मसालों की रानी इलायची

इलाइची, भारत समेत पूरी दुनिया में लोकप्रिय है. इसका यूज अलग-अलग व्यंजनों में किया जाता है. मसालों की रानी इलायची यह अपने औषधीय गुणों के लिए भी मशहूर है. भारत में केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु में इलायची की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है, इलाइची भारतीय व्यंजनों में यूज होने वाला एक जरूरी और महंगा मसाला है.

भारत के मसालों की प्रसिद्धि पूरी दुनिया में है. कई राज्यों में अलग-अलग मसालों की खेती बड़े पैमाने पर होती है. इन सबके बीच किसान इलायची की खेती से भी बढ़िया मुनाफा कमा रहे हैं. मसालों की रानी इलायची, इसकी बाजार में काफी अच्छी कीमत मिलती है. इलायची की खेती करके किसान भाई काफी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. भारत में इलायची की खेती प्रमुख रूप से की जाती है. इसके अलावा इसका उपयोग मिठाई में खुशबू के लिए किया जाता है.
यदि सही तरीके से इसकी खेती की जाए तो इससे काफी अच्छा लाभ कमाया जा सकता है. बाजार में हमेशा इसका मांग बनी रहेती है. इसे ध्यान में रखकर किसान इस खरीफ सीजन में इलायची की आसान तरीके से खेती कर अच्छा उत्पादन और मुनाफा दोनों ले सकते हैं. इलायची, जिसे लोकप्रिय रूप से मसालों की रानी के रूप में जाना जाता है, हमारा वार्षिक उत्पादन लगभग ४०००० मीट्रिक टन है और इसका लगभग ६०ज्ञ् से अधिक देशों को निर्यात किया जाता है जिससे लगभग ६० मिलियन रुपये की विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है। इलायची का उपयोग भोजन, कन्फेक्शनरी, पेय पदार्थ और शराब की विभिन्न तैयारियों को स्वादिष्ट बनाने के लिए किया जाता है।
मिट्टी और जलवायु
इलायची की खेती के लिए दोमट मिट्टी वाले घने छायादार क्षेत्र आदर्श होते हैं। यह फसल ६०० से १५०० मीटर की ऊंचाई पर उगाई जा सकती है। भारी हवाओं के संपर्क में आने वाले क्षेत्र अनुपयुक्त हैं। इसके खेत में जल निकासी की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए। यह जंगल की दोमट मिट्टी में उगाया जाता है जो आमतौर पर ५.० – ६.५ की पीएच सीमा के साथ प्रकृति में अम्लीय होती है। जून से दिसंबर तक का मौसम इसके उत्पादन के लिए बहुत अच्छा माना जाता है।
इलायची की प्रमुख किस्में
श्aत्aंar : मुदिगरी १, मुदिगरी २, झ्न्न् १, झ्न्न्-३, घ्ण्Rघ् १, घ्ण्Rघ् ३, ऊख्D ४, घ्घ्एR सुवर्ण, घ्घ्एR विजेता, घ्घ्एR अविनाश, ऊDख् – ११, ण्ण्ए – १, सुवासिनी, अविनाश, विजेता – १, अप्पानगला २, जलनि (उrााह ुदत््), घ्ण्Rघ् ८. इसकी बुवाई पुराने पौधों के सकर्स या बीजों का उपयोग करके किया जाता है। अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद, लकड़ी की राख और जंगल की मिट्टी को बराबर मात्रा में मिलाकर क्यारियां तैयार करें। बीजों/सकर्स को क्यारियों में बोयें और महीन बालू की पतली परत से ढक दें।
इलायची की पौध उगाना
बीज क्यारियों को मल्चिंग और छायां प्रदान करनी जरुरी होती है। क्यारियों को नम रखना चाहिए लेकिन क्यारियों बहुत गीला नहीं होना चाहिए। अंकुरण आमतौर पर बुवाई के एक महीने बाद शुरू होता है और तीन महीने तक जारी रहता है। पौध को द्वितीय नर्सरी में ३ से ४ पत्ती अवस्था में रोपित किया जाता है।
दूसरी नर्सरी का निर्माण
दूसरी नर्सरी का निर्माण करते समय ये ध्यान रखे की जिस जगह आप नर्सरी का निर्माण कर रहे है उस जगह क्यारियों के ऊपर छाया अवशय होनी जरुरी है। पौधों की रोपाई २र्० े २० सेमी की दूरी पर करें। २र्० े २० सेमी आकार के पॉलीबैग का उपयोग किया जा सकता है। सकर आमतौर पर गैप फिलिंग के लिए उपयोग किए जाते हैं लेकिन सकर बड़ी संख्या में उपलब्ध नहीं हो सकते हैं। इसलिए, भारतीय मसाला अनुसंधान संस्थान, इलायची अनुसंधान केंद्र, अप्पंगला द्वारा विकसित एक तीव्र क्लोनल गुणन तकनीक बड़ी संख्या में गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री के उत्पादन के लिए त्वरित, विश्वसनीय और किफायती साबित हुई है।
इस विधि के लिए चुनी गई जगह का ढलान हल्का होना चाहिए और उसके आस-पास पानी का स्रोत होना चाहिए। ४५ सेमी चौड़ाई, ४५ सेमी गहराई और किसी भी सुविधाजनक लंबाई की खाइयाँ ढलान के पार या समोच्च के साथ १.८ मीटर की दूरी पर ली जा सकती हैं। ऊपर की २० सेंटीमीटर गहरी मिट्टी को अलग से खोदा जाता है और खाई के ऊपरी हिस्से में ढेर कर दिया जाता है।

निचले २५ सेमी की खुदाई की जाती है और खाइयों के निचले हिस्से में लाइन के साथ ढेर लगा दिया जाता है। शीर्ष मिट्टी को समान भागों के साथ मिलाया जाता है, ह्यूमस समृद्ध जंगल की मिट्टी, रेत और पशु खाद के समान अनुपात के साथ मिलाया जाता है और मिट्टी के मिश्रण को बनाए रखने के लिए मल्चिंग की सुविधा के लिए शीर्ष पर ५ सेमी की गहराई छोड़कर वापस भर दिया जाता है। मार्च-अक्टूबर के दौरान खाइयों में ०.६ मीटर की दूरी पर सकर, प्रत्येक में एक बड़ा टिलर और एक बढ़ता हुआ युवा शूट होता है। ६० दिनों के अंतराल पर ६ विभाजित खुराकों में १००:५०:२०० किलोग्राम एनपीके/हेक्टेयर की उच्च उर्वरक खुराक सहित २५० ग्राम/पौधे पर नीम की खली के साथ नियमित खेती की जानी चाहिए। सप्ताह में कम से कम दो बार सिंचाई करनी चाहिए।
खेत की तैयारी
६० सेंर्मी े ६० सेंर्मी े ६० सेंमी आकार के गड्ढे खोदकर खाद और ऊपरी मिट्टी से भर दें। ढालू क्षेत्रों में कंटूर प्लांटिंग की जा सकती है। ये विधि १८-२२ महीने पुराने पौधों की रोपाई के लिए उपयोग किया जाता है। बुवाई करते समय पौधों से पौधों के बीच की दुरी का अवश्य ध्यान रखे। बड़ी प्रकार की पौध के लिए र्२.५ े २.० स्. की दुरी रखें और छोटे प्रकार र्२.० े १.५ स्. की दुरी रखें।
सिंचाई प्रबंधन
मुख्य रूप से इलायची की खेती मानसून के मौसम में की जाती है। फसल की वर्षा से ही जल आपूर्ति हो जाती है। अगर गर्मी और वर्षा के बीच का समय लम्बा हो जाता है तो अच्छी ऊपज पाने के लिए स्प्रिंकल के माध्यम से सिंचाई अवश्य करें।

