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ISRO रचने जा रहा है इतिहास, ‘नॉटी बॉय’ सैटेलाइट करेगा लॉन्च

ISRO GSLV-F14/INSAT-3DS Mission: इसरो आज यानी 17 फरवरी को एक फिर एक नया इतिहास रचने जा रहा है. मौसम की सटीक जानकारी देने वाला सैटेलाइट INSAT-3DS आज लॉन्च करने जा रहा है. इसका उपनाम ‘नॉटी बॉय’ रखा गया है.

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) आज मौसम की सटीक जानकारी देना वाला सैटेलाइट लॉन्च करेगा. ISRO रचने जा रहा है इतिहास, ‘नॉटी बॉय’ सैटेलाइट करेगा लॉन्च, मौसम की सटीक जानकारी देने वाला सैटेलाइट INSAT-3DS आज यानी 17 फरवरी को लॉन्च होने वाला है. इसका उपनाम ‘नॉटी बॉय’ रखा गया है. ISRO ने कहा है कि जीएसएलवी-एफ14 शनिवार शाम 5.35 बजे श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से उड़ान भरेगा. उड़ान भरने के लगभग 20 मिनट बाद जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) में तैनात होगा. यह रॉकेट का कुल मिलाकर 16वां मिशन होगा और स्वदेशी रूप से विकसित क्रायोजेनिक इंजन का उपयोग करके इसकी 10वीं उड़ान होगी.

भोपाल AIIMS ड्रोन से पहुंचाएगा दवाईंयां, किया सफल परीक्षण

भोपाल के एम्स में ये ड्रोन स्टेशन ट्रॉमा और इमरजेंसी ऑपरेशन थियेटर कॉम्प्लेक्स में बनाया गया है. जिसमें गांव तक दवाईयां पहुंचाई जा सकेंगी. 60 किमी दूर जाने के लिए ड्रोन के जरिए महज 30 मिनट से एक घंटे के बीच दवा को संबंधित स्थान तक भेजा जा सकेगा. ड्रोन के माध्यम से न केवल दूर-दराज इलाकों तक दवाइयां पहुंच सकेंगी बल्कि ड्रोन के साथ आपातकालीन स्थिति में रक्त पहुंचाना, ब्लड सैंपल लेना और ऑर्गन ट्रांसपोर्टेशन जैसी सुविधा भी मिलेगी.

All India Institute of Medical Sciences News: मध्यप्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार लाने के लिए एम्स ने नई पहल की है. मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के एम्स (AIIMS Bhopal) ने ग्रामीण क्षेत्रों की स्वास्थ्य सुविधा को सुधारने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है. भोपाल AIIMS ड्रोन से पहुंचाएगा दवाईंयां, किया सफल परीक्षण , भोपाल के एम्स में ड्रोन के माध्यम से ग्रामीण इलाकों में दवाएं पहुंचाई जाएंगी, जिसके लिए भोपाल (Bhopal AIIMS Drone) के एम्स हॉस्पिटल में ड्रोन स्टेशन (Drone Station) भी बनाया गया है. दवाईयों को भेजने की टेस्टिंग की जा चुकी है.

ISRO: ‘इनसैट-3डीएस’ उपग्रह श्रीहरिकोटा से उड़ान भरने को तैयार

ISRO रचने जा रहा है एक और इत‍िहास

ISRO: ‘इनसैट-3डीएस’ उपग्रह, इसरो के नए रॉकेट एसएसएलवी (स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) के अलावा वारहार्स पीएसएलवी को भी लॉन्च किया जाएगा, जिसे एक उद्योग संघ ने विकसित किया है। अंतरिक्ष नियामक ने 2023 की अंतिम तिमाही से लेकर अगले वित्त वर्ष तक प्रस्तावित योजना के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि सात स्पेस लॉन्च निजी स्टार्टअप स्काईरूट और अग्निकुल की तरफ से किए जाएंगे। 

पूर्वानुमानों को सटीक बनाने पर जोर
चेन्नई स्थित अग्निकुल कॉसमॉस अगले दो महीनों के भीतर अपना पहला 3-डी प्रिंटेड रॉकेट अग्निबाण-एसओआरटीईडी लॉन्च करने वाला है। अग्निबाण रॉकेट की पहली उड़ान एक उप-कक्षीय मिशन होगी। इसी वित्तीय वर्ष में होने वाले अन्य प्रक्षेपणों में जीएसएलवी-एफ14 को लॉन्च करना भी शामिल है जिसके जरिये इनसैट-3डीएस उपग्रह को कक्षा में स्थापित किया जाएगा। जीएसएलवी-एफ14 से मौसम पूर्वानुमान, आपदा प्रबंधन और संबंधित मौसम संबंधी सेवाओं से जुड़े पूर्वानुमानों को और अधिक सटीक बनाया जा सकेगा। वहीं, विकास क्रम में एसएसएलवी की तीसरी उड़ान भी मार्च तक होने की उम्मीद है जिसमें इसरो के एक प्राथमिक उपग्रह और दो अन्य पेलोड, स्पेस रिक्शा और आआईटीएमसैट को भेजा जाएगा।

‘विक्रम’ के अगले वर्ष लॉन्च की उम्मीद
अगले वर्ष एयरोस्पेस की तरफ से स्वदेश निर्मित रॉकेट विक्रम 1-1 के चार लॉन्च की भी उम्मीद है, जबकि अग्निकुल कॉसमॉस ने अग्निबाण के दो लॉन्च की योजना बनाई है। 2024-25 में इसरो की पीएसएलवी और जीएसएलवी के तीन-तीन मिशन और परीक्षण वाहन सहित गगनयान परियोजना से जुड़े सात लॉन्च की तैयारी है। इसरो की वाणिज्यिक शाखा, न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड द्वारा पीएसएलवी के चार प्रक्षेपण, एक एलवीएम-3 मिशन और एसएसएलवी के दो प्रक्षेपण किए जाने की उम्मीद है।

