड़ा फसल में कुल ४ तुड़ाई की जाती है।
तुड़ाई पूर्ण रूप से विकसित पके फलों की ही करना चाहिए, कच्चे फलों की तुड़ाई करने पर गोटी छोटी बनती है एवं उपज भी कम प्राप्त है।

फलों की छिलाई:
जिस खेत में रोपाई करनी हो उसमें जुलाई के प्रथम सप्ताह में कीचड़ मचा लिया जाता है।
रोपाई के पूर्व या एक सप्ताह के अंदर ३०० किलोग्राम सुपर फॉस्फेट ६० किलोग्राम पोटाश व २० किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर मिलाएं साथ ही गोबर की सड़ी खाद का उपयोग अवश्य करें।
इसके उपरांत रोपाई के पूर्व रोपणी को इमीडाक्लोप्रिड १७.८ प्रतिशत एस. एल. के घोल में १५ मिनट तक डुबोकर उपचारित किया जाता है।
उपचारित बेल एक मीटर लंबी २-३ बेलों की गठान लगाकर १३१ मीटर के अन्तराल पर अंगूठे की सहायता से कीचड़ में गड़ाकर किया जाता है।
रोपाई का कार्य जुलाई के प्रथम सप्ताह से १५ अगस्त के पहले तक किया जा सकता है।
खरपतवार नियंत्रण रोपाई पूर्व व मुख्य फसल में समय – समय पर करते रहना चाहिये।
कीट एवं रोगों पर सतत निगरानी रखें, प्रारंभिक अवस्था में प्रकोपित पत्तियों को तोड़कर नष्ट करें ताकि कीट एवं रोग नाशियों का उपयोग न करना पड़े। यदि आवश्यकता हो तो उचित दवा का उपयोग करें।
सिंघाड़ा फल जो अच्छी तरह से सूखे हो उनको सरोते या सिंघाड़ा छिलाई मशीन द्वारा छिला जाता है। इसके उपरांत एक से दो दिनों तक सूर्य की रोशनी में सुखाकर मोटी पॉलीथिन बैग में रखकर पैक कर दिया जाता है।
उपज:
हरे फल ८० से १०० क्विंटल/ हेक्टेयर,
सूखी गोटी – १७ से २० क्विंटल/ हेक्टेयर
कुल लागत – लगभग ४५००० रू./ हे.
कुल प्राप्ति लगभग – १५०००० रू./ हे.
शुद्ध लाभ – १०५००० रू./ हेक्टेयर।
फलों को सुखाना:
पूर्ण रूप से पके फलों की गोटी बनाने हेतु सुखाया जाता है। फलों को पक्के खलिहान या पॉलीथिन में सुखाना चाहिए। फलों को लगभग १५ दिन सुखाया जाता है एवं २ सें ४ दिन के अंतराल पर फलों की उलट पलट की जाती है ताकि फल पूर्ण रूप से सूख सकें। कांटे वाली सिंघाड़े की जगह बिना कांटे वाली किस्मों का चुनाव खेती के लिए करें, ये किस्में अधिक उत्पादन देती है साथ ही इनकी गोटियों का आकार भी बड़ा होता है। एवं खेतों में इसकी तुड़ाई आसानी से की जा सकती है।
सिंघाड़े के कीट:
सिंघाड़े में मुख्यत: सिंघाड़ा भृंग एवं लाल खजूरा नामक कीट का प्रकोप होता है जिससे फसल में २५ – ४० प्रतिशत तक उत्पादन कम हो जाता है। इसके अलावा नीला भृंग, माहू एवं घुन कीट का प्रकोप भी पाया गया है।
सिंघाड़े के रोग:
सिंघाड़ा फसल में मुख्यत: लोहिया व दहिया रोग का प्रकोप होता है। इन रोगों के कारण फसल कमजोर होती है साथ ही साथ फल छोटे व कम सख्या में आतें हैं।

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हरी बीन्स की खेती…

सूरत में अब डिजिटल बिजली मीटर के स्थान पर लगेंगे स्मार्ट प्रीपेईड मीटर

दक्षिण गुजरात पावर कंपनी (DGVCL) ने बिजली उपभोक्ताओं के लिए एक नया युग शुरू करते हुए स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाने की योजना बनाई है। 8 अप्रैल को, पीपलोद डिवीजन के सुमन शैल अपार्टमेंट में 800 स्मार्ट मीटर लगाए जाएंगे। सूरत में अब डिजिटल बिजली मीटर के स्थान पर लगेंगे स्मार्ट प्रीपेईड मीटर यह पहला अपार्टमेंट होगा जहाँ स्मार्ट मीटर लगाए जाएंगे। अगले 18 महीनों में, DGVCL सूरत सर्कल में लगभग 17 लाख प्रीपेड मीटर लगाएगी। पहले चरण में, DGVCL सूरत शहर, सूरत ग्रामीण, पिपलोद, रांदेर, सूरत इंडस्ट्रियल, व्यारा और कामरेज में 17 लाख स्मार्ट मीटर लगाएगा। प्रतिदिन 3 हजार मीटर लगाए जाएंगे, जिससे 90 हजार से 1 लाख मीटर प्रति माह लगाए जाएंगे।

बिजली कंपनी 2600 करोड़ रुपये खर्च कर रही है:

DGVCL इस पूरे प्रोजेक्ट पर करीब 2600 करोड़ रुपये खर्च कर रही है। बिजली कंपनी इस बदलाव की प्रक्रिया में ग्राहकों को परेशानी न हो, इसका ध्यान रखेगी। शुरुआती चरण में, ग्राहकों की सुविधा का ख्याल रखा जाएगा। दूसरे और चौथे शनिवार, रविवार और सार्वजनिक अवकाश पर बैलेंस न होने पर भी बिजली आपूर्ति नहीं काटी जाएगी। इसके अलावा, बैलेंस न होने पर भी 5 दिनों तक बिजली सप्लाई जारी रहेगी। स्मार्ट मीटर आने के बाद बिजली कंपनी के कर्मचारियों और ग्राहक के बीच मेलजोल कम हो जाएगा। DGVCL ने एक कंट्रोल रूम बनाया है, जो सभी शिकायतों का समाधान करेगा। बिजली कटौती की स्थिति में, ग्राहक ऐप पर शिकायत कर सकते हैं और 15 मिनट के अंदर समाधान प्राप्त कर सकते हैं।

पोखरण में तोपों, टैंकों और लड़ाकू जहाजों की ललकार

भारत को सामरिक दृष्टि से आत्मनिर्भर बनाने की मोदी सरकार की मुहीम बडी तेजी से आगे बढ रही है. पोखरण में तोपों, टैंकों और लड़ाकू जहाजों की ललकार, सेना के तीनों अंगों में बड़ी तादाद में शामिल किए जा रहे हथियार स्वदेशी हैं और इन्हीं स्वदेशी हथियारों की मारक क्षमता और ताकत को देखने खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पोखरण फायरिंग रेंज पहुंचे. 50 मिनट तक पोखरण के मैदान में इतना बारूद बरसाया गया कि उसकी धमक पाकिस्तान को जरूर महसूस हो रही होगी. सेना के तीनों अंगों के स्वदेशी हथियार ताबड़तोड़ गोलीबारी की. इसमें LCA तेजस,  LCH प्रचंड, ALH ध्रुव , पिनाका मल्टी बैरल रॉकेट लॉंचर , T 90, अर्जुन टैंक,  K 9 वज्र , धनुष, सारंग तोपों ने तो मानो रेगिस्तान में इतनी रेत उड़ा दी की कुछ भी दिखाई देना मुश्किल हो गया. युद्धाभ्‍यास की शुरुआत में तीनों सेना के अंगों के स्पेशल फोर्स, गरुढ कमॉडों और मार्कोज हैलिकॉप्टर के जरिए स्लीदर और ऑल टेरेन वेहिकल के जरिये युद्ध के मैदान पर पहुँचे और देखते ही देखते दुश्मन के इलाके में पोज़ीशन ले ही. माहौल तो तब बना जब मल्टी बैरल रॉकेट लॉंचर ग्रैड की पूरी बैटरी ने लॉंचर ट्यूब ख़ाली कर दी. पोखरण में तोपों, टैंकों और लड़ाकू जहाजों की ललकार वैसे तो ग्रेड भारतीय प्लेटफ़ॉर्म नहीं है लेकिन जो एम्यूनेशन फ़ायर किया गया वो स्वदेशी था इसके तुरंत बाद स्वदेशी मल्टी बैरल रॉकेट लॉंचर पिनाका की पूरी एक बैटरी के 6 लॉंचर ने एक के बाद एक धूएँ की लकीरें आसमान पर खींच दी.

