Swarnim Mumbai ( हिंदी मासिक पत्रिका)

‘वन बेल्ट वन रूट’ प्रोजेक्ट पर विभिन्न देशों में संकट के बादल

अमेरिका की टक्कर में खुद को खड़ा करने की कोशिश में चीन ने बेल्ट एंड रोड इनिसिएटिव यानी बीआरआई के जरिए दुनिया के कई देशों में करोड़ों डॉलर के प्रोजेक्ट शुरू किए थे। बीआरआई प्रोजेक्ट के दस साल पूरे हो गए हैं। अप्रâीका से एशिया तक फैले और अरबों डॉलर के निवेश को देखते हुए, पिछले कुछ वर्षों में इसकी आलोचना भी हुई है। बीआरआई की १०वीं वर्षगांठ पर बीजिंग में हो रहे सम्मेलन में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओर्बन पहुंचे हैं। अफगानिस्तान की तालिबान सरकार भी इसमें शामिल होगी। इस प्रोजेक्ट को लेकर चीन ने बड़े बड़े दावे किए थे। लेकिन इस परियोजना पर जिस तरह से चीन ने पैसा बहाया है, उसे वैसा फायदा हुआ नहीं है।

एससीओ शिखर सम्मेलन के दौरान बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) परियोजना का भारत ने विरोध जताया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस महत्वाकांक्षी परियोजना को लेकर बीजिंग पर निशाना साधते हुए कहा कि संपर्वâ परियोजनाएं महत्वपूर्ण हैं, लेकिन अन्य देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करना भी जरूरी है. शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी ने कहा, ‘किसी भी क्षेत्र की प्रगति के लिए मजबूत संपर्वâ महत्वपूर्ण है. बेहतर कनेक्टिविटी न केवल आपसी व्यापार को बढ़ाती है, बल्कि आपसी विश्वास को भी बढ़ावा देती है. हालांकि, इन प्रयासों में एससीओ चार्टर के बुनियादी सिद्धांतों को बनाए रखना जरूरी है, विशेष रूप से सदस्य देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करना जरूरी है’.
चीन, भारत, रूस, पाकिस्तान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान और अब ईरान यानी सभी एससीओ सदस्य देश वर्चुअल शिखर सम्मेलन के अंत में बीआरआई के पक्ष में दिखे, लेकिन भारत ने इससे इंकार कर दिया. दरअसल पीएम मोदी ने भारत ने बीआरआई का समर्थन करने वाले न्यू दिल्ली डिक्लेरेशन के पैराग्राफ पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया. ये चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की पसंदीदा परियोजना है. २०२३ की न्यू दिल्ली डिक्लेरेशन के बीआरआई पैराग्राफ में कहा गया है, ‘चीन की ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (बीआरआई) पहल के लिए अपने समर्थन की पुष्टि करता है. इसके तहत कजाकिस्तान गणराज्य, किर्गिज गणराज्य,पाकिस्तान, रूसी संघ, ताजिकिस्तान गणराज्य और उजबेकिस्तान गणराज्य इस परियोजना को संयुक्त रूप से लागू करने के लिए चल रहे काम पर ध्यान देते हैं. इसमें यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन और बीआरआई के निर्माण को जोड़ने के प्रयास शामिल हैं.
लेकिन बीआरआई परियोजना के बारे में ऐसा क्या है जो भारत को परेशान करता है? भारत इस पहल का विरोध क्यों कर रहा है, जबकि शी जिनपिंग इस बुनियादी ढांचा परियोजना को क्षेत्रीय सहयोग और व्यापार और निवेश में सुविधा बता रहे हैं. पहले समझते हैं कि बीआरआई क्या है.

बीआरआई क्या है?
बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव को न्यू सिल्क रोड भी कहा जाता है. इसकी शुरुआत २०१३ में चीन के शी जिनपिंग ने की थी. यह प्रोजेक्ट बुनियादी ढांचे के जरिए पूर्वी एशिया और यूरोप को जोड़ने के लिए तैयार की गई एक पहल है. ये परियोजना अप्रâीका, ओशिनिया और लैटिन अमेरिका में शुरू हुई है, इससे चीन के आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव में काफी विस्तार हुआ है. पहले इसे ‘वन बेल्ट, वन रोड’ पहल भी कहा जाता था, लेकिन अब इसे बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का नाम मिला है. यूरोपीय बैंक के अनुसार, बीआरआई में भूमि मार्ग और समुद्री मार्ग शामिल है. भूमि मार्ग चीन को दक्षिण पूर्व एशिया, दक्षिण एशिया, मध्य एशिया, रूस और यूरोप से जोड़ता है और बाद में चीन के तटीय क्षेत्रों को दक्षिण पूर्व और दक्षिण एशिया, दक्षिण प्रशांत, पश्चिम एशिया, पूर्वी अप्रâीका और यूरोप से जोड़ता है.
इस मेगा परियोजना की
लागत कितनी है?
द गार्जियन में छपी २०१८ की एक रिपोर्ट में इस परियोजना की लागत १ ट्रिलियन से ज्यादा आंकी गई थी, हालांकि अलग-अलग अनुमान हैं कि आज तक कितना पैसा खर्च किया गया है. एक विश्लेषण से पता चला है कि चीन ने इस पहल के लिए २१० अरब डॉलर से ज्यादा का निवेश किया है, जो एशिया में किसी भी परियोजना में निवेश की गई योजना में सबसे ज्यादा है. बेल्ट एंड रोड का मतलब यह भी है कि चीनी कंपनियां दुनिया भर में निर्माण कार्य में लगी हुई हैं. यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि बीआरआई शी जिनपिंग की पसंदीदा परियोजना है और इसे एशियाई राष्ट्र में अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जा रहा है. अभी तक चीनी अधिकारियों ने ये भी नहीं बताया है कि को भी इस परियोजना में क्या शामिल है. जो कई तरह के संदेह पैदा करता है.
भारत बीआरआई का प्रतिरोधी क्यों है?

जब से यह परियोजना शुरू हुई है और देशों ने इसके लिए हस्ताक्षर करना शुरू किया है, भारत ने नियमित रूप से इसका विरोध किया है. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी बुनियादी ढांचा परियोजना पर चिंता व्यक्त की है. बीआरआई को लेकर भारत की सबसे बड़ी चिंता ये है कि इसकी एक महत्वपूर्ण शाखा, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) से शुरू होती है. ये गलियारा चीन के शिनजियांग उइघुर स्वायत्त क्षेत्र में काशगर से पाकिस्तान के दक्षिण-पश्चिम बलूचिस्तान में ग्वादर बंदरगाह तक जाती है. उसके बाद ये गिलगित बाल्टिस्तान में पाकिस्तान के कब्जे वाले भारतीय क्षेत्र में प्रवेश करता है. इसके अलावा निवेश परियोजना में पाकिस्तान के राष्ट्रीय राजमार्ग ३५ काराकोरम राजमार्ग का नवीनीकरण भी शामिल है. इसे चीन-पाकिस्तान मैत्री राजमार्ग भी कहा जाता है. इस परियोजना में नियंत्रण रेखा (एलओसी) के उत्तर में गिलगित को स्कर्दू से जोड़ने वाले राजमार्ग का नवीनीकरण भी शामिल है.
भारत का दृढ़ मत है कि यह परियोजना संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन करती है. भारत इस बात को लेकर भी चिंतित है कि यह परियोजना क्षेत्र में चीन की रणनीतिक उपस्थिति को बढ़ाती है. उसे यह भी डर है कि इस तरह की पहल से देश बीजिंग के कर्जदार हो जाएंगे.
अक्टूबर २०२१ में चीन में भारतीय दूतावास में द्वितीय सचिव प्रियंका सोहोनी ने कहा था, ‘जहां तक चीन के बीआरआई का सवाल है, हम इससे विशिष्ट रूप से प्रभावित हैं. तथाकथित चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) को एक प्रमुख परियोजना के रूप में शामिल करना भारत की संप्रभुता का उल्लंघन है.