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खाद और उर्वरक प्रबंधन
फसल में रोपाई से पहले १० टन प्रति एकड़ गोबर की खाद या कम्पोस्ट का इस्तेमाल करें। उर्वरक की बात करें तो अधिक ऊपज प्राप्त करने के लिए फसल में ३० -३५ किलोग्राम नाइट्रोजन, ३० -३५ किलोग्राम फॉस्फोरस और ६० -६५ किलोग्राम पोटाश प्रति एकड़ की दर से खेत में डालें। उर्वरकों को दो बार बराबर मात्रा में फसल में डालें। एक उर्वरक के भाग को जून या जुलाई में खेत में डालें, उर्वरक ड़ालते समय ये अवश्य ध्यान रखें की खेत में प्रचुर मात्रा में नमी हो। दूसरा उर्वरक का भाग अक्टूबर या नवंबर के महीने में डालें।
फसल में किट प्रबंधन
थ्रिप्स के रोकथाम के लिए निचे दिए गए किसी भी
फसल में रोग प्रबंधन
मोज़ेक या कट्टे रोग यह इलायची की उत्पादकता को प्रभावित करने वाला एक गंभीर रोग है। यह बनाना एफिड द्वारा फैलता है जिसे मिथाइल डेमेटॉन २५ ईसी या डायमेथोएट ३० ईसी या फॉस्फोमिडोन ८६ डब्ल्यूएससी के साथ २५० मि.ली./एकड़ पर नियमित छिड़काव करके नियंत्रित किया जा सकता है।
कटाई और प्रसंस्करण
मसालों की रानी इलायची के पौधे आमतौर पर रोपण के दो साल बाद फल देने लगते हैं। अधिकांश क्षेत्रों में कटाई की चरम अवधि अक्टूबर-नवंबर के दौरान होती है। १५-२५ दिनों के अंतराल पर तुड़ाई की जाती है। उपचार के दौरान अधिकतम हरा रंग प्राप्त करने के लिए पके कैप्सूल को काटा जाता है।
कटाई के बाद, कैप्सूल को या तो ईंधन भट्ठे में या बिजली के ड्रायर में या धूप में सुखाया जाता है। यह पाया गया है कि ताजी कटी हुई हरी इलायची के कैप्सूल को सुखाने से पहले १० मिनट के लिए २ज्ञ् वाशिंग सोडा में भिगोने से सुखाने के दौरान हरे रंग को बनाए रखने में मदद मिलती है।
जब ड्रायर का उपयोग किया जाता है, तो इसे १४ से १८ घंटे के लिए ४५ से ५० डिग्री ण् पर सुखाया जाना चाहिए, जबकि भट्ठा के लिए, ५० से ६० डिग्री ण् पर रात भर सुखाने की आवश्यकता होती है। सुखाने के लिए रखे गए कैप्सूल को पतला फैलाया जाता है और एक समान सुखाने को सुनिश्चित करने के लिए बार-बार हिलाया जाता है। सूखे कैप्सूल को हाथों या कॉयर मैट या तार की जाली से रगड़ा जाता है और किसी भी बाहरी पदार्थ को हटाने के लिए फटक दिया जाता है। फिर उन्हें आकार और रंग के अनुसार छांटा जाता है, और भंडारण के दौरान हरे रंग को बनाए रखने के लिए काले पॉलीथीन बैग में रखा जाता है।

500 रुपये के नोट पर श्रीराम और राम मंदिर की फोटो वायरल 

500 रुपये के नोट पर श्रीराम और राम मंदिर की फोटो वायरल 

सोशल मीडिया पर कई फेक मैसेजों की भरमार आ गई है।  नोट दिख रहा है, मगर ये नोट आम पांच सौ रुपये के नोट की तरह नहीं है। दरअसल इस नोट पर भगवान राम और राम मंदिर की फोटो छपी है। सोशल मीडिया पर श्रीराम और राम मंदिर की फोटो के साथ 500 रुपये के नोट की फोटो लगातार ट्रेंड कर रही है। इसके साथ ही ये भी वायरल हो रहा है कि भारतीय रिजर्व बैंक की तरफ से भगवान श्रीराम की तस्वीर वाले 500 रुपये के नई सीरीज के नोट जारी करने को लेकर कोई आधिकारिक सूचना सामने नहीं आई है। प्रभु श्रीराम और राम मंदिर की तस्वीर के साथ वायरल हो रहा 500 रुपये के नोट की फोटो पूरी तरह से फर्जी है। बता दें कि इससे पहले भी भारतीय रिजर्व बैंक सोशल मीडिया में आई कई खबरों का खंडन कर चुका है। ये पहला मौका नहीं है जब सोशल मीडिया पर इस तरह का मैसेज वायरल हो रहा है जिसमें नोट के डिजायन को बदलने की बात हो रही है। इससे पहले जून 2022 में भी खबरें आई थी कि महात्मा गांधी की फोटो की जगह नोट पर रवींद्रनाथ टैगोर की फोटो लगाई जाएगी। हालांकि ये सभी खबरें फर्जी साबित हुई है।

क्या है सोशल मीडिया के इस दावे की सच्चाई

सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा ये दावा झूठा है। 500 रुपए के नए नोट जारी करने की कोई सूचना आरबीआई या केंद्र सरकार की तरफ से नहीं दी गई है। वहीं, जिन तस्वीरों को सोशल मीडिया पर शेयर किया जा रहा है, उन्हें 500 रुपए के असली नोट की फोटो से छेड़छाड़ कर बनाया गया है। फोटो बनाने वाला यूजर आया सामने इसके साथ ही @raghunmurthy07 नाम के एक सोशल मीडिया यूजर ने ये भी दावा किया है कि उसने एडिट करके ये फोटो बनाई हैं। यूजर ने अपनी पोस्ट में लिखा है, ‘ये तस्वीरें मैंने एडिट की हैं और ये केवल मेरी कल्पना है। कृपया गलत जानकारी के साथ इन तस्वीरों को शेयर मत कीजिए।’ कुछ और यूजर्स ने भी लिखा कि हां ये तस्वीरें उनके इसी दोस्त ने एडिट की हैं

प्राण प्रतिष्ठा से पहले अयोध्या राम मंदिर में कड़ी सुरक्षा

प्राण प्रतिष्ठा से पहले अयोध्या में कड़ी सुरक्षा

कुछ राज्यों में पूरे दिन की छुट्टी तो कहीं 'हाफ डे'

अयोध्या में इस समय हर किसी की नजरें टिकी हैं और सभी अयोध्या में बने भव्य राम मंदिर के उद्घाटन की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जिसके लिए 22 जनवरी 2024 की तारीख तय की गई है. लेकिन केवल राम मंदिर ही नहीं बल्कि अयोध्या में ऐसे कई मंदिर हैं जो धार्मिक रूप से अयोध्या को पवित्र नगरी बनाने और इसकी शोभा बढ़ाने में अहम भूमिका निभाते हैं

धार्मिक नगरी अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा की तैयारी आखिरी चरण में है और इस ऐतिहासिक आयोजन को लेकर पूरे शहर को अभेद्य किले में तब्दील कर दिया गया है। आज से 22 जनवरी तक अयोध्या में बाहरी लोगों की एंट्री बैन रहेगी और अयोध्यावासियों को भी आईकार्ड दिखाना जरूरी होगा। अयोध्या धाम के भीतर रहने वाले लोगों से पुलिस प्रशासन ने 21 और 22 जनवरी को बाहर न निकलने की अपील की है। समारोह की सुरक्षा को लेकर यूपी एटीएस अलर्ट पर है और 4 बुलेटप्रूफ बख्तरबंद गाड़ियां भी तैनात कर दी गई हैं। इन गाड़ियों में UP ATS के तकरीबन 100 कमांडो तैनात हैं और किसी भी तरह की स्थिति से निपटने के लिए तैयार हैं।

 

 

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वित्त मंत्री का कार्यक्रम और कितने बजे संसद में पेश किया जाएगा बजट 2024।

 

    • गुरुवार की सुबह 8 बजकर 15 मिनट पर वित्त मंत्री सबसे पहले बजट 2024 तैयार करने वाली अपनी टीम के साथ फोटो सेशन में हिस्सा लेंगी।
    • सुबह 8 बजकर 45 मिनट पर वित्त मंत्री महामहिम राष्ट्रपति से मुलाकात कर बजट की मंजूरी लेंगी।
    • गुरुवार की सुबह 9 बजकर 15 मिनट पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण संसद पहुंचेंगी।
    • सुबह 10 बजे कैबिनेट की बैठक होगी जिसमें बजट को मंजूरी दी जाएगी।
    • सुबह 11 बजे वित्त मंत्री संसद में वर्ष 2024 का अंतरिम बजट पेश करेंगी। इस वर्ष आम चुनाव होने हैं। आम चुनाव की प्रक्रिया पूरी होने के बाद नई सरकार संभवतः जुलाई महीने में पूर्ण बजट पेश करेगी
 

22 जनवरी को अयोध्या के राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होनी है। इससे पहले, श्री राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट ने इस मेगा इवेंट को लेकर एंट्री एं पास जारी किया है। ट्रस्ट की ओर से कहा गया कि एंट्री पास में क्यूआर कोड दिया गया है, जिसेस्कैन करनेके बाद ही मंदिर में जाने की इजाजत दी जाएगी। श्री राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट के एक्स अकाउंट पर पोस्ट किया गया, ‘प्राण प्रतिष्ठा उत्सव मेंआमंत्रित महानुभावों के लिए जानकारी: भगवान रामलला सरकार के प्राण प्रतिष्ठा उत्सव मेंप्रवेश केवल श्री राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र की ओर से जारी की गई प्रवेशिका (एंट्री एं पास) के माध्यम ही संभव है। केवल निमंत्रण पत्र से आगंतुकों को प्रवेश सुनिश्चित नहीं हो पाएगा। प्रवेशिका पर बने QR code के मिलान के बाद ही परिसर के प्रवेश संभव हो पाएगा।’ मालूम हो कि अभिषेक समारोह के लिए निमंत्रण कार्ड 7 हजार सेज्यादा लोगों को भेजे गए हैं, जिनमें पुजारी, डोनर और जनेताओं सहित 3,000 के आसपास वीवीआईपी शामिल हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 22 जनवरी को मंदिर मेंप्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होंगे, जिसके अगले दिन मंदिर जनता के लिए खोले जाने की उम्मीद है।
बता दें कि प्राण प्रतिष्ठा समारोह सेतीन दिन पहलेशुक्रवार को रामलला की प्रतिमा का अनावरण किया गया। कालेपत्थर सेबनी इस प्रतिमा की आंख पर पीलेरंग के कपड़ा बांधा गया था जिसेकुछ देर बाद हटा दिया गया। मैसूरु के मूर्तिकार अरुण योगीराज की बनाई गई 51 इंच की रामलला की प्रतिमा को रात के वक्त मंदिर मेंलाया गया था। प्राण प्रतिष्ठा समारोह के मुख्य चार्यअरुण दीक्षित नेबताया कि भगवान राम की प्रतिमा को दोपहर मेंवैदिक मंत्रोचार के बीच गर्भगृहगृ में रखा गया। मंदिर मेंप्राण प्रतिष्ठा समारोह के अनुष्ठान पहले ही शुरू हो चुके हैं। ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय नेकहा कि प्राण प्रतिष्ठा समारोह दोपहर 12:20 बजेशुरू होगा और 22 जनवरी को दोपहर 1 बजेतक पूरा होनेकी उम्मीद है।

