सामग्री : ६ ब्रेड स्लाइस १ चम्मच मैदा १ चम्मच बारीक सूजी ३ चम्मच दूध १/२ चम्मच इलायची पाउडर १/२ चम्मच पिसी चीनी १ चम्मच हल्का भुना हुआ खोया १ चम्मच चिरौंजी १ चम्मच बारीक कटा पिस्ता तलने के लिए रिफाइंड ऑयल विधि : पिसी हुई चीनी में खोया, चिरौंजी और पिसी इलायची मिला दें। ब्रेड को एक प्लेट में फैलाकर दूध में भिगो दें। पांच मिनट बाद ब्रेड को निचोड़ दें ताकि दूध निकल जाएं। इसमें मैदा व सूजी मिलाएं। मिश्रण ज्यादा सख्त नही होना चाहिए। मिश्रण की छोटी-छोटी गोलियां बनाएं। प्रत्येक गोली में बीच में खोये वाला मसाला भर कर बंद कर दें। चीनी और पानी की एक तार की चाशनी बनाकर अलग रख लें। अब गर्म तेल में मध्यम आंच पर सुनहरे भूरे होने तक गोलियां तले और इन्हें गर्म चाशनी में डाल दें। २-३ घंटे चाशनी में गोलियां भीगने दें। लीजिये तैयार हो गए आपके स्वादिष्ट मीठे गरमा गरम ब्रेड के गुलाब जामुन, इन पर पिस्ते की कतरन छिड़क कर सर्व करें।
यूं तो चुनाव में चंदा देना आम बात है। लेकिन ये चंदा कौन दे रहा है? कितना दे रहा है, किसे दे रहा है और क्यों दे रहा है? ये सवाल हर चुनाव में उठते रहे हैं। इलेक्ट्रॉरल बांड का मुद्दा अब सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह चुनावी बांड के जरिये राजनीतिक दलों को मिले चंदे के ब्योरे की जांच करेगा। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कई याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग से समीक्षा के लिए चुनावी बांड के माध्यम से राजनीतिक दलों के वित्तपोषण का विवरण तैयार करने को कहा। बॉन्ड के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान याची के वकील प्रशांत भूषण ने दलील दी है कि इसमें पारदर्शिता नहीं है। इससे लोगों के जानने के अधिकार का उल्लंघन हो रहा है। चुनाव आयोग तक को पता नहीं होता। यह जानने का लोगों को मौलिक अधिकार है। बजट २०१७ के दौरान संसद में तत्तकालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि अभी तक चुनावी चंदा में कोई पारदर्शिता नहीं है। अगर नगद चंदा दिया जाता है तो धन का स्रोत, देने वाले और किसे दिया जा रहा है। कोई नहीं जान पाता है। अब चंदा देने वाला बैंक एकाउंट के जरिए ही चुनावी बांड खरीद सकेगा और राजनीतिक दल भी चुनाव आयोग को आयकर दाखिल करते हुए ये बताएंगे कि उन्हें कितना चंदा चुनावी बांड के जरिए मिला है। सरकार की माने तो इन बांड का मकसद राजनीतिक चंदे को पारदर्शी बनाना है। केवल वे राजनीतिक दल जो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम १९५१ की धारा २९ए के तहत रजिस्टर्ड हैं। उन्होंने पिछले आम चुनाव में लोकसभा या विधानसभा के लिए डाले गए वोटों में कम से कम १ प्रतिशत वोट हासिल किए हों, वे ही चुनावी बांड हासिल करने के पात्र हैं। चुनावी बांड योजना को अंग्रेजी में इलेक्टोरल बॉन्डस स्कीम कहते हैं। ये भारतीय स्टेट बैंक की नई दिल्ली, गांधीनगर, चंडीगढ़, बेंगलुरु, हैदराबाद, भुवनेश्वर, भोपाल, मुंबई, जयपुर, लखनऊ, चेन्नई, कलकत्ता और गुवाहाटी समेत २९ शाखाओं में मिलते हैं। बीजेपी को चुनावी बांड योजना बनने के बाद से पांच वर्षों में बांड के माध्यम से दिए गए धन का आधे से अधिक (५७ प्रतिशत) भाजपा के पास गया है। चुनाव आयोग को दिए खुलासे के मुताबिक, पार्टी को २०१७ से २०२२ के बीच बॉन्ड के जरिए ५,२७१.९७ करोड़ रुपये मिले। मार्च २०२२ को समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष में भाजपा को चुनावी बांड में १,०३३ करोड़ रुपये, २०२१ में २२.३८ करोड़ रुपये, २०२० में २,५५५ करोड़ रुपये और २०१९ में १,४५० करोड़ रुपये मिले। पार्टी ने वित्तीय वर्ष के लिए प्राप्तियों में २१० करोड़ रुपये की भी घोषणा की। कांग्रेस को २०२२ तक बेचे गए कुल चुनावी बांड का ९५२ करोड़ रुपये या १० प्रतिशत प्राप्त हुआ। कांग्रेस को वित्तीय वर्ष २०२२ में चुनावी बांड से २५३ करोड़ रुपये, २०२१ में १० करोड़ रुपये, २०२० में ३१७ करोड़ रुपये मिले। २०१९ में ३८३ करोड़ रुपये मिले। तृणमूल कांग्रेस, जो २०११ से पश्चिम बंगाल में सत्ता में है, ने पूरे वर्षों में कुल ७६७.८८ करोड़ रुपये के योगदान की घोषणा की है, जो भाजपा और कांग्रेस के बाद तीसरे स्थान पर है। मार्च २०२२ में खत्म होने वाले वित्तीय वर्ष में तृणमूल कांग्रेस को ५२८ करोड़ रुपये, २०२१ में ४२ करोड़ रुपये, २०२० में १०० करोड़ रुपये और २०१९ में ९७ करोड़ रुपये मिले। ओडिशा में सत्तारूढ़ बीजू जनता दल ने २०१८-२०१९ और २०२१-२०२२ के बीच चुनावी बांड में ६२२ करोड़ रुपये की घोषणा की। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, २००० से राज्य में प्रभुत्व रखने वाली पार्टी को योजना के शुरुआती वर्ष में चुनावी बांड के माध्यम से कोई दान नहीं मिला। हालाँकि, इस बात का कोई संकेत नहीं है कि उस राशि का कितना हिस्सा केवल बांड से प्राप्त हुआ है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉम्र्स (एडीआर) के अनुसार, राष्ट्रीय पार्टियों ने चुनावी बांड दान में उल्लेखनीय वृद्धि का अनुभव किया, जिसमें वित्त वर्ष २०१७-१८ और वित्त वर्ष २०२१-२२ के बीच ७४३ प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। इसके विपरीत, इसी अवधि के दौरान राष्ट्रीय पार्टियों को कॉर्पाेरेट चंदा केवल ४८ प्रतिशत बढ़ा। भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) १,००० रुपये, १०,००० रुपये, १ लाख रुपये, १० लाख रुपये और १ करोड़ रुपये के मूल्यवर्ग में बांड जारी करता है। इस साल जुलाई में एडीआर ने कहा था कि २०१६-१७ और २०२१-२२ के बीच राजनीतिक दलों द्वारा प्राप्त सभी दान का आधे से अधिक हिस्सा चुनावी बांड के माध्यम से था और भाजपा को अन्य सभी राष्ट्रीय दलों की तुलना में अधिक धन प्राप्त हुआ। इसमें कहा गया है कि २०१६-१७ और २०२१-२२ के बीच सात राष्ट्रीय दलों और २४ राज्य दलों को लगभग १६,४३७ करोड़ रुपये का दान प्राप्त हुआ। इसमें से ९,१८८.३५ करोड़ रुपये लगभग ५६ प्रतिशत – चुनावी बांड के माध्यम से प्राप्त हुए। पहले चुनावी बॉन्ड के जरिये सियासी दलों तक जो धन आता था उसे वो गुप्त रख सकती थीं. लेकिन पिछले दिनों इस पर विवाद हुआ. मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सभी राजनीतिक दलों को इलेक्शन कमीशन के समक्ष इलेक्टोरल बॉन्ड्स की जानकारी देनी होगी. इसके साथ दलों को बैंक डीटेल्स भी देना होगा। अदालत ने कहा है कि राजनीतिक दल, आयोग को एक सील बंद लिफाफे में सारी जानकारी दें। इलेक्टोरल बॉन्ड शुरू से ही विवादों में है। केंद्र ने २९ जनवरी २०१८ को इसे लागू किया था । तर्वâ था कि इसके जरिए डोनेशन से चुनावी फंडिंग व्यवस्था में सुधार होगा। अब इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देकर तमाम खामियां गिनाई गई हैं। अदालत में चुनाव आयोग ने भी बताया था कि इलेक्टोरल बॉन्ड के कारण राजनीतिक पार्टियों की फंडिंग की पारदर्शिता पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा। बहरहाल, अब सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक बेंच इसका परीक्षण कर रही है और उम्मीद है कि आम चुनाव से पहले इस पर सुनवाई पूरी होने के बाद फैसला आ जाए। जो भी फैसला होगा वह आने वाले दिनों में चुनावी फंडिंग की दिशा और दशा तय करने में अहम होगा। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि चंदा लेने का ये तरीका लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। वेस्टमिंस्टर विश्विद्यालय में सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेमोक्रेसी की डायरेक्टर निताशा कौल फाइनेंशियल टाइम्स के लिए लिखे एक लेख में बताया कि भारत में चुनाव किस हद तक महंगा होता है। वो आंकड़ों के हवाले से लिखती हैं कि २०१९ के आम चुनाव में २०१४ की तुलना में दोगुना खर्च हुआ था। भारत का आखिरी आम चुनाव २०१६ के यूएस प्रेसिडेंट इलेक्शन से ज्यादा महंगा था। इससे पता चलता है कि चुनाव में रुपयों का बोलबाला बढ़ा है।
अमेरिका की टक्कर में खुद को खड़ा करने की कोशिश में चीन ने बेल्ट एंड रोड इनिसिएटिव यानी बीआरआई के जरिए दुनिया के कई देशों में करोड़ों डॉलर के प्रोजेक्ट शुरू किए थे। बीआरआई प्रोजेक्ट के दस साल पूरे हो गए हैं। अप्रâीका से एशिया तक फैले और अरबों डॉलर के निवेश को देखते हुए, पिछले कुछ वर्षों में इसकी आलोचना भी हुई है। बीआरआई की १०वीं वर्षगांठ पर बीजिंग में हो रहे सम्मेलन में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओर्बन पहुंचे हैं। अफगानिस्तान की तालिबान सरकार भी इसमें शामिल होगी। इस प्रोजेक्ट को लेकर चीन ने बड़े बड़े दावे किए थे। लेकिन इस परियोजना पर जिस तरह से चीन ने पैसा बहाया है, उसे वैसा फायदा हुआ नहीं है।
एससीओ शिखर सम्मेलन के दौरान बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) परियोजना का भारत ने विरोध जताया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस महत्वाकांक्षी परियोजना को लेकर बीजिंग पर निशाना साधते हुए कहा कि संपर्वâ परियोजनाएं महत्वपूर्ण हैं, लेकिन अन्य देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करना भी जरूरी है. शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी ने कहा, ‘किसी भी क्षेत्र की प्रगति के लिए मजबूत संपर्वâ महत्वपूर्ण है. बेहतर कनेक्टिविटी न केवल आपसी व्यापार को बढ़ाती है, बल्कि आपसी विश्वास को भी बढ़ावा देती है. हालांकि, इन प्रयासों में एससीओ चार्टर के बुनियादी सिद्धांतों को बनाए रखना जरूरी है, विशेष रूप से सदस्य देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करना जरूरी है’. चीन, भारत, रूस, पाकिस्तान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान और अब ईरान यानी सभी एससीओ सदस्य देश वर्चुअल शिखर सम्मेलन के अंत में बीआरआई के पक्ष में दिखे, लेकिन भारत ने इससे इंकार कर दिया. दरअसल पीएम मोदी ने भारत ने बीआरआई का समर्थन करने वाले न्यू दिल्ली डिक्लेरेशन के पैराग्राफ पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया. ये चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की पसंदीदा परियोजना है. २०२३ की न्यू दिल्ली डिक्लेरेशन के बीआरआई पैराग्राफ में कहा गया है, ‘चीन की ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (बीआरआई) पहल के लिए अपने समर्थन की पुष्टि करता है. इसके तहत कजाकिस्तान गणराज्य, किर्गिज गणराज्य,पाकिस्तान, रूसी संघ, ताजिकिस्तान गणराज्य और उजबेकिस्तान गणराज्य इस परियोजना को संयुक्त रूप से लागू करने के लिए चल रहे काम पर ध्यान देते हैं. इसमें यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन और बीआरआई के निर्माण को जोड़ने के प्रयास शामिल हैं. लेकिन बीआरआई परियोजना के बारे में ऐसा क्या है जो भारत को परेशान करता है? भारत इस पहल का विरोध क्यों कर रहा है, जबकि शी जिनपिंग इस बुनियादी ढांचा परियोजना को क्षेत्रीय सहयोग और व्यापार और निवेश में सुविधा बता रहे हैं. पहले समझते हैं कि बीआरआई क्या है.
बीआरआई क्या है? बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव को न्यू सिल्क रोड भी कहा जाता है. इसकी शुरुआत २०१३ में चीन के शी जिनपिंग ने की थी. यह प्रोजेक्ट बुनियादी ढांचे के जरिए पूर्वी एशिया और यूरोप को जोड़ने के लिए तैयार की गई एक पहल है. ये परियोजना अप्रâीका, ओशिनिया और लैटिन अमेरिका में शुरू हुई है, इससे चीन के आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव में काफी विस्तार हुआ है. पहले इसे ‘वन बेल्ट, वन रोड’ पहल भी कहा जाता था, लेकिन अब इसे बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का नाम मिला है. यूरोपीय बैंक के अनुसार, बीआरआई में भूमि मार्ग और समुद्री मार्ग शामिल है. भूमि मार्ग चीन को दक्षिण पूर्व एशिया, दक्षिण एशिया, मध्य एशिया, रूस और यूरोप से जोड़ता है और बाद में चीन के तटीय क्षेत्रों को दक्षिण पूर्व और दक्षिण एशिया, दक्षिण प्रशांत, पश्चिम एशिया, पूर्वी अप्रâीका और यूरोप से जोड़ता है. इस मेगा परियोजना की लागत कितनी है? द गार्जियन में छपी २०१८ की एक रिपोर्ट में इस परियोजना की लागत १ ट्रिलियन से ज्यादा आंकी गई थी, हालांकि अलग-अलग अनुमान हैं कि आज तक कितना पैसा खर्च किया गया है. एक विश्लेषण से पता चला है कि चीन ने इस पहल के लिए २१० अरब डॉलर से ज्यादा का निवेश किया है, जो एशिया में किसी भी परियोजना में निवेश की गई योजना में सबसे ज्यादा है. बेल्ट एंड रोड का मतलब यह भी है कि चीनी कंपनियां दुनिया भर में निर्माण कार्य में लगी हुई हैं. यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि बीआरआई शी जिनपिंग की पसंदीदा परियोजना है और इसे एशियाई राष्ट्र में अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जा रहा है. अभी तक चीनी अधिकारियों ने ये भी नहीं बताया है कि को भी इस परियोजना में क्या शामिल है. जो कई तरह के संदेह पैदा करता है. भारत बीआरआई का प्रतिरोधी क्यों है?
