इलाइची, भारत समेत पूरी दुनिया में लोकप्रिय है. इसका यूज अलग-अलग व्यंजनों में किया जाता है. मसालों की रानी इलायची यह अपने औषधीय गुणों के लिए भी मशहूर है. भारत में केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु में इलायची की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है, इलाइची भारतीय व्यंजनों में यूज होने वाला एक जरूरी और महंगा मसाला है.
भारत के मसालों की प्रसिद्धि पूरी दुनिया में है. कई राज्यों में अलग-अलग मसालों की खेती बड़े पैमाने पर होती है. इन सबके बीच किसान इलायची की खेती से भी बढ़िया मुनाफा कमा रहे हैं. मसालों की रानी इलायची, इसकी बाजार में काफी अच्छी कीमत मिलती है. इलायची की खेती करके किसान भाई काफी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. भारत में इलायची की खेती प्रमुख रूप से की जाती है. इसके अलावा इसका उपयोग मिठाई में खुशबू के लिए किया जाता है.
यदि सही तरीके से इसकी खेती की जाए तो इससे काफी अच्छा लाभ कमाया जा सकता है. बाजार में हमेशा इसका मांग बनी रहेती है. इसे ध्यान में रखकर किसान इस खरीफ सीजन में इलायची की आसान तरीके से खेती कर अच्छा उत्पादन और मुनाफा दोनों ले सकते हैं. इलायची, जिसे लोकप्रिय रूप से मसालों की रानी के रूप में जाना जाता है, हमारा वार्षिक उत्पादन लगभग ४०००० मीट्रिक टन है और इसका लगभग ६०ज्ञ् से अधिक देशों को निर्यात किया जाता है जिससे लगभग ६० मिलियन रुपये की विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है। इलायची का उपयोग भोजन, कन्फेक्शनरी, पेय पदार्थ और शराब की विभिन्न तैयारियों को स्वादिष्ट बनाने के लिए किया जाता है।
मिट्टी और जलवायु
इलायची की खेती के लिए दोमट मिट्टी वाले घने छायादार क्षेत्र आदर्श होते हैं। यह फसल ६०० से १५०० मीटर की ऊंचाई पर उगाई जा सकती है। भारी हवाओं के संपर्क में आने वाले क्षेत्र अनुपयुक्त हैं। इसके खेत में जल निकासी की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए। यह जंगल की दोमट मिट्टी में उगाया जाता है जो आमतौर पर ५.० – ६.५ की पीएच सीमा के साथ प्रकृति में अम्लीय होती है। जून से दिसंबर तक का मौसम इसके उत्पादन के लिए बहुत अच्छा माना जाता है।
इलायची की प्रमुख किस्में
श्aत्aंar : मुदिगरी १, मुदिगरी २, झ्न्न् १, झ्न्न्-३, घ्ण्Rघ् १, घ्ण्Rघ् ३, ऊख्D ४, घ्घ्एR सुवर्ण, घ्घ्एR विजेता, घ्घ्एR अविनाश, ऊDख् – ११, ण्ण्ए – १, सुवासिनी, अविनाश, विजेता – १, अप्पानगला २, जलनि (उrााह ुदत््), घ्ण्Rघ् ८. इसकी बुवाई पुराने पौधों के सकर्स या बीजों का उपयोग करके किया जाता है। अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद, लकड़ी की राख और जंगल की मिट्टी को बराबर मात्रा में मिलाकर क्यारियां तैयार करें। बीजों/सकर्स को क्यारियों में बोयें और महीन बालू की पतली परत से ढक दें।
इलायची की पौध उगाना
बीज क्यारियों को मल्चिंग और छायां प्रदान करनी जरुरी होती है। क्यारियों को नम रखना चाहिए लेकिन क्यारियों बहुत गीला नहीं होना चाहिए। अंकुरण आमतौर पर बुवाई के एक महीने बाद शुरू होता है और तीन महीने तक जारी रहता है। पौध को द्वितीय नर्सरी में ३ से ४ पत्ती अवस्था में रोपित किया जाता है।
दूसरी नर्सरी का निर्माण
दूसरी नर्सरी का निर्माण करते समय ये ध्यान रखे की जिस जगह आप नर्सरी का निर्माण कर रहे है उस जगह क्यारियों के ऊपर छाया अवशय होनी जरुरी है। पौधों की रोपाई २र्० े २० सेमी की दूरी पर करें। २र्० े २० सेमी आकार के पॉलीबैग का उपयोग किया जा सकता है। सकर आमतौर पर गैप फिलिंग के लिए उपयोग किए जाते हैं लेकिन सकर बड़ी संख्या में उपलब्ध नहीं हो सकते हैं। इसलिए, भारतीय मसाला अनुसंधान संस्थान, इलायची अनुसंधान केंद्र, अप्पंगला द्वारा विकसित एक तीव्र क्लोनल गुणन तकनीक बड़ी संख्या में गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री के उत्पादन के लिए त्वरित, विश्वसनीय और किफायती साबित हुई है।
इस विधि के लिए चुनी गई जगह का ढलान हल्का होना चाहिए और उसके आस-पास पानी का स्रोत होना चाहिए। ४५ सेमी चौड़ाई, ४५ सेमी गहराई और किसी भी सुविधाजनक लंबाई की खाइयाँ ढलान के पार या समोच्च के साथ १.८ मीटर की दूरी पर ली जा सकती हैं। ऊपर की २० सेंटीमीटर गहरी मिट्टी को अलग से खोदा जाता है और खाई के ऊपरी हिस्से में ढेर कर दिया जाता है।
