धर्म–कर्म
अद्वैत वेदांत के दर्शन का संदेश देगा ‘एकात्म धाम’
आदि शंकराचार्य सनातक धर्म के पुनरोद्धारक हैं। आज हम जो भारत देख रहे हैं वे आचार्य शंकर की देन है। उन्होंने देश के चार कोनों में चार मठों की स्थापना की थी। उन्होंने कुंभ मेले को पुनर्जीवित किया। कई परंपराओं को शुरू किया। सिर्पâ ३२ वर्ष की आयु में उन्होंने सनातन धर्म और भारत का पुनरुद्धार किया। उन्होंने देश को पुनर्जाग्रत और व्यवस्थित किया। वे केरल से चलकर अपने गुरु की खोज में ओंकारेश्वर तक पैदल आए थे। इस घटना का हमारे लिए बड़ा महत्व है। इसी कारण से इस बड़े प्रोजेक्ट के लिए ओंकारेश्वर को चुना गया है।

आदि शंकराचार्य ने सनातन धर्म की ऐसी व्याख्या कि जिससे पूरी दुनिया अभी तक अभीभूत है। वर्तमान में सनातन धर्म के स्वरूप की परिकल्पना आदि शंकराचाज्ञर्य ने की थी। उसी का अभी तक हमारे समाज में अनुपालन किया जा रहा है। इस प्रोजेक्ट के असिस्टेंड प्रोग्राम ऑफिसर आशुतोष सिंह ठाकुर ने कहा कि यह प्रोजेक्ट ओंकारेश्वर के एकात्म धाम में बन रहा है। ये भूमि आदि शंकराचाज्ञर्य की ज्ञान भूमि है। इस जगह को अद्वैत वेदांत का एकात्मता का वैश्विक केंद्र बनाया जा रहा है। सीएम शिवराज के संकल्प से इसे जमीन पर उतारा जा रहा है। इसमें आदि शंकराचाज्ञर्य की १०८ फीट ऊंची प्रतिमा, अद्वैत लोक, संग्रालहय और आचार्य शंकर अंतरराष्ट्रीय अद्वैत वेदांत संस्थान का निर्माण कराया जाएगा। इसके माध्यम से अद्वैत वेदांत और भारतीय दर्शन का विश्व में प्रचार प्रसार किया जा सकेगा। इसी कारण से इसको यहां पर बनाया जा रहा है।
इस प्रतिमा की मजबूती पर खास ख्याल रखा गया है। इस प्रतिमा का अगले ५०० सालों तक कुछ नहीं बिगड़ेगा। इस प्रतिमा के दर्शन काफी दूर से किए जा सकेंगे। सरकार ने देखा कि उज्जैन में महाकाल लोक बनने के बाद से उस इलाके में आर्थिक गतिविधियां काफी तेज हुर्इं। इसी कारण से ऐसे और प्रोजेक्ट बनाए जा रहे हैं। जो कि आध्यात्मिकता के साथ ही लोगों को रोजगार देने का भी काम करें। जब यह पूरी तरह से बनकर तैयार हो जाएगा तो निश्चित रूप से ओंकारेश्वर में भी आर्थिक गतिविधियां तेज होंगी। सबसे खास बात है कि इससे यहां के लोगों के कमाई के नए साधन बनते हैं। इससे आसपास के इलाकों को भी फायदा होगा।
आदि शंकराचार्य ने भारत को अपने परम वैभव पर पुनः स्थापित किया था। वे सनातक धर्म के पुनरोद्धारक हैं। आज हम जो भारत देख रहे हैं वे आचार्य शंकर की देन है। उन्होंने देश के चार कोनों में चार मठों की स्थापना की थी। उन्होंने कुंभ मेले को पुनर्जीवित किया। कई परंपराओं को शुरू किया। सिर्पâ ३२ वर्ष की आयु में उन्होंने सनातन धर्म और भारत का पुनरुद्धार किया। उन्होंने देश को पुनर्जाग्रत और व्यवस्थित किया। वे केरल से चलकर अपने गुरु की खोज में ओंकारेश्वर तक पैदल आए थे। इस घटना का हमारे लिए बड़ा महत्व है। इसी कारण से इस बड़े प्रोजेक्ट के लिए ओंकारेश्वर को चुना गया है।
