आत्मनिर्भर भारत
भोपाल AIIMS ड्रोन से पहुंचाएगा दवाईंयां, किया सफल परीक्षण
भोपाल के एम्स में ये ड्रोन स्टेशन ट्रॉमा और इमरजेंसी ऑपरेशन थियेटर कॉम्प्लेक्स में बनाया गया है. जिसमें गांव तक दवाईयां पहुंचाई जा सकेंगी. 60 किमी दूर जाने के लिए ड्रोन के जरिए महज 30 मिनट से एक घंटे के बीच दवा को संबंधित स्थान तक भेजा जा सकेगा. ड्रोन के माध्यम से न केवल दूर-दराज इलाकों तक दवाइयां पहुंच सकेंगी बल्कि ड्रोन के साथ आपातकालीन स्थिति में रक्त पहुंचाना, ब्लड सैंपल लेना और ऑर्गन ट्रांसपोर्टेशन जैसी सुविधा भी मिलेगी.
All India Institute of Medical Sciences News: मध्यप्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार लाने के लिए एम्स ने नई पहल की है. मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के एम्स (AIIMS Bhopal) ने ग्रामीण क्षेत्रों की स्वास्थ्य सुविधा को सुधारने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है. भोपाल AIIMS ड्रोन से पहुंचाएगा दवाईंयां, किया सफल परीक्षण , भोपाल के एम्स में ड्रोन के माध्यम से ग्रामीण इलाकों में दवाएं पहुंचाई जाएंगी, जिसके लिए भोपाल (Bhopal AIIMS Drone) के एम्स हॉस्पिटल में ड्रोन स्टेशन (Drone Station) भी बनाया गया है. दवाईयों को भेजने की टेस्टिंग की जा चुकी है.

ISRO: ‘इनसैट-3डीएस’ उपग्रह श्रीहरिकोटा से उड़ान भरने को तैयार
ISRO रचने जा रहा है एक और इतिहास

ISRO: ‘इनसैट-3डीएस’ उपग्रह, इसरो के नए रॉकेट एसएसएलवी (स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) के अलावा वारहार्स पीएसएलवी को भी लॉन्च किया जाएगा, जिसे एक उद्योग संघ ने विकसित किया है। अंतरिक्ष नियामक ने 2023 की अंतिम तिमाही से लेकर अगले वित्त वर्ष तक प्रस्तावित योजना के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि सात स्पेस लॉन्च निजी स्टार्टअप स्काईरूट और अग्निकुल की तरफ से किए जाएंगे।
पूर्वानुमानों को सटीक बनाने पर जोर
चेन्नई स्थित अग्निकुल कॉसमॉस अगले दो महीनों के भीतर अपना पहला 3-डी प्रिंटेड रॉकेट अग्निबाण-एसओआरटीईडी लॉन्च करने वाला है। अग्निबाण रॉकेट की पहली उड़ान एक उप-कक्षीय मिशन होगी। इसी वित्तीय वर्ष में होने वाले अन्य प्रक्षेपणों में जीएसएलवी-एफ14 को लॉन्च करना भी शामिल है जिसके जरिये इनसैट-3डीएस उपग्रह को कक्षा में स्थापित किया जाएगा। जीएसएलवी-एफ14 से मौसम पूर्वानुमान, आपदा प्रबंधन और संबंधित मौसम संबंधी सेवाओं से जुड़े पूर्वानुमानों को और अधिक सटीक बनाया जा सकेगा। वहीं, विकास क्रम में एसएसएलवी की तीसरी उड़ान भी मार्च तक होने की उम्मीद है जिसमें इसरो के एक प्राथमिक उपग्रह और दो अन्य पेलोड, स्पेस रिक्शा और आआईटीएमसैट को भेजा जाएगा।
‘विक्रम’ के अगले वर्ष लॉन्च की उम्मीद
अगले वर्ष एयरोस्पेस की तरफ से स्वदेश निर्मित रॉकेट विक्रम 1-1 के चार लॉन्च की भी उम्मीद है, जबकि अग्निकुल कॉसमॉस ने अग्निबाण के दो लॉन्च की योजना बनाई है। 2024-25 में इसरो की पीएसएलवी और जीएसएलवी के तीन-तीन मिशन और परीक्षण वाहन सहित गगनयान परियोजना से जुड़े सात लॉन्च की तैयारी है। इसरो की वाणिज्यिक शाखा, न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड द्वारा पीएसएलवी के चार प्रक्षेपण, एक एलवीएम-3 मिशन और एसएसएलवी के दो प्रक्षेपण किए जाने की उम्मीद है।
महाराष्ट्र 3,079 ईवी चार्जिंग स्टेशनों के साथ सबसे आगे