जब से यह परियोजना शुरू हुई है और देशों ने इसके लिए हस्ताक्षर करना शुरू किया है, भारत ने नियमित रूप से इसका विरोध किया है. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी बुनियादी ढांचा परियोजना पर चिंता व्यक्त की है. बीआरआई को लेकर भारत की सबसे बड़ी चिंता ये है कि इसकी एक महत्वपूर्ण शाखा, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) से शुरू होती है. ये गलियारा चीन के शिनजियांग उइघुर स्वायत्त क्षेत्र में काशगर से पाकिस्तान के दक्षिण-पश्चिम बलूचिस्तान में ग्वादर बंदरगाह तक जाती है. उसके बाद ये गिलगित बाल्टिस्तान में पाकिस्तान के कब्जे वाले भारतीय क्षेत्र में प्रवेश करता है. इसके अलावा निवेश परियोजना में पाकिस्तान के राष्ट्रीय राजमार्ग ३५ काराकोरम राजमार्ग का नवीनीकरण भी शामिल है. इसे चीन-पाकिस्तान मैत्री राजमार्ग भी कहा जाता है. इस परियोजना में नियंत्रण रेखा (एलओसी) के उत्तर में गिलगित को स्कर्दू से जोड़ने वाले राजमार्ग का नवीनीकरण भी शामिल है. भारत का दृढ़ मत है कि यह परियोजना संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन करती है. भारत इस बात को लेकर भी चिंतित है कि यह परियोजना क्षेत्र में चीन की रणनीतिक उपस्थिति को बढ़ाती है. उसे यह भी डर है कि इस तरह की पहल से देश बीजिंग के कर्जदार हो जाएंगे. अक्टूबर २०२१ में चीन में भारतीय दूतावास में द्वितीय सचिव प्रियंका सोहोनी ने कहा था, ‘जहां तक चीन के बीआरआई का सवाल है, हम इससे विशिष्ट रूप से प्रभावित हैं. तथाकथित चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) को एक प्रमुख परियोजना के रूप में शामिल करना भारत की संप्रभुता का उल्लंघन है. पिछले साल विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा था, ‘हमने सीपीईसी परियोजनाओं में तीसरे देशों की प्रस्तावित भागीदारी को प्रोत्साहित करने पर रिपोर्ट देखी है. किसी भी पार्टी द्वारा इस तरह की कोई भी कार्रवाई सीधे तौर पर भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन करती है. नवंबर २०२२ में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री ली क्विंग की मेजबानी में एससीओ की डिजिटल बैठक में परियोजना पर भारत की असहमति जताई थी. उन्होंने तब कहा था, ‘कनेक्टिविटी परियोजनाओं को सदस्य राज्यों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करना चाहिए और अंतर्राष्ट्रीय कानून का सम्मान करना चाहिए’. चीन ने २०१३ में जिस ‘वन बेल्ट वन रोड’ (ध्NE ँEथ्ऊ ध्NE Rध्AD) परियोजना की शुरुआत की थी, अब वह कठघरे में खड़ी हो रही है. चीन ने ध्ँध्R को एशिया, यूरोप और अप्रâीका से जोड़ने वाली परियोजना के रूप में प्रचारित किया. तीन ख़रब अमरीकी डॉलर इस पर झोंक दिए. वह सेंट्रल एशिया, दक्षिणी-पूर्वी एशिया और मध्य-पूर्व में अपना दबदबा बढ़ाना चाहता है. चीन दुनिया का बड़ा मैन्युफैक्चरिंग हब है और उसे अपने उत्पाद बेचने के लिए बड़े बाजार की तलाश है. लेकिन, जिस आधार पर ध्ँध्R का विरोध शुरू हुआ है, उसका आधार कुछ और ही है. चीन ने अपने पड़ोसी देशों से आधारभूत ढांचा खड़ा करने के नाम पर समझौता किया, लेकिन उसने इसके एवज में इतना महंगा कर्ज उन देशों पर थोप दिया कि ध्ँध्R उन्हें बोझ लगने लगी. जब ये देश क़र्ज़ चुकाने में नाकाम हो गए तो उनके प्राकृतिक संसाधनों का ज़बरदस्त दोहन किया. एशिया का एक छोटा सा देश लाओस जिसकी अर्थव्यवस्था ९००० करोड़ रुपये के आसपास है. चीन ने यहां पर रेलवे और हाईवे के निर्माण के लिए ५००० करोड़ का निवेश किया है. इसी के साथ अब इस देश की कुल अर्थव्यवस्था के ५२ फीसदी हिस्से पर चीन का कब्ज़ा हो चुका है. चीन, पाकिस्तान, अमेरिका, अर्थव्यवस्था, भारत शी जिनपिंग की सबसे महत्वाकांक्षी परियोजना एशिया, अप्रâीका और यूरोप को जोड़ने के मकसद से शुरू हुई थी. हाल के दिनों में चीन की इस असलियत का खुलासा दुनिया के कई ‘थिंक टैंक’ ने किया है और इसी का नतीजा है कि कई देशों ने राष्ट्रपति शी जिनपिंग के इस महत्वाकांक्षी इंप्रâास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट को रद्द कर दिया है. मलेशिया ने चीन समर्थित चार परियोजनाओं को रद्द कर दिया. ये चारों परियोजनाएं २३ अरब डॉलर की थीं. महातिर मोहम्मद को चीन विरोधी कहा जाता है. जानकार चीन के इन प्रोजेक्टों के रद्द होने के पीछे मलेशिया में सत्ता परिवर्तन बता रहे है. चीन के बैंकों के उच्च दर वाला ब्याज वहां की सरकार को रास नहीं आ रहा है और उन्हें अपनी अर्थव्यवस्था के लिए खतरा महसूस हो रहा है. चीनी कर्ज़ का डर म्यांमार को भी सता रहा है. हाल ही में म्यांमार के वित्तमंत्री ने चीनी परियोजनाओं के आकार को बहुत हद तक सीमित करने का फैसला लिया है. उन्होंने कहा कि पड़ोसी देशों से उन्हें सबक मिला है कि ़ज्यादा कर्ज़ कई बार अच्छा नहीं होता है. म्यांमार के क्याऊकप्यु में चीन विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाने वाला है. यह हिन्द महासागर में है और १० अरब डॉलर का प्रोजेक्ट है. यह प्रोजेक्ट चीन के वन बेल्ट वन रोड का हिस्सा है. थाईलैंड ३००० करोड़ के प्रोजेक्ट को स्थगित कर चुका है. रेलवे और हाईवे की योजनाओं में निवेश के रास्ते चीनी क़र्ज़ इस छोटे से देश में गहरी पैठ बना चुका था. थाईलैंड की सबसे बड़ी दिक्कत चीनी क़र्ज़ की अपारदर्शी शर्तें थीं, जिसका डर उसे लगातार सता रहा था. एक और एशियाई देश उ़ज्बेकिस्तान ने चीनी क़र्ज़ को अपनी अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती बता डाला. दरअसल इस देश के ऊपर कुल विदेशी क़र्ज़ का ७४ज्ञ् हिस्सा चीन का है जो इनकी परेशानियों को बढ़ाने के लिए काफी था. पाइपलाइन और रेलवे प्रोजेक्ट को स्थगित करने में उ़ज्बेकिस्तान ने ज़रा भी देर नहीं लगायी और साथ में चीनी सरकार को एक कड़ा सन्देश भी दिया. हाल के दिनों में पाकिस्तान और चीन का लव अफेयर पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बना हुआ है. चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर के तहत चीन ५५ अरब डॉलर का निवेश करने वाला है जिसमें ग्वादर पोर्ट को भी विकसित किया जाना है. चीन का इसके राजस्व पर ९१ फ़ीसदी अधिकार होगा और ग्वादर अथॉरिटी पोर्ट को महज ९ फ़ीसदी मिलेगा. ज़ाहिर है अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान के पास ४० सालों तक ग्वादर पर नियंत्रण नहीं रहेगा. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पिछले कई वर्षों से अमेरिकी राहत पैकेज पर टिकी हुई थी, लेकिन हाल के वर्षों में अमेरिका की सख्ती ने चीन को उसके करीब लाने का काम किया है. लेकिन जानकार इस डील को चीन के पक्ष में एकतरफा जाते हुए देख रहे हैं. दरअसल चीन का मुख्य मकसद बलूचिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन और भारत की दक्षिण एशिया में घेरेबंदी है. ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन की सरकार कैश रिज़र्व के मामले में आज पूरी दुनिया में सबसे ऊपर है. जिसके पास लगभग ८०० लाख करोड़ की नगद राशि है. चीन ने लगातार चार दशकों तक १० ज्ञ् से ज्यादा की ऱफ्तार से विकास करने के बाद इस मुकाम को हासिल किया है. चीन की अर्थव्यवस्था आज पूरे विश्व में दूसरे स्थान पर है और इसने चीनी अर्थव्यवस्था की महत्वाकांक्षाओं को कई गुना बढ़ा दिया है. अमेरिकी बादशाहत को चुनौती देना अब चीन की फितरत बन चुका है. चीन ने पूरी दुनिया में आधुनिक साम्राज्यवाद की एक नयी तस्वीर पेश की है जिसका शिकार एशिया और अप्रâीका के छोटे देश बन रहे हैं. चीनी महत्वाकांक्षा को देखते हुए उसे आधुनिक युग का ब्रिटेन कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए. ध्ँध्R को लेकर भारत पहले ही ऐतराज जता चुका है. शुरुआत चीन और पाकिस्तान के बीच बन रहे चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (ण्झ्Eण्) को लेकर हुई. यह सड़क पाक-अधिकृत कश्मीर से होकर बनाई जा रही है. भारत इसे विवादित क्षेत्र मानता है, और यहां सड़क बनाए जाने का विरोध कर रहा है. भारत की आपत्तियों को चीन नजरअंदाज करता आया है.हाल के दिनों में जिस तरह से कई देशों ने चीन के ध्ँध्R प्रोजेक्ट को रद्द किया है उसने चीनी महत्वाकांक्षाओं के ऊपर एक गहरा प्रश्न चिन्ह लगाया है. अगर चीन और उसके क़र्ज़ की हक़ीक़त इसी तरह दुनिया के सामने आती रही तो ‘वन बेल्ट वन रोड’ के तहत आने वाले प्रोजेक्ट और उनके उद्देश्यों का हिन्द महासागर में डूबना तय है. सिर्पâ श्रीलंका ही नहीं चीन ने १४७ से ज्यादा देशों के साथ अपने वित्तीय और राजनीतिक प्रभाव का फायदा उठाने की पहल में लगभग एक ट्रिलियन डॉलर का निवेश किया है. कम आय वाले देशों की आर्थिक स्थिति गंभीर है और इस परियोजना के बाद बदतर होने के कगार पर है. डेटा चिंताजनक है कम आय वाले देशों पर २०२२ में चीन के ऋण का ३७ज्ञ् बकाया है, जबकि बाकी दुनिया के लिए यही ऋण २४ज्ञ् है. इस परीयोजना में शामिल ४२ देशों पर चीन का कर्जा हो चुका है. एडडेटा और बीआरआई के आंकड़ों के अनुसार, सड़क-रेल-बंदरगाह-भूमि बुनियादी ढांचे के वित्तपोषण के लिए चीनी वैश्विक परियोजनाएं इसमें शामिल सभी देशों के लिए ऋण का एक प्रमुख स्रोत रही हैं. इसमें पाकिस्तान ७७.३ अरब डॉलर के ऋण के साथ सबसे आगे है. इसके बाद अंगोला (३६.३ अरब डॉलर), इथियोपिया (७.९ अरब डॉलर), केन्या (७.४ अरब डॉलर) और श्रीलंका (७ अरब डॉलर) का कर्जदार है. मालदीव के वित्त मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, २०२२ की पहली तिमाही के अंत तक मालदीव का कर्ज बढ़कर ६.३९ अरब डॉलर हो गया. यह मालदीव के सकल घरेलू उत्पाद का ११३ज्ञ् है. कर्ज की वजह चीन की परियोजना है. चीन ने मालदीव में सिनामाले पुल और एक नए हवाई अड्डे जैसी बुनियादी परियोजनाओं को वित्त पोषित किया गया था. बांग्लादेश पर बीजिंग के कुल विदेशी ऋण का ६ज्ञ् बकाया है, यानी लगभग ४ बिलियन डॉलर का कर्जा है. ढाका अब आईएमएफ से ४.५ अरब डॉलर के पैकेज की मांग कर रहा है. जिबूती और अंगोला पर पर भी बड़ा बोझ है क्योंकि ऋण सकल राष्ट्रीय आय (जीएनआई) के ४०ज्ञ् से ज्यादा है. लाओस और मालदीव दोनों पर जीएनआई ( उrदे Naूग्दहaत् घ्हम्दस) का ३०ज्ञ् ऋण बोझ है . अप्रâीका पर बीजिंग का १५० बिलियन डॉलर से ज्यादा का बकाया है. जाम्बिया भी चीनी बैंकों के लगभग ६ बिलियन डॉलर के साथ ऋण चुका रहा है. पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश आईएमएफ से राहत की मांग कर रहे हैं. चीन की बेल्ट एंड रोड परियोजना में अपारदर्शी वित्तपोषण शैली अपनाई गई है. इस वजह से कम से कम १० कम आय वाले देशों में ऋण ज्यादा हो गया है. बता दें कि पिछली श्रीलंकाई सरकार चीन की तरफ ज्यादा झुकी हुई थी, वो भारत के खिलाफ थी. श्रीलंका में सरकार बदली जो भारत को लेकर थोड़ा नर्म है, अब बीजिंग ने आईएमएफ और पेरिस क्लब दोनों हवाला देकर ऋण चुकौती पर १० साल की रोक पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया है. चीनी एक्जिम बैंक केवल दो साल की मोहलत की पेशकश कर रहा है, इसका प्रतिरोध श्रीलंका में हो रहा है. पाकिस्तान के साथ भी ऐसा ही है. अधिकांश बीआरआई अनुबंधों को जनता से गुप्त रखा गया है. ताकि चीनी बैंकों से बिजली-सड़क-बंदरगाह बुनियादी ढांचे के वित्तपोषण में उच्च ब्याज दरों का खुलासा न हो.
पिरामिड की तरह दिखने वाली इस विचित्र गोभी को दुनिया भर के लोग रोमनेस्को कॉली़फ्लावर और रोमनेस्को ब्रॉकली के नाम से जानते हैं. गोभी के फूल के बारे में कौन नहीं जानता. तरह-तरह के व्यजंन बनाने में इसका इस्तेमाल होता है. इसे खाने से लोग हेल्थी रहते हैं और खुद को ऊर्जावान महसूस करते हैं. मगर इन दिनों पिरामिड की तरह दिखने वाली एक विचित्र गोभी लोगों का ध्यान अपनी और खींच रही है. सोशल मीडिया पर चर्चा है कि इस गोभी की कीमत २२०० रुपये प्रति किलो तक है. यह सेलेक्टिव ब्रीडिंग का बेहतरीन उदाहरण है. इसकी खास बनावट के कारण ही ये गोभी मार्केट में २२०० रुपये प्रति किलो तक की कीमत में बिकती है. हाल ही में फ्रेंच नेशनल सेंटर फॉर साइंटिफिक रिसर्च के वैज्ञानिकों ने भी इस गोभी की बनावट पर अध्ययन किया है, जिसमें पता चला कि, ‘इस गोभी के विचित्र दिखने की वजह इसका फूल है. गोभी में मौजूद दानेदार फूल दरअसरल बड़े फूल में तब्दील होना चाहते हैं, लेकिन ऐसा हो नहीं पाता है. इसका निचला हिस्सा तने में तब्दील हो जाता है और ऊपरी हिस्सा कली बनकर रह जाता है. ऐसा इतनी बार होता है कि एक कली के ऊपर दूसरी कली चढ़ती जाती है. इस तरह ये पिरामिड जैसे दिखने लगते हैं.’ फ्रांस्वा पार्सी बताते हैं कि रोमनेस्को कॉलीफ्लावर फूल की तरह अपनी पहचान बनाना चाहती है, लेकिन बना नहीं पाती. सामान्य गोभी और ब्रोकोली में तो ये फूल अलग-अलग दिखाई देते हैं, लेकिन रोमनेस्को गोभी में फूल ज्यादा निकलते हैं, तो वे अलग दिखते हैं. इसका स्वाद करीब-करीब मूंगफली जैसा होता है, जो पककर और भी स्वादिष्ट हो जाती है. रोमनेस्को कॉलीफ्लावर की मार्केट में खूब डिमांड रहती है. हेल्थ के लिए यह लाभाकारी बताया जाता है. इसमें भरपूर मात्रा में विटामिन सी, विटामिन के, डायटरी फाइबर्स और कैरोटिनॉयड्स होते हैं, जो व्यक्ति को स्वास्थ लाभ देते हैं.