 

अजंता एवं एलोरा की गुफाऐं:प्राचीनता की शोभा

महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थिल अजंता और एलोरा की गुफाएं एक-दूसरे से करीब सौ किलोमीटर की दूरी पर है लेकिन अपनी महत्वता की वजह से इन दोनों का नाम हमेशा साथ में लिया जाता है। बड़े-बड़े पहाड़ और चट्टानों को काटकर बनाई गई ये गुफाएं वास्तुकला का बेहतरीन नमूना है। अजंता की गुफाओं में अधिकांश दीवारों पर बौद्ध धर्म से जुड़ी नक्काशी की गई है। जबकि एलोरा की गुफाओं में मौजूद वास्तुकला और मूर्तियां बौद्ध, जैन और हिंदू धर्म से जुड़ी हुई हैं। अजंता पूरे तीस गुफाओं का समूह है जिसे घोड़े की नाल के आकार में पहाड़ों को काटकर बनाया गया है। और इसकी सामने वाघोरा नदी बहती है। गुफाओं के पास मौजूद गांव अजंता के नाम पर इन गुफाओं का नाम पड़ा। अजंता केव्स में जहां ३० गुफाओं का समूह है वहीं एलोरा की गुफाओं में ३४ मोनैस्ट्रीज और मंदिर हैं जो पहाड़ के किनारे पर करीब २ किलोमीटर के हिस्से में फैला हुआ है। इन गुफाओं का निर्माण ५वीं और १०वीं शताब्दी के बीच किया गया था। एलोरा की गुफाओं में मौजूद मंदिर हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म को समर्पित है। यहां की ज्यादातर सरंचनाओं में विहार और मोनैस्ट्रीज हैं। इनमें बुद्धिस्ट केव जिसे विश्वकर्मा केव कहते हैं यह सबसे ज्यादा फेमस है।

ब्रिटिश आर्मी ऑफिसर जॉन स्मिथ और उनकी टीम नेअजंता-एलोरा गुफाओं की खोज  की थी। दरअसल १८१९ में वे यहां शिकार करने आए थे। तभी उन्हें २९ गुफाएं नजर आई। इसके बाद ही इन गुफाओं की कहानी दुनिया के सामने आईं। ये गुफाएं बड़ी-बड़ी चट्टानों को काटकर बनाई गई हैं। अजंता की गुफाओं की ज्यादातर दीवारों पर बौद्ध धर्म से जुड़ी नक्काशी मिलती है, जबकि एलोरा की गुफाओं में बौद्ध, जैन और हिंदू धर्म से जुड़ी वास्तुकला और मूर्तियां हैं। अजंता में ३० गुफाएं हैं। घोड़े की नाल के आकार में पहाड़ों को काटकर इन गुफाओं को बनाया गया है। इन गुफाओं के सामने से वाघोरा नदी बहती है। यहीं पास में अजंता नाम का एक गांव है, जिसके नाम पर इन गुफाओं का नाम रखा गया है। अजंता की गुफाओं में दीवारों पर अप्सराओं और राजकुमारियों की अलग-अलग मुद्राओं में चित्र उकेरे गए हैं। इन गुफाओं के एक भाग में बौद्ध धर्म के हीनयान और दूसरे भाग में महायान संप्रदाय की झलक दिखाई देती है। १९वीं शताब्दी की इन गुफाओं में बौद्ध भिक्षुओं की मूर्तियां और चित्र हैं।

महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में अजंता और एलोरा की गुफाएं हैं। बड़े-बड़े पहाड़ और चट्टानों को काटकर इन्हें बनाया गया है। इनकी कारीगरी वास्तुकला का बेहतरीन उदाहरण है। वैसे तो ये गुआएं एक-दूसरे से करीब १०० किलोमीटर की दूरी पर हैं लेकिन इनका महत्व, इनकी सुंदरता, इनकी बनावट, इनकी विरासत करीब-करीब एक समान है, जिसके कारण इन दोनों गुफाओं का नाम हमेशा एक साथ ही लिया जाता है। अजंता-एलोरा की गुफाओं को १९८३ में वर्ल्ड हेरिटेज की सूची में शामिल किया गया था। आर्कियोलॉजिस्ट की एक रिसर्च के मुताबिक, इन गुफाओं का निर्माण करीब ४००० साल पहले हुआ था। इन गुफाओं को बनाने उस वक्त कौन सी तकनीक इस्तेमाल में लाई गई होगी, यह रहस्य ही है। अनुमान है कि अजंता-एलोरा की गुफाएं लगभग ४० लाख टन की चट्टानों से मिलकर बनाई गई है।

प्राचीन काल में बनाई गई ये गुफा कडे़ परिश्रम का नतीजा है। यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर के रूप में रखा है। भारत में पर्यटन स्थल लोगों को हमेशा अपनी ओर आकर्षित करने में तत्पर रहते हैं। ऐसी अनोखी गुफा आपको मंत्रमुग्ध किए बिना मानेगी नहीं और आप यहाँ आने से खुद को रोक नहीं पाएंगे।

घूमने का सर्वोत्तम समय: अक्टूबर से मार्च

कैसे पहुँचे:

हवाई मार्ग से: गुफाएं औरंगाबाद हवाई अड्डे से लगभग १०० किमी दूर हैं, जो भारत के प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।

ट्रेन द्वारा: जलगांव रेलवे स्टेशन निकटतम रेलवे स्टेशन है, जो ६० किमी की दूरी पर स्थित है। यदि आप सोच रहे हैं कि मुंबई और देश के अन्य शहरों से अजंता एलोरा गुफाओं में यात्रा करने के लिए पहुंच सकते है।

सड़क मार्ग द्वारा: मुंबई, हैदराबाद, औरंगाबाद और अहमदाबाद जैसे विभिन्न पड़ोसी स्थानों से सड़क मार्ग द्वारा औरंगाबाद आसानी से पहुंचा जा सकता है।

औसत तापमान:३७ डिग्री सेल्सियस

गणेश चतुर्थी 2025 : विघ्नहर्ता गणपति का आगमन

गणेश चतुर्थी का महत्व

गणेश चतुर्थी हिंदू धर्म का प्रमुख पर्व है। इसे विनायक चतुर्थी भी कहते हैं। यह दिन भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। गणेश जी को विघ्नहर्ता, बुद्धिदाता और मंगलकर्ता कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन उनकी पूजा करने से घर-परिवार में सुख-समृद्धि आती है और जीवन से सभी बाधाएँ दूर होती हैं।


📜 पौराणिक कथा

शिवपुराण और गणेश पुराण के अनुसार, माता पार्वती ने स्नान करते समय अपने शरीर के उबटन से गणेश जी को बनाया और उन्हें द्वार पर प्रहरी के रूप में खड़ा कर दिया। जब भगवान शिव आए, तो गणेश जी ने उन्हें भीतर प्रवेश नहीं करने दिया। क्रोधित होकर शिव ने उनका मस्तक काट दिया। बाद में माता पार्वती के अनुरोध पर शिव ने हाथी का सिर लगाकर गणेश को पुनर्जीवित किया और उन्हें सर्वप्रथम पूज्य देवता का स्थान दिया।


🕯️ पूजा विधि

  1. प्रातः स्नान कर घर के पूजा स्थल को साफ करें।
  2. मिट्टी/मूर्ति स्वरूप में गणेश जी को स्थापित करें।
  3. शुद्ध जल, गंगाजल से अभिषेक करें।
  4. गणपति को दूर्वा (हरी घास), मोदक, लाल फूल, और सिंदूर चढ़ाएँ।
  5. गणेश जी के प्रिय मंत्रों का जाप करें।
  6. दिनभर व्रत-उपवास कर शाम को आरती करें।

✨ विशेष मंत्र

  • “ॐ गण गणपतये नमः”
  • “वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
    निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥”

🎉 पर्व का आयोजन

  • महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश में इस उत्सव का विशेष महत्व है।
  • बड़े-बड़े पंडालों में भव्य प्रतिमाएँ स्थापित होती हैं।
  • सांस्कृतिक कार्यक्रम, भजन-कीर्तन और शोभा यात्राएँ आयोजित होती हैं।
  • 10 दिनों तक गणेशोत्सव मनाने के बाद अनंत चतुर्दशी पर विसर्जन होता है।