इस प्रोजेक्ट के बारे में बताते हुए मध्य प्रदेश के पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय के प्रमुख सचिव शिव शेखर शुक्ला ने कहा कि इस प्रोजेक्ट से न केवल पर्यटन बल्कि सरकार के द्वारा किया जा रहा सांस्कृतिक पुनरुद्धार का काम भी होगा। अद्वैत वेदांत के प्रति आस्था रखने वाले लोगों के लिए यह ज्ञान प्राप्त करने के लिए एक केंद्र के रूप में उभरेगा। यह स्थान आने वाले समय में देश-विदेश के लोगों को आकर्षित करेगा। जब काफी समय संख्या में बाहर से लोग यहां पर आएंगे तो निश्चित रूप से स्थानीय लोगों को आर्थिक रूप से फायदा होगा। शंकराचार्य की अखंड भारत की यात्रा ओंकारेश्वर से शुरू हुई थी। ओंकारेश्वर ऐसा धाम हैं जहां उनको गुरु पद प्राप्त हुआ। मध्य प्रदेश को यह गौरव प्राप्त हैं कि इसने ही एक ब्रह्मचारी को आदि शंकर के रूप में स्थापित किया। शंकराचार्य की अखंड भारत की यात्रा के स्थानों को चिन्हित किया जा रहा है और उनको जोड़ा जा रहा है। उन जगहों को चिन्हित करके सार्वभौमिक एकात्मता के संदेश को देकर अखंड भारत को जोड़ा रहा है। इसमें अखंड भारत के साथ ही साथ अखंड विश्व की संकल्पना भी शामिल है।
एमपी के सांस्कृतिक विभाग के ऑफिस इंचार्ज डा शैलेंद्र मिश्रा ने कहा कि यह प्रोजेक्ट करीब १२६ हेक्टेयर लैंड में फैला है। इसमें १२ हेक्टेयर में संग्रालहय बनेगा। ३५ हेक्टेयर में आचार्य शंकर अंतरराष्ट्रीय अद्वैत वेदांत संस्थान है। पहले चरण में आचार्य शंकर की मूर्ति जिसे हमने ‘स्टैच्यू और वननेस’ कहा है। उसका निर्माण कार्य चल रहा है।
गणेश चतुर्थी 2023
गणेशजी का महत्व भारतीय धर्मों में सर्वोपरि है. उन्हें हर नए कार्य, हर बाधा या विघ्न के समय बड़ी उम्मीद से याद किया जाता है और दुःखों, मुसीबतों से छुटकारा पाया जाता है. श्री गणेशजी को विघ्न विनाशक माना गया है. गणेशजी को देवसमाज में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है. गणेशजी का वाहन चूहा है. इनकी दो पत्नियां भी हैं जिन्हें रिद्धि और सिद्धि के नाम से जाना जाता है. इनका सर्वप्रिय भोग मोदक यानी लड्डू है. गणेशोत्सव संपूर्ण विश्व में बड़े ही हर्ष एवं आस्था के साथ मनाया जाता है. घर-घर में गणेशजी की पूजा होती है. इस दौरान लोग मोहल्लों, चौराहों पर गणेशजी की स्थापना, आरती, पूजा करते हैं. बड़े जोरों से गीत बजाते, प्रसाद बांटते हैं. अनंत चतुर्दशी के दिन गणेशजी की मूर्ति को पूरे विधि विधान के साथ समुद्र, नदी या तालाब में विसर्जित कर अपने घरों को लौट आते है.

गणेश चतुर्थी वैसे तो पूरे देश में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन महाराष्ट्र में इस त्योहार का एक अलग ही महत्व है. गणेश चतुर्थी से शुरू होकर अनन्त चतुर्दशी (अनंत चौदस) तक चलने वाला १० दिवसीय गणेशोत्सव मनाया जाता है. मान्यता है कि इन दस दिनों के दौरान यदि श्रद्धा एवं विधि-विधान के साथ गणेश जी की पूजा किया जाए तो जीवन के समस्त बाधाओं का अन्त कर विघ्नहर्ता अपने भक्तों पर सौभाग्य, समृद्धि एवं सुखों की बारिश करते हैं. दस दिनों तक चलने वाला यह त्योहार हिन्दुओं की आस्था का एक ऐसा अद्भुत प्रमाण है जिसमें शिव-पार्वती नंदन श्री गणेश की प्रतिमा को घरों, मन्दिरों अथवा पंडालों में साज-श्रृंगार के साथ चतुर्थी को स्थापित किया जाता है. दस दिनों तक गणेश प्रतिमा का नित्य विधिपूर्वक पूजन किया जाता है और ग्यारहवें दिन इस प्रतिमा का बड़े धूम-धाम से विसर्जन कर दिया जाता है.
भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेश जी के सिद्धि विनायक स्वरूप की पूजा होती है. शास्त्रों के अनुसार इस दिन गणेश जी दोपहर में अवतरित हुए थे. इसीलिए यह गणेश चतुर्थी विशेष फलदायी बताई जाती है. पूरे देश में यह त्योहार गणेशोत्सव के नाम से प्रसिद्ध है. भारत में यह त्योहार प्राचीन काल से ही हिंदू परिवारों में मनाया जाता है. इस दौरान देश में वैदिक सनातन पूजा पद्धति से अर्चना के साथ-साथ अनेक लोक सांस्कृतिक रंगारंग कार्यक्रम भी होते हैं जिनमें नृत्यनाटिका, रंगोली, चित्रकला प्रतियोगिता, हल्दी उत्सव आदि प्रमुख होते हैं.
गणेशोत्सव में प्रतिष्ठा से विसर्जन तक विधि-विधान से की जाने वाली पूजा एक विशेष अनुष्ठान की तरह होती है जिसमें वैदिक एवं पौराणिक मंत्रों से की जाने वाली पूजा दर्शनीय होती है. महाआरती और पुष्पांजलि का नजारा तो देखने योग्य होता है.
गणेश चतुर्थी से जुड़ी मान्यताओं में यदि गणेश चतुर्थी का दिन रविवार या मंगलवार हो तो इसे महाचतुर्थी का योग कहा जाता है. और इस महाचतुर्थी के दिन चन्द्र दर्शन करना वर्जित है. श्रीमद्भागवत् में कथा आरती है. इस दिन चांद देखने से ही भगवान कृष्ण को मिथ्या कलंक का दोष लगा था जिससे मुक्ति पाने के लिए उन्होंने विधिवत गणेश चतुर्थी का व्रत किया था. भविष्य पुराण में इस तिथि को शिवा, शांत और सुखा चतुर्थी भी कहा है. गणेशजी का महत्व भारतीय धर्मों में सर्वोपरि है. उन्हें हर नए कार्य, हर बाधा या विघ्न के समय बड़ी उम्मीद से याद किया जाता है और दुःखों, मुसीबतों से छुटकारा पाया जाता है. श्री गणेशजी को विघ्न विनाशक माना गया है. गणेशजी को देवसमाज में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है. गणेशजी का वाहन चूहा है. इनकी दो पत्नियां भी हैं जिन्हें रिद्धि और सिद्धि के नाम से जाना जाता है. इनका सर्वप्रिय भोग मोदक यानी लड्डू है. गणेशोत्सव संपूर्ण विश्व में बड़े ही हर्ष एवं आस्था के साथ मनाया जाता है. घर-घर में गणेशजी की पूजा होती है. इस दौरान लोग मोहल्लों, चौराहों पर गणेशजी की स्थापना, आरती, पूजा करते हैं. बड़े जोरों से गीत बजाते, प्रसाद बांटते हैं. अनंत चतुर्दशी के दिन गणेशजी की मूर्ति को पूरे विधि विधान के साथ समुद्र, नदी या तालाब में विसर्जित कर अपने घरों को लौट आते हैं.
कैसे करें गणेश जी की पूजा
गणेशोत्सव के दौरान प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त हो कर ‘मम सर्वकर्मसिद्धये सिद्धिविनायक पूजनमहं करिष्ये’ मंत्र से संकल्प लें. इसके बाद सोने, तांबे, मिट्टी अथवा गोबर से गणेशजी की प्रतिमा बनाएं. गणेशजी की प्रतिमा को कोरे कलश में जल भरकर मुंह पर कोरा कपड़ा बांधकर उस पर स्थापित करें. इसके बाद मूर्ति पर सिंदूर चढ़ाकर उनका पूजन करें और आरती करें. फिर दक्षिणा अर्पित करके इक्कीस लड्डुओं का भोग लगाएं. इनमें से पांच लड्डू गणेशजी की प्रतिमा के पास रखकर शेष ब्राह्मणों में बांट दें.