बीएमपी , T-90 और अर्जुन ने तो रेत के टीले पर एक लाइन से खड़े होकर इतनी फायरिंग की कि सामने सिर्फ धूआँ ही धूआँ दिखाई देने लगा. प्रधानमंत्री ने आपने संबोधन में भारतीय सेना के स्वदेशी ताक़त की जमकर तारीफ की. इस सैन्य अभ्यास में लॉयटरिंग म्यूनिशन सहित सर्वत्र और अत्याधुनिक ड्रोन और यूएवी सहित रोबोटिक म्युल भी युद्ध क्षेत्र में अपनी ताकत का परिचय दिया. इस एक्सरसाइज के जरिए दिखाया गया कि कैसे युद्ध की स्थिति में भारतीय सेना के तीनों अंगों थलसेना , वायुसेना और नौसेना मिलकर काम करती है और कितनी तेजी से सेनाओं के बीच कॉर्डिनेशन होता है. सेना के तीनों अंगो को मिलाकर इंटीग्रेटेड थिएटर कमांड बनाने की तैयारी भी चल रही है। पोखरण में तोपों, टैंकों और लड़ाकू जहाजों की ललकार, हालांकि इसका फाइनल स्वरूप तय होना बाकी है. ऐसे में तीनों सेनाओं का किस तरह से इंटीग्रेशन होता है और अलग-अलग लोकेशन पर होने के बाद भी कैसे तेजी से कम्युनिकेशन होता है, यह सब ‘भारत शक्ति’ एक्सरसाइज में दिखाई देगा. पिछले कुछ सालों में आत्मनिर्भरता के तहत रक्षा मंत्रालय पॉजिटिव इंडिनाइजेशन की पांच लिस्ट जारी कर चुका है. यानी उन रक्षा उपकरणों की लिस्ट जिनकी खरीद विदेशों से नहीं बल्कि स्वदेशी कंपनियो से की जाएगी.

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जल्द आएगी रतन टाटा की ड्रीम कार Tata Nano EV, फीचर से होगी भरपूर

Ratan Tata dream car: टाटा संस के चेयरमैन रतन टाटा ने आम आदमी के लिए लखटकिया कार टाटा नैनो को 23 मार्च 2009 को भारत के बाजार में लॉन्च किया था. जल्द आएगी रतन टाटा की ड्रीम कार Tata Nano EV, फीचर से होगी भरपूर ,यह कार रतन टाटा की ड्रीम कार थी. बाजार में यह काफी लोकप्रिय हुई, लेकिन 2019 तक इसकी लोकप्रियता में गिरावट आ गई और टाटा मोटर्स को इसका उत्पादन बंद करना पड़ा. अब जबकि देश में इलेक्ट्रिक वाहनों की डिमांड तेजी से बढ़ रही है, तो चर्चा यह भी हो रही है कि रतन टाटा की ड्रीम कार टाटा नैनो इलेक्ट्रिक वर्जन में जल्द ही आएगी. हालांकि, चर्चा यह भी है कि कंपनी इस छोटी सी कार को पुराने नाम से बाजार में नहीं उतारेगी, बल्कि इसका नाम ‘जयेम नियो’ होगा. मीडिया की रिपोर्ट की मानें, तो टाटा मोटर्स टाटा नैनो के इलेक्ट्रिक अवतार जयेम नियो से 2024 में कभी भी पर्दा उठा सकती है. ऑटोकार इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, टाटा नैनो का इलेक्ट्रिक मॉडल जयेम नियो प्रोडक्शन शुरू कर दिया गया है. टाटा नैनो ईवी के फीचर्स की बात करें, तो इस इलेक्ट्रिक कार में एंड्रॉइड ऑटो और ऐप्पल कारप्ले कनेक्टिविटी, ब्लूटूथ और इंटरनेट कनेक्टिविटी के साथ 7 इंच का टचस्क्रीन इंफोटेनमेंट सिस्टम, 6-स्पीकर साउंड सिस्टम, पावर स्टीयरिंग, पावर विंडो और ईबीडी के साथ एंटी-लॉक ब्रेकिंग सिस्टम मिल सकते हैं. टाटा नैनो ईवी में 17 किलोवॉट की बैटरी पैक मिल सकती है, जो एक बार फुल चार्ज होने पर 300 किलोमीटर तक की दूरी तय कर सकती है. कार की अधिकतम टॉप स्पीड 80 किलोमीटर प्रति घंटा हो सकती है. टाटा नैनो ईवी में 40 किलोवाट का इलेक्ट्रिक मोटर दिया जा सकता है, जो 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से 0 से 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार पकड़ने में 10 सेकंड का समय लेता है. वहीं, टाटा नैनो ईवी कार की कीमत के बारे में बात करें, तो यह भारत के एक्स-शोरूम में 3 से 5 लाख रुपये के बीच शुरुआती कीमत के साथ उपलब्ध होगी. हालांकि, मीडिया की रिपोर्ट में बताया जा रहा है कि कंपनी ने इसका उत्पादन भी शुरू कर दिया है.

Solar rooftop scheme: किसानो को अब 12 घंटे लगातार सोलर से मिलेगी बिजली

Solar rooftop scheme: सरकार लगातार सोलर अनर्जी  को बढ़ावा दे रही है. किसानों को दिन के समय 12 घंटे की लगातार पावर सप्लाई प्रदान करने के लिए महाराष्ट्र सरकार ने बड़ा एलान किया है.

Solar rooftop scheme: सरकार लगातार सोलर अनर्जी  को बढ़ावा दे रही है. Solar rooftop scheme: किसानो को अब 12 घंटे लगातार सोलर से मिलेगी बिजली, किसानों को दिन के समय 12 घंटे की लगातार पावर सप्लाई प्रदान करने के लिए महाराष्ट्र सरकार ने बड़ा एलान किया है. महाराष्ट्र उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने 9,000 मेगावाट बिजली पैदा करने के लिए सोलर प्लांट स्थापित करने के लिए 95 संस्थाओं को लेटर ऑफ अवॉर्ड जारी कर दिए हैं. कहा गया है कि इस कदम से महाराष्ट्र में 25,000 नौकरियां पैदा होंगी. सरकार के फैसले से 2025 तक 40 फीसदी एग्रीकल्चर फीडर सोलर एनर्जी से चलने में सक्षम हो जायेंगे. फड़नवीस ने कहा कि हमारी सरकार किसानों को दिन के समय 12 घंटे बिना रुकावट बिजली देने के लिए प्रतिबद्ध है. 9,000 मेगावाट के सोलर प्लांट के लिए 95 डेवलपर्स को एलओए दिए गए. इस फैसले को बिजली क्षेत्र के लिए बड़ी उपलब्धि बताते हुए फड़णवीस ने कहा कि कृषि क्षेत्र में इतने बड़े पैमाने पर सोलर एनर्जी स्थापित करने वाला महाराष्ट्र पहला राज्य है. उन्होंने कहा कि प्रति यूनिट बिजली की लागत 7.50 रुपये है, जबकि सौर ऊर्जा की लागत 2.50 रुपये से 3 रुपये प्रति यूनिट होगी. राज्य सरकार किसानों को 1.25 रुपये प्रति यूनिट की रियायती दर पर बिजली देती है, जिससे 13,000 करोड़ रुपये का खर्च आता है. उन्होंने कहा कि अगर कृषि को पूरी तरह से सोलर एनर्जी पर शिफ्ट कर दिया जाए तो खर्च कम हो जाएगा.