भारी बारिश से मायानगरी बेहाल, रेड अलर्ट जारी, ट्रेन-फ्लाइट्स कैंसिल; स्कूल-कॉलेज बंद

मायानगरी यानी कि मुंबई में मंगलवार को भी मूसलाधार बारिश जारी रही, Mumbai Rains जिससे शहर के कई इलाकों में जलजमाव हो गया। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने 19 अगस्त के लिए मुंबई, ठाणे और पालघर के लिए रेड अलर्ट जारी किया है और इसके चलते ही मंगलवार को स्कूलों और कॉलेजों में छुट्टी घोषित कर दी गई है, तो वहीं सभी सरकारी और अर्ध-सरकारी कार्यालय मंगलवार को भी बंद कर दिया गया है। जबकि निजी कार्यालयों में Work From Home का आदेश दिया गया है। खराब मौसम की वजह से लोकल ट्रेनें और फ्लाइट्स में भी देरी हो रही है। इंडिगो एयरलाइंस ने इस बारे में travel advisory जारी किया है, जिसमें उसने लिखा है कि ‘मुंबई में भारी बारिश के कारण, हवाई अड्डे तक पहुंचने वाले कई मार्गों पर जलभराव और यातायात की सुस्ती देखी जा रही है। इसके कारण परिचालन संबंधी चुनौतियां पैदा हुई हैं, जिससे प्रस्थान और आगमन दोनों में देरी हो रही है और हमें इससे होने वाली असुविधा के लिए सचमुच खेद है।

रिकॉर्ड तोड़ बारिश ने बढ़ाई मुश्किलें

नगर निगम अधिकारियों के मुताबिक, Mumbai Rains मंगलवार सुबह 5 से 6 बजे के बीच मुंबई सेंट्रल, परेल, दादर और वर्ली जैसे इलाकों में सिर्फ एक घंटे में 40 से 65 मिमी बारिश दर्ज की गई. पिछले 24 घंटे में विक्रोली में 194.5 मिमी, सांताक्रूज में 185 मिमी, जुहू में 173.5 मिमी और बांद्रा में 157 मिमी बारिश हुई. इस लगातार बरसात ने निचले इलाकों को पानी-पानी कर दिया है. कई जगहों पर दुकानें और घरों में भी पानी घुसने की खबरें हैं.

मौसम विभाग की चेतावनी

मौसम विभाग का कहना है कि मुंबई और आसपास के इलाकों में 21 अगस्त तक भारी बारिश का सिलसिला जारी रहेगा. कोंकण और घाट इलाकों में कुछ जगहों पर बहुत भारी से अत्यधिक भारी बारिश की संभावना है. प्रशासन ने लोगों से घरों में सुरक्षित रहने और समुद्र से दूर रहने की अपील की है. लगातार हो रही बारिश से साफ है कि मुंबई की रफ्तार थम सी गई है और फिलहाल लोगों को और सतर्क रहने की जरूरत है.

दूधी चना दाल की सब्ज़ी

विधि: चरण १: दाल और लौकी की तैयारी चना दाल को साफ करके ३० मिनट पानी में भिगो दें।लौकी को छीलकर छोटे टुकड़ों में काट लें। एक प्रेशर कुकर में तेल गरम करें। उसमें जीरा और हींग डालें। जब जीरा चटकने लगे तो अदरक और हरी मिर्च डालें।

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सामग्री:

सामग्री मात्रा

दूधी २ कप (छोटे टुकड़ों में कटी)

चना दाल ½ कप (भीगी हुई)

टमाटर १ (कटा हुआ)

हरी मिर्च १ (कटी हुई)

अदरक १ छोटा चम्मच (कद्दूकस)

हल्दी पाउडर ¼ छोटा चम्मच

धनिया पाउडर १ छोटा चम्मच

लाल मिर्च पाउडर ½ छोटा चम्मच (वैकल्पिक)

हींग एक चुटकी

जीरा ½ छोटा चम्मच

नमक स्वादानुसार

हरा धनिया सजावट के लिए

तेल / घी १.५ टेबलस्पून

पानी लगभग १ कप

विधि: चरण १: दाल और लौकी की तैयारी चना दाल को साफ करके ३० मिनट पानी में भिगो दें।लौकी को छीलकर छोटे टुकड़ों में काट लें। एक प्रेशर कुकर में तेल गरम करें। उसमें जीरा और हींग डालें। जब जीरा चटकने लगे तो अदरक और हरी मिर्च डालें। अब कटे हुए टमाटर डालें और २ मिनट तक पकाएँ। मसाले (हल्दी, धनिया पाउडर, लाल मिर्च पाउडर) डालें और अच्छी तरह भूनें। भीगी हुई चना दाल डालें, १ मिनट चलाएँ। अब उसमें कटी हुई लौकी और नमक डालें। लगभग १ कप पानी डालें और कुकर बंद करें।

 मीडियम आंच पर २-३ सीटी आने तक पकाएँ। कुकर का प्रेशर निकलने के बाद ढक्कन खोलें। अगर सब्ज़ी ़ज्यादा गाढ़ी लगे तो थोड़ा पानी और मिलाकर २-३ मिनट तक उबालें। ऊपर से हरा धनिया डालें।

भारत बांध का विरोध क्यों कर रहा?

चीन ने ब्रह्मपुत्र नदी पर डैम बनाना किया शुरू इंडियन बॉर्डर के पास यह दुनिया का सबसे बड़ा बांध

चीन ने तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी (चीन में यारलुंग सांगपो) पर दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रोपावर डैम बनाना शुरू कर दिया है। शनिवार को चीन के प्रधानमंत्री ली क्यांग ने इसकी शुरुआत की। Aइझ् की रिपोर्ट के अनुसार, इस डैम प्रोजेक्ट को बीजिंग ने दिसंबर २०२४ में मंजूरी दी थी। ये बांध चीन के न्यिंगची शहर में बनाया जा रहा है। इसकी कुल लागत करीब १६७.८ अरब डॉलर (लगभग १२ लाख करोड़ रुपए) बताई गई है।

 
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ग्वार की खेती…

ग्वार की फलियों का उपयोग सब्जी बनाने में किया जाता है। इसके अलावा ग्वार का उपयोग हरा चारा एवं हरी खाद के तौर पर भी किया जाता है। बहु-उपयोगी फसल होने के कारण इसकी खेती करने वाले किसान कम समय में अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। ग्वार शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में उगाई जाने वाली दलहनी फसल है जो कि एक अत्यन्त सूखा एवं लवण सहनशील है। अत: इसकी खेती असिंचित व बहुत कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जा सकती है। ग्वार शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के गऊ आहार से हुई है जिसका तात्पर्य गाय का भोजन है। विश्व के कुल ग्वार उत्पादन का ८० प्रतिशत भाग अकेले भारत में पैदा होता है। जोकि ६५ देशों में निर्यात किया जाता है। ग्वार की खेती प्रमुख रूप से भारत के उत्तर-पश्चिमी राज्यों (राजस्थान, हरियाणा, गुजरात, उत्तरप्रदेश एवं पंजाब) में की जाती है। है। हमारे देश के कुल ग्वार उत्पादक क्षेत्र का लगभग ८७ प्रतिशत क्षेत्र राजस्थान के अंतर्गत आता है। राजस्थान में ग्वार की खेती मुख्यत: चुरू, नागौर, बाड़मेर, सीकर, जोधपुर, गंगानगर, सिरोही, दौसा, बीकानेर, हनुमानगढ एवं झुन्झुनू में की जाती है।

ग्वार की बुवाई के लिए उपयुक्त समय

ग्वार की खेती गर्मी एवं वर्षा दोनों मौसम सफलतापूर्वक की जा सकती है। गर्मी के मौसम में फसल प्राप्त करने के लिए इसकी बुवाई फरवरी-मार्च महीने में करनी चाहिए। वर्षा के मौसम में फसल प्राप्त करने के लिए इसकी बुवाई जून-जुलाई महीने में करें।

उपयुक्त मिट्टी एवं जलवायु

ग्वार की खेती लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। अच्छी पैदावार के लिए उचित जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी सर्वोत्तम है। इसकी खेती रेतीली मिट्टी, हल्की क्षारीय एवं लवणीय मिट्टी में भी की जा सकती है। मिट्टी का पीएच स्तर ७.५ से ८ होना चाहिए। पौधों के अच्छे विकास के लिए सूखे एवं गर्म मौसम की आवश्यकता होती है। कम वर्षा होने वाले क्षेत्रों में भी इसकी खेती की जा सकती है।

बीज की मात्रा एवं बीज 

बीजों के अच्छे जमाव व फसल को रोगमुक्त रखने के लिए बीज को सबसे पहले बाविस्टिन या कैप्टान नामक फफूंदीनाशक दवा से २ ग्राम/किलो बीज की दर से उपचारित करें। पौधों की जड़ों में गांठों का अधिक निर्माण हो व वायुमंडलीय नाइट्रोजन का भूमि में अधिक यौगिकीकरण हो इसके लिए बीज को राईजोबियम व फॉस्फोरस सोलूबलाइजिंग बैक्टीरिया (पीएसबी) कल्चर से उपचारित करें। छिड़काव विधि से खेती करने पर प्रति एकड़ जमीन में ८ से १० किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। क्यारियों में खेती करने पर प्रति एकड़ भूमि में ५.६ से ६.४ किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम बीज को २ ग्राम बाविस्टिन या कैप्टान से उपचारित करें। इसके बाद प्रति किलोग्राम बीज को २ से ३ ग्राम राइजोबियम कल्चर से भी उपचारित करें।