भारी उद्योग राज्यमंत्री कृष्ण पाल गुर्जर ने कहा कि इस साल 2 फरवरी तक देश में चल रहे इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) चार्जिंग स्टेशनों की संख्या 12,146 हो गई है। उन्होंने मंगलवार को लोकसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में यह बात कही। मंत्री द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों से पता चलता है कि महाराष्ट्र 3,079 ईवी चार्जिंग स्टेशनों के साथ सबसे आगे है, इसके बाद दिल्ली 1,886 स्टेशनों के साथ दूसरे स्थान पर है, जबकि कर्नाटक 1,041 चार्जिंग स्टेशनों के साथ तीसरे स्थान पर है।
शीर्ष 10 की सूची में शीर्ष तीन राज्य हैं : केरल (852), तमिलनाडु (643), उत्तर प्रदेश (582), राजस्थान (500), तेलंगाना (481), गुजरात (476) और मध्य प्रदेश (341)। भारी उद्योग मंत्रालय (एमएचआई) भारत में ईवी को बढ़ावा देने की सुविधा के लिए लगातार प्रयास कर रहा है। मंत्री ने कहा कि एफएएमई-II योजना में अन्य बातों के साथ-साथ ईवी उपयोगकर्ताओं के बीच विश्वास पैदा करने के लिए सार्वजनिक चार्जिंग बुनियादी ढांचे की स्थापना के लिए सब्सिडी के रूप में वित्तीय सहायता भी शामिल है। इसके अलावा, बिजली मंत्रालय ने देश में सार्वजनिक ईवी चार्जिंग बुनियादी ढांचे की तैनाती में तेजी लाने के लिए कई पहल की हैं। सरकार ने चार्जिंग बुनियादी ढांचे के लिए दिशानिर्देश और मानक जारी किए हैं, जो ईवी के मालिकों को अपने मौजूदा बिजली कनेक्शन का उपयोग करके अपने निवास/कार्यालय में अपने वाहनों को चार्ज करने में सक्षम बनाते हैं।
सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशनों के लिए प्रचार दरों पर भूमि के प्रावधान के लिए एक राजस्व साझाकरण मॉडल भी पेश किया गया है और निर्धारित समयसीमा के भीतर सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशन (पीसीएस) को बिजली कनेक्शन प्रदान करने का प्रावधान किया गया है। सरकार ने सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशनों के लिए एकल भाग ईवी टैरिफ भी निर्धारित किया है, यह राशि 31.03.2025 तक आपूर्ति की औसत लागत (एसीओएस) से अधिक नहीं हो सकती है। दिशानिर्देश सौर और गैर-सौर घंटों के दौरान पीसीएस पर ईवी की धीमी एसी चार्जिंग के लिए उपयोग की जाने वाली बिजली की सीमा क्रमशः 2.50 रुपये प्रति यूनिट और 3.50 रुपये प्रति यूनिट निर्दिष्ट करते हैं। इसके अलावा, सौर और गैर-सौर घंटों के दौरान पीसीएस पर ईवी की डीसी फास्ट चार्जिंग के लिए उपयोग की जाने वाली बिजली की क्रमशः 10 रुपये प्रति यूनिट और 12 रुपये प्रति यूनिट की अधिकतम सीमा भी निर्दिष्ट की गई है। सौर घंटों के दौरान डिस्कॉम द्वारा पीसीएस को आपूर्ति की औसत लागत (एसीओएस) पर 20 प्रतिशत की छूट और अन्य सभी समय के दौरान 20 प्रतिशत का अधिभार होगा। मंत्री ने कहा कि हरित ऊर्जा ओपन एक्सेस नियम, 2022 को नवीकरणीय ऊर्जा अपनाने में और तेजी लाने, सभी के लिए सस्ती, विश्वसनीय, टिकाऊ और हरित ऊर्जा तक पहुंच सुनिश्चित करने के उद्देश्य से अधिसूचित किया गया है।
हरी बीन्स की खेती…
बीन्स विटामिन बी२ का मुख्य स्रोत हैं। बीन्स सोल्युबल फाइबर का अच्छा स्रोत होते हैं। इसका सेवन हृदय रोगियों के लिए बहुत ही लाभकारी बताया गया हैं। ये शरीर में बढ़े कोलेस्टेरोल की मात्रा को कम करता है जिससे हृदय रोग का खतरा कम होता है। इसके अलावा इसके सेवन से रक्चाप नहीं बढ़ता है। इसलिए ये हृदय रोगियों के लिए काफी फायदेमंद माना गया है। यदि सही तरीके से प्रâेंचबीन खेती की जाए तो किसान इसकी खेती से अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। प्रâेंचबीन की खेती करते समय यदि कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखा जाए तो इसकी बेहतर पैदावार प्राप्त की जा सकती है।