महाराष्ट्र में 1.6 करोड़ किसान-महाराष्ट्र में 1.6 करोड़ किसान हैं जिनमें से 78 प्रतिशत निम्न और सीमांत श्रेणी में हैं. डिप्टी सीएम ने कहा कि सौर ऊर्जा न केवल लागत प्रभावशीलता में बल्कि सूर्यास्त के बाद खेतों में काम करने में भी मदद करेगी. Solar rooftop scheme: किसानो को अब 12 घंटे लगातार सोलर से मिलेगी बिजली, अप्रैल 2023 में राज्य सरकार ने पीएम-कुसुम योजना के मुख्यमंत्री सौर कृषि वाहिनी योजना (MSKVY) 2.0 शुरू की. तब से, ऊर्जा विभाग, MSEDCL और MSAPL को जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली, जिसके कारण पूरे महाराष्ट्र में 9,000 मेगावाट से अधिक सोलर एनर्जी प्रोजेक्ट की खरीद के लिए निविदा प्रक्रिया बंद कर दी गई.

मसालों की रानी इलायची

इलाइची, भारत समेत पूरी दुनिया में लोकप्रिय है. इसका यूज अलग-अलग व्यंजनों में किया जाता है. मसालों की रानी इलायची यह अपने औषधीय गुणों के लिए भी मशहूर है. भारत में केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु में इलायची की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है, इलाइची भारतीय व्यंजनों में यूज होने वाला एक जरूरी और महंगा मसाला है.

भारत के मसालों की प्रसिद्धि पूरी दुनिया में है. कई राज्यों में अलग-अलग मसालों की खेती बड़े पैमाने पर होती है. इन सबके बीच किसान इलायची की खेती से भी बढ़िया मुनाफा कमा रहे हैं. मसालों की रानी इलायची, इसकी बाजार में काफी अच्छी कीमत मिलती है. इलायची की खेती करके किसान भाई काफी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. भारत में इलायची की खेती प्रमुख रूप से की जाती है. इसके अलावा इसका उपयोग मिठाई में खुशबू के लिए किया जाता है.
यदि सही तरीके से इसकी खेती की जाए तो इससे काफी अच्छा लाभ कमाया जा सकता है. बाजार में हमेशा इसका मांग बनी रहेती है. इसे ध्यान में रखकर किसान इस खरीफ सीजन में इलायची की आसान तरीके से खेती कर अच्छा उत्पादन और मुनाफा दोनों ले सकते हैं. इलायची, जिसे लोकप्रिय रूप से मसालों की रानी के रूप में जाना जाता है, हमारा वार्षिक उत्पादन लगभग ४०००० मीट्रिक टन है और इसका लगभग ६०ज्ञ् से अधिक देशों को निर्यात किया जाता है जिससे लगभग ६० मिलियन रुपये की विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है। इलायची का उपयोग भोजन, कन्फेक्शनरी, पेय पदार्थ और शराब की विभिन्न तैयारियों को स्वादिष्ट बनाने के लिए किया जाता है।
मिट्टी और जलवायु
इलायची की खेती के लिए दोमट मिट्टी वाले घने छायादार क्षेत्र आदर्श होते हैं। यह फसल ६०० से १५०० मीटर की ऊंचाई पर उगाई जा सकती है। भारी हवाओं के संपर्क में आने वाले क्षेत्र अनुपयुक्त हैं। इसके खेत में जल निकासी की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए। यह जंगल की दोमट मिट्टी में उगाया जाता है जो आमतौर पर ५.० – ६.५ की पीएच सीमा के साथ प्रकृति में अम्लीय होती है। जून से दिसंबर तक का मौसम इसके उत्पादन के लिए बहुत अच्छा माना जाता है।
इलायची की प्रमुख किस्में
श्aत्aंar : मुदिगरी १, मुदिगरी २, झ्न्न् १, झ्न्न्-३, घ्ण्Rघ् १, घ्ण्Rघ् ३, ऊख्D ४, घ्घ्एR सुवर्ण, घ्घ्एR विजेता, घ्घ्एR अविनाश, ऊDख् – ११, ण्ण्ए – १, सुवासिनी, अविनाश, विजेता – १, अप्पानगला २, जलनि (उrााह ुदत््), घ्ण्Rघ् ८. इसकी बुवाई पुराने पौधों के सकर्स या बीजों का उपयोग करके किया जाता है। अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद, लकड़ी की राख और जंगल की मिट्टी को बराबर मात्रा में मिलाकर क्यारियां तैयार करें। बीजों/सकर्स को क्यारियों में बोयें और महीन बालू की पतली परत से ढक दें।
इलायची की पौध उगाना
बीज क्यारियों को मल्चिंग और छायां प्रदान करनी जरुरी होती है। क्यारियों को नम रखना चाहिए लेकिन क्यारियों बहुत गीला नहीं होना चाहिए। अंकुरण आमतौर पर बुवाई के एक महीने बाद शुरू होता है और तीन महीने तक जारी रहता है। पौध को द्वितीय नर्सरी में ३ से ४ पत्ती अवस्था में रोपित किया जाता है।
दूसरी नर्सरी का निर्माण
दूसरी नर्सरी का निर्माण करते समय ये ध्यान रखे की जिस जगह आप नर्सरी का निर्माण कर रहे है उस जगह क्यारियों के ऊपर छाया अवशय होनी जरुरी है। पौधों की रोपाई २र्० े २० सेमी की दूरी पर करें। २र्० े २० सेमी आकार के पॉलीबैग का उपयोग किया जा सकता है। सकर आमतौर पर गैप फिलिंग के लिए उपयोग किए जाते हैं लेकिन सकर बड़ी संख्या में उपलब्ध नहीं हो सकते हैं। इसलिए, भारतीय मसाला अनुसंधान संस्थान, इलायची अनुसंधान केंद्र, अप्पंगला द्वारा विकसित एक तीव्र क्लोनल गुणन तकनीक बड़ी संख्या में गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री के उत्पादन के लिए त्वरित, विश्वसनीय और किफायती साबित हुई है।
इस विधि के लिए चुनी गई जगह का ढलान हल्का होना चाहिए और उसके आस-पास पानी का स्रोत होना चाहिए। ४५ सेमी चौड़ाई, ४५ सेमी गहराई और किसी भी सुविधाजनक लंबाई की खाइयाँ ढलान के पार या समोच्च के साथ १.८ मीटर की दूरी पर ली जा सकती हैं। ऊपर की २० सेंटीमीटर गहरी मिट्टी को अलग से खोदा जाता है और खाई के ऊपरी हिस्से में ढेर कर दिया जाता है।

