नोनी का साग…

सर्दियों का मौसम आते ही पूरे देश में हरी सब्जियों की एक नई बहार सी आ जाती है। बाजार में सरसों, पालक, मेथी, बथुआ जैसे कई साग मिलने लगते हैं, जो न सिर्फ स्वाद में लाजवाब होते हैं बल्कि सेहत के लिए भी बहुत फायदेमंद मानें जाते हैं। इस साग का नाम है नोनी का साग। नोनी साग की पत्तियां काफी हद तक घास की तरह दिखाई देती हैं। पूर्वी उत्तर भारत, बिहार, असम और पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों में नोनी साग बहुत ही चांव से खाया जाता है।

नोनी साग की पत्तियों में पर्याप्त में फ्लेवोनॉयड्स, प्रोटीन, सेपोनिन और टैनिन कंपाउंड पाए जाते हैं। इसके अलावा नोनी साग विटामिन ए, विटामिन बी, विटामिन सी, विटामिन डी और विटामिन ई जैसे कई पोषक तत्व पाए जाते हैं।

नोनी साग में अच्छी मात्रा में फाइबर पाया जाता है। फाइबर पाचन संबंधी समस्याओं को दूर करने में मदद करता है। नियमित तौर पर नोनी साग खाने से आंतों की सफाई होती है, जिससे पेट दर्द, कब्ज जैसी समस्याओं से राहत मिलती है।

नोनी साग में एंटी इंफ्लेमेटरी गुण पाए जाते हैं, जो गठिया में होने वाले दर्द और सूजन से राहत दिलाने में मदद कर सकते हैं। गठिया के रोगियों को सप्ताह में २ से ३ बार नोनी साग का सेवन करने की सलाह दी जाती है।

नोनी साग की पत्तियों में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है। इसके अलावा ये स्कोपोलिटिन कंपाउंड होता है, जो ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने में मदद करता है। जिन लोगों को ब्लड प्रेशर अचानक लो या हाई हो जाता है उन्हें नियमित तौर पर नोनी साग खाने की सलाह दी जाती है।

भारत में ज्यादातर महिलाओं में प्रेगनेंसी के दौरान आयरन की कमी देखी जाती है। प्रेगनेंसी में आयरन की पूर्ति करने में भी नोनी साग काफी मददगार साबित हो सकता है। इतना ही नहीं नई मां अगर नोनी साग का सेवन करें तो उसके दूध में वृद्धि होती है।

नोनी साग का सेवन आप दाल में पकाकर कर सकते हैं। इसके अलावा नोनी साग को आप के पकोड़े, सब्जी और पराठे बनाकर खा सकते हैं।

मसाला छाछ

  • सामग्री :
  • मट्ठा – ०२ कप,
  • दही – १/२ कप,
  • पुदीना पत्तियां – ०२ बड़े चम्मच,
  • भुना जीरा – ०१ छोटा चम्मच,
  • भुना जीरा पाउडर – १/२ छोटा चम्मच,
  • काला नमक – १/२ छोटा चम्मच,
  • काली मिर्च पाउडर – १/२ छोटा चम्मच,
  • कुटी हुयी बर्फ – ०१ कटोरी,
  • सफेद नमक – स्वादानुसार।
  • विधि :
  • सबसे पहले पुदीना की पत्तियों को अच्छी तरह से साफ करके धो लें।
  • इसके बाद मिक्सर में पुदीना पत्तियां, मट्ठा, दही, भुना जीरा, काली मिर्च, काला नमक और सफेद नमक डालें और महीन पीस लें। अब इसे किसी बर्तन में निकालें और उसमें एक गिलास पानी डालकर अच्छी तरह से मिला लें। आपकी मसाला छाछ तैयार है। अब छाछ को सर्विंग गिलास में निकालें और ऊपर से कुटी हुयी बर्फ और जीरा पाउडर डालकर पेश करें।