उन्नत किस्में

हरे चारे हेतु – एचएफजी-११९, एचएफजी-१५६, ग्वार क्रांति, मक ग्वार, बुंदेल ग्वार-१ (आईजीएफआरआई-२१२-१), बुंदेल ग्वार-२, आरआई-२३९५-२, बुंदेल ग्वार-३, गोरा-८०

हरी फलियों हेतु – आईसी-१३८८, पी-२८-१-१, गोमा मंजरी, एम-८३, पूसा सदाबहार, पूसा मौसमी, पूसा नवबहार, शरद बहार

दाने के लिए – मरू ग्वार, आरजीसी-९८६, दुर्गाजय, अगेती ग्वार-१११, दुर्गापुरा सफेद, एफएस-२७७, आरजीसी-१९७, आरजीसी-४१७

खेत की तैयारी एवं बुवाई की विधि

खेत तैयार करते समय सबसे पहले एक बार गहरी जुताई करें और कुछ दिनों तक खुला रहने दें। इसके बाद २ से ३ बार हल्की जुताई करें। जुताई के समय प्रति एकड़ भूमि में ८० से १०० क्विंटल तक गोबर की खाद मिलाएं। जुताई के बाद खेत में पाटा लगाकर मिट्टी को समतल एवं भुरभुरी बना लें।

बीज की बुवाई के लिए खेत में क्यारियां तैयार करें।

क्यारियों में बुवाई करने पर सिंचाई एवं खरपतवार नियंत्रण में आसानी होती है। सभी क्यारियों के बीच ३० सेंटीमीटर की दूरी रखें। पौधों से पौधों की दूरी १५ सेंटीमीटर होनी चाहिए।

सिंचाई एवं खरपतवार नियंत्रण

वर्षा के मौसम में वर्षा होने पर सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। गर्मी के मौसम में ७ से १० दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। बुवाई के करीब १ सप्ताह बाद ही खरपतवार की समस्या शुरू हो जाती है।

खरपतवारों पर नियंत्रण के लिए निराई-गुड़ाई

फसल की तुड़ाई, ग्वार की खेती यदि फलियों के लिए की जा रही है तो फलियों की तुड़ाई नर्म एवं हरी अवस्था में करें। बुवाई के ५५ से ८० दिनों के बाद फलियों की तुड़ाई की जा सकती है। हर ४ से ५ दिनों के अंतराल पर फलियों की तुड़ाई करें। यदि बीज या दाने प्राप्त करने के लिए ग्वार की खेती की गई है तो फलियों का रंग पाला होने के बाद ही तुड़ाई करें। फलियों को पक कर तैयार होने में करीब १२० दिनों का समय लगता है।

महत्व

ग्वार एक बहुउद्देशीय फसल है जिसका प्राचीनकाल से ही मनुष्य एवं पशु आहार के लिए महत्व रहा है।

इसमें प्रोटीन, घुलनशील फाइबर, विटामिन्स (के, सी, ए), कार्बोहाइड्रेट के साथ-साथ प्रचुर मात्रा में खनिज, फॉस्फोरस, कैल्शियम, आयरन एवं पौटेशियम आदि भी पाया जाता है।

इसकी ताजा व नरम हरी फलियों को  सब्जी के रूप में खाया जाता है जो कि पौष्टिक होती है।

ग्वार फली विभिन्न रोगों जैसे – खून की कमी, मधुमेह, रक्तचाप, आंत की समस्याएं में लाभकारी है एवं हड्डियों को मजबूत करने, दिल को स्वस्थ रखने, रक्त परिसंचरण को बेहतर करने के साथ-साथ मस्तिष्क के लिए भी गुणकारी है।

इसका उपयोग पशुओं के चारे के रूप में होता है। तथा दुधारू पशुओं में दूध उत्पादन में बढ़ोतरी करता है।

इसका प्रयोग खेतों में हरी खाद के रूप में भी किया जाता है जिसके लिए फसल में फूल आने के बाद एवं फली पकने से पहले मिट्टी पलटने वाले हल से भूमि में दबा दिया जाता है।

यह वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का भूमि में स्थिरीकरण करती है जिससे जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ती है।

इसके दानों में ग्लेक्टोमेनन नामक गोंद होता है जो संपूर्ण विश्व में ‘ग्वार गमऽ के नाम से प्रचलित है। जिसका इस्तेमाल खाद्य पदार्थों जैसे- आइसक्रीम, पनीर, सूप में किया जाता है।

ग्वार गम का प्रयोग कई प्रकार के उद्योग-धंधों व औषधि निर्माण में किया जाता है। पेट साफ करने, रोचक औषधि तैयार करने, कैप्सूल व गोलियां बनाने में भी इसका प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा खनिज, कागज व कपड़ा उद्योग में भी ग्वार गम महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

कागज निर्माण के समय ग्वार गम को लुगदी में मिलाया जाता है जिससे कागज ठीक से फैल सके और अच्छी गुणवत्ता का कागज तैयार किया जा सके।

कपड़ा उद्योग में यह मांडी लगाने के उपयोग में लाया जाता है।

श्रृंगार वस्तुओं जैसे लिपिस्टिक, क्रीम, शेम्पू और हैण्ड लोशन में भी ग्वार गम का प्रयोग किया जाता है

ग्वार गम का प्रयोग कई प्रकार के उद्योग-धंधों व औषधि निर्माण में किया जाता है। पेट साफ करने, रोचक औषधि तैयार करने, कैप्सूल व गोलियां बनाने में भी इसका प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा खनिज, कागज व कपड़ा उद्योग में भी ग्वार गम महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कागज निर्माण के समय ग्वार गम को लुगदी में मिलाया जाता है जिससे कागज ठीक से फैल सके और अच्छी गुणवत्ता का कागज तैयार किया जा सके। कपड़ा उद्योग में यह मांडी लगाने के उपयोग में लाया जाता है। श्रृंगार वस्तुओं जैसे लिपिस्टिक, क्रीम, शेम्पू और हैण्ड लोशन में भी ग्वार गम का प्रयोग किया जाता है

