बांस की खेती

कश्मीर की घाटियों के अलावा कहीं भी बांस की खेती की जा सकती है. भारत का पूर्वी भाग आज बांस का सबसे बड़ा उत्पादक है. एक हेक्टेयर जमीन पर बांस के १५०० पौधे लगते हैं. पौधे से पौधे की दूरी ढाई मीटर और लाइन से लाइन की दूरी ३ मीटर रखी जाती है. बांस की खेती के लिए उन्नत किस्मों का चयन करना चाहिए.

भारत में बांस की कुल १३६ किस्में हैं. इनमें से सबसे ज्यादा लोकप्रिय प्रजातियां बम्बूसा ऑरनदिनेसी, बम्बूसा पॉलीमोरफा, किमोनोबेम्बूसा फलकेटा, डेंड्रोकैलेमस स्ट्रीक्स, डेंड्रोकैलेमस हैमिलटन और मेलोकाना बेक्किफेरा हैं. बांस के पौधे की रोपाई के लिए जुलाई महीना सबसे उपयुक्त है. बांस का पौधा ३ से ४ साल में कटाई लायक हो जाता है.

कम मेहनत में ज्यादा मुनाफा देने वाली फसलों में अब बांस का नाम भी शामिल हो चुका है। पहले तो बांस सिर्फ जंगलों में भी प्रकृति के स्पर्श से ही उग जाता था। लेकिन बांस के बढ़ते उपभोग के चलते इसकी व्यवसायिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। हालांकि बांस की खेती में जद्दोजहद करने की आवश्यकता नहीं होती। सिर्फ चार साल फसल का ठीक प्रकार पालन पोषण करें और करीब ४०-४५ तक बांस की फसल आपको मुनाफा देती रहेगी। इसके खेती के दौरान सबसे पहले नर्सरी तैयारी और पौध तैयार होने पर इसकी रोपाई का कार्य किया जाता है। इस बीच अगर किसान आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे है, तो सरकार द्वारा प्रस्तावित आर्थिक अनुदान भी ले सकते हैं। बांस की फसल में कीट-रोग लगने की संभावना भी कम ही रहती है। बस समय पर सिंचाई और निराई-गुड़ाई करते रहें। इन्हीं कृषि कार्य़ो के साथ बांस की फसल भी बढ़ती रहेगी और आपका मुनाफा भी।

राष्ट्रीय बांस मिशन के तहत अगर बांस की खेती में ज्यादा खर्च हो रहा है, तो केंद्र और राज्य सरकार किसानों को आर्थिक राहत प्रदान करेंगी. बांस की खेती के लिए सरकार द्वारा दी जाने वाली सहायता राशि की बात करें तो इसमें ५० प्रतिशत खर्च किसानों द्वारा और ५० प्रतिशत लागत सरकार द्वारा वहन की जाएगी.

मध्य प्रदेश सरकार बांस के प्रति पौधे पर किसान को १२० रुपये की सहायता प्रदान कर रही है. यह राशि तीन साल में किस्तों में मिलती है. राष्ट्रीय बांस मिशन की आधिकारिक वेबसाइट हंस्.हग्म्.ग्ह पर जाकर आप सब्सिडी के लिए ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं. राष्ट्रीय बांस मिशन के तहत हर जिले में नोडल अधिकारी बनाया गया है. आप अपने नोडल (र्‍द्aत्) अधिकारी से भी योजना से संबंधित अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.

बांस की खेती से कमाई

किसानों के लिए बांस की खेती मुनाफे का सौदा साबित हो सकती है। लेकिन बांस की खेती में धैर्य रखना बहुत जरूरी होता है। क्योंकि बांस की खेती रबी, खरीफ या जायद सीजन की खेती नहीं होती। इसको फलने-फूलने के लिए लगभग ३-४ साल का समय लग जाता है। हालांकि पहली फसल के कटते ही किसान की अच्छी आमदनी मिल जाती हैं। किसान चाहें तो बांस की खेती के साथ कोई दूसरी फसल भी लगा सकते हैं। बांस की खेती के साथ दूसरी फसलों की एकीकृत खेती करने से मिट्टी की उपजाऊ शक्ति भी बनी रहेगी। साथ ही, दूसरी फसलों से किसानों को समय पर अतिरिक्त आय भी मिल जाएगी।