वनीला आइसक्रीम

  1. सामग्री:
  2. ताजी क्रीम – ०१ कप,
  3. फूल क्रीम दूध- ०१ कप,
  4. वनीला एसेंस – १/२ छोटा चम्मच,
  5. कार्न फ्लोर – ०१ बड़ा चम्मच,
  6. पिसी हुई शक्कर – १/२ कप।
  7. विधि:
  8. सबसे पहले आधा कप दूध निकाल लें और बाकी बचे दूध को किसी बड़े बर्तन में गर्म करें। जब तक दूध गर्म हो रहा है, अलग निकाले गये दूध में कार्न ़फ्लोर को अच्छी तरह से घोल लें। जब गर्म किये जा रहे दूध में उबाल आने लगे, कॉर्न ़फ्लोर वाले दूध को डाल दें और चलाकर अच्छी तरह से मिला लें। दूध को चलाते हुए गाढ़ा होने तक पकायें। जब दूध गाढ़ा होने लगे, आंच बंद कर दें और दूध को ठंडा होने दें। अब एक बड़े बर्तन (जिसमें क्रीम वाला बर्तन आ सके) में बर्फ के टुकड़े रखकर उसके ऊपर क्रीम के बर्तन को रख दें और फिर उसे अच्छी तरह से फेंट लें। फेंटने के बाद क्रीम में वनीला एसेंस मिलायें और एक फिर से फेंट लें। इसके बाद क्रीम में पिसी हुई शक्कर डालें और उसे एक बार फिर से फेंट लें।
  9. दूध पूरी तरह से ठंडे होने पर क्रीम को दूध में डाल कर अच्छी तरह से मिला लें और फिर उसे फ्रीजर में २ घंटे के लिये जमा दें। २ घंटे के बाद दूध को फ्रीजर से बाहर निकाल कर एक बार उसे फेंटें और फिर उसे आइसक्रीम जमाने वाले सांचों में भरकर ६ घंटे के लिये जमा दें। अब आपकी स्वादिष्ट वनीला आइसक्रीम खाने के लिये तैयार है। इसे फ्रीजर से निकालें और क्रीम को बाउल में निकाल कर ऊपर से ड्राइप्रâूट्स से सजा कर आनंद लें।

ब्रोकली सब्जी

  • सामग्री
  • ब्रोकली २०० ग्राम (टुकड़ों में काटलें)
  • प्याज़ का पेस्ट १ चम्मच
  • लहसुन अदरक का पेस्ट १ चम्मच
  • १ टमाटर की प्यूरी
  • जीरा १ छोटी चम्मच
  • तेजपत्ता १
  • हल्दी पाउडर १ छोटी चम्मच
  • धनिया पाउडर १ चम्मच
  • लाल मिर्च पाउडर १ चम्मच
  • तेल – २ बड़े चम्मच
  • स्वाद अनुसार नमक
  • हरा धनिया थोड़ा सा
  •  विधि: ब्रोकली की सब्जी बनाने के लिए सबसे पहले ब्रोकली के टुकड़ों को पानी में डालकर उबालें। ध्यान रहे कि ब्रोकली को ज्यादा नहीं उबालना है, वरना सब्जी में टूट सकती है। अब एक पैन में तेल डालकर गर्म करें। गरम तेल में तेजपत्ता और जीरा डालकर चटकाए। अब प्याज का पेस्ट डालकर १ मिनट मध्यम आंच पर भूनें। अब लहसुन अदरक का पेस्ट डालें और १ मिनट भूनें। जब मसाले भून चुके हो तब टमाटर प्यूरी डालें और साथ ही हल्दी, नमक, मिर्च पाउडर और धनियां पाउडर डालकर अच्छी तरह मिलाते हुए २ मिनट पकाएं। मसालों से तेल अलग हो जाए तब उबली हुई ब्रोकली डालकर हल्के हाथ से मिलाते रहे। अब थोड़ा ग्रेवी के लिए पानी मिला सकते हैं और मध्यम आंच पर ५-७ मिनट पकने दें। ब्रोकली की सब्जी बनकर तैयार है। इसमें कटा हुआ हरा धनिया डालकर मिला दें और गरम-गरम रोटी या पराठा के साथ सर्व करें।