निचले २५ सेमी की खुदाई की जाती है और खाइयों के निचले हिस्से में लाइन के साथ ढेर लगा दिया जाता है। शीर्ष मिट्टी को समान भागों के साथ मिलाया जाता है, ह्यूमस समृद्ध जंगल की मिट्टी, रेत और पशु खाद के समान अनुपात के साथ मिलाया जाता है और मिट्टी के मिश्रण को बनाए रखने के लिए मल्चिंग की सुविधा के लिए शीर्ष पर ५ सेमी की गहराई छोड़कर वापस भर दिया जाता है। मार्च-अक्टूबर के दौरान खाइयों में ०.६ मीटर की दूरी पर सकर, प्रत्येक में एक बड़ा टिलर और एक बढ़ता हुआ युवा शूट होता है। ६० दिनों के अंतराल पर ६ विभाजित खुराकों में १००:५०:२०० किलोग्राम एनपीके/हेक्टेयर की उच्च उर्वरक खुराक सहित २५० ग्राम/पौधे पर नीम की खली के साथ नियमित खेती की जानी चाहिए। सप्ताह में कम से कम दो बार सिंचाई करनी चाहिए।
खेत की तैयारी
६० सेंर्मी े ६० सेंर्मी े ६० सेंमी आकार के गड्ढे खोदकर खाद और ऊपरी मिट्टी से भर दें। ढालू क्षेत्रों में कंटूर प्लांटिंग की जा सकती है। ये विधि १८-२२ महीने पुराने पौधों की रोपाई के लिए उपयोग किया जाता है। बुवाई करते समय पौधों से पौधों के बीच की दुरी का अवश्य ध्यान रखे। बड़ी प्रकार की पौध के लिए र्२.५ े २.० स्. की दुरी रखें और छोटे प्रकार र्२.० े १.५ स्. की दुरी रखें।
सिंचाई प्रबंधन
मुख्य रूप से इलायची की खेती मानसून के मौसम में की जाती है। फसल की वर्षा से ही जल आपूर्ति हो जाती है। अगर गर्मी और वर्षा के बीच का समय लम्बा हो जाता है तो अच्छी ऊपज पाने के लिए स्प्रिंकल के माध्यम से सिंचाई अवश्य करें।

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खाद और उर्वरक प्रबंधन
फसल में रोपाई से पहले १० टन प्रति एकड़ गोबर की खाद या कम्पोस्ट का इस्तेमाल करें। उर्वरक की बात करें तो अधिक ऊपज प्राप्त करने के लिए फसल में ३० -३५ किलोग्राम नाइट्रोजन, ३० -३५ किलोग्राम फॉस्फोरस और ६० -६५ किलोग्राम पोटाश प्रति एकड़ की दर से खेत में डालें। उर्वरकों को दो बार बराबर मात्रा में फसल में डालें। एक उर्वरक के भाग को जून या जुलाई में खेत में डालें, उर्वरक ड़ालते समय ये अवश्य ध्यान रखें की खेत में प्रचुर मात्रा में नमी हो। दूसरा उर्वरक का भाग अक्टूबर या नवंबर के महीने में डालें।
फसल में किट प्रबंधन
थ्रिप्स के रोकथाम के लिए निचे दिए गए किसी भी
फसल में रोग प्रबंधन
मोज़ेक या कट्टे रोग यह इलायची की उत्पादकता को प्रभावित करने वाला एक गंभीर रोग है। यह बनाना एफिड द्वारा फैलता है जिसे मिथाइल डेमेटॉन २५ ईसी या डायमेथोएट ३० ईसी या फॉस्फोमिडोन ८६ डब्ल्यूएससी के साथ २५० मि.ली./एकड़ पर नियमित छिड़काव करके नियंत्रित किया जा सकता है।
कटाई और प्रसंस्करण
मसालों की रानी इलायची के पौधे आमतौर पर रोपण के दो साल बाद फल देने लगते हैं। अधिकांश क्षेत्रों में कटाई की चरम अवधि अक्टूबर-नवंबर के दौरान होती है। १५-२५ दिनों के अंतराल पर तुड़ाई की जाती है। उपचार के दौरान अधिकतम हरा रंग प्राप्त करने के लिए पके कैप्सूल को काटा जाता है।
कटाई के बाद, कैप्सूल को या तो ईंधन भट्ठे में या बिजली के ड्रायर में या धूप में सुखाया जाता है। यह पाया गया है कि ताजी कटी हुई हरी इलायची के कैप्सूल को सुखाने से पहले १० मिनट के लिए २ज्ञ् वाशिंग सोडा में भिगोने से सुखाने के दौरान हरे रंग को बनाए रखने में मदद मिलती है।
जब ड्रायर का उपयोग किया जाता है, तो इसे १४ से १८ घंटे के लिए ४५ से ५० डिग्री ण् पर सुखाया जाना चाहिए, जबकि भट्ठा के लिए, ५० से ६० डिग्री ण् पर रात भर सुखाने की आवश्यकता होती है। सुखाने के लिए रखे गए कैप्सूल को पतला फैलाया जाता है और एक समान सुखाने को सुनिश्चित करने के लिए बार-बार हिलाया जाता है। सूखे कैप्सूल को हाथों या कॉयर मैट या तार की जाली से रगड़ा जाता है और किसी भी बाहरी पदार्थ को हटाने के लिए फटक दिया जाता है। फिर उन्हें आकार और रंग के अनुसार छांटा जाता है, और भंडारण के दौरान हरे रंग को बनाए रखने के लिए काले पॉलीथीन बैग में रखा जाता है।

Tata Sons IPO: टाटा संस ला रहा है सबसे बड़ा आईपीओ

Tata Sons IPO: टाटा ग्रुप भारत का एक बहुत बड़ा और प्रसिद्ध ग्रुप है। इस ग्रुप में टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS) और टाटा मोटर्स जैसी कई बड़ी कंपनियां शामिल हैं। Tata Sons IPO: टाटा संस ला रहा है सबसे बड़ा आईपीओ, स्पार्क PWM प्राइवेट लिमिटेड नाम की मुंबई स्थित निवेश बैंकिंग फर्म का अनुमान है कि Tata Sons लिमिटेड का IPO 8 खरब रुपये (96 अरब डॉलर) का मूल्यांकन प्राप्त कर सकता है। यह IPO अगले 18 महीनों के भीतर पेश किए किए जाने की संभावना है। टाटा ग्रुप भारत का एक बहुत बड़ा और प्रसिद्ध ग्रुप है। इस ग्रुप में टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS) और टाटा मोटर्स जैसी कई बड़ी कंपनियां शामिल हैं। सितंबर 2022 में, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने टाटा ग्रुप को “upper-layer” गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (NBFC) के रूप में कैटेगराइज किया था। इस कैटेगरी में आने वाली कंपनियों को 3 साल के अंदर सार्वजनिक रूप से शेयर बाजार में लिस्ट होना अनिवार्य है। विश्लेषक विदित शाह का मानना ​​है कि ग्रुप द्वारा किए गए गैर-लिस्टेड निवेशों में मूल्य वृद्धि की बहुत संभावना है। क्योंकि ग्रुप सेमीकंडक्टर और ईवी बैटरी जैसे नए जमाने के सेक्टर में प्रवेश कर रहा है। ये सेक्टर तेजी से बढ़ रहे हैं और भविष्य में महत्वपूर्ण हो सकते हैं।

केवल 5 रुपए में कर सकेंगे कोलकाता में अंडरवॉटर मेट्रो की सवारी

Underwater Metro Kolkata: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को पश्चिम बंगाल में पहली अंडरवॉटर मेट्रो सर्विस का उद्घाटन किया। यह टनल अपने आप में इंजीनियरिंग का बेमिशाल नमूना है। केवल 5 रुपए में कर सकेंगे कोलकाता में अंडरवॉटर मेट्रो की सवारी . यह भारत में बनने वाली पहली अंडरवॉटर मेट्रो सर्विस है। इस टनल के जरिए कोलकाता मेट्रो के पूर्व-पश्चिम गलियारे को हावड़ा मैदान-एस्प्लेनेड खंड को पानी के नीचे से मेट्रो रेल प्रणाली द्वारा जोड़ा गया है। हुगली नदी के नीचे स्थित हावड़ा मेट्रो स्टेशन देश का सबसे गहरा स्टेशन है, जिसकी सुरंगें जल स्तर से 32 मीटर नीचे तक फैली हुई हैं।