उस रात रीना बहुत बेचैन रही. उसकी आंखों की नींद उड़ चुकी थी, शरीर कसमसा रहा था. विचार उसके मस्तिष्क को शान्त नहीं रहने दे रहे थे और शरीर का कसाव उसके सारे अंगों को तोड़-मरोड़ रहा था. उसके दिमाग में विचार गड्ड-मडड् हो रहे थे और वह स्थिर होकर किसी भी एक बात पर विचार नहीं कर पा रही थी. अगली सुबह रीना ने जब आईने में अपनी सूरत देखी, तो उसे लगा कि उदासी की एक और पर्त उसके मुख पर चढ़ गयी थी. पर्त-दर-पर्त उसका चेहरा उदासी के जंगल में गुम होता जा रहा था और जंगल धीरे-धीरे घना होता जा रहा था. यह सचमुच चिन्ताजनक बात थी. पच्चीस की उम्र में लड़कियों के चेहरे पर वसन्त के फूल खिलते हैं, न कि पतझड़ के सूखे पत्ते वहां उड़ते हैं. यह क्या होता जा रहा है उसे? नेहा ने उसे एक दिन फिर टोंका था, ‘‘क्या तुम्हें नहीं लगता कि तुम चिड़-चिड़ी होती जा रही हो. बात-बेबात पर तुम्हें गुस्सा आने लगा है?”
रीना मलिक को पच्चीस वर्ष की वय तक किसी से प्यार नहीं हुआ था और इस बात का उसे बहुत अभिमान था. उसका मानना था कि शादी के पहले का प्यार-प्यार नहीं होता, बल्कि वासना होती है, महज शारीरिक आकर्षण होता है. युवक और युवती एक अनैतिक और अमर्यादित संबन्ध को प्यार का नाम देकर केवल अपनी शारीरिक भूख शान्त करते हैं…बस! बड़ी अजीब बात थी कि एक सुन्दर और जवान लड़की का परिपक्व उमर तक किसी लड़के को देखकर दिल नहीं धड़का था, किसी की तरफ उसने लालसा भरी नजरों से नहीं देखा था. क्या उसमें कोई शारीरिक या ऐन्द्रिक कमी थी, या उसके संस्कार और पारिवारिक मूल्य इतने तगड़े थे कि उसने जान-बूझकर अपनी आंखों में गाढ़ा-मोटा पर्दा डाल लिया था; ताकि उसे कुछ दिखाई न पड़े और अपने दिल को उसने भारी भरकम बोझ के नीचे दबा रखा था. अपने नाजुक दिल को उसने मर्यादा के मजबूत तारों से जकड़ रखा था कि वह किसी लड़के के प्रति धड़क न उठे किसी को प्यार करना या न करना, यह रीना का व्यक्तिगत मामला था और इसमें कोई उसकी मदद नहीं कर सकता था, परन्तु उसकी इस हठधर्मी का परिणाम बहुत गलत तरीके से उसके ही ऊपर पड़ रहा था. वह सबसे अलग-थलग पड़ती जा रही थी. सहेलियां अपने-अपने प्रेमियों के साथ जीवन के मजे लूट रही थीं या जब आपस में मिलतीं तो एक दूसरे के प्रेम के किस्से चटखारे लेकर सुनती-सुनाती कालेज के लड़के-लड़कियां अपनी मस्तियों में डूबे हुए रहते थे. ऐसे में खूबसूरत बगीचे में रीना एक ठूंठ के समान खड़ी हुई लगती थी. वह किसी की बातों में शामिल नहीं होती थी और न इस तरह की बातों में कोई उसे शामिल करता था. वह जब कालेज की लड़कियों के आसपास होती तो वे ऐसे जाहिर करतीं जैसे वह कोई अनजान और बाहरी लड़की हो जो भूलवश उनके बीच में आकर खड़ी हो गयी थी. वह खूबसूरत थी, बहुत खूबसूरत…परन्तु उसकी खूबसूरती में उदासी का ग्रहण लगा हुआ था. उसका चेहरा हरदम सूखी हुई लौकी की तरह लटका ही रहता था. अनजाने भी उसके चेहरे पर मुस्कराहट की परछार्इं नजर नहीं आती थी. अपनी सहेलियों के बीच वह मर्दाना औरत के नाम से जानी जाती थी. सब उसका मजाक उड़ाते, पर रीना देखा-अनदेखा कर देती और सुनी-अनसुनी. कुछ नजदीकी सहेलियां जब अपने प्यार के किस्से चटखारे लेकर सुनातीं तो वह कान पर हाथ धर कर बंद कर देती, मुंह दूसरी तरफ घुमा लेती या उठकर चल देती. सहेलियां उसकी इन हरकतों पर खिलखिला कर हंस पड़तीं और कहती, ‘‘ठूंठ कहीं की, पता नहीं भगवान ने इसे लड़की कैसे बना दिया. लगता है, लड़की के शरीर में लड़के की जान डाल दी है, परन्तु यह तो किसी लड़की की तरफ भी आकर्षित नहीं होती. इसके लिए लड़के लड़कियां सब एक समान हैं. पता नहीं किसको प्यार करेगी, करेगी भी या नहीं. लगता है, ताउम्र कुंआरी ही रह जाएगी. कौन इस फटे मुंह के साथ अपना रिश्ता जोड़ेगा?” रीना ने अपने इर्द-गिर्द जो न टूटने वाला घेरा डाल रखा था, उसे पार करने की जुर्रत कोई लड़का भी नहीं करता था. जब उस पर नई-नई जवानी चढ़ रही थी, कई भंवरों ने उसके ऊपर मंड़राकर गुनगुनाने का प्रयास किया था, परन्तु रीना एक ऐसा फूल थी, जिसमें खुशबू नाम का तत्व नहीं डाला गया था…उसमें पराग नहीं था. वह ऐसी गीली लकड़ी की तरह थी, जिस पर न तो आग लग सकती थी और न उस पर पानी कुछ असर करता था. वह न भीगती थी, न जलती…जलना तो दूर सुलगती भी नहीं थी. उसकी सबसे प्रिय सहेली नेहा ने एक दिन कहा, ‘‘क्यों अपने जीवन को बंजर बना रही हो. जीवन में प्यार के फूल न खिलें, और खुशियों के रंग न बिखरें; तो ऐसे ठूंठ जीवन को जीने का क्या फायदा?” नेहा एक अच्छे स्वभाव की लड़की थी. वह सदैव रीना के भले के बारे में सोचती थी. उसका मत था कि रीना अपनी उदासी को दूर करने के लिए या तो शादी कर ले या किसी से प्यार…जो आज के जमाने में एक जरूरियात बन गई थी. ‘‘प्यार करूंगी, परन्तु अपने पति से…किसी और से नहीं.” रीना ने अपनी लटों को झटकते हुए कहा. ‘‘प्यार का अर्थ ये तो नहीं होता कि तुम अपना शरीर ही उस लड़के को समर्पित कर दो.” नेहा जैसे समझाने का प्रयास कर रही थी. ‘‘इसके अलावा लड़के और कुछ नहीं चाहते एक लड़की से.” रीना ने दृढ़ता से कहा. ‘‘चाहते होंगे, परन्तु यह तो हमारे ऊपर निर्भर करता है कि किस सीमा तक हम उनको अपने नजदीक आने देते हैं.” ‘‘मैं नहीं समझती कि सीमा-रेखा बनाकर कोई किसी से प्यार करता है. जब लड़का-लड़की एकान्त में मिलते हैं तो सारी सीमाएं टूट जाती हैं.” रीना इतने आत्मविश्वास से यह बात कह रही थी जैसे उसने अपने जीवन में इसे अच्छी तरह से भोग लिया था. ‘‘लेकिन मैं समझती हूं कि तुम नियम-कानून बनाकर प्यार कर सकती हो, क्योंकि तुम्हारा स्वभाव अलग है. तुम अपने चारों तरफ एक रेखा खींच सकती हो. कोई भी लड़का उसे पार करने की हिम्मत नहीं करेगा. लड़की के विचार शुद्ध और निर्मल हों, मन में दृढ़ आत्मविश्वास हो तो कोई भी लड़का तुमसे किसी प्रकार की ज्यादती नहीं कर सकता.” ‘‘मुझे आवश्यकता ही क्या है कि मैं किसी से प्यार करूं?” वह थोड़ा झुंझलाकर बाले ी. ‘‘आवश्यकता तो नहीं है, परन्तु तुम किसी को अपने मन में बसाकर देखो, तब पता चलेगा कि प्यार विहीन जीवन से प्यारसिक्त जीवन कितना अलग होता है. ठूंठ पर तो भटका हुआ पक्षी भी नहीं बैठता. कहीं ऐसा न हो कि तुम उजाड़ रेगिस्तान का एक सूखा हुआ ठूंठ बनकर रह जाओ और उस पर कभी कोई कोंपल तक न उगे. अपने जीवन को नीरस मत बनाओ. अपने आचरण से तुम हम सबसे भी दूर होती जा रही हो. कोई भी लड़की तुम्हें अपने साथ नहीं रखना चाहती. तुम बिलकुल अलग-थलग पड़ती जा रही हो. एक दिन मैं भी तुम्हें अकेला छोड़ दूंगी, तो बताओ तुम कालेज में किसके साथ हंसोगी, बोलोगी और किसके साथ उठोगी-बैठोगी. लड़के तो पहले से ही तुमसे इतना दूर हो चुके हैं कि अब कोई तुम्हारी तरफ देखना भी पसंद नहीं करता. ऐसी सुन्दरता किस काम की, जिसका कोई प्रशंसक न हो, कोई गुण-ग्राहक न हो.” नेहा ने जैसे उसे फटकार लगाते हुए कहा. रीना के मस्तिष्क को एक तगड़ा झटका लगा. क्या प्यार जीवन के लिए इतना जरूरी है? क्या यही एक ऐसा धागा है, जो मानव को मानव से जोड़ता है, उन्हें खुश रखता है. उसके विचारों में एक बवण्डर सा उठा और वह उसके वेग से एक तरफ कटी पतंग की तरह उड़ चली. ऐसी बात नहीं थी कि नेहा ने उसे पहले कभी नहीं समझाया था. उन दोनों के बीच में इस तरह की बातें हमेशा होती रहती थीं, परन्तु रीना एक कान से सुनती और दूसरे से निकाल देती. प्यार की बातों को उसने कभी गंभीरता से नहीं लिया। परन्तु धीरे-धीरे वह स्वयं महसूस करने लगी थी कि जैसे वह भीड़ के बीच भी अकेली थी. सभी उसके परिचित थे, परन्तु न तो कोई उसकी तरफ देख रहा था, न कोई उसकी बात सुन रहा था. वह उपेक्षित सी एक किनारे खड़ी थी और लोग हंसते-खिलखिलाते उसके पास से गुजरते हुए चले जा रहे थेवह सोचने पर मजबूर हो गयी थी कि क्या इस दुनिया में उसका कोई अस्तित्व भी है? अगर है, तो फिर लोग उसकी तरफ आकर्षित क्यों नहीं होते? क्यों उसे अलग-थलग करने पर आमादा थे? इस बात का उत्तर तो उसी के पास था और वह इससे भलीभांति परिचित थी. उस रात रीना बहुत बेचैन रही. उसकी आंखों की नींद उड़ चुकी थी, शरीर कसमसा रहा था. विचार उसके मस्तिष्क को शान्त नहीं रहने दे रहे थे और शरीर का कसाव उसके सारे अंगों को तोड़-मरोड़ रहा था. उसके दिमाग में विचार गड्ड-मडड् हो रहे थे और वह स्थिर होकर किसी भी एक बात पर विचार नहीं कर पा रही थी. अगली सुबह रीना ने जब आईने में अपनी सूरत देखी, तो उसे लगा कि उदासी की एक और पर्त उसके मुख पर चढ़ गयी थी. पर्त-दर-पर्त उसका चेहरा उदासी के जंगल में गुम होता जा रहा था और जंगल धीरे-धीरे घना होता जा रहा था. यह सचमुच चिन्ताजनक बात थी. पच्चीस की उम्र में लड़कियों के चेहरे पर वसन्त के फूल खिलते हैं, न कि पतझड़ के सूखे पत्ते वहां उड़ते हैं. यह क्या होता जा रहा है उसे? नेहा ने उसे एक दिन फिर टोंका था, ‘‘क्या तुम्हें नहीं लगता कि तुम चिड़-चिड़ी होती जा रही हो. बात-बेबात पर तुम्हें गुस्सा आने लगा है?” ‘‘तो…मैं क्या कर सकती हूं?” वह मुंह लटकाकर बोली. ‘‘बहुत कुछ… इतना शिक्षित होने के बाद भी क्या तुम नहीं समझती कि ऐसा तुम्हारे साथ क्यों हो रहा है? अगर तुमने अपने आपको नहीं सुधारा तो समझ लो, तुम पागलपन की ओर अपने कदम बढ़ा रही हो. जल्द ही तुम्हें हिस्टीरिया के दौरे पड़ने लगेंगे.” ‘‘क्या ऐसा होता है? मैं तो पूरी तरह स्वस्थ हूं!” ‘‘शरीर से स्वस्थ हो, परन्तु दिमाग से नहीं. जिन जवान औरतों की शारीरिक भूख शांत नहीं होती, वह हिस्टीरिया के दौरों से ग्रस्त हो जाती हैं. देहाती औरतें भूत-प्रेत के चक्कर चलाती हैं और इस तरह बाबाओं के पास जाकर इलाज के बहाने अपनी भूख मिटाती हैं. मुझे डर है कि कहीं तुम्हें भी इसी दौर से न गुजरना पड़े कहीं तुम सोच-सोचकर पागल न हो जाओ.” ‘‘क्या तुम मुझे डरा रही हो?” रीना सचमुच डर गई थी. नेहा ने उसे उदास नजरों से देखा, ‘‘नहीं मैं सच बयान कर रही हूं। तुम जल्दी से शादी कर लो. यही तुम्हारे लिए उचित रहेगा, प्यार तुम किसी से कर नहीं सकती.” नेहा का जोर केवल कहने भर तक था. मानना न मानना रीना के ऊपर था. बचपन से लेकर जवानी तक रीना एक भ्रम में जीती रही थी. उसके पारिवारिक संस्कारों ने बहुत गहरे तक उसके मन में यह बात बिठा रखी थी कि प्यार-मोहब्बत, लड़के-लड़कियों का आपस में मेल-जोल और उनसे एकान्त में मिलना, न केवल बुरी बात होती है, बल्कि इससे सामाजिक प्रतिष्ठा और पारिवारिक मान-सम्मान को भी आंच आती है. इसी धारणा को अपने मन में पालते हुए रीना प्रकाश के विरुद्ध शरीर में आए बदलावों, अपनी भावनाओं और शारीरिक इच्छाओं से लड़ती हुई जी रही थी…शायद जी भी नहीं रही थी, तिल-तिलकर मरने के लिए मजबूर हो रही थी. उसने अपने मुख पर एक झूठा आवरण डाल रखा था और सच्चाई का सामना करते हुए डरती थी. सच्चाई तो कुछ और ही थी. ऊपर से वह कुछ भी दिखावा करती रही हो, परन्तु अन्दर से वह एक भरपूर जवान लड़की थी. सामान्य लड़कियों की तरह उसके मन में भी इच्छाएं और कामनाएं जन्म लेती थीं. उसके मन में भी वासनात्मक विचार आते थे, किसी से प्यार करने का मन होता था. लड़कों को देखकर उसका दिल भी धड़कता था, परन्तु झूठा आवरण तोड़ने की उसकी हिम्मत नहीं होती थी. मन ही मन वह घुट रही थी. बी.ए. और एम.