टोमैटो सालसा

  1. सामग्री
  2. ५-६ टमाटर
  3. धनिया
  4. १/२ प्याज़
  5. १ हरी मिर्च
  6. १/२ नींबू का रस
  7. नमक
  8. काली मिर्च
  9.  विधि: गैस पर प्याज़ रख कर हल्का झुलसा लें। जब इसका छिलका फूल जाए, तो इसे आंच से उतार कर १५ मिनट के लिए साइड रख दें। इसके बाद छील लें। सभी सामग्री को एक साथ मिलाएं। प्याज़ या लहसुन को तेज़ गर्म तवे पर रखें। इसे हिलाते रहे, जब तक इसका छिलका काला न पड़ जाए।८.फिर इन्हें ठंडा होने के लिए साइड रख दें (कई लोग इसे प्लास्टिक के बैग में रखना पसंद करते हैं)।९.इसके बाद इसे छील लें।१०.ये प्याज़ या लहसुन आपकी डिश को काफी अच्छा स्मोकी स्वाद देगी।११.साथ ही ऐसा करने के बाद प्याज़ काफी रसेदार भी हो जाएगी।

महिलाओं का खतना…

कुछ देशों में महिलाओं का खतना प्रतिबंधित है, वहीं कुछ देशों में आज भी यह हो रहा है। बीबीसी की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत में बोहरा समुदाय के मुस्लिमों में महिलाओं का खतना किया जाता है। मिस्र ने साल २००८ में महिलाओं का खतना प्रतिबंधित कर दिया था लेकिन आज भी वहां इस तरह के मामले दुनिया में सबसे ज्यादा हैं। बहरीन से वापस लौटते वक्त पोप प्रâांसिस ने महिलाओं के अधिकारों से जुड़े एक सवाल के जवाब में इस दर्दनाक प्रथा का जिक्र किया।

पोप प्रâांसिस ने कहा कि महिलाओं के खतना की प्रथा ‘अपराध’ है। उन्होंने कहा कि महिलाओं के अधिकारों, समानता और अवसरों के लिए लड़ाई जारी रहनी चाहिए। लंबे समय से महिलाओं के खतना की प्रथा पर दुनिया में बहस चल रही है। इस्लाम में आमतौर पर पुरुषों का खतना किया जाता है लेकिन कुछ देशों में महिलाओं के भी खतना की प्रथा है। अंग्रेजी में इसे ‘फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन’ (इउश्) कहा जाता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, रूढ़िवादी मुस्लिमों में खतना के बाद महिलाओं को ‘शुद्ध’ या ‘शादी के लिए तैयार’ माना जाता है।

पोप ने कहा कि क्या आज हम दुनिया में युवतियों के साथ इस त्रासदी को नहीं रोक सकते? यह भयानक है कि आज भी यह प्रथा अस्तित्व में है, जिसे मानवता रोक नहीं पा रही है। यह एक अपराध है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, एफजीएम अप्रâीका और मिडिल ईस्ट के करीब ३० देशों में केंद्रित है। लेकिन दूसरी जगहों पर अप्रवासी आबादी भी इस प्रथा का पालन करती है। यूएन का कहना है कि इस साल ४० लाख से अधिक लड़कियों पर एफजीएम से गुजरने का खतरा मंडरा रहा है।