इस टनल के जरिए कोलकाता मेट्रो के पूर्व-पश्चिम गलियारे को हावड़ा मैदान-एस्प्लेनेड खंड को पानी के नीचे से मेट्रो रेल प्रणाली द्वारा जोड़ा गया है। हुगली नदी के नीचे स्थित हावड़ा मेट्रो स्टेशन देश का सबसे गहरा स्टेशन है, जिसकी सुरंगें जल स्तर से 32 मीटर नीचे तक फैली हुई हैं।

१४ मार्च को होगी किसान महापंचायत…

Kisan Mahapanchayat will be held in Delhi on March 14

Kisan Mahapanchayat will be held in Delhi on March 14 किसान संगठन ‘संयुक्त किसान मोर्चा’ ने गुरुवार को एक बैठक की। १४ मार्च को होगी किसान महापंचायत… इस बैठक में कई मुद्दों पर चर्चा हुई। संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा कि वह न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानूनी गारंटी देने की मांग करते हुए 20 मार्च को संसद के बाहर ‘किसान महापंचायत’ करेगा। कई किसान संगठनों ने युद्धवीर सिंह, राजा राम सिंह और डॉ. सुनील के नेतृत्व में एक बैठक में शामिल होकर इस मुद्दे पर चर्चा की। कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन का नेतृत्व करने वाला किसान संगठन न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानूनी गारंटी देने की मांग लगातार कर रहा है। संयुक्त किसान मोर्चा ने बैठक में आम बजट की आलोचना करते हुए इसे ‘किसान विरोधी’ करार दिया। उन्होंने मौजूदा केंद्र सरकार पर और भी कई आरोप लगाए। संयुक्त किसान मोर्चा के वरिष्ठ नेता युद्धवीर सिंह ने बताया कि किसानों की लंबित मांगों को लेकर वह एक बार फिर से आंदोलन करने के लिए मजबूर हैं। इसी कड़ी में देशभर के किसान 20 मार्च को दिल्ली की ओर कूच करेंगे। पूर्व में किसान आंदोलन के दौरान सरकार ने जो आश्वासन दिए थे, वो अब तक पूरे नहीं हुए हैं। सरकार अपने वादे पर खरा नहीं उतरी है। ऐसे में पहले 20 मार्च को दिल्ली में महापंचायत करेंगे। इसके बाद बड़े आंदोलन का फैसला किया जाएगा।

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मिसाइल से जेट इंजन तक: सरकार ने ‘आत्मनिर्भरता’ को बढ़ावा देने के लिए 39,000 करोड़ रुपये के अनुबंध पर किए हस्ताक्षर

रक्षा मंत्रालय ने मिसाइल से जेट इंजन तक: सरकार ने ‘आत्मनिर्भरता’ को बढ़ावा देने के लिए 39,000 करोड़ रुपये के अनुबंध पर किए हस्ताक्षर, मंत्रालय की आत्मनिर्भर भारत पहल के हिस्से के रूप में मार्च में कुल 39,125.39 करोड़ रुपये के पांच प्रमुख पूंजी अधिग्रहण अनुबंधों पर हस्ताक्षर किए।

राजनाथ सिंह ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कहा, “रक्षा में आत्मनिर्भरता’ के हिस्से के रूप में और मेक-इन-इंडिया पहल को और बढ़ावा देने के लिए, रक्षा मंत्रालय (एमओडी) ने आज नई दिल्ली में 39,125.39 करोड़ रुपये के पांच प्रमुख पूंजी अधिग्रहण अनुबंधों पर हस्ताक्षर किए।” एक्स। 

इन पांच अनुबंधों में से एक अनुबंध मिग-29 विमानों के लिए एयरो-इंजन की खरीद के लिए हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के साथ 5,249.72 करोड़ रुपये का अनुबंध पर हस्ताक्षर किया गया था।

लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) के साथ दो अन्य अनुबंध पर हस्ताक्षर किए गए हैं। 7,668.82 करोड़ रुपये का एक अनुबंध देश में चुनिंदा स्थानों पर टर्मिनल वायु रक्षा प्रदान करने के लिए क्लोज-इन हथियार प्रणाली (सीआईडब्ल्यूएस) की खरीद के लिए है। 5,700.13 करोड़ रुपये का दूसरा अनुबंध, भारतीय वायुसेना की स्थलीय वायु रक्षा क्षमताओं को बढ़ाने के लिए उच्च-शक्ति रडार (एचपीआर) की खरीद के लिए है। दोनों परियोजनाओं से स्वदेशी विनिर्माण को बढ़ावा मिलने और महत्वपूर्ण रोजगार पैदा होने की उम्मीद है।

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दूसरी ओर, दो अन्य अनुबंधों पर ब्रह्मोस एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड (बीएपीएल) के साथ हस्ताक्षर किए गए। जबकि 19,518.65 करोड़ रुपये का एक अनुबंध, भारतीय नौसेना के लड़ाकू संगठन और प्रशिक्षण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए ब्रह्मोस मिसाइलों की खरीद के लिए है, वहीं 988.07 करोड़ रुपये का दूसरा अनुबंध, शिपबोर्न ब्रह्मोस प्रणाली की खरीद के लिए है, जो भारतीय नौसेना का प्राथमिक हथियार है। समुद्री हमले की कार्रवाई. 

पतंजलि को सुप्रीम कोर्ट का कंटेंप्ट नोटिस

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि आयुर्वेद के गुमराह करने वाले दवा विज्ञापनों पर रोक लगा दी है। पतंजलि को सुप्रीम कोर्ट का कंटेंप्ट नोटिस , दरअसल, कोर्ट ने पिछले साल कंपनी को ऐसे विज्ञापन नहीं देने का निर्देश दिया था। कंपनी ने इसे नजरअंदाज किया। इस पर कोर्ट ने कंपनी और मैनेजिंग डायरेक्टर (MD) आचार्य बालकृष्ण को अवमानना ​​नोटिस जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) की ओर से 17 अगस्त 2022 को दायर की गई याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसमें कहा गया है कि पतंजलि ने कोविड वैक्सीनेशन और एलोपैथी के खिलाफ निगेटिव प्रचार किया। वहीं खुद की आयुर्वेदिक दवाओं से कुछ बीमारियों के इलाज का झूठा दावा किया। केस की अगली सुनवाई 19 मार्च को होगी। कोर्ट ने निर्देश दिया था कि पतंजलि आयुर्वेद भविष्य में ऐसा कोई विज्ञापन प्रकाशित नहीं करेगा और यह भी तय करेगा कि प्रेस में उसकी ओर से इस तरह के कैज़ुअल स्टेटमेंट न दिए जाएं। बेंच ने यह भी कहा कि वह इस मुद्दे को ‘एलोपैथी बनाम आयुर्वेद’ की बहस नहीं बनाना चाहती बल्कि भ्रामक चिकित्सा विज्ञापनों की समस्या का वास्तविक समाधान ढूंढना चाहती है। पतंजलि को सुप्रीम कोर्ट का कंटेंप्ट नोटिस , इससे पहले हुई सुनवाई में तत्कालीन चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना ने कहा था, ‘बाबा रामदेव अपनी चिकित्सा प्रणाली को लोकप्रिय बना सकते हैं, लेकिन उन्हें अन्य प्रणालियों की आलोचना क्यों करनी चाहिए। हम सभी उनका सम्मान करते हैं, उन्होंने योग को लोकप्रिय बनाया, लेकिन उन्हें अन्य प्रणालियों की आलोचना नहीं करनी चाहिए।’