August rashifal

मेष राशि
अगस्त की शुरुआत मेष राशि के लिए सकारात्मक संकेत लेकर आ रही है। पहले दो सप्ताह तक ग्रहों की स्थिति अनुकूल रहेगी, जिससे आपके कई लंबित काम पूरे हो सकते हैं। यदि आप भूमि-भवन, करियर या व्यापार को लेकर तनाव में थे, तो अब समाधान की उम्मीद बन रही है। पारिवारिक रिश्तों में प्रेम और सहयोग बना रहेगा। प्रेम जीवन भी सुखद रहेगा — साथी के साथ समय बिताने के कई अच्छे मौके मिलेंगे। अविवाहित लोगों के लिए नए संबंध बनने के योग बन रहे हैं। शिक्षा से जुड़े जातकों को इस माह अच्छे अवसर मिलेंगे और मेहनत का उचित फल मिलेगा। माह का मध्य थोड़ा संतुलन मांगता है। स्वास्थ्य, संबंध और आर्थिक प्रबंधन, तीनों ही क्षेत्रों में सावधानी रखें। व्यवसायियों को माह के उत्तरार्ध में विशेष सतर्कता बरतनी होगी। कोई भी निवेश जल्दबाज़ी में न करें, वरना पैसा अटक सकता है। करियर और व्यवसाय में प्रतियोगिता तेज़ होगी, ऐसे में योजना के साथ आगे बढ़ना आवश्यक होगा।
वृषभ राशि-
अगस्त महीने में वृष राशि के जातकों के जीवन में उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकते हैं। करियर और व्यवसाय की दृष्टि से यह समय बहुत अनुकूल नहीं कहा जा सकता। इस दौरान भाग्य से ज़्यादा कर्म पर भरोसा करें। किसी भी योजना में सफलता पाने के लिए आपको मेहनत और लगातार प्रयास करते रहना होगा। कामकाज की मुश्किलों के बीच मानसिक संतुलन बनाए रखना सबसे अहम रहेगा। नौकरीपेशा जातकों को महीने के मध्य में भावुक निर्णयों से बचना चाहिए। कारोबारियों को इस समय किसी नए विस्तार की योजना फिलहाल टाल देनी चाहिए, जब तक कि स्थिति स्पष्ट न हो। शेयर बाज़ार या शॉर्टकट तरीकों से धन कमाने की सोच नुकसान पहुंचा सकती है। उत्तरार्ध में कार्य या ज़िम्मेदारी में अचानक परिवर्तन संभव है। पारिवारिक मामलों में आपको कई बार स्वयं को समझौता करते हुए पाएंगे।
मिथुन राशि-
अगस्त माह मिथुन राशि के लिए कुल मिलाकर शुभता और सौभाग्य लेकर आया है। केवल उत्तरार्ध के कुछ दिन थोड़े चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं। इस महीने आप लंबे समय से रुके काम पूरे करने में सफल रहेंगे। कार्यक्षेत्र में आपकी योजना और समझदारी काम आएगी, और सीनियर-जूनियर दोनों का सहयोग मिलेगा। विरोधी पक्ष कमजोर रहेगा और उनके प्रयास विफल होंगे। व्यवसायियों को कारोबार में अपेक्षित लाभ और प्रगति देखने को मिलेगी। आय के नए स्रोत बन सकते हैं। महीने के मध्य में संपत्ति से जुड़ी कोई योजना फलीभूत हो सकती है, जैसे ज़मीन या घर की खरीद-बिक्री। इस समय आप जीवन की भौतिक सुविधाओं पर भी खर्च कर सकते हैं। उत्तरार्ध में नौकरीपेशा लोगों को उनके काम के लिए सराहना और सम्मान मिलने की संभावना है।
कर्क राशि-
अगस्त महीने की शुरुआत थोड़ी दौड़-भाग और मानसिक तनाव के साथ हो सकती है। किसी भी काम में सफलता पाने के लिए पहले प्रयास में सफलता नहीं मिलेगी, थोड़ा संघर्ष ज़रूरी होगा। इस समय अपने क्रोध और अहंकार पर नियंत्रण रखें। आपकी वाणी और व्यवहार ही आपके काम बना भी सकते हैं और बिगाड़ भी सकते हैं। गलत संगति या भ्रामक सलाह से दूर रहें, खासकर पारिवारिक और प्रेम संबंधों में। माह के दूसरे सप्ताह में यात्रा के योग हैं, जो लाभकारी साबित हो सकती है। प्रभावशाली व्यक्तियों से संपर्क बन सकते हैं। महीने का उत्तरार्ध अपेक्षाकृत अधिक शुभ रहेगा। बेरोज़गार जातकों को रोजगार मिलने के अच्छे अवसर हैं। ज़मीन या घर की खरीद-बिक्री में लाभ होगा।
सिंह राशि-
सिंह राशि वालों , यह महीना आपके खुद को देखने के नज़रिए को बदलने वाला है । अगर आप ज़िंदगी में अटके हुए या स्थिर महसूस कर रहे हैं, तो चीज़ें बदलने वाली हैं। अगर आपको लगता है कि आप मुश्किलों के बावजूद आगे बढ़ते रहे हैं, तो हो सकता है कि आपको अवसरों के नए द्वार मिलें जो आपको अगले कदम उठाने में मदद करें। मुक्ति और आज़ादी, दोनों ही आपके लिए हैं। कुछ बड़ा बदलाव होने वाला है, और निश्चित रूप से, यह आपके जन्म के मौसम में ब्रह्मांड की ओर से आपको दिया गया उपहार है। यह बदलाव न केवल आपको अपनी तलवारें आराम देने में मदद करेगा, बल्कि आपको अपनी सीमाओं को पार करने और सफलताएँ लाने में भी मदद करेगा।
कन्या:
कन्या , इस महीने आप हाथ में जादू और जादू की छड़ी लेकर आगे बढ़ेंगे । हो सकता है कि आप किसी काम में पूरी तरह डूब गए हों, और यह महीना आपको उन सभी बातों का पुनर्मूल्यांकन करने का मौका देता है जो इतने लंबे समय से आपके मन में थीं। इंतज़ार का समय अब खत्म हो गया है; महीने के अंत तक, आप अवसरों से भरी नई दुनिया की अपनी यात्रा पर निकलने के लिए तैयार होंगे। यह महीना आपको नवंबर से शुरू होने वाले अगले कुछ सालों के लिए तैयार कर रहा है। इसलिए आप जो भी कर रहे हैं, या पुनर्मूल्यांकन कर रहे हैं, आपका जन्म महीना आपके लिए शुभ बदलाव लेकर आएगा।
तुला राशि-
अगस्त आपके लिए बहुत जरूरी आराम स्थान जैसा लगता है। यह आपके लिए वह कदम वापस लेने का समय है, यह आपके लिए पीछे हटने और आत्म-देखभाल व्ाâो प्राथमिकता देने का समय है, और निश्चित रूप से, यदि आप चाहें तो अपने दिनचर्या में कुछ एरियल योग को शामिल करें – यह आपके दृष्टिकोण का विस्तार करेगा और आपकी आत्मा को पोषण देने के साथ-साथ आपके शरीर को पुनर्जीवित करेगा। यह आपके शरीर के लिए ठीक होने का समय है, हाँ, लेकिन यह आपको अपने आंतरिक ईंधन को भरने और दीर्घकालिक योजनाओं और विज़न की रणनीति बनाने का समय भी दे रहा है। आप चक्रों को समाप्त कर रहे हैं और ऐसे चक्रों में कदम रख रहे हैं जो नए और अपरिचित लगते हैं लेकिन बहुत ही योग्य हैं।
वृश्चिक राशि-
यह महीना आपके लिए कड़ी मेहनत करने और उसे जारी रखने का है, साथ ही अपने और अपने प्रियजनों के जीवन में मातृत्व शक्ति बनने का भी। वृश्चिक , नए बीजों को कोमल पोषण की आवश्यकता होती है। इस महीने अपने अंतर्मन से जुड़ना सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह न केवल नए द्वार खोलता है, बल्कि आपको यह आकलन करने में भी मदद करता है कि आप किन रास्तों से आगे बढ़ना चाहते हैं। आने वाले महीनों में आपकी समृद्धि में वृद्धि होगी, और अगस्त आपको इसके लिए तैयार करने वाला है।
धनु राशि-
उत्साह और जुड़ाव की गहरी भावना— यही वो चीज़ें हैं जो अगस्त आपके लिए लेकर आएगा, धनु। तो फिर क्या नापसंद है! बस इतना याद रखें कि इस रोमांटिक जीवन और नज़रिए के लिए आपको अभी से योजना बनानी होगी और आगे बढ़ने के अपने तरीके का निष्पक्ष मूल्यांकन करना होगा। अगस्त के तीसरे ह़फ्ते में घटनाओं में एक सुखद मोड़ की उम्मीद करें, लेकिन अपनी उपलब्धियों से बहुत ज़्यादा आसक्त होने से बचें। अब से आपका जीवन लगातार कई विकल्पों की एक श्रृंखला है, और आपको इनका सर्वोत्तम उपयोग करने के लिए अपनी पूरी निष्ठा और तत्परता के साथ आगे बढ़ना होगा।
मकर राशि-
मकर राशि के लोग मेहनती, धैर्यवान और लक्ष्य केंद्रित होते हैं। जिस चीज़ की ओर आपका ध्यान आकर्षित हो, उसे तुरंत ग्रहण करें और जो आपको परेशान करती है, उससे दूर रहें। हर लड़ाई लड़ने की ज़रूरत नहीं होगी, चाहे वह आपका ध्यान खींचने के लिए कितनी भी होड़ क्यों न लगाती हो, और हर छोटी-बड़ी बात को नज़रअंदाज़ करने की ज़रूरत नहीं होगी, चाहे वह कितनी भी छोटी क्यों न लगे। यह महीना आपको यह जानने में मदद करता है कि कौन सी चीज़ आपकी आत्मा को सींचती है और कौन सी आपको सोख लेती है, जिससे आपको सचेत रूप से फलने-फूलने में मदद करने का ज्ञान प्राप्त होता है। परिस्थितियों से तालमेल बनाना ही बेहतर रहेगा।
कुंभ राशि-
कुंभ राशि के लोग प्रगतिशील, मानवीय और विचारवान होते हैं। इन्हें परंपरा से अलग सोचने और सामाजिक बदलाव लाने में मज़ा आता है। कुंभ लग्न वाले जातक असामान्य लेकिन दूरदर्शी होते हैं। जुलाई का अधिकांश समय आपके लिए लाभदायक रहेगा। करियर-कारोबार में सफलता और प्रशंसा मिलेगी। योजनाएं सफल होंगी और आय के नए स्रोत बनेंगे। धर्म-कर्म और तीर्थाटन के योग बन सकते हैं। माह के मध्य में बाधाएं आ सकती हैं, जिससे आमदनी प्रभावित होगी, लेकिन तीसरे सप्ताह तक सब कुछ फिर से सामान्य हो जाएगा। उत्तरार्ध में नौकरीपेशा लोगों को प्रशंसा और पुरस्कार मिल सकते हैं। पारिवारिक जीवन सुखमय रहेगा।
मीन राशि-
मीन राशि वालों , आपका अंतर्ज्ञान प्रज्वलित हो सकता है, लेकिन तीव्र ब्रह्मांडीय ऊर्जाओं से आप थोड़ा थका हुआ भी महसूस कर सकते हैं । आपकी रणनीति यही होगी कि आप चीज़ों को सहजता से करें। आगे बढ़ने के लिए अपनी आंतरिक शक्तियों और दृढ़ आत्मविश्वास पर ध्यान केंद्रित करें। आप ऐसे समय में हैं जो पोषण और महत्वाकांक्षा दोनों से भरा है—अपने लक्ष्यों पर अपनी नज़रें गड़ाए रखते हुए अपनी ज़िम्मेदारियों का ध्यान रखने में सक्षम। नियंत्रण और करुणा, दृढ़ संकल्प और धैर्य के बीच संतुलन बनाने का लक्ष्य रखें, और आपको सफलता के लिए आवश्यक सब कुछ मिल जाएगा—बस केंद्रित रहें, अपने मार्ग पर भरोसा रखें, और जो वास्तव में मायने रखता है उसे नज़रअंदाज़ न करें।संबंधों में सामंजस्य बना रहेगा।