ए. करने के बाद उसने इसी कालेज से पीएचडी की थी. अब उसी कालेज में पढ़ा भी रही थी. इसी कालेज में कितने लड़के उसके दीवाने थे, कितने प्राध्यापक उसे अपने आगोश में समेटने के लिए आतुर थे, परन्तु वह सबसे बचती-बचाती रही थी. इतने दिनों तक उसने अपने आपको किस तरह धोखे में रखा था, वही जानती थी. अपने दिल के सारे अरमानों को उसने चकनाचूर कर दिया था. शारीरिक बदलाव, मानसिक चिन्ताओं और सहेलियों के ताने-उलाहनों से वह अब कुछ ज्यादा ही विचलित होने लगी थी. मन बगावत करने के लिए कहता, परन्तु निरर्थक मान्यता और मर्यादा उसे हमेशा रोक लेती. घुटन बढ़ती जा रही थी और वह कुछ निर्णय नहीं ले पा रही थी. अन्ततः उसने अपनी सहेली नेहा को अपनी मनोस्थिति से अवगत कराया. सुनकर नेहा भेद भरे ढंग से मुस्कराई और उसे अपने अंक में भरकर बोली, ‘‘तो शीशा पिघल रहा है. ठूंठ में भी अंकुर पनपने लगा है, बधाई हो!” ‘‘तुम मुझे कोई रास्ता बताओ.” उसने बेचारगी के भाव से कहा. ‘‘प्यार तुम करोगी नहीं, शादी कर लो.” नेहा ने सहज भाव से जवाब दिया. ‘‘मजाक मत करो, तुम्हें पता है, मैं अभी शादी नहीं कर सकती. घर में कोई इस बारे में बात तक नहीं करता.” उसके स्वर में निराशा का पुट था. ‘‘हां, दुधारू गाय को कौन दूसरे के खूंटे से बांधना चाहेगा.” नेहा ने दुःख-भरे स्वर में कहा. नेहा की बात से रीना का मन दुखित हो उठा. घर में उसका बड़ा भाई था. उसकी शादी हो चुकी थी, परन्तु एक नम्बर का निकम्मा और आवारा था. बाप और बहन की कमाई पर खुद का और पत्नी का पेट पाल रहा था. उसको लेकर घर में लगभग रोज लड़ाइयां होती थीं, परन्तु उसकी सेहत पर कोई असर न पड़ता था. सब उसे घर से अलग करना चाहते थे, परन्तु वह घर से अलग होने का नाम नहीं लेता था. मुफ्त की रोटियां जो तोड़ने को मिल रही थीं. उसके निकम्मेपन की वजह से मां-बाप रीना की शादी में भी देरी कर रहे थे; ताकि जब तक उसकी शादी न हो, कम से कम उसकी तनख्वाह तो घर में आती रहे. ‘‘मैं बहुत परेशान हूं.” रीना ने जैसे सब कुछ नेहा के भरोसे छोड़ दिया था, ‘‘अब मैं अकेलापन बर्दाश्त नहीं कर सकती.” ‘‘तो किसी से दोस्ती कर लो.” नेहा ने सुझाव दिया. ‘‘परन्तु किससे?” उसने जैसे अपनी मान्यताओं को ठुकराकर हार मान ली हो. ‘‘जिस पर तुम्हारा दिल आ जाए.” ‘‘अगर वह भी मेरे शरीर का भूखा हुआ तो…?” उसने आशंका जाहिर की. ‘‘तो तुम किसी से प्यार नहीं कर सकती.” नेहा ने जोर से कहा, ‘‘बेवकूफ, पहले दोस्ती तो कर किसी से…उसके बाद अगर लगे कि उसके साथ प्यार किया जा सकता है तो आगे बढो़, वरना छोड़ दो. फिर शादी होने तक इन्तजार करो.” रीना को नेहा की बात उचित लगी. किसी से दोस्ती करने में क्या हर्ज है? अपनी सीमा में रहेगी, तो क्या मजाल कि उसके पवित्र शरीर को कोई अपने नापाक हाथों से गन्दा कर सके. उसके मन का सूनापन दूर हो जाएगा. उसका मन मचल उठा. मन की आंखों से उसने सारे लड़कों को आजमा डाला. बहुत सारे युवक थे, पर यथार्थ में उससे बहुत दूर. अब उसे ही अपने प्रयत्नों से उनमें से किसी एक को अपने करीब लाना होगा, या उसके करीब जाना होगा. यह काम बहुत मुश्किल था, क्योंकि उसके स्वभाव से सभी परिचित थे. परन्तु उसने नामुमकिन को मुमकिन करने की ठान ली थी. नेहा की सलाह, सुझाव और प्रोत्साहन उसे प्यार की डगर पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रहे थे. प्रशान्त कालेज में उससे दो साल सीनियर था. मनोविज्ञान पढ़ाता था और शान्त प्रकाश्ति का युवक था. रीना पहले भी उसके बारे में सोचा करती थी, अब तो पूरा मन ही उसके ऊपर फिदा हो गया था. उनके बीच अक्सर बातें नहीं हो पाती थी. प्रशान्त शान्त प्रकश्ति का था, तो रीना नकचढ़ी और अपने अभिमान में डूबी रहने वाली. दोनों के स्वभाव में चुप रहने के अलावा और कोई समानता नहीं थी. दोनों अपनी-अपनी दुनिया में खोए रहने वाले प्राणी थे, और उनके बीच में दोस्ती या बोल-चाल जैसी कोई बात नहीं थी, जबकि वह दोनों एक ही कालेज में पढ़ाते थे और स्टाफ रूम में अक्सर उन दोनों का आमना-सामना होता रहता था. नेहा उनके बीच माध्यम बनी. कामनरूम में जब नेहा प्रशान्त के सामने बैठी उसके साथ इधर-उधर की बातें करके उसको उलझाए हुई थी, तो रीना उसकी बगल में बैठकर नई नवेली दुल्हन की तरह शरमाती-सकुचाती, अपनी आंखों में दुनिया के सबसे सुन्दर ख्वाब सजाए कभी तिरछी नजर से, कभी सीधे देखती हुई मुस्कराये जा रही थी. प्रशान्त को रीना की इन बेतुकी हरकतों पर बड़ा आश्चर्य हो रहा था. वह बातें तो नेहा से कर रहा था, परन्तु नजरें रीना के रंग बदलते चेहरे पर जाकर बार-बार अटक जाती थी. उसने रीना को पहले भी देखा था, परन्तु इतना चंचल कभी नहीं…वह किसी स्नेह भाव से नहीं, बल्कि आश्चर्य मिश्रित सन्देह से रीना को घूरे जा रहा था. नेहा ने भांप लिया और बोली, ‘‘क्यों सर! रीना पर दिल आ रहा है क्या? बातें आप मुझसे कर रहे हैं और देख उसको रहे हैं.” वह झेंप गया, ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है.” उसने सिर नीचा कर लिया और बेवजह मेज पर रखी पुस्तक को उलटने पुलटने लगा. नेहा ने अर्थपूर्ण निगाहों से रीना की आंखों में झांका. रीना भी मुस्कराई, जैसे उसको प्यार का खजाना प्राप्त हो गया हो. ‘‘लंच का समय हो रहा है, कैंटीन में चलकर कुछ खा-पी लेते हैं.” नेहा ने सुझाव दिया. ‘‘हां, बिलकुल ठीक…मुझे बहुत जोरों की भूख लगी है.” रीना ने चहककर कहा. इस प्रस्ताव पर भी प्रशान्त को आश्चर्य हुआ. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था. नेहा भी आज उससे घुल-मिलकर बातें कर रही थी. रीना भी उसको देखकर बन्दरों की तरह खिसियाए जा रही थी. आखिर चक्कर क्या था? वह कुछ समझ नहीं पा रहा था. नेहा ने कैंटीन चलने का सुझाव दिया तो उसे और ज्यादा आश्चर्य हुआ। यह आज दिन में चांद-सितारे कहां से चमकने लगे. दोनों को उसके ऊपर क्यों इतना प्यार आ रहा है कि उसे साथ चलकर लंच करने के लिए कह रही हैं. कोई न कोई बात तो अवश्य है, वरना नेहा जैसी समझदार और सुलझी हुई लड़की उसके साथ इस तरह घुलकर बातें नहीं करती. मन में शंकाओं के बादल घुमड़ रहे थे, परन्तु यह बादल तभी छंट सकते थे, जब वह ज्यादा से ज्यादा उनके साथ रहे, उनकी बातें सुने और उनके अन्तर्मन को समझे. अतः उसने कहा, ‘‘अगर आप लोगों की इच्छा है, तो….चलिए.” वह उठ खड़ा हुआ. ‘‘परन्तु कालेज की कैन्टीन में नहीं. वहां बहुत सारे कालेज के छात्र-छात्रायें आती हैं. कुछ हमारी परिचित भी होंगी. बेवजह चर्चा होगी और लोग बातें बनायेंगे. चलिए, बाहर कहीं चलते हैं.” नेहा ने यथार्थ से अवगत कराते हुए कहा. ‘‘परन्तु दो बजे मेरी क्लास है!” प्रशान्त ने अटकते हुए कहा. ‘‘हम जल्दी ही लौट आएंगे. कालेज के सामने ही किसी रेस्त्रां में बैठकर कुछ हल्का-पुâल्का खा लेंगे.” यह रीना की प्रशान्त के साथ पहली मुलाकात थी, परन्तु दोनों के बीच कोई बात नहीं हुई. नेहा ही उसके साथ बातों में व्यस्त रही. रेस्त्रां में खाने के दौरान वह बिना किसी झिझक के प्रशान्त को ही खुलकर देखती रही थी. प्रशान्त उसकी निगाहों का ताव नहीं ला पा रहा था. उसके मन में तरह-तरह के विचार आ रहे थे, परन्तु वह उनको व्यक्त नहीं कर सकता था. वह ज्यादातर समय गुम-सुम रहा और नेहा की बक-बक तथा रीना की निगाहों का अर्थ समझने का प्रयास करता रहा था. रीना जितना आंखें चुराने वाली लड़की थी, उतना ही आज खुलकर वह प्रशान्त को देख रही थी. परन्तु उस दिन कुछ खास उसकी समझ में नहीं आया. प्रशान्त की दो बजे की क्लास थी, अतः वह तीनों जल्दी ही हल्का-पुâल्का खाकर कालेज के अन्दर आ गये. अगली दो-तीन मुलाकातें भी नेहा के माध्यम से हुर्इं. प्रशान्त को धीरे-धीरे बात समझ में आ रही थी, परन्तु उसके मन में शंकाएं थीं, तो रीना के मन में संस्कारों की बेड़ियां. वह दोनों खुलकर आपस में बात करने का साहस नहीं जुटा पा रहे थे नेहा ही बातों-बातों में रीना के मन की झूठी-सच्ची बातें प्रशान्त को बताकर उसके मन को रीना की तरफ आकर्षित करना चाह रही थी. वह अच्छी तरह जानती थी कि प्रशान्त और रीना स्वयं एक दूसरे की तरफ नहीं बढ़ेंगे, अतः उसे ही कुछ न कुछ करना पड़ा। एक दिन स्टाफ रूम में जब रीना उसके साथ नहीं थी तो नेहा ने प्रशान्त से पूछा, ‘‘रीना के बारे में आप क्या सोचते हैं?” वह मधुर मुस्कान की जलेबी अपने चेहरे पर लपेटता हुआ बोला, ‘‘मैं तो आपके बारे में सोचता हूं.” नेहा चौंकी नहीं, उसे कोई आश्चर्य भी नहीं हुआ. निर्विकार भाव से बोली- ‘‘मेरे बारे में सोचना छोड़ दो. मैं आपके हाथ आनेवाली नहीं, आप रीना के बारे में सोचो, वह आपकी तरफ आकर्षित है, आपके बारे में बातें करती रहती है. मुझे लगता है, वह अपने दिल में आपको बसा चुकी है.” ‘‘हो सकता है, परन्तु वह मुझे नारी नहीं लगती. उसमें कोई स्त्रियोचित गुण नहीं है. वह ठूंठ है ठूंठ…” ‘‘व्यर्थ की धारणा अपने मन से निकाल दो. वह एक बहुत सुन्दर लड़की है, बाहर से भी और अन्दर से भी…आप एक बार प्रयत्न करके तो देखो. ऊपर से ठूंठ को देखकर यह नहीं समझना चाहिए कि उसकी जड़ें हरी नहीं हैं. ठूंठ में भी कोंपलें निकलती हैं, अगर ढंग से उसे सींचा जाय.” नेहा गंभीर थी और प्रशान्त के मन में संशय के बादल घुमड़ रहे थे- ‘‘मुझे उसकी आंखों में मेरे लिए प्यार जैसा कोई भाव नहीं दिखाई देता.” ‘‘प्यार के मामले में वह अभी बच्ची है. उसे प्यार करना नहीं आता, परन्तु उसके दिल में प्यार का सागर उमड़ रहा है. बस बांध को तोड़ना पड़ेगा, प्यार का सागर बह निकलेगा. देखना, एक दिन जब उसके प्यार का बांध टूटेगा तो तुम डूब जाओगे, निकल नहीं पाओगे उससे.” ‘‘परन्तु जब वह हंसती है, तो जोकर लगती है.” ‘‘आप उसे प्यार से हंसना सिखा दो.” नेहा ने उसे उकसाया. हर रोज इसी तरह की बातें होतीं. रोज-रोज नेहा से रीना की बातें सुन-सुनकर प्रशान्त उसके बारे में सोचने पर मजबूर हो गया. वह उसके दिलो-दिमाग में कब्जा जमाती जा रही थी और वह उसके बारे में सोचने के लिए मजबूर…स्थिति यह हो गयी कि रीना एक पल के लिए भी उसके दिमाग से नहीं निकलती थी. रात-दिन घुटते रहने से क्या लाभ…? बात को आगे बढ़ाना चाहिए? नेहा ने उसे समझाया और फिर उसने हिम्मत करके एक दिन रीना को एकान्त में प्रपोज कर ही दिया, ‘‘रीना, बुरा न मानो तो एक बात कहूं.” ‘‘कहो!” उसने प्रोत्साहित किया. वह समझ रही थी कि प्रशान्त क्या कहने वाला था. नेहा ने उसे बता दिया था‘. ‘मेरे साथ घूमने चलोगी?” वह झिझकते हुए बोला‘‘कहां?” ‘‘जहां तुम कहो.” ‘‘मैं किसी जगह के बारे में नहीं जानती. आप अपनी मर्जी से चाहे जहां ले चलें, परन्तु मैं एक शर्त पर चलूंगी. मैं आपके साथ किसी एकान्त जगह पर नहीं चलूंगी, और वायदा करिए कि आप मेरे साथ कोई ऐसी-वैसी हरकत नहीं करेंगे.” रीना के संस्कारों ने सांप की तरह बिल से मुंह निकालना शुरू कर दिया. यह प्रथम अवसर था, जब दोनों के बीच प्यार की शुरुआत जैसी कोई गंभीर बातचीत हो रही थी और रीना अपनी नासमझी से बात को बिगाड़ने में लगी हुई थी. प्रशान्त को उसकी बातें सुनकर झटका सा लगा. क्या इस लड़की से प्यार किया जा सकता है? बड़ी कठिन लड़की है. उसे रीना की बात पर गुस्सा तो बहुत आया, परन्तु उसने अपने आपको संभाल लिया. उसकी समझदारी से ही शायद बात बन जाए, और इस नकचढ़ी और घमण्डी लड़की के जीवन में प्यार की दो-चार पुâहारें पड़ जाए, जिससे यह हरी-भरी दिखने लगे; वरना तो यह ठूंठ ही है, और ठूंठ ही बनी रहना चाहती हैवह तो इस लड़की से कभी प्यार न करता. कभी इसका खयाल तक उसके दिमाग में नहीं आता था. नेहा की बातों से उसका मन इसके लिए मचलने लगा था, वरना सुन्दरता के अलावा इस लड़की में क्या है? न कोई तमीज है, न कोई समझ..