पिछले साल विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा था, ‘हमने सीपीईसी परियोजनाओं में तीसरे देशों की प्रस्तावित भागीदारी को प्रोत्साहित करने पर रिपोर्ट देखी है. किसी भी पार्टी द्वारा इस तरह की कोई भी कार्रवाई सीधे तौर पर भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन करती है.
नवंबर २०२२ में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री ली क्विंग की मेजबानी में एससीओ की डिजिटल बैठक में परियोजना पर भारत की असहमति जताई थी. उन्होंने तब कहा था, ‘कनेक्टिविटी परियोजनाओं को सदस्य राज्यों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करना चाहिए और अंतर्राष्ट्रीय कानून का सम्मान करना चाहिए’.
चीन ने २०१३ में जिस ‘वन बेल्ट वन रोड’ (ध्NE ँEथ्ऊ ध्NE Rध्AD) परियोजना की शुरुआत की थी, अब वह कठघरे में खड़ी हो रही है. चीन ने ध्ँध्R को एशिया, यूरोप और अप्रâीका से जोड़ने वाली परियोजना के रूप में प्रचारित किया. तीन ख़रब अमरीकी डॉलर इस पर झोंक दिए. वह सेंट्रल एशिया, दक्षिणी-पूर्वी एशिया और मध्य-पूर्व में अपना दबदबा बढ़ाना चाहता है. चीन दुनिया का बड़ा मैन्युफैक्चरिंग हब है और उसे अपने उत्पाद बेचने के लिए बड़े बाजार की तलाश है. लेकिन, जिस आधार पर ध्ँध्R का विरोध शुरू हुआ है, उसका आधार कुछ और ही है. चीन ने अपने पड़ोसी देशों से आधारभूत ढांचा खड़ा करने के नाम पर समझौता किया, लेकिन उसने इसके एवज में इतना महंगा कर्ज उन देशों पर थोप दिया कि ध्ँध्R उन्हें बोझ लगने लगी.
जब ये देश क़र्ज़ चुकाने में नाकाम हो गए तो उनके प्राकृतिक संसाधनों का ज़बरदस्त दोहन किया. एशिया का एक छोटा सा देश लाओस जिसकी अर्थव्यवस्था ९००० करोड़ रुपये के आसपास है. चीन ने यहां पर रेलवे और हाईवे के निर्माण के लिए ५००० करोड़ का निवेश किया है. इसी के साथ अब इस देश की कुल अर्थव्यवस्था के ५२ फीसदी हिस्से पर चीन का कब्ज़ा हो चुका है.
चीन, पाकिस्तान, अमेरिका, अर्थव्यवस्था, भारत
शी जिनपिंग की सबसे महत्वाकांक्षी परियोजना एशिया, अप्रâीका और यूरोप को जोड़ने के मकसद से शुरू हुई थी. हाल के दिनों में चीन की इस असलियत का खुलासा दुनिया के कई ‘थिंक टैंक’ ने किया है और इसी का नतीजा है कि कई देशों ने राष्ट्रपति शी जिनपिंग के इस महत्वाकांक्षी इंप्रâास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट को रद्द कर दिया है. मलेशिया ने चीन समर्थित चार परियोजनाओं को रद्द कर दिया. ये चारों परियोजनाएं २३ अरब डॉलर की थीं. महातिर मोहम्मद को चीन विरोधी कहा जाता है. जानकार चीन के इन प्रोजेक्टों के रद्द होने के पीछे मलेशिया में सत्ता परिवर्तन बता रहे है. चीन के बैंकों के उच्च दर वाला ब्याज वहां की सरकार को रास नहीं आ रहा है और उन्हें अपनी अर्थव्यवस्था के लिए खतरा महसूस हो रहा है.
चीनी कर्ज़ का डर म्यांमार को भी सता रहा है. हाल ही में म्यांमार के वित्तमंत्री ने चीनी परियोजनाओं के आकार को बहुत हद तक सीमित करने का फैसला लिया है. उन्होंने कहा कि पड़ोसी देशों से उन्हें सबक मिला है कि ़ज्यादा कर्ज़ कई बार अच्छा नहीं होता है. म्यांमार के क्याऊकप्यु में चीन विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाने वाला है. यह हिन्द महासागर में है और १० अरब डॉलर का प्रोजेक्ट है. यह प्रोजेक्ट चीन के वन बेल्ट वन रोड का हिस्सा है. थाईलैंड ३००० करोड़ के प्रोजेक्ट को स्थगित कर चुका है. रेलवे और हाईवे की योजनाओं में निवेश के रास्ते चीनी क़र्ज़ इस छोटे से देश में गहरी पैठ बना चुका था.