पतंजलि अपने कुछ अन्य प्रोडक्ट्स को लेकर विवादों में

  • 2015 में कंपनी ने इंस्टेंट आटा नूडल्स लॉन्च करने से पहले फूड सेफ्टी एंड रेगुलेरिटी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (FSSAI) से लाइसेंस नहीं लिया था। इसके बाद पतंजलि को फूड सेफ्टी के नियम तोड़ने के लिए लीगल नोटिस का सामना करना पड़ा था।
  • 2015 में कैन्टीन स्टोर्स डिपार्टमेंट ने पतंजलि के आंवला जूस को पीने के लिए अनफिट बताया था। इसके बाद सीएसडी ने अपने सारे स्टोर्स से आंवला जूस हटा दिया था। 2015 में ही हरिद्वार में लोगों ने पतंजलि घी में फंगस और अशुद्धियां मिलने की शिकायत की थी।
  • 2018 में भी FSSAI ने पतंजलि को मेडिसिनल प्रोडक्ट गिलोय घनवटी पर एक महीने आगे की मैन्युफैक्चरिंग डेट लिखने के लिए फटकार लगाई थी।
  • कोरोना के अलावा रामदेव बाबा कई बार योग और पतंजलि के प्रोडक्ट्स से कैंसर, एड्स और होमोसेक्सुअलिटी तक ठीक करने के दावे को लेकर विवादों में रहे हैं।

मंगल ग्रह पर हेलीकॉप्टर भेजने की तैयारी में भारत

भारत के अगले मंगल मिशन में एक हेलीकॉप्टर शामिल हो सकता है जो नासा के इनजेनिटी ड्रोन के नक्शेकदम पर काम करेगा। मंगल ग्रह पर हेलीकॉप्टर भेजने की तैयारी में भारत , अगर भारत अपने इस मिशन को पुराने मंगल मिशन की ही तरह कामयाब बनाता है, तो एक बार फिर से इसरो (ISRO) इतिहास रच देगा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) फिलहाल इस थ्योरी पर काम कर रहा है और ISRO के प्लान के मुताबिक, साल 2030 से पहले तक भारतीय लैंडर को मंगल ग्रह पर उतारने और उड़ान भरने के लिए तेजी से काम चल रहा है।

लाल ग्रह पर भारत का पहला मिशन – मार्स ऑर्बिटर मिशन (एमओएम), जिसे “मंगलयान” भी कहा जाता है, वो नवंबर 2013 में लॉन्च किया गया था और सितंबर 2014 में मंगलयान, मंगल ग्रह की कक्षा में कामयाबी के साथ प्रवेश कर गया। करीब आठ सालों तक लगातार रिसर्च करने के बाद भारतीय मंगलयान साल 2022 में नष्ट हो गया।

लेकिन, इसरो का अगला मिशन मंगल काफी मुश्किल और महत्वाकांक्षी है। रिपोर्ट के मुताबिक, विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र में अंतरिक्ष भौतिकी प्रयोगशाला के वैज्ञानिक जयदेव प्रदीप ने हाल ही में एक वेबिनार के दौरान कहा, कि मंगल ग्रह पर लैंडिंग मिशन के लिए नियोजित हेलीकॉप्टर, ग्रह के हवाई रिसर्च के लिए पेलोड का एक सूट ले जाएगा।

Rolta India को खरीदने के लिए पतंजलि ने लगाई बोली

Rolta India को अपना बनाने के लिए बाबा को अब कई कंपनियों से लड़नी होगी जंग!

कर्ज में डूबी कंपनी रोल्टा इंडिया (Rolta India) को खरीदने के लिए अब कई कंपनियां कूद पड़ी हैं। Rolta India को खरीदने के लिए पतंजलि ने लगाई बोली , बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि आयुर्वेद ने प्रोसेस पूरी होने के बाद इसे खरीदने में दिलचस्पी दिखाई थी। एनसीएलटी ने पतंजलि को इसके लिए बोली लगाने की अनुमति दे दी है। उसके बाद कई और कंपनियां भी इसके खरीदने की रेस में कूद पड़ी हैं। इनमें वेलस्पन ग्रुप की एमजीएन एग्रो प्रॉपर्टीज और मुंबई की कंपनी बी-राइट रियल एस्टेट शामिल हैं। इन कंपनियों को भी बोली लगाने के लिए एनसीएलटी से मंजूरी मिल गई है। एनसीएलटी की मुंबई बेंच ने सभी बिडर्स को 25 फरवरी तक फॉर्मल एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट सौंपने को कहा है। रोल्टा इंडिया डिफेंस से जुड़ी सॉफ्टवेयर कंपनी है लेकिन इसके पास मुंबई में काफी रियल एस्टेट एसेट है। बाबा रामदेव (Baba Ramdev) कर्ज में डूबी रोल्टा इंडिया (Rolta India) को खरीदना चाहते हैं. हाल ही में पतंजलि आयुर्वेद ने इसके लिए 830 करोड़ रुपए का कैश ऑफर दिया था. बाबा के ऑफर से पहले ही पुणे की कंपनी अशदान प्रॉपर्टीज (Ashdan Properties) को रोल्टा इंडिया का सबसे बड़ा बोलीदाता घोषित किया जा चुका था, इसलिए पतंजलि ने नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) से बोली स्वीकारने का आग्रह किया, जिसे उसने स्वीकार भी कर लिया. बाबा रामदेव के रोल्टा इंडिया में दिलचस्पी दिखाने के बाद अब कुछ और कंपनियां भी इस दौड़ में शामिल हो गई हैं. इसका सीधा मतलब है कि बाबा की राह अब उतनी आसान नहीं रहने वाली.

कंपनी पर है कर्ज का बोझ
NCLT से पतंजलि को बोली लगाने की अनुमति मिलने के बाद कई कंपनियों ने Rolta में दिलचस्पी दिखाई है. रिपोर्ट्स बताती हैं कि इन कंपनियों में से अधिकांश की नजर मुंबई में रोल्टा इंडिया के रियल एस्टेट एसेट्स पर है. हालांकि, उस पर कर्ज का भी काफी बोझ है. यूनियन बैंक की याचिका पर जनवरी 2023 में Rolta India के खिलाफ बैंकरप्सी प्रक्रिया शुरू हुई थी. यूनियन बैंक की अगुवाई वाले बैंकों के समूह से रोल्टा इंडिया ने 7100 करोड़ रुपए का कर्ज लिया है. वहीं, सिटी ग्रुप की अगुवाई वाले बैंकों से 6699 करोड़ का अनिसिक्योर्ड पैसा लिया है. कमल सिंह के प्रमोटर वाली यह कंपनी डिफेंस एंड होम लैंड सिक्योरिटी, पावर फाइनेंशियल सर्विसेज, मैन्युफैक्चरिंग, रिटेल और हेल्थकेयर में सेवाएं देती है.  पतंजलि से पहले पुणे की अशदान प्रॉपर्टीज की 760 करोड़ की पेशकश को बैंकों द्वारा सबसे बड़ी बोली घोषित किया गया था. इसके कुछ ही दिन बाद पतंजलि ने 830 करोड़ रुपए की पूरी तरह से नकद डील की पेशकश कर डाली. बाबा रामदेव की कंपनी ने NCLT से उसकी बोली स्वीकार करने का अनुरोध किया, जिसे NCLT ने स्वीकार कर लिया. अपना फैसला सुनाते हुए ट्रिब्यूनल ने कहा कि यह सबसे अच्छा है कि रुचि व्यक्त करने वाले सभी आवेदकों को एक और अवसर दिया जाए. यदि दूसरी कंपनियां रोल्टा में दिलचस्पी नहीं दिखाती, तो बाबा की राह काफी आसान हो जाती.