. पोप प्रâांसिस ने महिलाओं के खतना की प्रथा को बताया अपराध

. दुनिया में हर साल लाखों मुस्लिम महिलाएं दर्दनाक प्रथा से गुजरती हैं

. भारत में बोहरा मुस्लिम समुदाय में किया है महिलाओं का खतना

ताकि उनकी सेक्शुअल इच्छाएं दबाई जा सकें…

जमी हुई झील

पार्टी देर रात तक चली, शायद ढाई बज गए होंगे। बस, कुछ गिने-चुने घंटे बचे होंगे सुबह होने में। मैंने मनसा के स्टूडियो में पडे दीवान पर बस कमर सीधी भर की होगी कि भिनसारे की रोशनी चमकने लगी। कैट भी चाय पीती दिखाई दी और कुछ देर बाद ही हम चल दिये। मनसा ने इस बार फिर बस तक छो़ड। बस में च़ढकर वह मेरे पास आया और फुसफुसा कर बोला,’माफ करना दोस्त। तुम दोनों को अलग कमरा नहीं दे पाया। मेहमान कुछ ज्यादा ही रुक गए थे।’ ‘नहीं यार, ‘ मैंने कहा, ‘अलग कमरे की कोई जरूरत ही नहीं थी। ‘

१४ वां आदिवासी युवा आदान-प्रदान कार्यक्रम का समापन

त् आदिवासी क्षेत्र के विकास के लिए प्रधानमंत्रीजी की योजनाओं का लाभ लेने पर राम कुमार पाल ने दिया जोर

त् उचित मार्गदर्शन से ही युवा देश की मुख्यधारा से जुड़कर देश की तरक्की में करेंगे सहयोग : कृपाशंकर सिंह

बांस की खेती

कश्मीर की घाटियों के अलावा कहीं भी बांस की खेती की जा सकती है. भारत का पूर्वी भाग आज बांस का सबसे बड़ा उत्पादक है. एक हेक्टेयर जमीन पर बांस के १५०० पौधे लगते हैं. पौधे से पौधे की दूरी ढाई मीटर और लाइन से लाइन की दूरी ३ मीटर रखी जाती है. बांस की खेती के लिए उन्नत किस्मों का चयन करना चाहिए.

भारत में बांस की कुल १३६ किस्में हैं. इनमें से सबसे ज्यादा लोकप्रिय प्रजातियां बम्बूसा ऑरनदिनेसी, बम्बूसा पॉलीमोरफा, किमोनोबेम्बूसा फलकेटा, डेंड्रोकैलेमस स्ट्रीक्स, डेंड्रोकैलेमस हैमिलटन और मेलोकाना बेक्किफेरा हैं. बांस के पौधे की रोपाई के लिए जुलाई महीना सबसे उपयुक्त है. बांस का पौधा ३ से ४ साल में कटाई लायक हो जाता है.

कम मेहनत में ज्यादा मुनाफा देने वाली फसलों में अब बांस का नाम भी शामिल हो चुका है। पहले तो बांस सिर्फ जंगलों में भी प्रकृति के स्पर्श से ही उग जाता था। लेकिन बांस के बढ़ते उपभोग के चलते इसकी व्यवसायिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। हालांकि बांस की खेती में जद्दोजहद करने की आवश्यकता नहीं होती। सिर्फ चार साल फसल का ठीक प्रकार पालन पोषण करें और करीब ४०-४५ तक बांस की फसल आपको मुनाफा देती रहेगी। इसके खेती के दौरान सबसे पहले नर्सरी तैयारी और पौध तैयार होने पर इसकी रोपाई का कार्य किया जाता है। इस बीच अगर किसान आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे है, तो सरकार द्वारा प्रस्तावित आर्थिक अनुदान भी ले सकते हैं। बांस की फसल में कीट-रोग लगने की संभावना भी कम ही रहती है। बस समय पर सिंचाई और निराई-गुड़ाई करते रहें। इन्हीं कृषि कार्य़ो के साथ बांस की फसल भी बढ़ती रहेगी और आपका मुनाफा भी।

राष्ट्रीय बांस मिशन के तहत अगर बांस की खेती में ज्यादा खर्च हो रहा है, तो केंद्र और राज्य सरकार किसानों को आर्थिक राहत प्रदान करेंगी. बांस की खेती के लिए सरकार द्वारा दी जाने वाली सहायता राशि की बात करें तो इसमें ५० प्रतिशत खर्च किसानों द्वारा और ५० प्रतिशत लागत सरकार द्वारा वहन की जाएगी.