महाराष्ट्र 3,079 ईवी चार्जिंग स्टेशनों के साथ सबसे आगे

भारी उद्योग राज्यमंत्री कृष्ण पाल गुर्जर ने कहा कि इस साल 2 फरवरी तक देश में चल रहे इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) चार्जिंग स्टेशनों की संख्या 12,146 हो गई है। उन्‍होंने मंगलवार को लोकसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में यह बात कही। मंत्री द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों से पता चलता है कि महाराष्ट्र 3,079 ईवी चार्जिंग स्टेशनों के साथ सबसे आगे है, इसके बाद दिल्ली 1,886 स्टेशनों के साथ दूसरे स्थान पर है, जबकि कर्नाटक 1,041 चार्जिंग स्टेशनों के साथ तीसरे स्थान पर है।

शीर्ष 10 की सूची में शीर्ष तीन राज्य हैं : केरल (852), तमिलनाडु (643), उत्तर प्रदेश (582), राजस्थान (500), तेलंगाना (481), गुजरात (476) और मध्य प्रदेश (341)। भारी उद्योग मंत्रालय (एमएचआई) भारत में ईवी को बढ़ावा देने की सुविधा के लिए लगातार प्रयास कर रहा है। मंत्री ने कहा कि एफएएमई-II योजना में अन्य बातों के साथ-साथ ईवी उपयोगकर्ताओं के बीच विश्‍वास पैदा करने के लिए सार्वजनिक चार्जिंग बुनियादी ढांचे की स्थापना के लिए सब्सिडी के रूप में वित्तीय सहायता भी शामिल है। इसके अलावा, बिजली मंत्रालय ने देश में सार्वजनिक ईवी चार्जिंग बुनियादी ढांचे की तैनाती में तेजी लाने के लिए कई पहल की हैं। सरकार ने चार्जिंग बुनियादी ढांचे के लिए दिशानिर्देश और मानक जारी किए हैं, जो ईवी के मालिकों को अपने मौजूदा बिजली कनेक्शन का उपयोग करके अपने निवास/कार्यालय में अपने वाहनों को चार्ज करने में सक्षम बनाते हैं।

सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशनों के लिए प्रचार दरों पर भूमि के प्रावधान के लिए एक राजस्व साझाकरण मॉडल भी पेश किया गया है और निर्धारित समयसीमा के भीतर सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशन (पीसीएस) को बिजली कनेक्शन प्रदान करने का प्रावधान किया गया है। सरकार ने सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशनों के लिए एकल भाग ईवी टैरिफ भी निर्धारित किया है, यह राशि 31.03.2025 तक आपूर्ति की औसत लागत (एसीओएस) से अधिक नहीं हो सकती है। दिशानिर्देश सौर और गैर-सौर घंटों के दौरान पीसीएस पर ईवी की धीमी एसी चार्जिंग के लिए उपयोग की जाने वाली बिजली की सीमा क्रमशः 2.50 रुपये प्रति यूनिट और 3.50 रुपये प्रति यूनिट निर्दिष्ट करते हैं। इसके अलावा, सौर और गैर-सौर घंटों के दौरान पीसीएस पर ईवी की डीसी फास्ट चार्जिंग के लिए उपयोग की जाने वाली बिजली की क्रमशः 10 रुपये प्रति यूनिट और 12 रुपये प्रति यूनिट की अधिकतम सीमा भी निर्दिष्ट की गई है। सौर घंटों के दौरान डिस्कॉम द्वारा पीसीएस को आपूर्ति की औसत लागत (एसीओएस) पर 20 प्रतिशत की छूट और अन्य सभी समय के दौरान 20 प्रतिशत का अधिभार होगा। मंत्री ने कहा कि हरित ऊर्जा ओपन एक्सेस नियम, 2022 को नवीकरणीय ऊर्जा अपनाने में और तेजी लाने, सभी के लिए सस्ती, विश्‍वसनीय, टिकाऊ और हरित ऊर्जा तक पहुंच सुनिश्चित करने के उद्देश्य से अधिसूचित किया गया है।

पनडुब्बी पर्यटन परियोजना…

पनडुब्बी पर्यटन परियोजना अरब सागर में सिंधुदुर्ग जिले के वेंगुर्ले में प्रस्तावित है। आमतौर पर पनडुब्बी में २५ से ३० लोग बैठकर समुद्र के अंदर जा सकते हैं और समुद्र के अंदरूनी हिस्से को देख सकते हैं। कोकण में सबसे ज्यादा रंग बिरंगी मछलियां और समुद्र के अंदर की अनोखी दुनिया वेंगुर्ले के रॉक में है। इसके साथ ही तारकर्ली में स्कूबा सेंटर भी है जो राज्य में स्कूबा डाइविंग के लिए जाना जाता है। अब स्कूबा के माध्यम से पर्यटक समुद्र के नीचे की दुनिया भी देख सकेंगे। इससे राज्य में पर्यटन को काफी बढ़ावा मिल सकता है. 

राज्य में स्थापित होने वाली पहली पनडुब्बी पर्यटन परियोजना को सिंधुदुर्ग से गुजरात स्थानांतरित करने के विपक्ष के आरोपों पर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा है कि मैं राज्य के नागरिकों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि विपक्ष के लोग फर्जी खबरों को फैलाने का काम कर रहे हैं। लिहाजा इस तरह की खबरों पर राज्य की जनता विश्वास न करे। शिंदे ने कहा कि यह हमारे राज्य का प्रोजेक्ट है और राज्य से बाहर कहीं भी नहीं जाएगा

एक पनडुब्बी (Submarine) एक जलयान है जो पानी के भीतर स्वतंत्र संचालन में सक्षम है. यह सबमर्सिबल से अलग होता है, जिसकी पानी के भीतर सीमित क्षमता होती है. पनडुब्बियों को उनके आकार के बावजूद जहाज की जगह नाव के रूप में देखा जाता है. हालांकि प्रायोगिक पनडुब्बियों का निर्माण पहले ही कर लिया गया था, लेकिन १९वीं शताब्दी के दौरान पनडुब्बी की डिजाइन को कई नौसेनाओं ने अपनाया. सबमरीन को प्रथम विश्व युद्ध के दौरान व्यापक रूप से उपयोग में लाया गया. अब कई नौसेनाओं में इसका उपयोग किया जाता है. 