बेवकूफ कहीं की. उसने अपने गुस्से को फिलहाल काबू में किया, परन्तु उसने मन ही मन तय कर लिया, इसे सबक सिखाकर रहेगा. अपने आपको बहुत पाक-साफ समझती है और सती-सावित्री की तरह व्यवहार करना चाहती है. ठीक है, तुम भी क्या याद करोगी कि प्रशान्त से पाला पड़ा है. वह कोई मिट्टी का माधो नहीं है कि तुम उसे बेवकूफ बनाकर नचाती फिरोगी. मनमुटाव से ही सही, परन्तु दोनों के बीच घूमने का सिलसिला चल पड़ा. दोनों अक्सर शाम को कालेज के बाद साथ-साथ घूमने जाते. प्रशान्त जान-बूझकर ऐसी जगह बैठता, जहां खूब भीड़ भाड़ हो. बस, मेट्रो या आटो में भी वह रीना से इतनी दूरी बनाकर रखता, कि रीना को स्पष्ट आभास होता रहे कि वह उसके सान्निध्य के लिए लालायित या उत्सुक नहीं है. ऐसी लड़कियों को उपेक्षा से ही सही रास्ते पर लाया जा सकता था. पार्वâ में या रास्ते में कभी भी आते-जाते प्रशान्त प्यार भरा कोई शब्द नहीं बोलता. रीना के सौन्दर्य या पहनावे पर भी उसने कभी कोई कमेन्ट नहीं किया. ऐसी कोई बात नहीं की जिससे रीना को यह आभास हो कि वह उसे प्यार करने लगा है या उसका प्यार हासिल करने के लिए उत्सुक था. वह उसकी सुन्दरता से भी प्रभावित होता नहीं दिख रहा था. दोनों बेगानों की तरह मिलते, इधर-उधर की फालतू बातें करते और शाम का अंधेरा घिरने के पहल जुदा होकर अपने-अपने घर चले जाते. कई महीने बीत जाने पर भी प्रशान्त ने अभी तक उसके किसी अंग को भूले से भी नहीं छुआ था. रीना समझ गई थी कि वह जान-बूझ कर ऐसा कर रहा था. प्रशान्त की उपेक्षा से वह जल-भुनकर रह जाती. इसे अपने सौन्दर्य का अपमान समझती, परन्तु अपने मुंह से कुछ कह भी नहीं सकती थी, क्योंकि प्रारंभ में उसने ही यह शर्त रखी थी कि वह उसके साथ कोई छेड़छाड़ नहीं करेगा. गलती उसी थी, अब उसे कैसे सुधार सकती थी. इस प्रकार के मिलन से दोनों वर्षा की रिमझिम पुâहारों में भीगने के बजाय रेगिस्तान की तपती धूप में जल रहे थे. रीना कोई पत्थर नहीं थी. प्रशान्त के साथ घूमने-फिरने और बैठने से उसकी भावनाओं में परिवर्तन होता जा रहा था. वह पूरी तरह से प्रशान्त के प्रति आकर्षित हो चुकी थी और मन ही मन उसे प्यार करने लगी थी. हर प्रयास करती कि प्रशान्त उसकी प्रशंसा करे, उसके लिए प्यार के दो शब्द बोले. इसके लिए वह नित अधिक से अधिक सज-संवरकर आती और मन ही मन सोचती कि प्रशान्त उसकी खूबसूरती और कपड़ों की प्रशंसा करेगा, परन्तु वह निर्मूढ़ व्यक्ति की तरह शान्त रहता. घूर-घूरकर अन्य व्यक्तियों की तरफ देखता रहता, परन्तु रीना से आंख न मिलाता. रीना ने एक दिन कहा, ‘‘चलो कहीं एकान्त में बैठते हैं.” प्रशान्त चौंककर बोला, ‘‘यहां एकान्त कहां मिलेगा?” ‘‘लोधी गार्डेन चलते हैं, वहां एकान्त मिलेगा.” रीना ने चहकते हुए कहा. ‘‘तुम्हें कैसे पता?” उसने हैरान होकर पूछा‘‘नेहा ने बताया है.” उसने चहकते हुए कहा. प्रशान्त मान गया. वह दोनों लोधी गार्डेन गये, एकान्त में भी बैठे, परन्तु ढाक के वही तीन पात! प्रशान्त उससे दूर ही बैठा रहा. रीना मखमली घास पर बैठी थी. उसने जान-बूझकर अपनी जगह पर कुछ गड़ने का बहाना बनाकर उसकी तरफ खिसकने का प्रयास किया तो वह और परे खिसक गया रीना ने कुढ़ते हुए उसकी तरफ खा जाने वाली नजरों से देखा, परन्तु वह निश्छल और निर्विकार बैठा रहा. रीना फिर उसकी तरफ फिर खिसकी, ‘‘कुछ बातें करो न.” ‘‘तुम कुछ बोलो,” वह घास के तिनके तोड़ता हुआ बोला. ‘‘देखो, वह फूल कितने सुन्दर हैं.” ‘‘सारे फूल सुन्दर होते हैं.” वह जैसे किसी छात्र को समझा रहा था. रीना के मन में हजारों मन बर्पâ जम गई. कैसे मूढ़ व्यक्ति को अपने मन में बसाने की भूल कर बैठी वह? क्या इसी को प्यार कहते हैं. वह जैसा सोचती थी, वैसा तो कुछ नहीं हो रहा है. लड़के किस प्रकार लड़कियों से चिपकते हैं, कैसे उनके अंगों से छेड़-छाड़ करते हैं और उनकी भावनाओं का सम्मान करते हुए प्यार करते हैं, वैसा तो प्रशान्त उसके साथ कुछ नहीं कर रहा है. इसका मतलब वह गलत सोचती थी कि सारे लड़के लड़कियों के शरीर के भूखे होते हैं. प्रशान्त तो उसकी तरफ देखता तक नहीं, उसकी खूबसूरती की प्रशंसा तक नहीं करता. आज तक प्यार का एक शब्द छोड़ो, ऐसा भी कोई शब्द नहीं बोला, जिससे यह लगे कि वह रीना को पसन्द करता था. परन्तु उसने खुद भी तो प्रशान्त के लिए ऐसा कुछ नहीं कहा. गलती तो उसकी भी है…फिर…? क्या वह स्वयं प्यार का इजहार नहीं कर सकती? कर सकती है, परन्तु संकोच और शर्म की बेड़ियों से उसके होंठ सिले हुए हैं, क्योंकि वह एक लड़की है. ऐसी लड़कियों को अच्छा नहीं समझा जाता जो प्यार में बेशर्मी से काम लेती हैं. रीना को अब इस तरह के मेल-मिलापों से घुटन होने लगी थी. उसका मन विद्रोह करने के लिए उतारू था. प्रशान्त से उसे कुछ आशा नहीं थी कि वह उसके साथ कुछ करेगा या प्यार के दो शब्द बोलकर उसके मन में रंग-बिरंगे फूलों की महक बिखरा देगा. वह तो खुद ठूंठ बनता जा रहा था. रीना ने ही कुछ करने की ठानी. वह उससे सटकर बैठने लगी, जान-बूझकर प्रशान्त के हाथों को या किसी अन्य अंग को छू लेती और उसकी छोटी सी बात पर भी खिल-खिलाकर हंस पड़ती. प्रशान्त उसके छूने से ‘‘सॉरी” बोल देता और जब वह हंसती तो उसको आंखें फाड़-फाड़कर देखता. शाम को रीना देर तक बैठने की जिद् करती. अन्धेरा हो जाता तब भी वह दोनों बैठे रहते. अन्धेरे में रीना उसको जी भर के देखती जैसे कोई साधक अपने इष्टदेव को ताकता हुआ धीर और शान्त बैठा रहता है कि कभी तो भगवान प्रसन्न होकर उसको आर्शिवाद देंगे. परन्तु ऐसे मौकों पर प्रशान्त घर जाने के लिए उतावला रहता था. उठकर खड़ा हो जाता और कहता- ‘‘घर चलो, अन्धेरा हो गया है.” वह मन मारकर कुढ़ते हुए निःशब्द उसके पीछे चल देती. दोनों के बीच में ऐसा कुछ नहीं हो रहा था, जिसे प्यार के नाम से जाना जा सके. रीना हताश और कुण्ठित होती जा रही थी. जब उसने अपनी बेड़ियां तोड़कर मुक्त हवा में सांस लेने का प्रयत्न किया तो सारे पेड़ मुरझा गए, फूलों की खुशबू गायब हो गई, जंगल में आग लग गई. उसके लिए न तो भंवरों ने गीत गाए, न तितलियों ने रंग बिखराए. सारी सृष्टि उसके लिए वीरान हो गई. उसने अपने दिल के हालात नेहा से बयान किए. प्रशान्त की निष्ठुरता पर नेहा को भी हैरानी हुई, परन्तु वह समझ गई कि प्रशान्त ऐसा क्यों कर रहा था. दोनों के बीच की दीवार आसानी से टूटने वाली नहीं थी. रीना को ही कुछ करना होगा, नेहा ने उसे सलाह दी. अगले दिन रीना ने अपने जीवन का सबसे सुन्दर श्रृंगार किया. सबसे अच्छी गुलाबी रंग की साड़ी पहनी. ब्लाउज तो केवल नाम के लिए था। ब्लाउज इतना छोटा था कि उसकी गोरी चिकनी बांहें, पीठ, पेट और वक्ष भाग पूर्णतया दर्शनीय था. प्रशान्त के साथ आज प्यार की बाजी का सबसे बड़ा मोहरा खेलने जा रही थी वह. अगर यह मोहरा पिट गया, तो वह प्यार की बाजी हार जाएगी. यह उसके जीवन मरण का सवाल था. आज नहीं तो कभी नहीं… शाम का झुटपुटा घिरने लगा था. बोट क्लब के किनारे गुड़हल के पौधों के बीच वह बैठे थे. यह रीना की ही जिद् थी कि वह दोनों सबकी नजरों से छिपकर बैठें. आज वह अगल-बगल न बैठकर आमने-सामने बैठे थे. यह भी रीना ने कहा था. रीना के दमकते सौन्दर्य, गठीले उठानों और उछलने के लिए बेताब अंगों पर प्रशान्त की नजर नहीं ठहर रही थी. आज से ज्यादा सुन्दर वह पहले कभी नहीं लगी थी. प्रशान्त की सारी इन्द्रियां बेकाबू हो रही थीं. वह बेचैन हो गया था और अपने हृदय को काबू में करने की नाकाम कोशिश कर रहा था, परन्तु रीना जैसे उससे ज्यादा बेताब थी. रीना ने अपने दोनों हाथों से प्रशान्त की कमीज के कालर के नीचे दोनों तरफ पकड़कर उसे अपनी तरफ खींचा. वह लगभग उसके ऊपर झुक आया. वह लगभग गुर्राकर बोली, ‘‘मैं बहुत खराब लड़की हूं?” ‘‘आं.” प्रशान्त समझ नहीं पाया, क्या कहे? ‘‘आप समझते हैं, मेरे अन्दर धड़कता हुआ दिल नहीं है, मेरी कोई भावनाएं नहीं हैं?” उसकी आवाज में तरलता भरती जा रही थी. प्रशान्त अकाबका गया था और वह कुछ बोलने की स्थिति में नहीं था. उसका मुंह रीना के खुले सीने के ऊपर झुका हुआ था, परन्तु उसने आंखें बन्द कर ली थीं. रीना के यौवन की एक मादक सुगन्ध प्रशान्त के नथुनों में भरती जा रही थी. कितनी मदहोश कर देने वाली सुगन्ध थी. रीना वाकई बहुत खूबसूरत और आकर्षक लड़की थी. कोई भी उस पर मर सकता था. ‘‘आप मुझसे बदला ले रहे हैं?” वह धमकाने के स्वर में बोली. ‘‘नहीं तो….” कुछ न समझकर भी प्रशान्त बोला, ‘‘कैसा बदला…?” ‘‘मासूम और भोले बनने का प्रयत्न मत करो. यह मेरी ही गलती थी, जो प्रथम मिलन में मैंने आपको मुझे छूने से मना किया था. वही गुस्सा अभी तक आपके मन में भरा हुआ है, है न!” प्रशान्त कुछ नहीं बोला, परन्तु वह जानता था कि सच यही था. रीना ने उसकी कमीज को अपने दाएं-बाएं खींचा कि उसके बटन तड़तड़ाकर टूट गये. रीना लगभग रुआंसी होकर बोली- ‘‘आप अपना गुस्सा इस तरह भी जाहिर कर सकते थे, जैसे मैंने अभी किया है. मुझे तड़पाने में आप को मजा आ रहा था. आप जान-बूझ कर मुझे उपेक्षित करते रहे, और मैं बिना आग के सुलगती रही. क्या आप नहीं समझते हैं कि जब लड़की के मुंह से लड़के के लिए न निकलता है तो वह अन्दर से हां कहती है. प्यार करने वाले इस बात को अच्छी तरह समझते हैं. आपने समझने का प्रयास क्यों नहीं किया?” अब तक अन्धेरा पूरी तरह घिर आया था. इण्डिया गेट और राजपथ पूरी तरह से बिजली की रोशनी से जगमग हो उठा था, परन्तु उनके इर्द-गिर्द अन्धेरा था. रीना ने लपककर प्रशान्त के दोनों हाथ अपने सीने पर रख दिए और गिड़गिड़ाती हुई बोली, ‘‘आज आपने मेरा घमण्ड तोड़ दिया है. मैं हार गई, अब मैं आपकी हूं. आप मेरे साथ जोर-जबरदस्ती करते, मेरे शरीर के साथ खिलवाड़ करते तो मुझे अच्छा लगता.” फिर वह हांफने लगी, जैसे बहुत लंबी दौड़ लगाकर आई हो. लेकिन यह शारीरिक थकन की वजह से नहीं हो रहा था. उसके अंदर एक ज्वालामुखी धधक रहा था, जिसकी आंच में वह तप रही थी. उसने प्रशान्त को अपनी तरफ खींचते हुए कहा, ‘‘लीजिए मैं आपके सामने सम्पूर्ण रूप से उपस्थित हूं, जैसे चाहे मुझे प्यार करें. अब मैं किसी भ्रम में नहीं जीना चाहती. अब तक मैं एक वीरान रेगिस्तान में भटक रही थी, अब और ज्यादा भटकना नहीं चाहती. मेरी भावनाओं को समझो और मुझे प्यार करो. बहुत तड़प चुकी हूं मैं…झूठे अभिमान को लेकर मैं अब तक जी रही थी. ये भी कोई जीना है. मैं ठूंठ नहीं हूं, प्रशान्त, मैं ठूंठ नहीं हूं. देखो मेरे ऊपर भी प्यार की कोंपलें अंकुरित हो रही हैं.” उसकी रुलाई फूट पड़ी थी. उसने जोर से प्रशान्त के हाथों को अपने सीने पर दबा दिया. प्रशान्त के शरीर को एक तगड़ा झटका लगा, जैसे उसने आग के दो बड़े अंगारों पर अपने हाथ रख दिए हों. उसकी बोलती बंद थी, परन्तु शरीर कांप रहा था. रीना लगभग उसके ऊपर गिर पड़ी. उसके भरे-भरे होंठ प्रशान्त के होंठों पर टिक गये. प्रशान्त जब तक पीछे हटता, रीना ने उसके होंठों को अपने मुंह में भर कर दबा लिया था. इसके साथ ही उसकी आंखों से गरम-गरम आंसू उन दोनों के होंठों के ऊपर गिरकर मीठेपन में खारेपन का एहसास दिला रहे थे, जैसे उन्हें आगाह कर रहे हों कि प्यार में अगर अद्भुत मिठास होती है, तो उसमें यथार्थ का खारापन भी होता है. अब प्रशान्त के हाथ रीना की नंगी पीठ पर फिसल रहे थे. ठूंठ में सचमुच कोंपलें निकल आई थीं. -राकेश भ्रमर
आदि शंकराचार्य सनातक धर्म के पुनरोद्धारक हैं। आज हम जो भारत देख रहे हैं वे आचार्य शंकर की देन है। उन्होंने देश के चार कोनों में चार मठों की स्थापना की थी। उन्होंने कुंभ मेले को पुनर्जीवित किया। कई परंपराओं को शुरू किया। सिर्पâ ३२ वर्ष की आयु में उन्होंने सनातन धर्म और भारत का पुनरुद्धार किया। उन्होंने देश को पुनर्जाग्रत और व्यवस्थित किया। वे केरल से चलकर अपने गुरु की खोज में ओंकारेश्वर तक पैदल आए थे। इस घटना का हमारे लिए बड़ा महत्व है। इसी कारण से इस बड़े प्रोजेक्ट के लिए ओंकारेश्वर को चुना गया है।