प्रâेंचबीन या हरी बीन्स में कई पोषक तत्व पाए जाते हैं जो सेहत के लिए लाभकारी होते हैं। इसमें मुख्य रूप से पानी, प्रोटीन, कुछ मात्रा में वसा तथा कैल्सियम, फास्फोरस, आयरन, कैरोटीन, थायमीन, राइबोफ्लेविन, नियासीन, विटामिन-सी आदि तरह के मिनरल और विटामिन मौजूद होते हैं। बीन्स विटामिन बी२ का मुख्य स्रोत हैं। बीन्स सोल्युबल फाइबर का अच्छा स्रोत होते हैं। इसका सेवन हृदय रोगियों के लिए बहुत ही लाभकारी बताया गया हैं। ये शरीर में बढ़े कोलेस्टेरोल की मात्रा को कम करता है जिससे हृदय रोग का खतरा कम होता है। इसके अलावा इसके सेवन से रक्चाप नहीं बढ़ता है। इसलिए ये हृदय रोगियों के लिए काफी फायदेमंद माना गया है। यदि सही तरीके से प्रâेंचबीन खेती की जाए तो किसान इसकी खेती से अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। प्रâेंचबीन की खेती करते समय यदि कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखा जाए तो इसकी बेहतर पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
प्रâेंचबीन की खेती सर्दी व गर्मी दोनों मौसम में की जा सकती है। इसकी खेती के लिए हल्की गर्म जलवायु अच्छी रहती है। इसके लिए खेती के लिए अधिक ठंडी और अधिक गर्म जलवायु अच्छी नहीं रहती है। इसकी खेती हमेशा अनुकूल मौसम में की जानी चाहिए। यदि मिट्टी की बात की जाए तो इसकी खेती के लिए बलुई बुमट व बुमट मिट्टी अच्छी रहती है। जबकि भारी व अम्लीय भूमि वाली मिट्टी इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं रहती है।
प्रâेंचबीन की खेती के लिए कई किस्में आती है जो अच्छी हैं। इसमें दो तरह की किस्में आती है जिसमें पहली झाड़ीदार किस्में होती हैं जिनमें जाइंट स्ट्रींगलेस, कंटेंडर, पेसा पार्वती, अका्र कोमल, पंत अनुपमा तथा प्रीमियर, वी.एल. बोनी-१ आदि प्रमुख किस्में है। वहीं दूसरी बेलदार किस्में होती है जिनमें केंटुकी वंडर, पूसा हिमलता व एक.वी.एन.-१ अच्छी किस्में हैं।
प्रâेंचबीन की खेती में कैसे करें खरपतवार पर नियंत्रण
प्रâेंचबीन की खेती में भी खरपतवारों का प्रकोप बना रहता है। खरपतवार वे अवांछिनीय पौधे होते हैं जो इसके आसपास उग जाते हैं और इसके विकास में बाधा पहुंचाकर फसल को हानि पहुंचाते हैं। ऐसे अवांछिनीय पौधों को हटाने के लिए दो से तीन बार निराई व गुडाई करके खरपवार को हटा देना चाहिए। यहां बता दें कि एक बार पौधे को सहारा देने के लिए मिट्टी चढ़ाना जरूरी होता है। यदि खरतवार का प्रकोप ज्यादा हो तो इसके लिए रासायनिक उपाय भी किए जा सकते हैं। इसके लिए ३ लीटर स्टाम्प का प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के बाद दो दिन के अंदर घोल बनाकर छिड़काव करने से खरपवारों पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
प्रâेंचबीन की कटाई फूल आने के दो से तीन सप्ताह के बाद शुरू कर दी जाती है। इसकी फलियों की तुड़ाई नियमित रूप से जब फलियां नर्म व कच्ची अवस्था में हो तब उसकी तुड़ाई करनी चाहिए।
प्रâेंचबीन की पैदावार की बात करें तो उचित वैज्ञानिक तकनीक का इस्तेमाल करके इसकी हरी फली की उपज ७५-१०० क्विंटल/हेक्टेयर तक प्राप्त की जा सकती है। प्रâेंचबीन यानि राजमा का भाव बाजार में सामान्यत: १२० से लेकर १५० रुपए प्रति किलोग्राम रहता है। मंडियों में इसके भावों में अंतर हो सकता है। क्योंकि अलग-अलग मंडियों और बाजार में इसके भावों में उतार-चढ़ाव होता रहता है।