पनडुब्बियों का बहुमुखी सैन्य उपयोग है. यह दुश्मन की सतह के जहाजों या अन्य पनडुब्बियों पर हमला करने, विमान वाहक की सुरक्षा करने, नाकाबंदी करने, परमाणु हथियारों से हमला करने, टोही ऑपरेशन करने, भूमि पर पारंपरिक हमला करने में सक्षम है. नागरिक उपयोगों में समुद्री विज्ञान, बचाव, अन्वेषण और सुविधा निरीक्षण और रखरखाव शामिल हैं. पनडुब्बियों को विशेष कार्यों के लिए भी संशोधित किया जा सकता है जैसे खोज और बचाव मिशन और पानी के नीचे केबल की मरम्मत. उनका उपयोग पर्यटन और पानी के नीचे पुरातत्व में भी किया जाता है. आधुनिक डीप-डाइविंग में भी पनडुब्बियों का उपयोग होता है

ज्यादातर बड़ी पनडुब्बियों का एक बेलनाकार शरीर होता है जिसमें अर्धगोलाकार छोर होते हैं और एक वर्टिकल संरचना होती है, जो आमतौर पर इसके बीच में स्थित होती है, जिसमें कम्यूनिकेशन और सेंसिंग डिवाइस के साथ-साथ पेरिस्कोप भी होते हैं. इसके पिछले हिस्से में एक प्रोपेलर या पंप जेट होता है, और अलग-अलग तरह के हाइड्रोडायनामिक कंट्रोल पंख लगे होते हैं. पनडुब्बियां डाइविंग विमानों के माध्यम से गोता लगाती हैं और फिर से सतह पर आ जाती हैं

राज्य में स्थापित होने वाली पहली पनडुब्बी पर्यटन परियोजना को सिंधुदुर्ग से गुजरात स्थानांतरित करने के विपक्ष के आरोपों पर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा है कि मैं राज्य के नागरिकों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि विपक्ष के लोग फर्जी खबरों को फैलाने का काम कर रहे हैं। लिहाजा इस तरह की खबरों पर राज्य की जनता विश्वास न करे। शिंदे ने कहा कि यह हमारे राज्य का प्रोजेक्ट है और राज्य से बाहर कहीं भी नहीं जाएगा। शिवसेना (उद्धव) विधायक वैभव नाईक ने पनडुब्बी पर्यटन परियोजना के गुजरात शिफ्ट होने की बात कही थी। शनिवार को वैभव नाईक ने आरोप लगाया कि सिंधुदुर्ग में पनडुब्बी पर्यटन परियोजना को गुजरात ले जाने की तैयारी हो चुकी है। इसके बाद इस पर राजनीति भी शुरू हो गई। नाईक ने कहा कि कोकण में इस परियोजना के स्थापित होने से सिंधुदुर्ग जिले के वेंगुर्ले में पर्यटन को बढ़ावा मिलता, लेकिन इससे पहले ही यह परियोजना दूसरी परियोजनाओं की तरह गुजरात चली गई है। नाईक ने कहा कि महाविकास आघाडी सरकार के दौरान सिंधुदुर्ग में इस पनडुब्बी परियोजना के लिए बजट में प्रावधान किया गया था। नाईक के आरोपों पर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि विपक्ष के लोग सिर्फ फर्जी खबरें फैला रहे हैं। इनमें कोई सच्चाई नहीं है। पनडुब्बी पर्यटन परियोजना का काम बहुत जल्द सिंधुदुर्ग में ही शुरू होने वाला है।  बता दें कि सिंधुदुर्ग जिले के पर्यटन क्षेत्र को प्रोत्साहित करने के लिए साल २०१८ में एक पनडुब्बी पर्यटन परियोजना घोषित की गई थी। देश का यह पहला पनडुब्बी पर्यटन प्रॉजेक्ट निवाती रॉक्स के पास समुद्र में बनना था। इस परियोजना का उद्देश्य पानी के नीचे की दुनिया का पता लगाना था.

सिंधुदुर्ग जिले के पर्यटन को बढ़ाने के लिए २०१८ में एक पनडुब्बी परियोजना की घोषणा की गई थी। देश का यह पहला पनडुब्बी प्रोजेक्ट निवाती रॉक्स के पास समुद्र में बनना था। इस परियोजना का उद्देश्य पानी के नीचे की दुनिया की गहराई का पता लगाना था। इस प्रोजेक्ट के लिए ५६ करोड़ का फंड मंजूर किया गया था। हालाँकि, शासकों की अरुचि के कारण सिंधुदुर्ग पनडुब्बी परियोजना को बढ़ावा नहीं मिला। इस पनडुब्बी परियोजना में पर्यटक समुद्र के नीचे अद्भुत दुनिया देख सकते थे। यह परियोजना स्थानीय लोगों के लिए रोजगार भी पैदा करेगी। लेकिन जब धनराशि आवंटित की गई, तो समस्याएँ कहाँ से आईं? इसका जवाब हुक्मरानों को देना होगा। अब कहा जा रहा है कि यह प्रोजेक्ट गुजरात को जाएगा और गुजरात सरकार और मझगांव डॉकयार्ड द्वारका के समुद्र में एक ऐसी ही पनडुब्बी परियोजना लागू कर रहे हैं। जनवरी में वाइब्रेट गुजरात समिट में इसकी आधिकारिक घोषणा की जाएगी। पनडुब्बी परियोजना गुजरात में जाने की खबर सामने आने के बाद राज्य में नाराजगी की लहर फैल गई। तो वहीं दूसरी तरफ राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप भी शुरू हो गया। जब सत्ताधारी भाजपा और महागठबंधन सरकार की आलोचना हो रही है तो अब विधायक नितेश राणे खुलकर सामने आए हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि सिंधुदुर्ग में पनडुब्बी परियोजना कहीं नहीं जाएगी। उन्होंने इस बात की आलोचना की कि विपक्ष बिना कोई जानकारी प्राप्त किये भौंक रहा है। उनका यह भी मानना था कि महाविकास अघाड़ी सरकार के दौरान जिस परियोजना की उपेक्षा की गई थी, उसे महागठबंधन सरकार पूरा करेगी। 