थाईलैंड की सबसे बड़ी दिक्कत चीनी क़र्ज़ की अपारदर्शी शर्तें थीं, जिसका डर उसे लगातार सता रहा था. एक और एशियाई देश उ़ज्बेकिस्तान ने चीनी क़र्ज़ को अपनी अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती बता डाला. दरअसल इस देश के ऊपर कुल विदेशी क़र्ज़ का ७४ज्ञ् हिस्सा चीन का है जो इनकी परेशानियों को बढ़ाने के लिए काफी था. पाइपलाइन और रेलवे प्रोजेक्ट को स्थगित करने में उ़ज्बेकिस्तान ने ज़रा भी देर नहीं लगायी और साथ में चीनी सरकार को एक कड़ा सन्देश भी दिया.
हाल के दिनों में पाकिस्तान और चीन का लव अफेयर पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बना हुआ है. चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर के तहत चीन ५५ अरब डॉलर का निवेश करने वाला है जिसमें ग्वादर पोर्ट को भी विकसित किया जाना है. चीन का इसके राजस्व पर ९१ फ़ीसदी अधिकार होगा और ग्वादर अथॉरिटी पोर्ट को महज ९ फ़ीसदी मिलेगा. ज़ाहिर है अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान के पास ४० सालों तक ग्वादर पर नियंत्रण नहीं रहेगा. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पिछले कई वर्षों से अमेरिकी राहत पैकेज पर टिकी हुई थी, लेकिन हाल के वर्षों में अमेरिका की सख्ती ने चीन को उसके करीब लाने का काम किया है. लेकिन जानकार इस डील को चीन के पक्ष में एकतरफा जाते हुए देख रहे हैं.
दरअसल चीन का मुख्य मकसद बलूचिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन और भारत की दक्षिण एशिया में घेरेबंदी है. ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन की सरकार कैश रिज़र्व के मामले में आज पूरी दुनिया में सबसे ऊपर है. जिसके पास लगभग ८०० लाख करोड़ की नगद राशि है. चीन ने लगातार चार दशकों तक १० ज्ञ् से ज्यादा की ऱफ्तार से विकास करने के बाद इस मुकाम को हासिल किया है. चीन की अर्थव्यवस्था आज पूरे विश्व में दूसरे स्थान पर है और इसने चीनी अर्थव्यवस्था की महत्वाकांक्षाओं को कई गुना बढ़ा दिया है.
अमेरिकी बादशाहत को चुनौती देना अब चीन की फितरत बन चुका है. चीन ने पूरी दुनिया में आधुनिक साम्राज्यवाद की एक नयी तस्वीर पेश की है जिसका शिकार एशिया और अप्रâीका के छोटे देश बन रहे हैं. चीनी महत्वाकांक्षा को देखते हुए उसे आधुनिक युग का ब्रिटेन कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए. ध्ँध्R को लेकर भारत पहले ही ऐतराज जता चुका है. शुरुआत चीन और पाकिस्तान के बीच बन रहे चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (ण्झ्Eण्) को लेकर हुई. यह सड़क पाक-अधिकृत कश्मीर से होकर बनाई जा रही है. भारत इसे विवादित क्षेत्र मानता है, और यहां सड़क बनाए जाने का विरोध कर रहा है. भारत की आपत्तियों को चीन नजरअंदाज करता आया है.हाल के दिनों में जिस तरह से कई देशों ने चीन के ध्ँध्R प्रोजेक्ट को रद्द किया है उसने चीनी महत्वाकांक्षाओं के ऊपर एक गहरा प्रश्न चिन्ह लगाया है. अगर चीन और उसके क़र्ज़ की हक़ीक़त इसी तरह दुनिया के सामने आती रही तो ‘वन बेल्ट वन रोड’ के तहत आने वाले प्रोजेक्ट और उनके उद्देश्यों का हिन्द महासागर में डूबना तय है.