आदि शंकराचार्य ने सनातन धर्म की ऐसी व्याख्या कि जिससे पूरी दुनिया अभी तक अभीभूत है। वर्तमान में सनातन धर्म के स्वरूप की परिकल्पना आदि शंकराचाज्ञर्य ने की थी। उसी का अभी तक हमारे समाज में अनुपालन किया जा रहा है। इस प्रोजेक्ट के असिस्टेंड प्रोग्राम ऑफिसर आशुतोष सिंह ठाकुर ने कहा कि यह प्रोजेक्ट ओंकारेश्वर के एकात्म धाम में बन रहा है। ये भूमि आदि शंकराचाज्ञर्य की ज्ञान भूमि है। इस जगह को अद्वैत वेदांत का एकात्मता का वैश्विक केंद्र बनाया जा रहा है। सीएम शिवराज के संकल्प से इसे जमीन पर उतारा जा रहा है। इसमें आदि शंकराचाज्ञर्य की १०८ फीट ऊंची प्रतिमा, अद्वैत लोक, संग्रालहय और आचार्य शंकर अंतरराष्ट्रीय अद्वैत वेदांत संस्थान का निर्माण कराया जाएगा। इसके माध्यम से अद्वैत वेदांत और भारतीय दर्शन का विश्व में प्रचार प्रसार किया जा सकेगा। इसी कारण से इसको यहां पर बनाया जा रहा है। इस प्रतिमा की मजबूती पर खास ख्याल रखा गया है। इस प्रतिमा का अगले ५०० सालों तक कुछ नहीं बिगड़ेगा। इस प्रतिमा के दर्शन काफी दूर से किए जा सकेंगे। सरकार ने देखा कि उज्जैन में महाकाल लोक बनने के बाद से उस इलाके में आर्थिक गतिविधियां काफी तेज हुर्इं। इसी कारण से ऐसे और प्रोजेक्ट बनाए जा रहे हैं। जो कि आध्यात्मिकता के साथ ही लोगों को रोजगार देने का भी काम करें। जब यह पूरी तरह से बनकर तैयार हो जाएगा तो निश्चित रूप से ओंकारेश्वर में भी आर्थिक गतिविधियां तेज होंगी। सबसे खास बात है कि इससे यहां के लोगों के कमाई के नए साधन बनते हैं। इससे आसपास के इलाकों को भी फायदा होगा। आदि शंकराचार्य ने भारत को अपने परम वैभव पर पुनः स्थापित किया था। वे सनातक धर्म के पुनरोद्धारक हैं। आज हम जो भारत देख रहे हैं वे आचार्य शंकर की देन है। उन्होंने देश के चार कोनों में चार मठों की स्थापना की थी। उन्होंने कुंभ मेले को पुनर्जीवित किया। कई परंपराओं को शुरू किया। सिर्पâ ३२ वर्ष की आयु में उन्होंने सनातन धर्म और भारत का पुनरुद्धार किया। उन्होंने देश को पुनर्जाग्रत और व्यवस्थित किया। वे केरल से चलकर अपने गुरु की खोज में ओंकारेश्वर तक पैदल आए थे। इस घटना का हमारे लिए बड़ा महत्व है। इसी कारण से इस बड़े प्रोजेक्ट के लिए ओंकारेश्वर को चुना गया है। इस प्रोजेक्ट के बारे में बताते हुए मध्य प्रदेश के पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय के प्रमुख सचिव शिव शेखर शुक्ला ने कहा कि इस प्रोजेक्ट से न केवल पर्यटन बल्कि सरकार के द्वारा किया जा रहा सांस्कृतिक पुनरुद्धार का काम भी होगा। अद्वैत वेदांत के प्रति आस्था रखने वाले लोगों के लिए यह ज्ञान प्राप्त करने के लिए एक केंद्र के रूप में उभरेगा। यह स्थान आने वाले समय में देश-विदेश के लोगों को आकर्षित करेगा। जब काफी समय संख्या में बाहर से लोग यहां पर आएंगे तो निश्चित रूप से स्थानीय लोगों को आर्थिक रूप से फायदा होगा। शंकराचार्य की अखंड भारत की यात्रा ओंकारेश्वर से शुरू हुई थी। ओंकारेश्वर ऐसा धाम हैं जहां उनको गुरु पद प्राप्त हुआ। मध्य प्रदेश को यह गौरव प्राप्त हैं कि इसने ही एक ब्रह्मचारी को आदि शंकर के रूप में स्थापित किया। शंकराचार्य की अखंड भारत की यात्रा के स्थानों को चिन्हित किया जा रहा है और उनको जोड़ा जा रहा है। उन जगहों को चिन्हित करके सार्वभौमिक एकात्मता के संदेश को देकर अखंड भारत को जोड़ा रहा है। इसमें अखंड भारत के साथ ही साथ अखंड विश्व की संकल्पना भी शामिल है। एमपी के सांस्कृतिक विभाग के ऑफिस इंचार्ज डा शैलेंद्र मिश्रा ने कहा कि यह प्रोजेक्ट करीब १२६ हेक्टेयर लैंड में फैला है। इसमें १२ हेक्टेयर में संग्रालहय बनेगा। ३५ हेक्टेयर में आचार्य शंकर अंतरराष्ट्रीय अद्वैत वेदांत संस्थान है। पहले चरण में आचार्य शंकर की मूर्ति जिसे हमने ‘स्टैच्यू और वननेस’ कहा है। उसका निर्माण कार्य चल रहा है।
कूनूर एक प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर छोटा शहर है जो तमिलनाडु राज्य, भारत में स्थित है। यह शहर नीलगिरी पहाड़ियों के हृदय में स्थित है और एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। कूनूर, ऊटी के पास स्थित है और इसकी शांति, हरा-भरा वातावरण और मालया पहाड़ियों के लिए प्रसिद्ध है। वर्तमान समय में ये दक्षिण का एक जाना माना पिकनिक स्पॉट बन चुका है। यहां आपको कई फॉल्स भी देखने को मिल जाएंगे, जो असल में आप देखना पसंद करते हैं। घने जंगलों में घिरा हुआ यह स्थान किसी स्वर्ग से कम नहीं है, जहां शांति और सुकून के साथ समय बिताने का मौका मिलेगा।
तमिलनाडु में स्थित कुन्नूर ऊटी के पास में तो है ही, इसके साथ ही ये कोयम्बटूर से भी मात्र ७० किमी. की दूरी पर स्थित है, जो अपनी हरी-भरी वादियों से लोगों को आकर्षित करती है। वर्तमान समय में ये दक्षिण का एक जाना माना पिकनिक स्पॉट बन चुका है। यहां आपको कई फॉल्स भी देखने को मिल जाएंगे, जो असल में आप देखना पसंद करते हैं। घने जंगलों में घिरा हुआ यह स्थान किसी स्वर्ग से कम नहीं है, जहां शांति और सुकून के साथ समय बिताने का मौका मिलेगा। यहां आसपास में भी कई ऐसे घूमने वाले स्थान है, जहां घूमने के लिए जाया जा सकता है। यदि आप पूरे कुन्नूर का मनोरम दृश्य प्राप्त करना चाहते हैं और सूर्याेदय और सूर्यास्त का आनंद लेना चाहते हैं, तो लैंब रॉक पर जाना यकीनन काफी अच्छा रहेगा। सर्दियों के मौसम में यात्रा करते समय यह धुंध से भर जाता है। इसलिए, यह जरूरी है कि आपको लैंब रॉक पर जाने से पहले तापमान के स्तर पर ध्यान देना चाहिए। हिडल वैली कुन्नूर में घूमने की बेहतरीन जगहों में से एक है। कुन्नूर के बाहरी इलाके में हरियाली पर बसे, यह जगह एडवेंचर्स पसंद लोगों के लिए एक बेहतरीन जगह है। पर्वतारोहण, रॉक क्लाइम्बिंग और ट्रेकिंग, हिडन वैली के अन्य आकर्षण हैं। वेलिंगटन गोल्फ कोर्स के बाहर और सिम के फॉल्स के पास, घाटी परिवारों के लिए एक आदर्श पिकनिक स्थल और जोड़ों के लिए एक रोमांटिक स्थान है। फूलों की बहुत सारी विदेशी प्रजातियां हैं, जो पूरे देश के पर्यटकों को आकर्षित करती हैं। वैसे तो इस पार्वâ की खूबसूरती देखते ही बनती है, लेकिन मई के माह में यहां जाना सर्वाधिक उपयुक्त माना जाता है, क्योंकि कुन्नूर सिम के पार्वâ में मई में फ्लावर शो आयोजित किया जाता है। यह कुन्नूर में सबसे अधिक देखे जाने वाले पर्यटन स्थलों में से एक है। आज के समय में यह एक प्रसिद्ध वनस्पति उद्यान है। कैथरीन फॉल्स सबसे अच्छे कुन्नूर आकर्षणों में से एक है, जिसे हर पर्यटक को देखना चाहिए। यह ट्रेकिंग के लिए अद्भुत ट्रेल्स प्रदान करता है।
बीन्स विटामिन बी२ का मुख्य स्रोत हैं। बीन्स सोल्युबल फाइबर का अच्छा स्रोत होते हैं। इसका सेवन हृदय रोगियों के लिए बहुत ही लाभकारी बताया गया हैं। ये शरीर में बढ़े कोलेस्टेरोल की मात्रा को कम करता है जिससे हृदय रोग का खतरा कम होता है। इसके अलावा इसके सेवन से रक्चाप नहीं बढ़ता है। इसलिए ये हृदय रोगियों के लिए काफी फायदेमंद माना गया है। यदि सही तरीके से प्रâेंचबीन खेती की जाए तो किसान इसकी खेती से अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। प्रâेंचबीन की खेती करते समय यदि कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखा जाए तो इसकी बेहतर पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
प्रâेंचबीन या हरी बीन्स में कई पोषक तत्व पाए जाते हैं जो सेहत के लिए लाभकारी होते हैं। इसमें मुख्य रूप से पानी, प्रोटीन, कुछ मात्रा में वसा तथा कैल्सियम, फास्फोरस, आयरन, कैरोटीन, थायमीन, राइबोफ्लेविन, नियासीन, विटामिन-सी आदि तरह के मिनरल और विटामिन मौजूद होते हैं। बीन्स विटामिन बी२ का मुख्य स्रोत हैं। बीन्स सोल्युबल फाइबर का अच्छा स्रोत होते हैं। इसका सेवन हृदय रोगियों के लिए बहुत ही लाभकारी बताया गया हैं। ये शरीर में बढ़े कोलेस्टेरोल की मात्रा को कम करता है जिससे हृदय रोग का खतरा कम होता है। इसके अलावा इसके सेवन से रक्चाप नहीं बढ़ता है। इसलिए ये हृदय रोगियों के लिए काफी फायदेमंद माना गया है। यदि सही तरीके से प्रâेंचबीन खेती की जाए तो किसान इसकी खेती से अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। प्रâेंचबीन की खेती करते समय यदि कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखा जाए तो इसकी बेहतर पैदावार प्राप्त की जा सकती है। प्रâेंचबीन की खेती सर्दी व गर्मी दोनों मौसम में की जा सकती है। इसकी खेती के लिए हल्की गर्म जलवायु अच्छी रहती है। इसके लिए खेती के लिए अधिक ठंडी और अधिक गर्म जलवायु अच्छी नहीं रहती है। इसकी खेती हमेशा अनुकूल मौसम में की जानी चाहिए। यदि मिट्टी की बात की जाए तो इसकी खेती के लिए बलुई बुमट व बुमट मिट्टी अच्छी रहती है। जबकि भारी व अम्लीय भूमि वाली मिट्टी इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं रहती है। प्रâेंचबीन की खेती के लिए कई किस्में आती है जो अच्छी हैं। इसमें दो तरह की किस्में आती है जिसमें पहली झाड़ीदार किस्में होती हैं जिनमें जाइंट स्ट्रींगलेस, कंटेंडर, पेसा पार्वती, अका्र कोमल, पंत अनुपमा तथा प्रीमियर, वी.एल. बोनी-१ आदि प्रमुख किस्में है। वहीं दूसरी बेलदार किस्में होती है जिनमें केंटुकी वंडर, पूसा हिमलता व एक.वी.एन.-१ अच्छी किस्में हैं।
प्रâेंचबीन की खेती में कैसे करें खरपतवार पर नियंत्रण
प्रâेंचबीन की खेती में भी खरपतवारों का प्रकोप बना रहता है। खरपतवार वे अवांछिनीय पौधे होते हैं जो इसके आसपास उग जाते हैं और इसके विकास में बाधा पहुंचाकर फसल को हानि पहुंचाते हैं। ऐसे अवांछिनीय पौधों को हटाने के लिए दो से तीन बार निराई व गुडाई करके खरपवार को हटा देना चाहिए। यहां बता दें कि एक बार पौधे को सहारा देने के लिए मिट्टी चढ़ाना जरूरी होता है। यदि खरतवार का प्रकोप ज्यादा हो तो इसके लिए रासायनिक उपाय भी किए जा सकते हैं। इसके लिए ३ लीटर स्टाम्प का प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के बाद दो दिन के अंदर घोल बनाकर छिड़काव करने से खरपवारों पर नियंत्रण पाया जा सकता है। प्रâेंचबीन की कटाई फूल आने के दो से तीन सप्ताह के बाद शुरू कर दी जाती है। इसकी फलियों की तुड़ाई नियमित रूप से जब फलियां नर्म व कच्ची अवस्था में हो तब उसकी तुड़ाई करनी चाहिए। प्रâेंचबीन की पैदावार की बात करें तो उचित वैज्ञानिक तकनीक का इस्तेमाल करके इसकी हरी फली की उपज ७५-१०० क्विंटल/हेक्टेयर तक प्राप्त की जा सकती है। प्रâेंचबीन यानि राजमा का भाव बाजार में सामान्यत: १२० से लेकर १५० रुपए प्रति किलोग्राम रहता है। मंडियों में इसके भावों में अंतर हो सकता है। क्योंकि अलग-अलग मंडियों और बाजार में इसके भावों में उतार-चढ़ाव होता रहता है।
खडीबोली हिन्दी के जन्मदाता जिन्हें खडीबोली हिन्दी-लेखन का दिव्य आशीर्वाद दिया स्वयं महाप्रभु जगन्नाथ ने
१५ साल की उम्र में वे अपने माता-पिता के साथ एकबार जगन्नाथ पुरी भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए आये। भगवान जगन्नाथ के दर्शन किये और उन्हीं के दिव्य आशीष ने खडी बोली हिन्दी में लेखन का उन्होंने श्रीगणेश किया। जगत के नाथ से उन्होंने हिंदी गद्य को एक नई शैली प्रदान की जो खडीबोली हिन्दी के रुप में विश्वविख्यात है। उन्हें हिन्दी साहित्य का पितामह तथा खडी बोली हिन्दी का जन्मदाता कहा जाता है। उनका मूल नाम ‘हरिश्चन्द्र’ था और ‘भारतेन्दु’ उनकी उपाधि थी। हिन्दी साहित्य में आधुनिक काल का प्रारम्भ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से माना जाता है। हिन्दी को राष्ट्र-भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने की दिशा में उन्होंने अपनी असाधारण लेखन प्रतिभा का सदुपयोग किया। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। हिंदी में नाटकों का प्रारम्भ उन्होंने ही किया। ऐसी बात नहीं है कि उनके पूर्व हिन्दी में नाटक-लेखन नहीं था परन्तु भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने ही हिंदी नाटक-लेखन की नींव को और अधिक सुदृढ़ बनाया। वे आजीवन एक सफल कवि, व्यंग्यकार, नाटककार, पत्रकार तथा साहित्यकार रहे। वे मात्र ३४ वर्ष की उम्र में ही खडीबोली हिन्दी का विशाल साहित्य रचकर अमर हो गये।