नितेश राणे ने कहा कि कुछ दिनों से सिधुदुर्ग में पनडुब्बी प्रोजेक्ट को लेकर मिली-जुली खबरें आ रही हैं। हमारे विरोधी अपेक्षा के अनुरूप जानकारी प्राप्त किए बिना भौंकने का काम कर रहे हैं। कोंकण और सिधुदुर्ग में बन रही यह पनडुब्बी परियोजना गुजरात तक नहीं जा रही है। कोंकण में पनडुब्बी प्रोजेक्ट की तरह ही गुजरात में भी प्रोजेक्ट करने का फैसला किया गया है। गुजरात की तरह केरल में भी पनडुब्बी परियोजना चल रही है। उन्होंने कहा कि किसी ने भी उनका प्रोजेक्ट नहीं छोड़ा है। दीपक केसरकर ने इस परियोजना की शुरुआत २०१८ में की थी जब वह वित्त राज्य मंत्री थे। बाद में माविआ के कार्यकाल में तत्कालीन पर्यटन मंत्री आदित्य ठाकरे ने कोई प्रोत्साहन नहीं दिया। चूंकि उन्होंने इस बात पर अधिक जोर दिया कि परियोजना को कैसे बंद किया जाएगा, आज गुजरात और केरल में काम शुरू हो गया। उन्होंने आलोचना की कि आदित्य ठाकरे की निष्क्रियता के कारण महाराष्ट्र में स्थिति ‘जैसी थी’ वैसी ही है। राणे का मानना था कि महागठबंधन सरकार इस प्रोजेक्ट को पूरा करेगी।

भारत में अरबी की खेती…

अरबी जिसे अंग्रेज़ी में तारो के नाम से भी जाना जाता है. भारत के अलग-अलग हिस्से में अरबी को अलग-अलग नामों से जाना जाता है, और कुछ लोग इसके पत्तों की पकौड़ी बनाकर खाना पसंद करते हैं तो कुछ इसकी सब्जी. कई जगहों पर तो इसे व्रत में फलाहार के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है. अरबी में फाइबर और कार्बोहाइड्रेट भरपूर मात्रा में होता है. इसके अलावा इसमें विटामिन ए, विटामिन सी, विटामिन ई, विटामिन बी ६ और फोलेट भी अधिक मात्रा में होता है. इसमें मैग्नीशियम, आयरन, कॉपर, जिंक,फॉस्फोरस, पोटैशियम और मैंगनीज जैसे तत्व भी पाए जाते हैं जो शरीर को कई समस्याओं से बचाने में मदद कर सकते हैं. अरबी के सेवन से इम्यूनिटी को मजबूत बनाया जा सकता है… 

 अरबी की खेती पूरे भारत में की जाती है। अरबी के पत्तों और इसके फलों को सब्जी के रूप में प्रयोग किया जाता है। अरबी दो तरह की होती है। एक एडिन और दूसरी डेसिन आदि। इसमें से एडिन को अरबी कहा जाता है और डेसिन को बणडा कहा जाता है। अरबी की सबसे अधिक खेती अफ्रीका में की जाती है। अरबी में चिडचिडाहट या एक्रीडीटी पाई जाती है। जो पकने के बाद खत्म हो जाती है। अरबी को कच्चा नहीं खाया जाता।

अरबी की खेती के लिए शीतोष्ण और सम शीतोष्ण जलवायु उत्तम मानी जाती है। इसके आलावा अरबी को नम जगहों पर भी उगाया जाता है। अरबी को पहाड़ी और मैदानी दोनों ही भागों में उगाया जाता है। इसकी खेती करने के लिए बलुई दोमट मिटटी अच्छी होती है। इसे भारी किस्म की मिट्टी में भी उगाया जा सकता है। लेकिन उस मिटटी में उचित जल निकास की सुविधा होनी आवश्यक है। तभी उसमे सफलतापूर्वक खेती की जा सकती है। जिस भूमि में अरबी की खेती की जा रही हो उस भूमि का पी. एच . मान ५. ५ से ७ के बीच का हो तो उत्तम माना जाता है। अरबी की फसल में पानी का भराव नहीं होना चाहिए। इससे अरबी की फसल खराब हो सकती है।  खेत की मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करें। इसके बाद देसी हल का प्रयोग करके लगभग ३ या ४ बार खेत को जोते। इसके आलावा आप इसमें केल्टिवेटर का भी प्रयोग कर सकते है। इससे मिटटी भुरभुरी हो जायेगी। खेत में अंतिम जुताई करते समय में १०० से १५० क्विंटल सड़ी हुई खाद को मिला दें। इसके बाद ही खेत की जुताई करें। ताकि मिटटी और खाद आपस में अच्छी तरह से मिल जाये। खाद की यह मात्रा एक हेक्टेयर भूमि के लिए पर्याप्त है। भूमि के अनुसार इसकी मात्रा को घटाया और बढ़ाया जा सकता है। अरबी के लिए बीच की मात्रा :- अरबी की खेती के लिए मध्यम आकार के कंदों का चुनना चाहिए। इसके लिए लगभग ७. ५ से ९. ५ क्विंटल बीज एक हेक्टेयर भूमि के लिए पर्याप्त है।  अरबी को उत्तर भारत में दो बार बुआई की जाती है। पहली बुआई मार्च से अप्रैल के महीने में कंदों की बुआई या रोपाई की जाती है। बारिश के मौसम में या खरीफ की फसल लेने के लिए इसकी बुआई जून से जुलाई के महीने में की जाती है। यह समय इसकी खेती के लिए उपयुक्त होता है।

अरबी की बुआई कतारों में करनी चाहिए। इसकी बुआई करते समय कतारों की दूरी का ध्यान रखे। एक कतार से दूसरी कतार के बेच की दूरी लगभग ४५ सेंटीमीटर की होनी चाहिए और एक पौधे से दूसरे पौधे को ३० सेंटीमीटर की दूरी पर ही लगायें। अरबी के कंदों को ६ से ७ सेंटीमीटर का गड्डा खोदकर बोना चाहिए। इस प्रकार की विधि को अपनाकर बुआई करने से अंकुरण और पौधे की वृद्धि सही प्रकार से होती है।