मुंबई में जल संकट से निपटने की पहल’समुद्र से मिलेगा मीठा पानी’

मनोरी परियोजना के बाद, बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) मुंबई की बढ़ती आबादी की पानी की मांग को पूरा करने के लिए वर्सोवा में एक विलवणीकरण संयंत्र स्थापित करेगा। बीएमसी ने परियोजना के लिए कंपनियों से रुचि पत्र (एलओआई) आमंत्रित किए हैं। यह परियोजना समुद्र के पानी का उपचार करेगी और मुंबईकरों को प्रति दिन २०० मिलियन लीटर पानी प्रदान करेगी। बीएमसी संबंधित कंपनी से उपचारित पानी खरीदेगी। Manori प्लांट अब कामयाब होने की दिशा में है, लेकिन tender प्रक्रिया लंबित रही। वर्सोवा प्लांट को DBFOT  मॉडल पर विकसित किया जा रहा है, जिससे वित्तीय जोखिम कम होकर सार्वजनिक–निजी भागीदारी को बढ़ावा मिलेगा। पानी की खरीद मॉडल से BMC पर तुरंत खर्च नहीं होगा। यह मुंबई के जल संकट को दूर करने और भविष्य की जल सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।

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वर्सोवा में एक विलवणीकरण संयंत्र स्थापित किया जाएगा और परियोजना को चार साल में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। इस परियोजना से किन वार्डों को लाभ होगा? मनोरी परियोजना के बाद, बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) मुंबई की बढ़ती आबादी की पानी की मांग को पूरा करने के लिए वर्सोवा में एक विलवणीकरण संयंत्र स्थापित करेगा। बीएमसी ने परियोजना के लिए कंपनियों से रुचि पत्र (एलओआई) आमंत्रित किए हैं। यह परियोजना समुद्र के पानी का उपचार करेगी और मुंबईकरों को प्रति दिन २०० मिलियन लीटर पानी प्रदान करेगी। बीएमसी संबंधित कंपनी से उपचारित पानी खरीदेगी। एक्सप्रेशन इंटरेस्ट वापस लिए जाने के बाद इसमें रुचि दिखाने वाली कंपनी से आपत्तियां आमंत्रित की जाएंगी और फिर टेंडर प्रक्रिया लागू की जाएगी। इस परियोजना को चार साल में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।
वर्सोवा में प्रस्तावित परियोजना के लिए बीएमसी ने संयंत्र की योजना, निर्माण, वित्तीय संचालन और हस्तांतरण मॉडल के तहत रुचि पत्र आमंत्रित किए थे। इसमें कंपनी को खुद ही प्रोजेक्ट और मेंटेनेंस का खर्च उठाना होगा। बदले में बीएमसी प्रति १,००० लीटर पानी की कीमत तय करेगी और कंपनी को देगी। इसमें नगर निगम उस कंपनी से पानी खरीदकर पानी के चैनलों के माध्यम से आपूर्ति करेगा।
‘मनोरी’ परियोजना का जवाब बीएमसी ने मनोरी में एक विलवणीकरण परियोजना को लागू करने का निर्णय लिया। हालांकि यह प्रोजेक्ट पिछले चार साल से टेंडर प्रक्रिया में अटका हुआ है। निविदाओं का जवाब न मिलने के कारण प्रक्रिया रद्द कर दी गई थी। अब, एक बार फिर, बीएमसी ने एक निविदा जारी की है और प्रतिक्रिया प्राप्त हुई है। यह परियोजना समुद्र के पानी का उपचार करेगी और मुंबईकरों को ४०० मिलियन लीटर पानी प्रदान करेगी। इस परियोजना से पी नॉर्थ मलाड, पी साउथ गोरेगांव, आर सेंट्रल बोरीवली वेस्ट, आर नॉर्थ दहिसर वेस्ट और आर साउथ कांदिवली वेस्ट को फायदा होगा। परियोजना निविदा को अच्छी प्रतिक्रिया मिली है।
आवश्यकता के अनुसार अन्य क्षेत्रों में जलापूर्ति भांडुप जल उपचार संयंत्र २,८५० मिलियन लीटर पानी प्राप्त करता है और मुंबई शहर, पूर्वी और पश्चिमी उपनगरों को पानी की आपूर्ति करता है। नगर निकाय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि वर्सोवा को खारे बनाने की परियोजना पूरी होने के बाद भांडुप जल शोधन संयंत्र से अंधेरी से मलाड इलाके तक की जलापूर्ति जरूरत के हिसाब से दूसरे इलाकों में भेज दी जाएगी।
नगर निकाय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि वर्सोवा में इस्तेमाल किये जाने योग्य बनाने की परियोजना से अंधेरी वर्सोवा से मलाड इलाके में रहने वाले लोगों को फायदा होगा. पानी को बेल्ट में डायवर्ट किया जाएगा। यह परियोजना वर्सोवा में मौजूदा सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की नगरपालिका भूमि पर स्थापित की जाएगी।

वर्सोवा में Desalination Plant परियोजना

 परियोजना की पृष्ठभूमि

पहले मनोरी स्थित २०० MLD क्षमता वाले प्लांट का tender लगातार चार बार (२०२३–२०२४ में) विज्ञापित किया गया था, लेकिन कमजोर प्रतिसाद के कारण रद्द कर दिया गया। फरवरी–अगस्त २०२४ तक केवल एक ही बोलीदाता (Israel‑based IDE Technologies) मिला था, जिससे Tender अगस्त २०२४ में रद्द हुआ था। फिर, जून २०२५ में BMC ने पुनः Manori प्लांट के लिए चौथी बार Tender जारी किया, जिसमें २१ कंपनियों ने अभिरुचि दर्शाई—जिसमें इज़राइल, स्पेन और मध्य-पूर्व की कम्पनियाँ शामिल थीं। परियोजना अनुमानित लागत अब ₹३,२००–₹३,५२० करोड़ बताई जा रही है। 

वर्सोवा परियोजना का स्वरूप

कार्यक्रम का अगला चरण वर्सोवा में दूसरा desalination प्लांट स्थापित करना है, जिसकी क्षमता भी २०० MLD होगी। मॉडल आधारित होगा DBFOT (Design, Build, Finance, Operate, Transfer) — यानी निजी क्षेत्र निवेश करेगा, निर्माण और ऑपरेशन करेगा;BMC केवल पानी खरीदेगा, जिससे फंड लचीला रहेगा। 

परियोजना ७ एकड़ क्षेत्र में, तीन त्aुददहे के चारों ओर सुसज्जित होगी। संचालन समयबद्धता लगभग ४ वर्ष में पूरा करना लक्ष्य है। 

 वित्तीय अनुमान एवं एजेंट लागत

Manori प्लांट की नवीनतम लागत ₹३,२००–₹३,५२० करोड़ के आस-पास आंकी गई है। संचालन व रखरखाव की अवधि २० वर्ष है, जिसमें लागत पहले से ही ूाह्ी में शामिल होती है। 

उद्देश्य और लाभ

मुंबई की मौजूदा जल माँग लगभग ४,५०० MLD है, लेकिन ग्रामीण स्त्रोतों (तालाबों) से आपूर्ति केवल ३,८००–३,९५० MLD तक सीमित है। इसलिए प्रतिदिन पानी की कमी होती है। DesalinationPlants प्रारंभिक चरण में २०० MLD और विस्तार अवधि में कुल ४०० MLD तक आपूर्ति कर सकते हैं, जिससे संकट का सामना करना आसान होगा। 

वर्सोवा प्लांट से खारे पानी को मीठे पानी (DesalinationPlants  में बदला जाएगा, जिसे BMC द्वारा खरीदा और जल वितरण नेटवर्क में मिलाया जाएगा। इससे भूजल एवं surface water पर निर्भरता कम होगी और भविष्य में स्दहेददह की अनियमितता या गर्मी से बेहतर मुकाबला संभव होगा। 

परियोजना की प्रमुख तथ्य-सारणी

क्षमता २०० MLD (phase‑I), ४०० MLD  तक विस्तार

स्थान वर्सोवा, मुंबई (तीन lagoons में फैला ७ एकड़)

मॉडल DBFOT (प्राइवेट निवेश/निर्माण, BMC द्वारा पानी खरीद)

अनुमानित लागत ₹३,२००–₹३,५२० करोड़ (Manori  मॉडल पर आधारित)

Tender  स्थिति EOI जारी; pre‑bid  चरण पूर्ण; bid जमा करने की अंतिम तिथि जारी हो रही है, निर्माण समय: अनुमानित रूप से ४ वर्ष का कार्यकाल लाभ जल सुरक्षा, आपूर्ति में वृद्धि, तालाबों पर निर्भरता में कमी, समुंदरी जल संसाधन से potable water उत्पादन ।