मध्य प्रदेश सरकार बांस के प्रति पौधे पर किसान को १२० रुपये की सहायता प्रदान कर रही है. यह राशि तीन साल में किस्तों में मिलती है. राष्ट्रीय बांस मिशन की आधिकारिक वेबसाइट हंस्.हग्म्.ग्ह पर जाकर आप सब्सिडी के लिए ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं. राष्ट्रीय बांस मिशन के तहत हर जिले में नोडल अधिकारी बनाया गया है. आप अपने नोडल (र्‍द्aत्) अधिकारी से भी योजना से संबंधित अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.

बांस की खेती से कमाई

किसानों के लिए बांस की खेती मुनाफे का सौदा साबित हो सकती है। लेकिन बांस की खेती में धैर्य रखना बहुत जरूरी होता है। क्योंकि बांस की खेती रबी, खरीफ या जायद सीजन की खेती नहीं होती। इसको फलने-फूलने के लिए लगभग ३-४ साल का समय लग जाता है। हालांकि पहली फसल के कटते ही किसान की अच्छी आमदनी मिल जाती हैं। किसान चाहें तो बांस की खेती के साथ कोई दूसरी फसल भी लगा सकते हैं। बांस की खेती के साथ दूसरी फसलों की एकीकृत खेती करने से मिट्टी की उपजाऊ शक्ति भी बनी रहेगी। साथ ही, दूसरी फसलों से किसानों को समय पर अतिरिक्त आय भी मिल जाएगी।

रोपाई के चार बाद बांस की पहली कटाई होती है. एक अनुमान के अनुसार, बांस की खेती से ४ साल में ₹४० लाख की एक हेक्टेयर में हो जाती है. इसके अलावा बांस की लाइनों के बीच में खाली पड़ी जमीन पर भी अन्य फसलें लगाकर किसान आसानी से बांस की खेती पर लगने वाला खर्च निकाल सकते हैं. बांस की कटाई-छंटाई भी साल में दो-तीन बार करनी पड़ती है. कटाई में निकली छोटी टहनियां हरे चारे के रूप में काम ली जा सकती है.

बांस की खेती करके किसान ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा कर सकते हैं। इसके जरिए गांवों में आय सृजन के साथ-साथ ग्रामीणों के पोषण सुधार में भी काफी मदद मिल रही है। आज के दौर में बांस के बने उत्पादों ने बाजार में अपने कदम जमा लिए हैं। बांस की खेती के जरिए लकड़ी के उत्पादों पर इंसान की आत्मनिर्भरता को कम करने में मदद मिल रही है। शुरुआत से ही इंसानों ने अपने दैनिक जीवन में लकड़ी के उत्पादों का उपयोग किया है। इसकी खपत बढ़ने पर तेजी से पेड़ों का कटाव हुआ और जंगल नष्ट होने लगे। खेती में आधुनिक तकनीक और उन्नत बदलावों के कदम रखते ही बांस के प्रति जागरूकता बढ़ने लगी। एक रिसर्च से पता चला कि पेड़ों से मिलने वाली लकड़ी के उत्पादन में ८० साल से भी अधिक समय खर्च होता है। लेकिन बांस की पहली उपज ३-४ साल में ही तैयार हो जाती है। इसकी कटाई के बाद करीब ४० साल तक फसल प्रबंधन के जरिए ही फायदा मिलता रहेगा। इसकी पत्तियां पशुओं को पोषण प्रदान करेंगी। किसान बांस की किस्म और सहूलियत के हिसाब से एक हेक्टेयर में करीब १५०० से २५०० पौधे लगाए जाते हैं। जहां, बांस की खेती से जंगलों को दोबारा फलने-फूलने का मौका मिल रहा है। वहीं, इससे बने उत्पादों का प्रयोग करने से प्रकृति के संरक्षण में मददगार साबित हो रहा है। बांस की बुवाई के लिए बीज प्राप्त करना बेहद जरूरी है। बांस का बीज इसके फूल खिलने के बाद प्राप्त होता है। हालांकि इस प्रक्रिया में थोड़ा समय लगता है। लेकिन बांस की बुवाई करके अच्छी और गुणवत्तापूर्ण फसल प्राप्त की जा सकती है। बांस से पके हुए बीज प्राप्त करने के लिए बांस की फसल का झुंड़ बनाकर उन्हें एकत्रित करें और फसल की निचली जमीन से घास को साफ कर लें। इसके बाद बांस के झुंड से भूमि पर गिरने वाले बीजों को एकत्रित करके किसी सुरक्षित स्थान पर रखें।