रोपाई के चार बाद बांस की पहली कटाई होती है. एक अनुमान के अनुसार, बांस की खेती से ४ साल में ₹४० लाख की एक हेक्टेयर में हो जाती है. इसके अलावा बांस की लाइनों के बीच में खाली पड़ी जमीन पर भी अन्य फसलें लगाकर किसान आसानी से बांस की खेती पर लगने वाला खर्च निकाल सकते हैं. बांस की कटाई-छंटाई भी साल में दो-तीन बार करनी पड़ती है. कटाई में निकली छोटी टहनियां हरे चारे के रूप में काम ली जा सकती है.

बांस की खेती करके किसान ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा कर सकते हैं। इसके जरिए गांवों में आय सृजन के साथ-साथ ग्रामीणों के पोषण सुधार में भी काफी मदद मिल रही है। आज के दौर में बांस के बने उत्पादों ने बाजार में अपने कदम जमा लिए हैं। बांस की खेती के जरिए लकड़ी के उत्पादों पर इंसान की आत्मनिर्भरता को कम करने में मदद मिल रही है। शुरुआत से ही इंसानों ने अपने दैनिक जीवन में लकड़ी के उत्पादों का उपयोग किया है। इसकी खपत बढ़ने पर तेजी से पेड़ों का कटाव हुआ और जंगल नष्ट होने लगे। खेती में आधुनिक तकनीक और उन्नत बदलावों के कदम रखते ही बांस के प्रति जागरूकता बढ़ने लगी। एक रिसर्च से पता चला कि पेड़ों से मिलने वाली लकड़ी के उत्पादन में ८० साल से भी अधिक समय खर्च होता है। लेकिन बांस की पहली उपज ३-४ साल में ही तैयार हो जाती है। इसकी कटाई के बाद करीब ४० साल तक फसल प्रबंधन के जरिए ही फायदा मिलता रहेगा। इसकी पत्तियां पशुओं को पोषण प्रदान करेंगी। किसान बांस की किस्म और सहूलियत के हिसाब से एक हेक्टेयर में करीब १५०० से २५०० पौधे लगाए जाते हैं। जहां, बांस की खेती से जंगलों को दोबारा फलने-फूलने का मौका मिल रहा है। वहीं, इससे बने उत्पादों का प्रयोग करने से प्रकृति के संरक्षण में मददगार साबित हो रहा है। बांस की बुवाई के लिए बीज प्राप्त करना बेहद जरूरी है। बांस का बीज इसके फूल खिलने के बाद प्राप्त होता है। हालांकि इस प्रक्रिया में थोड़ा समय लगता है। लेकिन बांस की बुवाई करके अच्छी और गुणवत्तापूर्ण फसल प्राप्त की जा सकती है। बांस से पके हुए बीज प्राप्त करने के लिए बांस की फसल का झुंड़ बनाकर उन्हें एकत्रित करें और फसल की निचली जमीन से घास को साफ कर लें। इसके बाद बांस के झुंड से भूमि पर गिरने वाले बीजों को एकत्रित करके किसी सुरक्षित स्थान पर रखें।

जानकारी के लिए बता दें कि बीज पकने के दौरान फसल में चूहे और गिलहरियों का प्रकोप बढ़ जाता है। इसलिए बांस की बीजों की सुरक्षा के लिए उन्हें किसी टिन के डब्बे में भरकर रखें। नर्सरी में बीजों को सीधे न बोएं, बल्कि बुवाई से पहले बीजों शोधन का काम पूरा करें। सबसे पहले बीजों को करीब ८ घंटे तक पानी में भिगोएं। इस प्रक्रिया में स्वस्थ बीज पानी के नीचे बैठ जाएंगे। सबसे पहले पानी में तैरते बीजों को निकालकर फेंक दें, इन्हें खेती के काम में न लें। अब पानी के निचली सतह से प्राप्त स्वस्थ बीजों का सुरक्षित रासायनिक दवाओं से बीज शोधन करें। इससे फसल में कीट और रोगों का प्रकोप नहीं होगा।

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