भारतेन्दु हरिश्चंद्र का जन्म ०९सितंबर, १८५० को बनारस, उत्तरप्रदेश में हुआ। वे खडीबोली हिन्दी के जन्मदाता थे जिन्हें खडीबोली हिन्दी में लेखन का दिव्य आशीर्वाद स्वयं महाप्रभु जगन्नाथ ने दिया। वे जब मात्र पांच साल के थे तब सबसे पहले उनकी माताजी की मृत्यु हो गई और जब वे मात्र दस साल के थे तभी उनके पिताजी चल बसे। उनका बाल्यकाल उनके माता-पिता के वात्सल्य तथा प्यार से वंचित रहा। उनकी विमाता ने उनको खूब सताया। उनके पिता गोपाल चंद्र भी एक कवि थे। पिता की प्रेरणा से ही वे लेखन क्षेत्र में आगे बढ़े। बहुत कम उम्र में ही वे अपने माता-पिता को खो दिये लेकिन उनके जीवन की सबसे रोचक घटना यह रही कि मात्र १५ साल की उम्र में वे अपने माता-पिता के साथ एकबार जगन्नाथ पुरी भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए आये। भगवान जगन्नाथ के दर्शन किये और उन्हीं के दिव्य आशीष ने खडी बोली हिन्दी में लेखन का उन्होंने श्रीगणेश किया। जगत के नाथ से उन्होंने हिंदी गद्य को एक नई शैली प्रदान की जो खडीबोली हिन्दी के रुप में विश्वविख्यात है। उन्हें हिन्दी साहित्य का पितामह तथा खडी बोली हिन्दी का जन्मदाता कहा जाता है। उनका मूल नाम ‘हरिश्चन्द्र’ था और ‘भारतेन्दु’ उनकी उपाधि थी। हिन्दी साहित्य में आधुनिक काल का प्रारम्भ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से माना जाता है। हिन्दी को राष्ट्र-भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने की दिशा में उन्होंने अपनी असाधारण लेखन प्रतिभा का सदुपयोग किया। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। हिंदी में नाटकों का प्रारम्भ उन्होंने ही किया। ऐसी बात नहीं है कि उनके पूर्व हिन्दी में नाटक-लेखन नहीं था परन्तु भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने ही हिंदी नाटक-लेखन की नींव को और अधिक सुदृढ़ बनाया। वे आजीवन एक सफल कवि, व्यंग्यकार, नाटककार, पत्रकार तथा साहित्यकार रहे। वे मात्र ३४ वर्ष की उम्र में ही खडीबोली हिन्दी का विशाल साहित्य रचकर अमर हो गये। उनकी वैश्विक चेतना भी प्रखर थी। उन्हें अच्छी तरह पता था कि विश्व के कौन से देश कैसे और कितनी उन्नति कर रहे हैं। इसलिए उन्होंने १८८४ में उत्तरप्रदेश के बलिया के दादरी मेले में ‘भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है’ पर एक सारगर्भित तथा ओजस्वी भाषण दिया जिसमें उन्होने लोगों से कुरीतियों और अंधविश्वासों को त्यागकर अच्छी-से-अच्छी शिक्षा प्राप्त करने, उद्योग-धंधों को विकसित करने, आपसी सहयोग एवं एकता को सतत बढाने की अपील करते हुए जीवन के सभी क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बनने का आह्वान किया।देश की गरीबी, पराधीनता, अंग्रेजी शासकों के अमानवीय व्यवहार तथा शोषण का चित्रण करना ही वे अपने खडी बोली हिन्दी में साहित्य रचना का लक्ष्य बनाये। हिन्दी को राष्ट्र-भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने की दिशा में भी उन्होंने अपनी असाधारण लेखन प्रतिभा का भरपूर उपयोग किया।वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। हिंदी पत्रकारिता, नाटक और काव्य के क्षेत्र में उनका बहुमूल्य योगदान रहा। वे एक संवेदनशील साहित्यकार थे। उनका सबसे लोकप्रिय नाटक सत्य हरिश्चन्द नाटक आज भी सत्यमार्ग पर आजीवन चलने का संदेश देता है।उनका नाटक भारत दुर्दशा उन दिनों के भारत की वास्तविक झलक है। उनकी रचनाओं में प्राचीन तथा नवीन का अनोखा सामंजस्य है। एक उत्कृष्ट कवि, सशक्त व्यंग्यकार, सफल नाटककार, जागरूक पत्रकार तथा ओजस्वी गद्यकार का असामयिक निधन ६जनवरी,१८८५ हो गया।अपने साहित्यिक योगदानों के बदौलत १८५७ से लेकर १९०० तक को भारतेन्दु युग के नाम से जाना जाता है।उनकी बढती लोकप्रियता के प्रभावित होकर उन्हें बनारस के विद्वानों ने १८८० में उन्हें भारतेन्दु की उपाधि प्रदान की।वे आज भी हमारे बीच हिन्दी खडीबोली के जन्मदाता के रुप में अमर हैं। -अशोक पाण्डेय
गणेशजी का महत्व भारतीय धर्मों में सर्वोपरि है. उन्हें हर नए कार्य, हर बाधा या विघ्न के समय बड़ी उम्मीद से याद किया जाता है और दुःखों, मुसीबतों से छुटकारा पाया जाता है. श्री गणेशजी को विघ्न विनाशक माना गया है. गणेशजी को देवसमाज में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है. गणेशजी का वाहन चूहा है. इनकी दो पत्नियां भी हैं जिन्हें रिद्धि और सिद्धि के नाम से जाना जाता है. इनका सर्वप्रिय भोग मोदक यानी लड्डू है. गणेशोत्सव संपूर्ण विश्व में बड़े ही हर्ष एवं आस्था के साथ मनाया जाता है. घर-घर में गणेशजी की पूजा होती है. इस दौरान लोग मोहल्लों, चौराहों पर गणेशजी की स्थापना, आरती, पूजा करते हैं. बड़े जोरों से गीत बजाते, प्रसाद बांटते हैं. अनंत चतुर्दशी के दिन गणेशजी की मूर्ति को पूरे विधि विधान के साथ समुद्र, नदी या तालाब में विसर्जित कर अपने घरों को लौट आते है.
गणेश चतुर्थी वैसे तो पूरे देश में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन महाराष्ट्र में इस त्योहार का एक अलग ही महत्व है. गणेश चतुर्थी से शुरू होकर अनन्त चतुर्दशी (अनंत चौदस) तक चलने वाला १० दिवसीय गणेशोत्सव मनाया जाता है. मान्यता है कि इन दस दिनों के दौरान यदि श्रद्धा एवं विधि-विधान के साथ गणेश जी की पूजा किया जाए तो जीवन के समस्त बाधाओं का अन्त कर विघ्नहर्ता अपने भक्तों पर सौभाग्य, समृद्धि एवं सुखों की बारिश करते हैं. दस दिनों तक चलने वाला यह त्योहार हिन्दुओं की आस्था का एक ऐसा अद्भुत प्रमाण है जिसमें शिव-पार्वती नंदन श्री गणेश की प्रतिमा को घरों, मन्दिरों अथवा पंडालों में साज-श्रृंगार के साथ चतुर्थी को स्थापित किया जाता है. दस दिनों तक गणेश प्रतिमा का नित्य विधिपूर्वक पूजन किया जाता है और ग्यारहवें दिन इस प्रतिमा का बड़े धूम-धाम से विसर्जन कर दिया जाता है. भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेश जी के सिद्धि विनायक स्वरूप की पूजा होती है. शास्त्रों के अनुसार इस दिन गणेश जी दोपहर में अवतरित हुए थे. इसीलिए यह गणेश चतुर्थी विशेष फलदायी बताई जाती है. पूरे देश में यह त्योहार गणेशोत्सव के नाम से प्रसिद्ध है. भारत में यह त्योहार प्राचीन काल से ही हिंदू परिवारों में मनाया जाता है. इस दौरान देश में वैदिक सनातन पूजा पद्धति से अर्चना के साथ-साथ अनेक लोक सांस्कृतिक रंगारंग कार्यक्रम भी होते हैं जिनमें नृत्यनाटिका, रंगोली, चित्रकला प्रतियोगिता, हल्दी उत्सव आदि प्रमुख होते हैं. गणेशोत्सव में प्रतिष्ठा से विसर्जन तक विधि-विधान से की जाने वाली पूजा एक विशेष अनुष्ठान की तरह होती है जिसमें वैदिक एवं पौराणिक मंत्रों से की जाने वाली पूजा दर्शनीय होती है. महाआरती और पुष्पांजलि का नजारा तो देखने योग्य होता है. गणेश चतुर्थी से जुड़ी मान्यताओं में यदि गणेश चतुर्थी का दिन रविवार या मंगलवार हो तो इसे महाचतुर्थी का योग कहा जाता है. और इस महाचतुर्थी के दिन चन्द्र दर्शन करना वर्जित है. श्रीमद्भागवत् में कथा आरती है. इस दिन चांद देखने से ही भगवान कृष्ण को मिथ्या कलंक का दोष लगा था जिससे मुक्ति पाने के लिए उन्होंने विधिवत गणेश चतुर्थी का व्रत किया था. भविष्य पुराण में इस तिथि को शिवा, शांत और सुखा चतुर्थी भी कहा है. गणेशजी का महत्व भारतीय धर्मों में सर्वोपरि है. उन्हें हर नए कार्य, हर बाधा या विघ्न के समय बड़ी उम्मीद से याद किया जाता है और दुःखों, मुसीबतों से छुटकारा पाया जाता है. श्री गणेशजी को विघ्न विनाशक माना गया है. गणेशजी को देवसमाज में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है. गणेशजी का वाहन चूहा है. इनकी दो पत्नियां भी हैं जिन्हें रिद्धि और सिद्धि के नाम से जाना जाता है. इनका सर्वप्रिय भोग मोदक यानी लड्डू है. गणेशोत्सव संपूर्ण विश्व में बड़े ही हर्ष एवं आस्था के साथ मनाया जाता है. घर-घर में गणेशजी की पूजा होती है. इस दौरान लोग मोहल्लों, चौराहों पर गणेशजी की स्थापना, आरती, पूजा करते हैं. बड़े जोरों से गीत बजाते, प्रसाद बांटते हैं. अनंत चतुर्दशी के दिन गणेशजी की मूर्ति को पूरे विधि विधान के साथ समुद्र, नदी या तालाब में विसर्जित कर अपने घरों को लौट आते हैं. कैसे करें गणेश जी की पूजा गणेशोत्सव के दौरान प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त हो कर ‘मम सर्वकर्मसिद्धये सिद्धिविनायक पूजनमहं करिष्ये’ मंत्र से संकल्प लें. इसके बाद सोने, तांबे, मिट्टी अथवा गोबर से गणेशजी की प्रतिमा बनाएं. गणेशजी की प्रतिमा को कोरे कलश में जल भरकर मुंह पर कोरा कपड़ा बांधकर उस पर स्थापित करें. इसके बाद मूर्ति पर सिंदूर चढ़ाकर उनका पूजन करें और आरती करें. फिर दक्षिणा अर्पित करके इक्कीस लड्डुओं का भोग लगाएं. इनमें से पांच लड्डू गणेशजी की प्रतिमा के पास रखकर शेष ब्राह्मणों में बांट दें. जो गणेश व्रत या पूजा करता है उसे मनोवांछित फल तथा श्रीगणेश प्रभु की कृपा प्राप्त होती है. पूजन से पहले नित्यादि क्रियाओं से निवृत्त होकर शुद्ध आसन में बैङ्गकर सभी पूजन सामग्री को एकत्रित कर पुष्प, धूप, दीप, कपूर, रोली, मौली लाल, चंदन, मोदक आदि एकत्रित कर क्रमश: पूजा करें. पूजा के दौरान जरूर याद रखें कि भगवान श्रीगणेश को तुलसी दल और तुलसी पत्र नहीं चढ़ाना चाहिए. उन्हें, शुद्ध स्थान से चुनी हुई दूर्वा को धोकर ही चढ़ाना चाहिए. श्रीगणेश भगवान को मोदक यानी लड्डू अधिक प्रिय होते हैं इसलिए उन्हें देशी घी से बने मोदक का प्रसाद ही चढ़ाना चाहिए. ऐसा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है. श्रीगणेश के अलावा शिव और गौरी, नन्दी, कार्तिकेय सहित सम्पूर्ण शिव परिवार की पूजा षोड़षोपचार विधि रूप से करना सर्वोत्तम माना जाता है. शास्त्रों के अनुसार श्रीगणेश की पार्थिव प्रतिमा बनाकर उसे प्राण-प्रतिष्ठित कर पूजन-अर्चन के बाद विसर्जित कर देना चाहिए. अतः भजन-कीर्तन और सांस्कृतिक आयोजनों के बाद प्रतिमा का विसर्जन करना नहीं भूलें. क्या है गणेश पूजन का फल वस्त्र से ढंका कलश, दक्षिणा तथा गणेश प्रतिमा आचार्य को समर्पित करके गणेशजी के विसर्जन का उत्तम विधान माना गया है. गणेशजी का यह पूजन करने से बुद्धि और रिद्धि-सिद्धि की प्राप्ति तो होती ही है, विघ्न-बाधाओं का भी समूल नाश हो जाता है. गणेश जी को गजानन कहते हैं इसका संकेत है हाथी की तरह धैर्यवान और बुद्धिमान होना पड़ेगा. गणेश जी को विघ्नहर्ता भी कहते हैं. अतः इसके प्रतीक के रूप में उनके हाथ में परशुदंड भी है. गणेश जी रिद्धि-सिद्धि के स्वामी हैं. अतः इनके पूजन से आपके सुख-संपदा और धन-धान्य की कमी नहीं होती है. पूजा का समय वैसे तो भगवान की पूजा कभी भी की जा सकती है परन्तु गणेशजी की पूजा सायंकाल के समय की जाए तो बेहतर माना जाता है. पूजन के बाद सर झुकाकर चंद्रमा को अर्घ्य देना चाहिए और ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा जरूर देनी चाहिए. सिर झुकाकर चंद्रमा को अर्घ्य देने के पीछे भी कारण व्याप्त है. माना जाता है कि जहां तक संभव हो, इस दिन चंद्रमा के दर्शन नहीं करने चाहिए. भूल बस या कारण बस इस दिन चंद्रमा के दर्शन हो जाते हैं तो आप कलंक के भागी बन जाते हैं. फिर भी घबराएं नहीं! हमारे शास्त्रों में इस तरह की भूल बस होने वाली घटनाओं से मुक्ति पाने के लिए विधान भी मौजूद हैं. ऐसा होने पर गणेश चतुर्थी व्रत कर कलंक से मुक्ति पाई जा सकती है. बप्पा की पूजा में गणपति यंत्र का महत्व गणेश-पूजन के दस दिनों के दौरान गणपति यंत्र के पूजन का विशेष महत्व है. जीवन को सुख-समृद्धि एवं सौभाग्य से परिपूर्ण करने के लिए इस यंत्र के पूजन का विशेष महत्व है. चाहे किसी नए व्यापार की शुरुआत हो, भवन-निर्माण का आरम्भ हो या आपकी किसी किताब, पेन्टिंग या यात्रा का शुभारम्भ हो, गणपति यन्त्र आपके कार्य में आने वाली हर प्रकार की बाधा से आपकी रक्षा करता है. जो इस यन्त्र का पूजन करता है वह अपने हर कार्य में सफल रहता है. इस यन्त्र को आप अपने पूजा के स्थान पर स्थापित कर सकते हैं.