अरबी की बुआई के ४ या ५ दिन के बाद सिंचाई करनी चाहिए। यदि अरबी के कंदों में अंकुरण भलीभांति हो रहा हो तो इसकी सिंचाई ८ से १० दिन के अंतर पर करनी चाहिए। सिंचाई करते समय इस बात का ध्यान जरुर रखे की इसकी फसल में पानी का भराव नहीं हों। अरबी की फसल में खरपतवार को दूर करने के लिए अरबी की बुआई के एक या दो दिन के बाद पेंडामेथलिन की ३ .३ लीटर की मात्रा में ६०० से ८०० लीटर पानी की मात्रा मिला दें। इस मिश्रण की किसी पम्प में डालकर स्प्रे करें। स्प्रे करने के एक दिन के बाद मलीचिंग करनी चाहिए। ऐसा करने से खरपतवार को दूर किया जा सकता है। मलच को हटाने के बाद एक या दो बार हल्की – हल्की निराई गुड़ाई करनी चाहिए। ताकि छोटे – छोटे खरपतवार नष्ट हो जाये। निराई करने के बाद पौधे पर मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए। इससे अरबी के कंद अच्छे बनते है और उपज भी अच्छी प्राप्त होती है।

 अरबी की फसल में लीफ ब्लाइट या पिथियम गलन जैसी बीमारी लगती है। जो अरबी के कंदों को नुकसान पंहुचाती है। इसकी रोकथाम करने के लिए डाईथेंन एम. ४५ की ८ से १० ग्राम की मात्रा में १० लीटर पानी मिलाकर के घोल बनाएं। इस घोल को किसी पम्प में डालकर फसलों पर तर – बतर करके छिडकाव करें। इसके आलावा अरबी की रोग प्रतिरोधी किस्मों की बुआई करें। पिथियम गलन नामक रोग से बचने के लिए भूमि को फफूंदी नाशक दवा से शोधन करना चाहिए और अच्छी किस्मों की बुआई करें। जो रोगों से लड़ने में सक्षम हों। 

अरबी की फसल पर लीफ हापर और लीफ ईटर नामक कीटों का प्रकोप होता है। लीफ होपर नामक कीट से पौधे को बचाने के लिए बी. एच. सी. डस्ट की एक ज्ञ् की मात्रा को पानी में मिलाकर फसलों पर छिडकें जबकि लीफ इटर के रोकने के लिए लेड एनिसेट का छिडकाव करना चाहिए। 

अरबी की बुआई के १२० से १५० दिन के बाद पककर तैयार हो जाती है। जब इसके फसल की पत्तियां पीली होकर जमीन पर गिरने लगें तो उसी समय अरबी की खुदाई करनी चाहिए। 

अरबी की खेती के लिए गर्म और आद्र जलवायु उत्तम होती है। इसे उष्ण और उपउष्ण दोनों ही देशो में उगाया जाता है। अरबी को साल में दो बार उगाया जाता है। गर्मी के मौसम में और बारिश के मौसम में। उत्तरी भारत की जलवायु अरबी की खेती के लिए उत्तम मानी जाती है। इस प्रकार की जलवायु में इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। अरबी की खेती के लिए रेतीली दोमट मिटटी अच्छी होती है।  