धनिया की खेती

धनिया एक वार्षिक जड़ी बूअी का पौधा है जिसका प्रयोग रसोई में मसाले के तौर पर किया जाता है। इसके बीजों, तने और पत्तों का प्रयोग अलग अलग पकवानों को सजाने और स्वादिष्ट बनाने के लिए किया जाता है। इसके पत्तों में विटामिन सी भरपूर मात्रा में होता है। घरेलू नूस्खों में इसका प्रयोग दवाई के तौर पर किया जाता है। इसे पेट की बिमारियों, मौसमी बुखार, उल्टी, खांसी और चमड़ी के रोगों को ठीक करने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसकी सब से ज्यादा पैदावार और खप्त भारत में ही होती है। भारत में इसकी सब से ज्यादा खेती राजस्थान में की जाती है। मध्य प्रदेश, आसाम, और गुजरात में भी इसकी खेती की जाती है।

 धनिया भारत की प्रमुख मसाला फसलों में से एक है। इसकी खेती भी भारत में बहुत बड़े पैमानें पर की जाती है जिसे हम मसाला फसल के रूप में जानते है। धनिया के पौधे से प्राप्त बीज और पौधे दोनों को उपयोग किया जाता है। धनिया की पत्ती का प्रयोग हम सब्जी में डालकर सब्जी को स्वादिष्ट बनाने के लिए करते है और धनिया की चटनी तो हर कोई खाना चाहता है। कृषि एक्सपर्ट की मानें तो इसके बीज में वाष्पशील तेल पाया जाता है, जो हमारे खानें को और भी स्वादिष्ट बनाता है। भारत के कुछ हिस्सों में धनिया के बीज का प्रयोग हम तेल, कैंडी, शराब, सूप बनाने के लिए भी करते है। धनिया के प्रयोग से साबुन और खुशबूदार चीजों को भी बनाया जाता है।

भारत में भी धनिया की खेती बहुत प्रमुखता से की जाती है , मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, आंध्रप्रदेश धनिया का उत्पादन करने वाले प्रमुख राज्य है। धनिया हमारे शरीर को भी कई बीमारी से बचाती है , इसके अंदर कैल्शियम, आयरन, फाइबर, विटामिन-ए, सी, कैरोटिन और कॉपर आदि चीजें पाई जाती है। डॉ की मानें तो अगर आप नियमित रूप से धनिया के दो बीज प्रतिदिन चबाते है तो आपको कभी भी शुगर नहीं होगा। आज के समय में धनिया की खेती काफी फायदेमंद खेती मानी जाती है। 

हाइब्रिड धनिया की किस्मे रोगों और कीटों के प्रति प्रतिरोधी होती है जिसके कारण फसल को कोई हानि नहीं पहुंचती है हाइब्रिड धनिए की किस्मे स्वादिष्ट और सुगंध के साथ कम समय में तैयार होने वाली किस्मे होती है हाइब्रिड बीज से तैयार की गई फसल पारंपरिक बीज से तैयार फसल की तुलना में अधिक समय तक टिकती है और ताजी बनी रहती है इसलिए हाइब्रिड धनिए की खेती आपके लिए बहुत फायदेमंद हो सकती है।

हाइब्रिड धनिए की किस्मो को विभिन्न प्रकार की किस्मों से वर्षों की मेहनत करके विकसित किया जाता है जिसमें उनके विशेष अच्छे गुणो को बढ़ाने के लिए सालों मेहनत की जाती है इसके बाद यह उच्च उपज और बेहतर स्वाद तथा लंबी लाइफ और कीटों तथा बीमारियों के प्रति प्रतिरोधी बन पाती है जिसके कारण किसानों को फसल से सामान्य खेती की तुलना में हाइब्रिड किस्म से अधिक उपज और लाभ होता है।

हाइब्रिड धनिया की किस्मो का चुनाव

 पहले आपको अपने क्षेत्र की जलवायु और मिट्टी के अनुसार ही हाइब्रिड धनिए की किस्मो का चुनाव करना चाहिए क्योंकि धनिए की अलग-अलग किस्म की जलवायु और मिट्टी मांग अलग-अलग होती है इसलिए आपको अपने जिले के कृषि विज्ञान केंद्र पर जाकर अपने क्षेत्र के लिए उपयुक्त हाइब्रिड धनिए की किस्म की जानकारी ले लेनी चाहिए। संकर धनिया की खेती के लिए मिट्टी तैयार करना एक महत्वपूर्ण कार्य है धनिया की हाइब्रिड किस्म के लिए ६ से ७ के बीच पीएच मान स्तर वाली तथा अच्छी जल निकास वाली भूमि उपयुक्त रहती है खेत की अच्छे से जुताई करके मिट्टी में जैविक पदार्थ जैसे कंपोस्ट खाद या सड़ी हुई गोबर की खाद डालनी चाहिए।

हाइब्रिड धनिया की खेती करने के लिए वर्षा ऋतु का मौसम सबसे अच्छा होता है इस मौसम में बोए गए धनिए के बीज तेजी के साथ अंकुरित होते हैं वर्षा ऋतु के मौसम में धनिए के बीज बोते समय उसे समय मिट्टी की नमी को ध्यान में रखकर बीज की बुवाई करनी चाहिए धनिया की खेती से आप १५ अक्टूबर से १५ नवंबर के बीच भी बुवाई करके अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। मिट्टी की अच्छे से तैयारी करने के बाद मिट्टी को ढीली करके और बड़े गुच्छो को हटाकर बीज की क्यारियां तैयार की जाती है।

खेत में नाली बनाते समय नाली के बीच की दूरी १५ से २० सेंटीमीटर रखनी चाहिए।

बीज की बुवाई करते समय दो बीज के बीच की दूरी २ से ३ सेंटीमीटर होनी चाहिए यदि आप कूड़ो में बीज की बुवाई करते हैं तो समान रूप से बीज की बुवाई कर सकते हैं। धनिया के बीज की बुवाई करने के बाद उनको ऊपर पतली मिट्टी की परत से ढक देते हैं और हल्के हाथ से दबा देते हैं। बीजों की बुवाई करने के बाद खेत में हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए अधिक सिंचाई करने से बीज सड़ सकते हैं।

हाइब्रिड धनिए की फसल में सिंचाई कैसे करें 

हाइब्रिड धनिए की खेती करने के लिए उचित पानी और सिंचाई की आवश्यकता होती है इसलिए पौधों को नियमित रूप से पानी देकर मिट्टी में नमी बनाए रखना चाहिए तथा गर्म दिनों में अधिक सिंचाई की जानी चाहिए। आवश्यकता अनुसार ही पानी देना चाहिए अत्यधिक पानी देने से पौधों की जड़े सड़ने लगते हैं और पानी से संबंधित बीमारियां और किट का भी संक्रमण हो जाता है। इस प्रकार की समस्या से बचने के लिए उचित जल निकास की व्यवस्था करनी चाहिए यदि आंख आपके क्षेत्र में जल भराव की अधिक समस्या रहती है तो आप ड्रिप सिंचाई विधि या स्प्रिंकरण प्रणाली का भी उपयोग कर सकते हैं।

यदि आपके क्षेत्र में पानी की कमी है तो आप पौधों के चारों ओर की मिट्टी को मल्चिंग के द्वारा मिट्टी की नमी को सुरक्षित रख सकते हैं और साथ ही खरपतवार की समस्या से भी छुटकारा पा सकते हैं।