जो गणेश व्रत या पूजा करता है उसे मनोवांछित फल तथा श्रीगणेश प्रभु की कृपा प्राप्त होती है. पूजन से पहले नित्यादि क्रियाओं से निवृत्त होकर शुद्ध आसन में बैङ्गकर सभी पूजन सामग्री को एकत्रित कर पुष्प, धूप, दीप, कपूर, रोली, मौली लाल, चंदन, मोदक आदि एकत्रित कर क्रमश: पूजा करें.
पूजा के दौरान जरूर याद रखें कि भगवान श्रीगणेश को तुलसी दल और तुलसी पत्र नहीं चढ़ाना चाहिए. उन्हें, शुद्ध स्थान से चुनी हुई दूर्वा को धोकर ही चढ़ाना चाहिए. श्रीगणेश भगवान को मोदक यानी लड्डू अधिक प्रिय होते हैं इसलिए उन्हें देशी घी से बने मोदक का प्रसाद ही चढ़ाना चाहिए. ऐसा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है. श्रीगणेश के अलावा शिव और गौरी, नन्दी, कार्तिकेय सहित सम्पूर्ण शिव परिवार की पूजा षोड़षोपचार विधि रूप से करना सर्वोत्तम माना जाता है. शास्त्रों के अनुसार श्रीगणेश की पार्थिव प्रतिमा बनाकर उसे प्राण-प्रतिष्ठित कर पूजन-अर्चन के बाद विसर्जित कर देना चाहिए. अतः भजन-कीर्तन और सांस्कृतिक आयोजनों के बाद प्रतिमा का विसर्जन करना नहीं भूलें.
क्या है गणेश पूजन का फल
वस्त्र से ढंका कलश, दक्षिणा तथा गणेश प्रतिमा आचार्य को समर्पित करके गणेशजी के विसर्जन का उत्तम विधान माना गया है. गणेशजी का यह पूजन करने से बुद्धि और रिद्धि-सिद्धि की प्राप्ति तो होती ही है, विघ्न-बाधाओं का भी समूल नाश हो जाता है.
गणेश जी को गजानन कहते हैं इसका संकेत है हाथी की तरह धैर्यवान और बुद्धिमान होना पड़ेगा.
गणेश जी को विघ्नहर्ता भी कहते हैं. अतः इसके प्रतीक के रूप में उनके हाथ में परशुदंड भी है.
गणेश जी रिद्धि-सिद्धि के स्वामी हैं. अतः इनके पूजन से आपके सुख-संपदा और धन-धान्य की कमी नहीं होती है.
पूजा का समय
वैसे तो भगवान की पूजा कभी भी की जा सकती है परन्तु गणेशजी की पूजा सायंकाल के समय की जाए तो बेहतर माना जाता है. पूजन के बाद सर झुकाकर चंद्रमा को अर्घ्य देना चाहिए और ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा जरूर देनी चाहिए. सिर झुकाकर चंद्रमा को अर्घ्य देने के पीछे भी कारण व्याप्त है. माना जाता है कि जहां तक संभव हो, इस दिन चंद्रमा के दर्शन नहीं करने चाहिए. भूल बस या कारण बस इस दिन चंद्रमा के दर्शन हो जाते हैं तो आप कलंक के भागी बन जाते हैं. फिर भी घबराएं नहीं! हमारे शास्त्रों में इस तरह की भूल बस होने वाली घटनाओं से मुक्ति पाने के लिए विधान भी मौजूद हैं. ऐसा होने पर गणेश चतुर्थी व्रत कर कलंक से मुक्ति पाई जा सकती है.
बप्पा की पूजा में गणपति यंत्र का महत्व
गणेश-पूजन के दस दिनों के दौरान गणपति यंत्र के पूजन का विशेष महत्व है. जीवन को सुख-समृद्धि एवं सौभाग्य से परिपूर्ण करने के लिए इस यंत्र के पूजन का विशेष महत्व है. चाहे किसी नए व्यापार की शुरुआत हो, भवन-निर्माण का आरम्भ हो या आपकी किसी किताब, पेन्टिंग या यात्रा का शुभारम्भ हो, गणपति यन्त्र आपके कार्य में आने वाली हर प्रकार की बाधा से आपकी रक्षा करता है. जो इस यन्त्र का पूजन करता है वह अपने हर कार्य में सफल रहता है. इस यन्त्र को आप अपने पूजा के स्थान पर स्थापित कर सकते हैं.