क्लाउड किचन देश-दुनियाका सबसे ट्रैंडिंग बिजनस…

बिजनस छोटा हो या बड़ा हमें ऑफलाइन ग्राहकों के साथसाथ ऑनलाइन ग्राहकों को भी ध्यान में रख कर अपनी व्यवसायिक रणनीति तय करनी होती है, क्योंकि आज हर किसी के मोबाइल में असीमित डाटा है. अब ज्यादातर काम ऑनलाइन ही हो रहे हैं. तभी तो क्लाउड किचन बिजनस भारत और दुनियाभर में सब से ट्रैंडिंग बिजनस में से एक है.
क्लाउड किचन जिसे अकसर ‘वर्चुअल किचन’ के रूप में भी जाना जाता है, एक प्रकार का ऐसा रैस्टोरैंट है जहां सिर्पâ टेक अवे और्डर ही दिए जा सकते हैं. औनलाइन फूड और्डरिंग सिस्टम के माध्यम से ग्राहकों को भोजन उपलब्ध कराने के लिए एक व्यवसाय स्थापित किया जाना ही क्लाउड किचन है. जोमैटो और स्विग्गी जैसे फूड डिलीवरी ऐप्लिकेशंस का इन से टाईअप होता है. २०१९ में भारत में लगभग ५,००० क्लाउड किचन थे. औनलाइन फूड और्डरिंग ऐप्स और वैबसाइटों के सहयोग से क्लाउड किचन को बड़ा समर्थन मिला है. आज भारत में ३०,००० से अधिक क्लाउड किचन हैं. आप महज ५ से ६ लाख में इस काम की शुरुआत अच्छे स्तर पर कर सकते हैं. महिलाएं भी इस बिजनैस में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं.
क्लाउड किचन शुरू करने की प्रक्रिया
स्थान: आप के पास एक ऐसा स्थान ऐसा होना चाहिए जहां आप अपने द्वारा पेश किए जाने वाले फूड की बड़ी डिमांड की अपेक्षा कर सकें. साथ ही आप को उस स्थान पर व्यवसाय चलाने की सारी सुविधाएं भी मिलें. क्लाउड किचन शुरू करने के पहले कुछ लाइसेंस की आवश्यकता होती है. इस में शामिल हैं:
– एफएसएसएआई लाइसेंस
– जीएसटी रजिस्ट्रेशन
– लेबर लाइसेंस
– फायर क्लीयरैंस
रसोई के उपकरण: हमें काम शुरू करने के लिए स्टोव, ओवन, माइक्रोवेव, डीप प्रâीजर, रैप्रिâजरेटर, चाकू जैसे रसोई के उपकरण जरूरत पड़ते हैं. खाना कितना भी स्वादिष्ठ या अच्छी तरह से पका हुआ क्यों न हो जब तक इसे अच्छी तरह से पैक नहीं किया जाता है यह बाजार में ज्यादा नहीं बिकता है. इसलिए आकर्षक पैकेजिंग भी जरूरी है. इंटरनैट और मोबाइल फोन की आवश्यकता होगी क्योंकि डिजिटल रूप से सक्रिय रहना होगा.
मार्वâेटिंग: आप को जोमैटो और स्विग्गी जैसी फूड वैबसाइटों के साथ रजिस्ट्रेशन करना आवश्यक होगा क्योंकि उन के पास लाखों ग्राहक हैं, जो अपना और्डर देते हैं.
कर्मचारी: रसोई के लिए स्टाफ सदस्य का चयन क्लाउड किचन की स्थापना में सब से महत्त्वपूर्ण पहलुओं में से एक है. आप को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे अच्छी तरह से प्रशिक्षित, कुशल स्टाफ हों जो आप के क्लाउड किचन के कामकाज को अच्छी तरह संभालने के लिए आवश्यक कौशल रखते हैं.इस के बाद रा मैटेरियल, वेंडर्स और मैनपावर फाइनल किए जाते है. सारे लाइसेंस आते ही काम शुरू किया जा सकता है. क्लाउड किचन के लिए कम जगह की आवश्यकता होती है और इसे शहर के किसी भी हिस्से में स्थापित किया जा सकता है. महिलाएं घर से भी शुरुआत कर लेती हैं. आप को सिर्पâ इस बात का खयाल रखना है कि आप का घर शहर के व्यवसायिक क्षेत्र में होना चाहिए. बाद में व्यवसाय बढ़ने पर अलग जगह ले सकते हैं.
आप यदि चाहें तो ऑफलाइन बाजार भी खोल सकते हैं जैसे कि किसी रैस्टोरैंट को रैगुलर सप्लाई करना, हौस्टल और कौरपोरेट औफिस तक रोज लगने वाले टिफिन की जरूरत को पूरा करना, पार्टियों के कैटरिंग और्डर लेना आदि. वहीं त्योहारों के समय कुछ खास तरह के पकवानों के और्डर ले सकते हैं.
रेस्टोरैंट और क्लाउड किचन बिजनैस में ५ज्ञ् जीएसटी लगाया जाता है. अगर और्डर जोमैटो और स्विग्गी के जरीए आ रहा है तो एग्रीगेटर्स जीएसटी रिटर्न फाइल करेंगे. अगर वैबसाइट के माध्यम से और्डर आ रहा है तो क्लाउड किचन को ५ज्ञ् जीएसटी सरकार को जमा करना होगा. इस के अलावा कोई अप्रत्यक्ष कर शामिल नहीं हैं. यही कारण है कि हम देखते हैं कि क्लाउड किचन उद्योग में कोई कर विनियमन जटिलताएं नहीं हैं.
ऐग्रीगेटर के हाई कमीशन (करीब ३०ज्ञ्) के कारण यह बहुत कम मार्जिन वाला व्यवसाय है. इसलिए रिटर्न की तुलना में तकनीकी खर्च बहुत अधिक है. ग्राहक से डायरैक्ट संपर्वâ का अभाव होता है. प्रतिक्रिया और समीक्षा के लिए ग्राहकों के साथ कोई सीधा संवाद नहीं. ऐग्रीगेटर्स कस्टमर का डायरैक्ट कौंटैक्ट नहीं देते. यही नहीं इस फील्ड में बहुत सारे ब्रैंड और कैटेगरीज आ गई हैं इसलिए बहुत प्रतियोगिता है. एक क्लाउड किचन का लिमिटेशन ६ से ७ किलोमीटर का होता है. इतनी दूरी में ही करीब २-३ हजार रैस्टोरैंट्स हैं. लिमिटेड लोकेशन में १०००+ब्रैंड्स हैं. इस वजह से कस्टमर को बहुत से औप्शन मिलते हैं. ऐसे में आप को मार्वâेटिंग पर काफी खर्च करना होता है ताकि आप का रैस्टोरैंट ऊपर दिखे. बहुत से ऑफर देने पड़ते हैं. इस से प्रौफिट का काफी हिस्सा ऐसे ही चला जाता है.
अधिकांश ब्रैंड संगठित नहीं हैं और भोजन और काम करने का तरीका और्गनाइज्ड नहीं है. रसोइया/स्टाफ कम सैलरी में अपनी नौकरी बदलते रहते हैं जिस से स्वाद को बनाए रखना मुश्किल हो जाता है. न्यू स्टाफ को बारबार ट्रेंड करना पड़ता है. ट्रेंड होने के बाद वे कहीं और चले जाते हैं इससे भी लॉस होता है.
-क्लाउड किचन के लिए कोई अलग सरकारी नीति नहीं है और उन्हें अभी भी डाइन इन रेस्तरां के रूप में माना जा रहा है जबकि दोनों बहुत अलग हैं. उन का कमीशन कम जाता है. प्रौफिट मार्जिन ज्यादा है जिस से पौलिसी उन के फेवर में चली जाती है.
ये परेशानियां सामान्य किस्म की हैं जो हर बिजनैस में किसी न किसी रूप में आती ही हैं. हर बिजनैस के अपने फायदे और नुकसान होते हैं.

हरी बीन्स की खेती…

बीन्स विटामिन बी२ का मुख्य स्रोत हैं। बीन्स सोल्युबल फाइबर का अच्छा स्रोत होते हैं। इसका सेवन हृदय रोगियों के लिए बहुत ही लाभकारी बताया गया हैं। ये शरीर में बढ़े कोलेस्टेरोल की मात्रा को कम करता है जिससे हृदय रोग का खतरा कम होता है। इसके अलावा इसके सेवन से रक्चाप नहीं बढ़ता है। इसलिए ये हृदय रोगियों के लिए काफी फायदेमंद माना गया है। यदि सही तरीके से प्रâेंचबीन खेती की जाए तो किसान इसकी खेती से अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। प्रâेंचबीन की खेती करते समय यदि कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखा जाए तो इसकी बेहतर पैदावार प्राप्त की जा सकती है।