खाद एवं उर्वरक प्रबंधन

सबसे पहले अप्ानी मिट्टी की जांच कर लेनी चाहिए कि आपकी मिट्टी में किसी भी प्रकार पोषक तत्वों की कमी तो नहीं है इसके बाद रोपण से पहले मिट्टी में अच्छी तरह से संतुलित जैविक उर्वरक या खाद मिलनी चाहिए जब पौधे कुछ बड़े हो जाए या वनस्पति अवस्था के दौरान पौधों को नाइट्रोजन युक्त उर्वरक देने चाहिए। धनिया के पौधे में फूल आने और फल लगने के दौरान पोटेशियम और फास्फोरस उर्वरकों का उपयोग करना चाहिए ऐसा करने से पैदावार अधिक होती है।

 

धनिया की खेती में खरपतवार नाशक दवा उपयोग

धनिए की खेती में खरपतवार के द्वारा ४० से ४५ज्ञ् तक उपज कम हो सकती है इसलिए धनिया की खेती में खरपतवार नियंत्रण करना एक सबसे महत्वपूर्ण कार्य होता है धनिया की खेती में नीचे दी गई खरपतवार नाशक दवा का उपयोग कर सकते हैं।

पेडिमिथलीन ३० Eण् – इस खरपतवार नाशी दवा का उपयोग धनिए की बुवाई के बाद खरपतवार नियंत्रण करने के लिए किया जाता है इस दवा को बुवाई के दो से तीन दिन बाद ६०० से ७०० लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टर छिड़काव किया जाता है।

क्विजोलोफाप इथाईल ५ Eण् – इस दवा का उपयोग भी धनिए की खेती में खरपतवार नियंत्रण करने के लिए किया जा सकता है इसकी ५० ग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर ६०० से ७०० लीटर पानी में १५ से २० दिन के अंतराल पर किया जा सकता है।

हाइब्रिड धनिए में कीट एवं रोग प्रबंधन हाइब्रिड धनिया की किस्मे कीट और बीमारियों के प्रति प्रतिरोधी होते हैं किंतु कुछ स्थिति में हाइब्रिड धनिया की फसल में भी कीट और रोग लगा सकते हैं इसलिए उनका निवारण करना बहुत आवश्यक होता है। किट और रोगों से बचने के लिए फसल चक्र का उपयोग करना चाहिए।

कीट या रोग से प्रभावित पौधों को खेत से निकाल कर रख कर देना चाहिए।

रोग प्रतिरोधी या कीट प्रतिरोधी किस्मो का इस्तेमाल करना चाहिए।

धनिया के पौधे की नियमित रूप से देखभाल करनी चाहिए।

एफिडस या लीफ माइनर जैसे सामान्य किट के प्रबंध के लिए नीम का तेल, लहसुन पर आधारित स्प्रे का उपयोग कर सकते हैं।

यदि आपको कीट या रोगों को नियंत्रित करने में कोई परेशानी आ रही हो तो आप कृषि विशेषज्ञ की सलाह ले सकते हैं।

हाइब्रिड धनिए की कटाई कब और कैसे करें 

धनिया की फसल ८० से ९० दिनों में कटाई के योग्य हो जाती है धनिए को पौधों के आधार से काटना चाहिए यदि आप बीज उत्पादन के लिए धनिए की खेती कर रहे हैं तो आप परिपक्व होने तक जब तक बीज बुरे ने हो जाए तब तक कटाई ना करें।

कटाई के बाद क्या करें

किसी भी प्रकार की श्रुति ग्रस्त या बदरंग पत्तियों को या बीजों को निकाल देना चाहिए और किसी भी प्रकार की गंदगी या मलबे को हटाने के लिए कटी हुई धनिया की पत्तियों को अच्छी तरह से धोकर साफ कर लेना चाहिए धनिए की पैकिंग या भंडारण करने से पहले पत्तियों को आंशिक रूप से हवा में सुख लेना चाहिए।

धनिया की पत्तियों को रखने के लिए छिद्रित प्लास्टिक बैग का उपयोग करना चाहिए जिसका तापमान २ से ४ डिग्री सेल्सियस के तापमान पर रेफ्रिजरेटर में रखना चाहिए तथा धनिए के बीजों का स्वाद और सुगंध बनाए रखने के लिए इन्हें एयर टाइट कंटेनर में ठंडी और सुखी जगह पर रखना चाहिए।

सशस्त्र बलों के लिए 84,560 करोड़ रुपये मूल्य के एंटी-टैंक माइन्स, रडार, टॉरपीडो को डीएसी की मंजूरी

 84,000 करोड़ रुपये के प्रस्तावों को मंजूरी

रक्षा मंत्रालय (एमओडी) ने शुक्रवार को सशस्त्र बलों के लिए नई पीढ़ी के एयर डिफेंस टैक्टिकल कंट्रोल रडार (एडीटीसीआर) और हेवीवेट टॉरपीडो की खरीद के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। सशस्त्र बलों के लिए 84,560 करोड़ रुपये मूल्य के एंटी-टैंक माइन्स, रडार, टॉरपीडो को डीएसी की मंजूरी रक्षा मंत्रालय ने मध्यम दूरी के समुद्री टोही और मल्टी-मिशन समुद्री विमान, उड़ान ईंधन भरने वाले विमान और सॉफ्टवेयर डिफाइंड रेडियो के लिए भी अपनी मंजूरी दे दी है। रक्षा मंत्रालय ने मध्यम दूरी के समुद्री टोही और मल्टी-मिशन समुद्री विमान, उड़ान ईंधन भरने वाले विमान और सॉफ्टवेयर डिफाइंड रेडियो के लिए भी अपनी मंजूरी दे दी है। MoD ने कहा कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में इसकी रक्षा अधिग्रहण परिषद (DAC) ने 84,560 करोड़ रुपये के विभिन्न पूंजी अधिग्रहण प्रस्तावों के लिए आवश्यकता की स्वीकृति (AoNs) को मंजूरी दी। मंजूरी में भारतीय विक्रेताओं से उपकरणों की खरीद पर विशेष जोर दिया गया है। डीएसी ने अतिरिक्त सुरक्षा सुविधाओं के साथ भूकंपीय सेंसर और रिमोट निष्क्रियीकरण के प्रावधान वाले एंटी-टैंक खानों को मंजूरी दे दी है। मशीनीकृत बलों द्वारा दृश्य रेखा से परे लक्ष्यों को भेदने के लिए सामरिक युद्ध क्षेत्र में परिचालन दक्षता और वर्चस्व को बढ़ाने के लिए, कनस्तर लॉन्च किए गए एंटी-आर्मर लोइटर की खरीद के लिए खरीदें (भारतीय-आईडीडीएम) श्रेणी के तहत एओएन प्रदान किया गया है। रक्षा मंत्रालय ने कहा, गोला-बारूद प्रणाली। रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, सरकार के बयान में एयरबस द्वारा बनाए गए सी-295 विमान के समुद्री निगरानी संस्करण का उल्लेख किया गया है, और इनका निर्माण स्पेन और भारत में किया जाएगा। केंद्र ने उन लक्ष्यों पर हमला करने के लिए एक प्रणाली खरीदने को भी मंजूरी दे दी जो दूर हैं और दिखाई नहीं देते हैं, साथ ही धीमी, छोटी और कम उड़ान वाले खतरों के खिलाफ वायु रक्षा में सुधार के लिए एक रडार प्रणाली भी खरीदने को मंजूरी दी है। इसके अतिरिक्त, उन्होंने संभावित खतरों से आगे रहने के लिए लंबी दूरी से पनडुब्बियों का पता लगाने के लिए नौसेना के जहाजों के लिए उन्नत सोनार प्राप्त करने का भी उल्लेख किया।