निचले २५ सेमी की खुदाई की जाती है और खाइयों के निचले हिस्से में लाइन के साथ ढेर लगा दिया जाता है। शीर्ष मिट्टी को समान भागों के साथ मिलाया जाता है, ह्यूमस समृद्ध जंगल की मिट्टी, रेत और पशु खाद के समान अनुपात के साथ मिलाया जाता है और मिट्टी के मिश्रण को बनाए रखने के लिए मल्चिंग की सुविधा के लिए शीर्ष पर ५ सेमी की गहराई छोड़कर वापस भर दिया जाता है। मार्च-अक्टूबर के दौरान खाइयों में ०.६ मीटर की दूरी पर सकर, प्रत्येक में एक बड़ा टिलर और एक बढ़ता हुआ युवा शूट होता है। ६० दिनों के अंतराल पर ६ विभाजित खुराकों में १००:५०:२०० किलोग्राम एनपीके/हेक्टेयर की उच्च उर्वरक खुराक सहित २५० ग्राम/पौधे पर नीम की खली के साथ नियमित खेती की जानी चाहिए। सप्ताह में कम से कम दो बार सिंचाई करनी चाहिए।
खेत की तैयारी
६० सेंर्मी े ६० सेंर्मी े ६० सेंमी आकार के गड्ढे खोदकर खाद और ऊपरी मिट्टी से भर दें। ढालू क्षेत्रों में कंटूर प्लांटिंग की जा सकती है। ये विधि १८-२२ महीने पुराने पौधों की रोपाई के लिए उपयोग किया जाता है। बुवाई करते समय पौधों से पौधों के बीच की दुरी का अवश्य ध्यान रखे। बड़ी प्रकार की पौध के लिए र्२.५ े २.० स्. की दुरी रखें और छोटे प्रकार र्२.० े १.५ स्. की दुरी रखें।
सिंचाई प्रबंधन
मुख्य रूप से इलायची की खेती मानसून के मौसम में की जाती है। फसल की वर्षा से ही जल आपूर्ति हो जाती है। अगर गर्मी और वर्षा के बीच का समय लम्बा हो जाता है तो अच्छी ऊपज पाने के लिए स्प्रिंकल के माध्यम से सिंचाई अवश्य करें।
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खाद और उर्वरक प्रबंधन
फसल में रोपाई से पहले १० टन प्रति एकड़ गोबर की खाद या कम्पोस्ट का इस्तेमाल करें। उर्वरक की बात करें तो अधिक ऊपज प्राप्त करने के लिए फसल में ३० -३५ किलोग्राम नाइट्रोजन, ३० -३५ किलोग्राम फॉस्फोरस और ६० -६५ किलोग्राम पोटाश प्रति एकड़ की दर से खेत में डालें। उर्वरकों को दो बार बराबर मात्रा में फसल में डालें। एक उर्वरक के भाग को जून या जुलाई में खेत में डालें, उर्वरक ड़ालते समय ये अवश्य ध्यान रखें की खेत में प्रचुर मात्रा में नमी हो। दूसरा उर्वरक का भाग अक्टूबर या नवंबर के महीने में डालें।
फसल में किट प्रबंधन
थ्रिप्स के रोकथाम के लिए निचे दिए गए किसी भी
फसल में रोग प्रबंधन
मोज़ेक या कट्टे रोग यह इलायची की उत्पादकता को प्रभावित करने वाला एक गंभीर रोग है। यह बनाना एफिड द्वारा फैलता है जिसे मिथाइल डेमेटॉन २५ ईसी या डायमेथोएट ३० ईसी या फॉस्फोमिडोन ८६ डब्ल्यूएससी के साथ २५० मि.ली./एकड़ पर नियमित छिड़काव करके नियंत्रित किया जा सकता है।
कटाई और प्रसंस्करण
मसालों की रानी इलायची के पौधे आमतौर पर रोपण के दो साल बाद फल देने लगते हैं। अधिकांश क्षेत्रों में कटाई की चरम अवधि अक्टूबर-नवंबर के दौरान होती है। १५-२५ दिनों के अंतराल पर तुड़ाई की जाती है। उपचार के दौरान अधिकतम हरा रंग प्राप्त करने के लिए पके कैप्सूल को काटा जाता है।
कटाई के बाद, कैप्सूल को या तो ईंधन भट्ठे में या बिजली के ड्रायर में या धूप में सुखाया जाता है। यह पाया गया है कि ताजी कटी हुई हरी इलायची के कैप्सूल को सुखाने से पहले १० मिनट के लिए २ज्ञ् वाशिंग सोडा में भिगोने से सुखाने के दौरान हरे रंग को बनाए रखने में मदद मिलती है।
जब ड्रायर का उपयोग किया जाता है, तो इसे १४ से १८ घंटे के लिए ४५ से ५० डिग्री ण् पर सुखाया जाना चाहिए, जबकि भट्ठा के लिए, ५० से ६० डिग्री ण् पर रात भर सुखाने की आवश्यकता होती है। सुखाने के लिए रखे गए कैप्सूल को पतला फैलाया जाता है और एक समान सुखाने को सुनिश्चित करने के लिए बार-बार हिलाया जाता है। सूखे कैप्सूल को हाथों या कॉयर मैट या तार की जाली से रगड़ा जाता है और किसी भी बाहरी पदार्थ को हटाने के लिए फटक दिया जाता है। फिर उन्हें आकार और रंग के अनुसार छांटा जाता है, और भंडारण के दौरान हरे रंग को बनाए रखने के लिए काले पॉलीथीन बैग में रखा जाता है।