प्रâेंचबीन या हरी बीन्स में कई पोषक तत्व पाए जाते हैं जो सेहत के लिए लाभकारी होते हैं। इसमें मुख्य रूप से पानी, प्रोटीन, कुछ मात्रा में वसा तथा कैल्सियम, फास्फोरस, आयरन, कैरोटीन, थायमीन, राइबोफ्लेविन, नियासीन, विटामिन-सी आदि तरह के मिनरल और विटामिन मौजूद होते हैं। बीन्स विटामिन बी२ का मुख्य स्रोत हैं। बीन्स सोल्युबल फाइबर का अच्छा स्रोत होते हैं। इसका सेवन हृदय रोगियों के लिए बहुत ही लाभकारी बताया गया हैं। ये शरीर में बढ़े कोलेस्टेरोल की मात्रा को कम करता है जिससे हृदय रोग का खतरा कम होता है। इसके अलावा इसके सेवन से रक्चाप नहीं बढ़ता है। इसलिए ये हृदय रोगियों के लिए काफी फायदेमंद माना गया है। यदि सही तरीके से प्रâेंचबीन खेती की जाए तो किसान इसकी खेती से अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। प्रâेंचबीन की खेती करते समय यदि कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखा जाए तो इसकी बेहतर पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
प्रâेंचबीन की खेती सर्दी व गर्मी दोनों मौसम में की जा सकती है। इसकी खेती के लिए हल्की गर्म जलवायु अच्छी रहती है। इसके लिए खेती के लिए अधिक ठंडी और अधिक गर्म जलवायु अच्छी नहीं रहती है। इसकी खेती हमेशा अनुकूल मौसम में की जानी चाहिए। यदि मिट्‌टी की बात की जाए तो इसकी खेती के लिए बलुई बुमट व बुमट मिट्‌टी अच्छी रहती है। जबकि भारी व अम्लीय भूमि वाली मिट्‌टी इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं रहती है।
प्रâेंचबीन की खेती के लिए कई किस्में आती है जो अच्छी हैं। इसमें दो तरह की किस्में आती है जिसमें पहली झाड़ीदार किस्में होती हैं जिनमें जाइंट स्ट्रींगलेस, कंटेंडर, पेसा पार्वती, अका्र कोमल, पंत अनुपमा तथा प्रीमियर, वी.एल. बोनी-१ आदि प्रमुख किस्में है। वहीं दूसरी बेलदार किस्में होती है जिनमें केंटुकी वंडर, पूसा हिमलता व एक.वी.एन.-१ अच्छी किस्में हैं।

प्रâेंचबीन की खेती में कैसे करें खरपतवार पर नियंत्रण


प्रâेंचबीन की खेती में भी खरपतवारों का प्रकोप बना रहता है। खरपतवार वे अवांछिनीय पौधे होते हैं जो इसके आसपास उग जाते हैं और इसके विकास में बाधा पहुंचाकर फसल को हानि पहुंचाते हैं। ऐसे अवांछिनीय पौधों को हटाने के लिए दो से तीन बार निराई व गुडाई करके खरपवार को हटा देना चाहिए। यहां बता दें कि एक बार पौधे को सहारा देने के लिए मिट्‌टी चढ़ाना जरूरी होता है। यदि खरतवार का प्रकोप ज्यादा हो तो इसके लिए रासायनिक उपाय भी किए जा सकते हैं। इसके लिए ३ लीटर स्टाम्प का प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के बाद दो दिन के अंदर घोल बनाकर छिड़काव करने से खरपवारों पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
प्रâेंचबीन की कटाई फूल आने के दो से तीन सप्ताह के बाद शुरू कर दी जाती है। इसकी फलियों की तुड़ाई नियमित रूप से जब फलियां नर्म व कच्ची अवस्था में हो तब उसकी तुड़ाई करनी चाहिए।
प्रâेंचबीन की पैदावार की बात करें तो उचित वैज्ञानिक तकनीक का इस्तेमाल करके इसकी हरी फली की उपज ७५-१०० क्विंटल/हेक्टेयर तक प्राप्त की जा सकती है। प्रâेंचबीन यानि राजमा का भाव बाजार में सामान्यत: १२० से लेकर १५० रुपए प्रति किलोग्राम रहता है। मंडियों में इसके भावों में अंतर हो सकता है। क्योंकि अलग-अलग मंडियों और बाजार में इसके भावों में उतार-चढ़ाव होता रहता है।

बांस की खेती

कश्मीर की घाटियों के अलावा कहीं भी बांस की खेती की जा सकती है. भारत का पूर्वी भाग आज बांस का सबसे बड़ा उत्पादक है. एक हेक्टेयर जमीन पर बांस के १५०० पौधे लगते हैं. पौधे से पौधे की दूरी ढाई मीटर और लाइन से लाइन की दूरी ३ मीटर रखी जाती है. बांस की खेती के लिए उन्नत किस्मों का चयन करना चाहिए.

भारत में बांस की कुल १३६ किस्में हैं. इनमें से सबसे ज्यादा लोकप्रिय प्रजातियां बम्बूसा ऑरनदिनेसी, बम्बूसा पॉलीमोरफा, किमोनोबेम्बूसा फलकेटा, डेंड्रोकैलेमस स्ट्रीक्स, डेंड्रोकैलेमस हैमिलटन और मेलोकाना बेक्किफेरा हैं. बांस के पौधे की रोपाई के लिए जुलाई महीना सबसे उपयुक्त है. बांस का पौधा ३ से ४ साल में कटाई लायक हो जाता है.

कम मेहनत में ज्यादा मुनाफा देने वाली फसलों में अब बांस का नाम भी शामिल हो चुका है। पहले तो बांस सिर्फ जंगलों में भी प्रकृति के स्पर्श से ही उग जाता था। लेकिन बांस के बढ़ते उपभोग के चलते इसकी व्यवसायिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। हालांकि बांस की खेती में जद्दोजहद करने की आवश्यकता नहीं होती। सिर्फ चार साल फसल का ठीक प्रकार पालन पोषण करें और करीब ४०-४५ तक बांस की फसल आपको मुनाफा देती रहेगी। इसके खेती के दौरान सबसे पहले नर्सरी तैयारी और पौध तैयार होने पर इसकी रोपाई का कार्य किया जाता है। इस बीच अगर किसान आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे है, तो सरकार द्वारा प्रस्तावित आर्थिक अनुदान भी ले सकते हैं। बांस की फसल में कीट-रोग लगने की संभावना भी कम ही रहती है। बस समय पर सिंचाई और निराई-गुड़ाई करते रहें। इन्हीं कृषि कार्य़ो के साथ बांस की फसल भी बढ़ती रहेगी और आपका मुनाफा भी।

राष्ट्रीय बांस मिशन के तहत अगर बांस की खेती में ज्यादा खर्च हो रहा है, तो केंद्र और राज्य सरकार किसानों को आर्थिक राहत प्रदान करेंगी. बांस की खेती के लिए सरकार द्वारा दी जाने वाली सहायता राशि की बात करें तो इसमें ५० प्रतिशत खर्च किसानों द्वारा और ५० प्रतिशत लागत सरकार द्वारा वहन की जाएगी.