सिर्पâ श्रीलंका ही नहीं चीन ने १४७ से ज्यादा देशों के साथ अपने वित्तीय और राजनीतिक प्रभाव का फायदा उठाने की पहल में लगभग एक ट्रिलियन डॉलर का निवेश किया है. कम आय वाले देशों की आर्थिक स्थिति गंभीर है और इस परियोजना के बाद बदतर होने के कगार पर है. डेटा चिंताजनक है कम आय वाले देशों पर २०२२ में चीन के ऋण का ३७ज्ञ् बकाया है, जबकि बाकी दुनिया के लिए यही ऋण २४ज्ञ् है. इस परीयोजना में शामिल ४२ देशों पर चीन का कर्जा हो चुका है. एडडेटा और बीआरआई के आंकड़ों के अनुसार, सड़क-रेल-बंदरगाह-भूमि बुनियादी ढांचे के वित्तपोषण के लिए चीनी वैश्विक परियोजनाएं इसमें शामिल सभी देशों के लिए ऋण का एक प्रमुख स्रोत रही हैं. इसमें पाकिस्तान ७७.३ अरब डॉलर के ऋण के साथ सबसे आगे है. इसके बाद अंगोला (३६.३ अरब डॉलर), इथियोपिया (७.९ अरब डॉलर), केन्या (७.४ अरब डॉलर) और श्रीलंका (७ अरब डॉलर) का कर्जदार है.
मालदीव के वित्त मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, २०२२ की पहली तिमाही के अंत तक मालदीव का कर्ज बढ़कर ६.३९ अरब डॉलर हो गया. यह मालदीव के सकल घरेलू उत्पाद का ११३ज्ञ् है. कर्ज की वजह चीन की परियोजना है. चीन ने मालदीव में सिनामाले पुल और एक नए हवाई अड्डे जैसी बुनियादी परियोजनाओं को वित्त पोषित किया गया था.
बांग्लादेश पर बीजिंग के कुल विदेशी ऋण का ६ज्ञ् बकाया है, यानी लगभग ४ बिलियन डॉलर का कर्जा है. ढाका अब आईएमएफ से ४.५ अरब डॉलर के पैकेज की मांग कर रहा है. जिबूती और अंगोला पर पर भी बड़ा बोझ है क्योंकि ऋण सकल राष्ट्रीय आय (जीएनआई) के ४०ज्ञ् से ज्यादा है. लाओस और मालदीव दोनों पर जीएनआई ( उrदे Naूग्दहaत् घ्हम्दस) का ३०ज्ञ् ऋण बोझ है . अप्रâीका पर बीजिंग का १५० बिलियन डॉलर से ज्यादा का बकाया है. जाम्बिया भी चीनी बैंकों के लगभग ६ बिलियन डॉलर के साथ ऋण चुका रहा है.
पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश आईएमएफ से राहत की मांग कर रहे हैं. चीन की बेल्ट एंड रोड परियोजना में अपारदर्शी वित्तपोषण शैली अपनाई गई है. इस वजह से कम से कम १० कम आय वाले देशों में ऋण ज्यादा हो गया है.
बता दें कि पिछली श्रीलंकाई सरकार चीन की तरफ ज्यादा झुकी हुई थी, वो भारत के खिलाफ थी. श्रीलंका में सरकार बदली जो भारत को लेकर थोड़ा नर्म है, अब बीजिंग ने आईएमएफ और पेरिस क्लब दोनों हवाला देकर ऋण चुकौती पर १० साल की रोक पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया है.
चीनी एक्जिम बैंक केवल दो साल की मोहलत की पेशकश कर रहा है, इसका प्रतिरोध श्रीलंका में हो रहा है.
पाकिस्तान के साथ भी ऐसा ही है. अधिकांश बीआरआई अनुबंधों को जनता से गुप्त रखा गया है. ताकि चीनी बैंकों से बिजली-सड़क-बंदरगाह बुनियादी ढांचे के वित्तपोषण में उच्च ब्याज दरों का खुलासा न हो.

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