भारत के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा जहां आज हिंदुस्तान ने चांद को अपने नाम कर लिया है. भारत के चंद्रयान 3 ने चांद पर सफल लैंडिंग कर ली है जहां हिंदुस्तान चंद्रमा के दक्षिणी छोर पर लैंडिंग करने वाला पहला देश बन चुका है. चंद्रयान-1 और चंद्रयान-2 के बाद चंद्रयान-3 की ये सफलता भारत के लिए बेहद मायने रखती हैं. जहां आज दुनिया के इतिहास में भारत ने अपना नाम सुनहरे अक्षरों में दर्ज़ करवा लिया है. ये पल सभी भारतीयों के लिए गर्व से भरा हुआ है जो पिछले कई दिनों से इस मून मिशन की सफलता को लेकर प्रार्थना कर रहे थे. बुधवार को सभी भारतीयों की दुआओं का असर देखने को मिला और चंद्रयान 3 ने चाँद पर सफल लैंडिंग कर ली. गौरतलब है कि इससे पहले 2019 में चंद्रयान 2 पूरी तरह से सफल नहीं हो पाया था. सॉफ्ट लैंडिंग ना हो पाने की वजह से चंद्रयान 2 फेल हो गया था जिसकी कमी देश को पिछले चार सालों से खल रही थी. लेकिन चार साल बाद चाँद पर भारत ने तिरंगा लहरा दिया है और सॉफ्ट लैंडिंग के साथ ही ये मिशन सफल हो गया है. जिसकी लैंडिंग के साथ ही पूरे देश में ख़ुशी का माहौल देखने को मिल रहा है.
जैसे ही 23 अगस्त, 2023 के इस महत्वपूर्ण दिन पर दुनिया की निगाहें आसमान की ओर टिकी हैं, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) एक ऐतिहासिक उपलब्धि के कगार पर खड़ा है। चंद्रयान-3 मिशन चंद्रमा के रहस्यमय और अज्ञात दक्षिणी ध्रुव को छूने के लिए तैयार है, यह प्रत्याशा और आश्चर्य का दिन है। जबकि मिशन आधुनिक अंतरिक्ष अन्वेषण के चरम का प्रतिनिधित्व करता है, यह प्राचीन भारतीय ज्ञान की गहराई में जाने के लिए दिलचस्प है जिसने सदियों से चंद्रमा के चारों ओर एक खगोलीय टेपेस्ट्री बुनी है।
भारत की प्राचीन ज्ञान की समृद्ध टेपेस्ट्री में, चंद्रमा, जिसे संस्कृत में “चंद्र” के रूप में जाना जाता है, का गहरा महत्व है। यह लंबे समय से प्रेरणा, रहस्य और आध्यात्मिक संबंध का स्रोत रहा है। प्राचीन भारतीय खगोलविदों, या “ज्योतिषियों” ने चंद्रमा के चरणों, चक्रों और पृथ्वी पर प्रभाव का सावधानीपूर्वक अवलोकन किया। चंद्रमा के घटने-बढ़ने पर आधारित चंद्र कैलेंडर ने कृषि, अनुष्ठानों और त्योहारों सहित जीवन के विभिन्न पहलुओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
आज का युग वास्तव में विज्ञापन का ही युग है। विज्ञापन की अवधारणा बिलकुल नई अवधारणा है भले ही विज्ञापन का परम्परागत अर्थ -जानने के लिए प्रेरित करना ही क्यों न हो। आज का यह विज्ञापन युग अपनी लोकप्रियता विश्व बाजार से लेकर भारतीय बाजार के सभी आयामों में स्पष्ट रुप से बना चुकी है। आज की वह अमिट पहचान बन चुकी है। पहले सभी संस्कारों में इसकी उपयोगिता छोटे आकार में देखी जाती थी। पहले विवाह-शादी में घर का पूजा करानेवाला ब्राह्मण तथा गांव का नाई (हजाम) गांव-गांव तथा घर-घर में जाकर विवाह-शादी का निमंत्रण देता था। भोज की खबरें देता था। उसके उपरांत विवाह-शादी का कार्ड छपने लगा। धीरे-धीरे कार्ड को लिफाफे में डालकर भेजा जाने लगा। लोग लिफाफा को देखकर तथा उसके ऊपर लिखे आलंकारिक शब्दों को प़ढकर ही शादी-विवाह में जाने का निश्चय कर लेते थे जिसपर लिखा रहता था-भेंज रहा हूं नेह-निमंत्रण प्रियवर तुम्हें बुलाने को, हे मानस के राजहंस तुम भुल न जाना आने को। उन दिनों गोनु झा के किस्से बहुत प्रचलित थे। एकबार गोनु झा अपने मिर्च के खेत में काम कर रहे थे। मिर्च की फसल पूरी तरह से तैयार था। उनसे मिलने के लिए एक व्यक्ति खेत को रौंदते हुए आया और अपनी धोती के छोर से एक निमंत्रण निकालकर उन्हें दिया जिसमें लिखा था कि कल शाम को गोनु झा को एक भोज में जाना था। उन्होंने अपने चेहरे पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए यह कहा कि मिर्च का खेत भले ही बर्बाद हुआ पर भोज का निमंत्रण तो मिला। इससे यह पता चलता है कि पुराने विज्ञापन के माध्यम खत का भी कभी विशेष महत्त्व होता था। आज तो ई-कार्ड का प्रचलन हो गया है। आज के विवाह-शादी, जनेऊ, तिलक, समस्त पर्व-त्यौहार जैसेः होली-दीवाली, दशहरा, जन्मदिन, समस्त धार्मिक आयोजन तथा समस्त मौलिक आवश्यकताओं जैसेः भोजन, वस्त्र, आवास तथा मनोरंजन से लेकर सबकुछ ई-कार्ड से भेजे जा रहे हैं। एकबात सच है कि भारत के महामहिम राष्ट्रपति तथा भारत के सभी प्रदेशों के मान्यवर राज्यपालों का ऐटहोम निमंत्रणपत्र आदि अवश्य छपता है। वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमणकाल ने तो लगभग दो वर्षों तक विज्ञापन जगत को ध्वस्तप्राय कर दिया था। लेकिन अब धीरे-धीरे विज्ञापन जगत नित्य उन्नति कर रहा है। आज का विज्ञापन जगत तथा आज का विज्ञापन युग पूरी तरह से कामनाओं के उपभोग से कामनाओं की शांति नहीं होती-पर ही आधारित है। यह कहना गलत नहीं होगा कि आज का विज्ञापन जगत तथा आज का विज्ञापन युग एक वास्विक विचारधारा बनकर कार्य कर रहा है। भारतीय राजनीति में केन्द्र सरकार से लेकर सभी राज्य सरकारें पूरी तरह से विज्ञापन को अपनाये हुए है। आज का सोसल मीडिया तो इससे सबसे अधिक प्रभावित है। वर्तमान सूचना प्रौद्य़ोगिकी का युग तो वैश्वीकृत बन चुका है जिसे ग्लोबल विलेज कहा जाता है जिसमें विज्ञापन को विज्ञान और कला दोनों माना गया है। अध्ययन करने पर पता चला कि विज्ञापन का आरंभ ५५० ईसा पूर्व से है। समाचारपत्रों में विज्ञापन की शुरुआत १७वीं सदी से इंग्लैण्ड के साप्ताहिक समाचारपत्रों से हुई जिसमें पुस्तकों तथा दवाइयों का विज्ञापन प्रकाशित होता था। प्रâांस में १८३६ में समाचारपत्रः लॉ प्रेस ने पहली बार भुगतान को लेकर विज्ञापन छापा। अमरीका में इसकी शुरुआत मेल विज्ञापन के रुप में हुआ। अमरीका का पहला विज्ञापन एजेंसी १८४१ में बोस्टन में खुली जिसका नाम था-वालनी पाल्मर। २०वीं सदी के दूसरे दशक में रेडियो का प्रसारण आरंभ हुआ जो बिना विज्ञापन के आरंभ हुआ। लेकिन जैसे-जैसे रेडियो की लोकप्रितया बढी तो उनमें विज्ञापन का आरंभ प्रायोजित कार्यक्रम के रुप में हुआ। कालांतर में १९५० के दशक में टेलीविजन पर छोटे-छोटे टाइम स्लॉट पर विज्ञापन आने लगा। १९६० के दशक में विज्ञापन जगत में क्रांतिकारी बदलाव आया। पहली जुलाई,१९४१ में पहला टेलीविजन विज्ञापन अमरीका में सांस्कृतिक सामंजस्य के एक साधन के रुप में टेलीकास्ट हुआ। भारत में ३०मई,१८२६ में हिन्दी का पहला समाचारपत्र उदन्त मार्तण्ड कोलकाता से प्रकाशित हुआ जिसमें छपनेवाले विज्ञापन वर्गीकृत तथा घोषणाओं के साथ-साथ विदेशी वस्तुओं की हुईं। १८६० के दशक में मद्रास (आज का चेन्नई) में दी जेनेरल ऐडवरटाइजर एण्ड जर्नल ऑफ कॉमर्स नामक चार पृष्ठों का एक समाचारपत्र प्रकाशित हुआ जिसमें कुल चार पृष्ठ विज्ञापन का रहा। भारत में विज्ञापन को आगे बढाने में भारतीय फिल्मजगत का भी बेजोड देन है। भारतीय सिनेमा के जन्मदाता दादा साहेब फाल्के ने १९१३ में अपनी पहली मूक फिल्म राजा हरिश्चन्द्र का निर्माण किया। १९२० से विज्ञापन जगत आधुनिकता में प्रवेश कर गया है। आधुनिक विज्ञापन ने वर्षः२०२३ में तो पाश्चात्य के चकाचौंध को अपने प्रचार का मुख्य केन्द्र बनाकर लाइफ स्टाइल, फैशन, डिजाइन तथा सभी प्रकार के मनोरंजन आदि जैसे समस्त संसाधनों को खूब बढावा दे रहा है और अपनी विश्वव्यापी लोकप्रियता में चारचांद लगा रहा है। -अशोक पाण्डेय
आज के २१वीं सदी के सूचना तकनीकी के युग में वे असाधारण शिक्षाप्राप्त, धनवैभव संपन्न हैं। सकारात्मक सोचवाले हैं जो नित्य अपनी मेधा शक्ति आदि का सदुपयोग करते हैं। उन्होंने बताया कि भारत के प्रथम राष्ट्रपति स्वर्गीय डॉ.राजेन्द्र प्रसाद अपने छात्र जीवन में एक असाधारण तथा विलक्षण विद्यार्थी थे जिनकी बिहार बोर्ड प्रवेशिका परीक्षा के गणित विषय का ऐन्सरशीट आज भी उपलब्ध है जिसमें लिखा गया है कि परीक्षार्थी परीक्षक से बेहतर है। उन्होंने १०० अंकों में से १०० अंक अर्जितकर यह सिद्ध कर दिया कि वे एक असाधारण तथा विलक्षण प्रतिभासंपन्न विद्यार्थी थे जो एक दिन भारत के प्रथम राष्ट्रपति ही नहीं बने अपितु भारतीय संस्कार और संस्कृति के आदर्श भी बने।
आनेवाले कल के विकसित भारत के लिए संस्कारी, कर्तव्यनिष्ठ, ईमानदार, जिम्मेवार, चरित्रवान, सच्चा देशभक्त तथा स्वावलंबी कर्णधारों की आवश्यकता है जिसमें एक व्यक्ति विशेष के रुप में कीट-कीस के प्राणप्रतिष्ठाता तथा कंधमाल लोकसभा माननीय सांसद प्रो. अच्युत सामंत हैं। वे भारत के प्रथम महान शिक्षाविद् हैं जिन्हें देश-विदेश के कुल ५३ विश्वविद्यालयों से मानद डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त है। वे बडे ही सहृदय, संवेदनशील, आत्मीय स्वभाववाले परम ज्ञानी, विवेकी, विद्वान, सच्चरित्र तथा जिम्मेदार शिक्षाविद् हैं। उनका यह मानना है कि हमारा प्यारा भारतवर्ष महानऋषि-मुनियों का देश है। जहां पर मुनि वसिष्ठ तथा मुनि संदीपनि का गुरुकुल है। उन्होंने बताया कि शिक्षा के विषय में यह सत्य ही कहा गया है कि – विद्या ददाति विनयं,विनयाद् याति पात्रताम्। पात्रत्वात् धनमाप्रोति,धनात् धर्मं ततः सुखम्।। -अर्थात् विद्या बालक को विनय देती है, विनय से बालक के स्वभाव में तथा आचरण में पात्रता आती है। पात्रता से उसे धन प्राप्त होता है और धन से वह अपने जीवन में मन, वचन और कर्म से सुखी होता है। बच्चों को दी जानेवाली यह शिक्षा दो प्रकार की होती है। एक औपचारिक शिक्षा तथा दूसरी अनौपचारिक शिक्षा। औपचारिक शिक्षा उसे जीवन में उसके उद्देश्य की पूर्ति में सहायक सिद्ध होती है और अनौपचारिक शिक्षा उसे शाश्वत जीवन मूल्यों से अवगत कराकर उसे संस्कारी बनाती है। आज के २१वीं सदी के सूचना तकनीकी के युग में वे असाधारण शिक्षाप्राप्त, धनवैभव संपन्न हैं। सकारात्मक सोचवाले हैं जो नित्य अपनी मेधा शक्ति आदि का सदुपयोग करते हैं। उन्होंने बताया कि भारत के प्रथम राष्ट्रपति स्वर्गीय डॉ.राजेन्द्र प्रसाद अपने छात्र जीवन में एक असाधारण तथा विलक्षण विद्यार्थी थे जिनकी बिहार बोर्ड प्रवेशिका परीक्षा के गणित विषय का ऐन्सरशीट आज भी उपलब्ध है जिसमें लिखा गया है कि परीक्षार्थी परीक्षक से बेहतर है। उन्होंने १०० अंकों में से १०० अंक अर्जितकर यह सिद्ध कर दिया कि वे एक असाधारण तथा विलक्षण प्रतिभासंपन्न विद्यार्थी थे जो एक दिन भारत के प्रथम राष्ट्रपति ही नहीं बने अपितु भारतीय संस्कार और संस्कृति के आदर्श भी बने। पूरी दुनिया जानती है कि प्रो, अच्युत सामंत भी ठीक उसी प्रकार अपने द्वारा ओडिशा प्रदेश की राजधानी भुवनेश्वर में १९९२-९३ में मात्र पांच हजार रुपये की अपनी जमा पूंजी से कीट-कीस की स्थापनाकर विश्व के महान शिक्षाविद् बन चुके हैं। वे अपनी अर्जित विद्या, धन और बल का सकारात्मक सोच के साथ सदुपयोग करके ओडिशा के साथ-साथ पूरे भारत का गौरव पूरी दुनिया में बढा रहे हैं। उनका यह भी कहना है कि भगवान बुद्ध के मूलभूत संदेशों में विश्वप्रेम और अहिंसा ही है जो उनके व्यक्तिगत जीवन का आदर्श है। उन्होंने यह भी बताया कि स्वामी विवेकानंद ने अपने शिकागो भाषण में दुनिया को चरित्रवान बनने का संदेश दिया और प्रो.सामंत भी उसी संदेश को अपने जीवन में अपनाकर चल रहे हैं। उनका यह मानना है कि एक अच्छे व्यक्ति का मानदण्ड उसका सरल, सौम्य और आदर्श चरित्र होता है जो वे जी रहे हैं। प्रो. सामंत बताते हैं कि सभी आज बाहरी दिखावे, दूसरों की निंदा करने में, झूठी प्रसिद्धि पाने में, गलत मान-सम्मान अर्जित करने में तथा विभिन्न प्रकार के व्यसनों में लीन हैं लेकिन वे इनसब से कोसों दूर हैं। वे तो भारत के सनातनी आदर्श-वसुधैव कुटुम्कम्में विश्वास रखते हैं। और उसी को साकार करने में लगे हुए हैं। प्रो.अच्युत सामंत का यह मानना है कि उत्तम स्वास्थ्य, उत्तम शिक्षा तथा स्वावलंबन से ही आत्मनिर्भर भारत का निर्माण हो सकता है इसीलिए प्रो. सामंत अपने द्वारा स्थापित कीट-कीस और कीम्स के माध्यम से आत्मनिर्भर भारत बनाने में जुटे हुए हैं। -अशोक पाण्डेय