जानकारी के लिए बता दें कि बीज पकने के दौरान फसल में चूहे और गिलहरियों का प्रकोप बढ़ जाता है। इसलिए बांस की बीजों की सुरक्षा के लिए उन्हें किसी टिन के डब्बे में भरकर रखें। नर्सरी में बीजों को सीधे न बोएं, बल्कि बुवाई से पहले बीजों शोधन का काम पूरा करें। सबसे पहले बीजों को करीब ८ घंटे तक पानी में भिगोएं। इस प्रक्रिया में स्वस्थ बीज पानी के नीचे बैठ जाएंगे। सबसे पहले पानी में तैरते बीजों को निकालकर फेंक दें, इन्हें खेती के काम में न लें। अब पानी के निचली सतह से प्राप्त स्वस्थ बीजों का सुरक्षित रासायनिक दवाओं से बीज शोधन करें। इससे फसल में कीट और रोगों का प्रकोप नहीं होगा।

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प्रो. अच्युत सामंत और उनके दो डीम्ड विश्वविद्यालय कीट-कीस शिक्षा

यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि भुवनेश्वर स्थित कीट-कीस दो डीम्ड विश्वविद्यालयों के प्राणप्रतिष्ठाता तथा कंधमाल लोकसभा सांसद प्रो.अच्युत सामंत एक महान तथा दूरदर्शी शिक्षाविद् हैं जिन्होंने शिक्षा-जगत के वास्तविक भगीरथ बनकर १९९२-९३ में अपनी कुल जमा पूंजी मात्र पांच हजार रुपये से एक किराये के मकान में मात्र १२५ बच्चों से कीट-कीस की स्थापना की। वे अपने पुरुषार्थ तथा जगन्नाथ भगवान तथा हनुमान जी के आशीर्वाद से अपनी दोनों विश्वस्तरीय शैक्षिक संस्थाओं कीट-कीस को उत्कृष्ट शिक्षारुपी गंगा बना चुके हैं जहां से पूरे विश्व को मानवीय एकता का पावन संदेश जाता है। वास्तव में प्रो.अच्युत सामंत एक विलक्षण व्यक्तित्व ही नहीं अपितु एक सकारात्मक विचारधारा बन चुके हैं। और यही वह कारण है कि प्रो.अच्युत सामंत के विलक्षण व्यक्तित्व तथा उनके दो डीम्ड विश्वविद्यालयों कीट-कीस से वर्ल्ड इज वन की गंगा प्रवाहित है।

