क्या होते हैं मदरसे, क्या होती है पढ़ाई, कौन देता है इन्हें पैसा?

उत्तर प्रदेश (UP) में एसआईटी (Special Investigation Team) जांच में 13000 मदरसे अवैध पाये गए हैं. क्या होते हैं मदरसे, क्या होती है पढ़ाई, कौन देता है इन्हें पैसा? इन मदरसों को बंद करने की सिफारिश की गई है. अवैध पाये गए ज्यादातर मदरसे भारत-नेपाल बॉर्डर पर स्थित हैं. जांच में पाया गया है कि काफी मदरसे ऐसे हैं जो हिसाब-किताब का ब्योरा नहीं दे पाए. एसआईटी को आशंका है कि इन मदरसों का निर्माण हवाला के जरिये मिल रहे धन से किया गया है. कई मदरसों संचालकों ने स्वीकार किया है कि इनका निर्माण खाड़ी देशों से मिले चंदे से किया गया है.  

यूपी एसआईटी ने अपनी जांच में पाया कि इन मदरसों में धर्मांतरण (Conversion) की गतिविधियों को बढ़ावा दिया जा रहा था. यह भी आशंका है कि इन मदरसों का इस्तेमाल भारत विरोधी गतिविधियों के लिए भी किया जा रहा हो. बीते सालों में नेपाल सीमा से लगे शहरों के 80 मदरसों में विदेशों से करीब 100 करोड़ रुपये की फंडिंग की बात भी सामने आई थी. बीते 25 सालों में बहराइच, श्रावस्ती ,महाराजगंज और सिद्धार्थ नगर समेत कई जिलों में तेजी से मदरसे बने हैं.

मदरसे आखिर होते क्या हैं?

मदरसा शब्द की उत्तपति अरबिक शब्द ‘डी-आर-एस’ से हुई है। मदरसा शब्द का मतलब होता है, पढ़ाई करने का स्थान। आधुनिक अरब भाषा के अनुसार, मदरसा शब्द का मतलब कई शैक्षिक संस्थानों से भी होता है। जो धर्मनिरपेक्ष और आधुनिक होते हैं। वहीं दक्षिण एशिया में इस शब्द का मतलब उच्च इस्लामिक शिक्षा का केंद्र होता है। जहां छात्रों को इस्लामिक कानून और तकीनक सिखाई जाती है। मदरसे से जिस ज्ञान को हासिल किया जाता है, उसे जरिया कहते हैं। मदरसों की सबसे अहम बात ये है कि यहां मोहम्मद साहब के जीवन और पवित्र कुरान की सीख को अपनी जिंदगी में उतारने की सीख दी जाती है। 

ईरान के बगदाद में अबासिद काल में मदरसों की स्थापना की गई थी, जिनका काम ज्ञान का प्रचार प्रसार करना था। दुनिया के सबसे पुराने मदरसे की स्थापना मोरक्को के फेज में 859 में की गई थी। जो आज भी मौजूद है। इसे यूनिवर्सिटी ऑफ अल कारावियान के साथ जोड़ दिया गया है। भारत की राजधानी दिल्ली में बड़ी तादाद में मदरसे मोहम्म बिन तुगलक (1290-1351) के शासनकाल में बनाए गए थे। जहां शिक्षकों को सरकारी खजाने से तनख्वा मिला करती थी।

मदरसों में कौन सी शिक्षा दी जाती है?

यह एक आम धारणा बन गई है कि मदरसों में कट्टरपंथी शिक्षा दी जाती है। हालांकि पुराने जमाने में इन्हें इस्लामिक ज्ञान का प्रतीक कहा जाता था। जहां लोगों को बड़े पैमाने पर शिक्षा दी जाती है। इन मदरसों को धर्मनिरपेक्ष स्वरूप माना जाता था, जहां गैर मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखने वाले बच्चे भी शिक्षा ग्रहण करने आते थे। 19वीं सदी के आखिर तक इनकी धर्मनिरपेक्षता बरकरार रही थी। लेकिन 1844 से इसमें बदलाव होने लगा। हुआ ये कि मदरसों से पास हुए ग्रेजुएट छात्रों को सरकारी नौकरी दिए जाने पर रोक लग गई। जिससे मुस्लिम समुदाय नाराज हुआ। ये वो समय था जब किसी के लिए भी अंग्रेजी शिक्षा को स्वीकार करना आसान नहीं था। अंग्रेजों ने मुसलमानों की पारंपरिक शिक्षा पर चोट की थी। उन्होंने शिक्षा व्यवस्था को विभाजित कर धार्मिक और गैर धार्मिक श्रेणी में बांट दिया था।   

मदरसा व्यवस्था किस तरह चलती है?

मदरसे आम लोगों से मिले दान से चलते हैं, जिसमें सभी छात्रों को मुफ्त शिक्षा प्रदान की जाती है। यहां गांव से लेकर शहर तक के बच्चे आते हैं। इसमें अमीर और गरीब के बीच भेदभाव नहीं होता। जैसे-जैसे समय बदला कुछ मदरसे सरकार से स्वायत्त ही बने रहे जबकि कुछ के राज्य सरकारों के साथ संबंध हो गए। मदरसों में मुंशी, मौलवी, आलिम, काबिल, कामिल, फैजल और मुमताजुल अफजल नाम के डिप्लोमा और डिग्री प्रदान की जाती हैं।

यहां का सिलेबस कैसा होता है?

मदरसों का सिलेबस वर्तमान और पहले के विद्वान उलेमाओं के सुझावों के हिसाब से तैयार किया गया है। क्या होते हैं मदरसे, क्या होती है पढ़ाई, कौन देता है इन्हें पैसा? आधुनिक समय में इसमें कंप्यूटर शिक्षा तक शामिल की गई है। इसके अलावा यहां अकीद, दिनायत, कुरान, उर्दू, हिंदी, अंग्रेजी, गणित, भूगोल, विज्ञान, अरबी, पर्शियन, मांटिग, फिलॉसफी, हैत, उरोज, कलाम, मा-अनी-वा-बयान, इतिहास, तफसीर और हदी वा उसूल ए हदीस जैसे विषयों की पढ़ाई होती है। इसके साथ ही मदरसों में विश्वविद्यालयों के द्वारा प्रस्तावित ब्रिज कोर्स भी कराए जाते हैं। इससे मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों को मुख्य धारा की उच्च शिक्षा मिलती है।

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