Manori प्लांट अब कामयाब होने की दिशा में है, लेकिन tender प्रक्रिया लंबित रही।

वर्सोवा प्लांट को DBFOT मॉडल पर विकसित किया जा रहा है, जिससे वित्तीय जोखिम कम होकर सार्वजनिक–निजी भागीदारी को बढ़ावा मिलेगा। पानी की खरीद मॉडल से BMC  पर तुरंत खर्च नहीं होगा।यह मुंबई के जल संकट को दूर करने और भविष्य की जल सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।

मराठी बनाम हिंदी विवाद

मुंबई एक ऐसी माया नगरी है, जिसे हर वर्ग, हर जाति, हर भाषा ने अपने खून-पसीने से बनाया है। कोई भी दावा नहीं कर सकता कि सिर्फ ‘हमने’ बनाया। मराठी ने आत्मा दी, उत्तर भारतीयों ने मज़बूती, गुजराती-मारवाड़ियों ने दौलत, दक्षिण भारतीयों ने दिमाग, और सब मिलकर इसे एक महानगर बनाया। ‘क्या इन सभी लोगों को मुंबई में मराठी बोलना ज़रूरी (compulsory) होना चाहिए?’ तो इसका उत्तर संतुलन और समझदारी से देना ज़रूरी है। संवैधानिक और कानूनी दृष्टिकोण से भारत एक बहुभाषी लोकतंत्र देश है।

भारत अनेक भाषाओं का देश है। संविधान की आठवीं अनुसूची में २२ भाषाओं को मान्यता प्राप्त है। हिंदी भारत की राजभाषा है, जबकि मराठी महाराष्ट्र की राजकीय भाषा है। दोनों भाषाओं का अपना इतिहास, साहित्य, संस्कृति और आत्मा है। परंतु आज हम इस विमर्श में इन दो भाषाओं को प्रतिद्वंदी की तरह देख रहे हैं – यह दुर्भाग्यपूर्ण है। विवाद का मुख्य कारण है – रोजगार और प्रशासन में भाषा का वर्चस्व, शहरीकरण और उत्तर भारतीय प्रवासियों का महाराष्ट्र में आगमन, सरकारी स्तर पर हिंदी को बढ़ावा और स्थानीय लोगों को अपनी भाषा से असुरक्षा और कुछ राजनैतिक दलों द्वारा भाषाई पहचान को उकसाना ये सारे कारण भाषाओं के बीच नहीं, बल्कि राजनीति और समाज के बीच पैदा हुए तनाव को दर्शाते हैं।

हिंदी ने पूरे भारत में एक संपर्क भाषा (link language) की भूमिका निभाई है। परंतु इसका यह अर्थ नहीं कि क्षेत्रीय भाषाओं को दबाया जाए। मराठी साहित्य, रंगमंच, सिनेमा और पत्रकारिता ने भारत को कई रत्न दिए हैं – पु. ल. देशपांडे, विजय तेंडुलकर, और आज के फिल्म निर्माता नितीन देसाई जैसे नाम गौरव का कारण हैं। समस्या तब आती है जब नौकरी, शिक्षा और शासन में एक भाषा को ज़रूरत से ़ज्यादा बढ़ावा दिया जाए और दूसरी को उपेक्षित किया जाए।

‘मुंबई जैसे शहर को आगे बढ़ाने में या मुंबई की सफलता एक सामूहिक प्रयास रही है, जिसमें कई वर्गों, समुदायों, और क्षेत्रों ने अपनी भूमिका निभाई है।  मराठी मानूस (स्थानीय निवासी – मूल महाराष्ट्रीयन समाज): कोलियों (मछुआरे), अगड़ी-पिछड़ी जातियों, कामगार वर्ग ने शुरुआती समय में मुंबई की नींव रखी। मिल मज़दूर, BEST कर्मचारियों, सरकारी कर्मचारियों में बड़ी संख्या मराठी लोगों की रही। शिवाजी पार्क, दादर, परेल जैसे इलाकों में सांस्कृतिक और राजनीतिक जागरूकता का गढ़ था। मराठी साहित्य, रंगमंच, पत्रकारिता ने मुंबई की पहचान गढ़ी। स्थानीय मराठी समाज ने मूल चरित्र और आत्मा को गढ़ा।

बिहारी, पूर्वांचली, उत्तर प्रदेश के लोग बड़े पैमाने पर रेलवे, टैक्सी-ऑटो, निर्माण, सब्ज़ी-बाज़ार, सुरक्षा गार्ड जैसे क्षेत्रों में आए और मेहनत की। दादर, धारावी, कुर्ला, भायंदर, मीरा रोड, वसई में इनकी बड़ी बस्तियाँ हैं। श्रमिक और सेवक के रूप में इन्होंने हर शहरवासी की ज़िंदगी को आसान बनाया। जिन्होंने हर स्तर की मेहनतकश नौकरियों को संभाला। मुंबई को आर्थिक राजधानी बनाने में गुजराती और मारवाड़ी व्यापारी वर्ग का बड़ा हाथ रहा है। स्टॉक मार्केट, कपड़ा व्यापार, ज्वेलरी, फिल्म फाइनेंसिंग, हीरा कारोबार आदि पर इनका कब्ज़ा रहा। बड़े उद्योगपति – अंबानी, अदानी, बिड़ला, गोयनका आदि इसी वर्ग से हैं। मुंबई को धन-आधारित, बिजनेस- frendly शहर बनाने में इनका बड़ा योगदान है।

 शिक्षा, तकनीक, बैंकिंग, सॉफ्टवेयर, डॉक्टरी, प्रशासन जैसे क्षेत्रों में दक्षिण भारतीय लोगों का बहुत योगदान है। चेंबूर, माटुंगा, किंग्स सर्कल जैसे क्षेत्र इनके सांस्कृतिक केंद्र रहे हैं। मुंबई के बौद्धिक और शैक्षणिक स्तर को ऊंचा किया। देशभर से कलाकार, लेखक, गायक, तकनीशियन आए और मुंबई को मनोरंजन की राजधानी बना दिया। इसमें भी हर भाषा और क्षेत्र के लोग हैं – मराठी, पंजाबी, बंगाली, उत्तर भारतीय, दक्षिण भारतीय आदि।

मुंबई एक ऐसी माया नगरी है, जिसे हर वर्ग, हर जाति, हर भाषा ने अपने खून-पसीने से बनाया है। कोई भी दावा नहीं कर सकता कि सिर्फ ‘हमने’ बनाया। मराठी ने आत्मा दी, उत्तर भारतीयों ने मज़बूती, गुजराती-मारवाड़ियों ने दौलत, दक्षिण भारतीयों ने दिमाग, और सब मिलकर इसे एक महानगर बनाया। ‘क्या इन सभी लोगों को मुंबई में मराठी बोलना ज़रूरी (compulsory) होना चाहिए?’ तो इसका उत्तर संतुलन और समझदारी से देना ज़रूरी है। संवैधानिक और कानूनी दृष्टिकोण से भारत एक बहुभाषी लोकतंत्र देश है।

संविधान की धारा १९(१)(a) हर नागरिक को स्वतंत्र रूप से बोलने की स्वतंत्रता देता है – जिसमें भाषा का चयन भी शामिल है। महाराष्ट्र की राजकीय भाषा मराठी है, इसलिए प्रशासनिक और शैक्षणिक मामलों में मराठी को प्राथमिकता दी जाती है — लेकिन यह अन्य नागरिकों पर थोपना अनुचित है। सामाजिक और व्यावहारिक दृष्टिकोण से अगर कोई व्यक्ति महाराष्ट्र में रहकर मराठी सीखता है, तो यह उसका सम्मान और जुड़ाव दर्शाता है। जैसे – कोई अगर तमिलनाडु में बसता है और तमिल सीखता है, तो वह स्थानीय संस्कृति से खुद को जोड़ पाता है। पर यह सीखना नैतिक कर्तव्य हो सकता है, न कि कानूनी बाध्यता।

भाषा प्रेम अगर सम्मान से हो तो वह संस्कृति को मजबूत करता है, लेकिन अगर जबरदस्ती हो तो वह विरोध और विभाजन को जन्म देता है। स्थानीय लोगों को सम्मान मिलना चाहिए, उनकी भाषा और संस्कृति की अनदेखी नहीं होनी चाहिए। जो बाहर से आए हैं, उन्हें मराठी सीखने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए – पर मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। राज्य सरकार मराठी को बढ़ावा देने के लिए प्रशिक्षण, प्रचार, और प्रोत्साहन के ज़रिये काम करे – न कि दंड या धमकी के माध्यम से। मराठी सीखना – सम्मान का प्रतीक होना चाहिए, मजबूरी नहीं। मुम्बई सबकी है – मराठी मानूस की भी, और उस प्रवासी की भी जो इसे अप्ानाता है। हमें चाहिए कि मराठी को बढ़ावा दें – पर भाईचारे और लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ। संविधान में सबको रहने का हक़ है, पर जहाँ रहते हैं वहां की मिट्टी को भी अपनाना चाहिए। महाराष्ट्र में मराठी जानना शान की बात है, शर्म की नहीं। ‘रहेंगे भी, सीखेंगे भी’ – यही भारत की सच्ची विविधता है।                              – मंगला नटराजन