मध्य प्रदेश सरकार बांस के प्रति पौधे पर किसान को १२० रुपये की सहायता प्रदान कर रही है. यह राशि तीन साल में किस्तों में मिलती है. राष्ट्रीय बांस मिशन की आधिकारिक वेबसाइट हंस्.हग्म्.ग्ह पर जाकर आप सब्सिडी के लिए ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं. राष्ट्रीय बांस मिशन के तहत हर जिले में नोडल अधिकारी बनाया गया है. आप अपने नोडल (र्‍द्aत्) अधिकारी से भी योजना से संबंधित अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.

बांस की खेती से कमाई

किसानों के लिए बांस की खेती मुनाफे का सौदा साबित हो सकती है। लेकिन बांस की खेती में धैर्य रखना बहुत जरूरी होता है। क्योंकि बांस की खेती रबी, खरीफ या जायद सीजन की खेती नहीं होती। इसको फलने-फूलने के लिए लगभग ३-४ साल का समय लग जाता है। हालांकि पहली फसल के कटते ही किसान की अच्छी आमदनी मिल जाती हैं। किसान चाहें तो बांस की खेती के साथ कोई दूसरी फसल भी लगा सकते हैं। बांस की खेती के साथ दूसरी फसलों की एकीकृत खेती करने से मिट्टी की उपजाऊ शक्ति भी बनी रहेगी। साथ ही, दूसरी फसलों से किसानों को समय पर अतिरिक्त आय भी मिल जाएगी।

रोपाई के चार बाद बांस की पहली कटाई होती है. एक अनुमान के अनुसार, बांस की खेती से ४ साल में ₹४० लाख की एक हेक्टेयर में हो जाती है. इसके अलावा बांस की लाइनों के बीच में खाली पड़ी जमीन पर भी अन्य फसलें लगाकर किसान आसानी से बांस की खेती पर लगने वाला खर्च निकाल सकते हैं. बांस की कटाई-छंटाई भी साल में दो-तीन बार करनी पड़ती है. कटाई में निकली छोटी टहनियां हरे चारे के रूप में काम ली जा सकती है.

बांस की खेती करके किसान ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा कर सकते हैं। इसके जरिए गांवों में आय सृजन के साथ-साथ ग्रामीणों के पोषण सुधार में भी काफी मदद मिल रही है। आज के दौर में बांस के बने उत्पादों ने बाजार में अपने कदम जमा लिए हैं। बांस की खेती के जरिए लकड़ी के उत्पादों पर इंसान की आत्मनिर्भरता को कम करने में मदद मिल रही है। शुरुआत से ही इंसानों ने अपने दैनिक जीवन में लकड़ी के उत्पादों का उपयोग किया है। इसकी खपत बढ़ने पर तेजी से पेड़ों का कटाव हुआ और जंगल नष्ट होने लगे। खेती में आधुनिक तकनीक और उन्नत बदलावों के कदम रखते ही बांस के प्रति जागरूकता बढ़ने लगी। एक रिसर्च से पता चला कि पेड़ों से मिलने वाली लकड़ी के उत्पादन में ८० साल से भी अधिक समय खर्च होता है। लेकिन बांस की पहली उपज ३-४ साल में ही तैयार हो जाती है। इसकी कटाई के बाद करीब ४० साल तक फसल प्रबंधन के जरिए ही फायदा मिलता रहेगा। इसकी पत्तियां पशुओं को पोषण प्रदान करेंगी। किसान बांस की किस्म और सहूलियत के हिसाब से एक हेक्टेयर में करीब १५०० से २५०० पौधे लगाए जाते हैं। जहां, बांस की खेती से जंगलों को दोबारा फलने-फूलने का मौका मिल रहा है। वहीं, इससे बने उत्पादों का प्रयोग करने से प्रकृति के संरक्षण में मददगार साबित हो रहा है। बांस की बुवाई के लिए बीज प्राप्त करना बेहद जरूरी है। बांस का बीज इसके फूल खिलने के बाद प्राप्त होता है। हालांकि इस प्रक्रिया में थोड़ा समय लगता है। लेकिन बांस की बुवाई करके अच्छी और गुणवत्तापूर्ण फसल प्राप्त की जा सकती है। बांस से पके हुए बीज प्राप्त करने के लिए बांस की फसल का झुंड़ बनाकर उन्हें एकत्रित करें और फसल की निचली जमीन से घास को साफ कर लें। इसके बाद बांस के झुंड से भूमि पर गिरने वाले बीजों को एकत्रित करके किसी सुरक्षित स्थान पर रखें।

जानकारी के लिए बता दें कि बीज पकने के दौरान फसल में चूहे और गिलहरियों का प्रकोप बढ़ जाता है। इसलिए बांस की बीजों की सुरक्षा के लिए उन्हें किसी टिन के डब्बे में भरकर रखें। नर्सरी में बीजों को सीधे न बोएं, बल्कि बुवाई से पहले बीजों शोधन का काम पूरा करें। सबसे पहले बीजों को करीब ८ घंटे तक पानी में भिगोएं। इस प्रक्रिया में स्वस्थ बीज पानी के नीचे बैठ जाएंगे। सबसे पहले पानी में तैरते बीजों को निकालकर फेंक दें, इन्हें खेती के काम में न लें। अब पानी के निचली सतह से प्राप्त स्वस्थ बीजों का सुरक्षित रासायनिक दवाओं से बीज शोधन करें। इससे फसल में कीट और रोगों का प्रकोप नहीं होगा।

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