गत २५ फरवरी,२०२३ को कीट डीम्ड विश्वविद्यालय में द्वितीय विश्व नेतृत्व सम्मेलन आयोजित हुआ जिसमें सैकडों आईआईटी फैकेल्टी, सोशल साइंटिस्ट और बिजनेस लीडर्स के साथ-साथ कीट-कीस के लगभग ७०,००० बच्चे शामिल हुए। सम्मेलन में एक तरफ जहां कीट-कीस को केन्द्र में रखकर ‘वर्ल्ड इज वन’ पर सघन चर्चा हुई। वहीं सामाजिक समानता, न्याय, संस्कृति, नवाचार और अनेक समसामयिक मुद्दों पर भी सकारात्मक चर्चा हुई। अवसर पर सम्मानित अतिथि के रुप में पधारीं डॉ.नंदिता पाठक, संस्थापक निदेशिका उद्यमिता विद्यापीठ, जेपी फाउण्डेशन, एम.पी.ने अपने सारगर्भित ओजस्वी भाषण में उन्होंने महान शिक्षाविद् प्रो. अच्युत सामंत के द्वारा स्थापित कीट-कीस दो डीम्ड विश्वविद्यालय को शिक्षा का समन्दर बताया, भारत का वास्तविक चारों धाम बताया तथा कीट-कीस को वर्ल्ड इज वन बताया।

 डॉ.नंदिता पाठक,सामाजिक कार्यकर्ता,  युवा उद्योगपति तथा संस्थापक निदेशिका उद्यमिता विद्यापीठ,जेपी फाउण्डेशन,एम.पी.ने अपने ओजस्वी वक्तव्य में प्रो.अच्युत सामंत को अपना आदर्श बताया जिन्हें वे पहली बार मंच पर देखीं। प्रो. सामंत को प्रणाम किया और संकल्पित भाव से अपने जीवन का आदर्श घोषित किया। प्रो अच्युत सामंत की स्वर्गीया मां नीलिमारानी सामंत को याद किया और उनके प्रति हार्दिक साधुवाद व्यक्त किया जिन्होंने प्रो.अच्युत सामंत जैसे दूरदर्शी तथा महानशिक्षाविद् जन्मा जो आज पूरे विश्व मानवता के आदर्श हैं। साथ ही साथ उन्होंने उपस्थित सभी से यह अपील की कि सभी आकर कीट-कीस को एक धाम मानकर डूबकी लगाएं।

उन्होने यह भी बताया कि कीस के प्राकृतिक सुरम्य वातावरण में  प्रतिदिन बैठकर प्रो. सामंत जिस प्रकार विश्व को एक करने का प्रयास करते हैं, उनके दर्शन करें। वहीं कीट – कीस के प्राणप्रतिष्ठाता तथा कंधमाल लोकसभा सांसद प्रो अच्युत सामंत डॉ नंदिता पाठक के प्रति आभार जताया तथा कीट-कीस परिपाटी के तहत उन्हें सम्मानित भी किया। प्रो सामंत ने कहा कि हमें अपने पूर्वजों ने जो ज्ञान दिया है उसे हम साकार करें। हम एक ऐसे नूतन समाज का गठन करें जहां पर हमारी ताकत हमारी एकता में निहित हो। वह समाज सभी के लिए न्यायसंगत हो।

प्रो अच्युत सामंत ने कहा कि जी २० सदस्यता भी इस विषय का जश्न मनाती है और प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी ने मानव-केंद्रित वैश्वीकरण को रेखांकित भी किया है। उन्होंने यह भी कहा कि कीट- कीस परिसर की  ‘दुनिया भी एक है’। यहां के विशालतम परिसर विविधता में एकता का संदेश देते हैं जहां पर भारतीय छात्र, विदेशी छात्र और आदिवासी क्षेत्रों के सामाजिक विकास से वंचित छात्र पूर्ण सौहार्दपूर्ण माहौल में रहकर अपने-अपने व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करते हैं। सच तो यह है कि भारत को स्वावलंबी तथा आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में प्रो अच्युत सामंत उनकी शैक्षिक संस्थाएः कीट-कीस स्वावलंबी तथा आत्मनिर्भर बनकर समस्त भारतवासियों को अपनी-अपनी जगह पर स्वावलंबी तथा आत्मनिर्भर बनने का संदेश देतीं हैं और आगे भी देती रहेंगीं। आज कीट डीम्ड विश्वविद्यालय,भुवनेश्वर विश्व के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों की पंक्ति में ८वें स्थान पर विराजमान है।

 प्रस्तुतिःअशोक पाण्डेय,

राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त