खडीबोली हिन्दी के जन्मदाता जिन्हें खडीबोली हिन्दी-लेखन
का दिव्य आशीर्वाद दिया स्वयं महाप्रभु जगन्नाथ ने
१५ साल की उम्र में वे अपने माता-पिता के साथ एकबार जगन्नाथ पुरी भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए आये। भगवान जगन्नाथ के दर्शन किये और उन्हीं के दिव्य आशीष ने खडी बोली हिन्दी में लेखन का उन्होंने श्रीगणेश किया। जगत के नाथ से उन्होंने हिंदी गद्य को एक नई शैली प्रदान की जो खडीबोली हिन्दी के रुप में विश्वविख्यात है। उन्हें हिन्दी साहित्य का पितामह तथा खडी बोली हिन्दी का जन्मदाता कहा जाता है। उनका मूल नाम ‘हरिश्चन्द्र’ था और ‘भारतेन्दु’ उनकी उपाधि थी। हिन्दी साहित्य में आधुनिक काल का प्रारम्भ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से माना जाता है। हिन्दी को राष्ट्र-भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने की दिशा में उन्होंने अपनी असाधारण लेखन प्रतिभा का सदुपयोग किया। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। हिंदी में नाटकों का प्रारम्भ उन्होंने ही किया। ऐसी बात नहीं है कि उनके पूर्व हिन्दी में नाटक-लेखन नहीं था परन्तु भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने ही हिंदी नाटक-लेखन की नींव को और अधिक सुदृढ़ बनाया। वे आजीवन एक सफल कवि, व्यंग्यकार, नाटककार, पत्रकार तथा साहित्यकार रहे। वे मात्र ३४ वर्ष की उम्र में ही खडीबोली हिन्दी का विशाल साहित्य रचकर अमर हो गये।
भारतेन्दु हरिश्चंद्र का जन्म ०९सितंबर, १८५० को बनारस, उत्तरप्रदेश में हुआ। वे खडीबोली हिन्दी के जन्मदाता थे जिन्हें खडीबोली हिन्दी में लेखन का दिव्य आशीर्वाद स्वयं महाप्रभु जगन्नाथ ने दिया। वे जब मात्र पांच साल के थे तब सबसे पहले उनकी माताजी की मृत्यु हो गई और जब वे मात्र दस साल के थे तभी उनके पिताजी चल बसे। उनका बाल्यकाल उनके माता-पिता के वात्सल्य तथा प्यार से वंचित रहा। उनकी विमाता ने उनको खूब सताया। उनके पिता गोपाल चंद्र भी एक कवि थे। पिता की प्रेरणा से ही वे लेखन क्षेत्र में आगे बढ़े। बहुत कम उम्र में ही वे अपने माता-पिता को खो दिये लेकिन उनके जीवन की सबसे रोचक घटना यह रही कि मात्र १५ साल की उम्र में वे अपने माता-पिता के साथ एकबार जगन्नाथ पुरी भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए आये। भगवान जगन्नाथ के दर्शन किये और उन्हीं के दिव्य आशीष ने खडी बोली हिन्दी में लेखन का उन्होंने श्रीगणेश किया।
जगत के नाथ से उन्होंने हिंदी गद्य को एक नई शैली प्रदान की जो खडीबोली हिन्दी के रुप में विश्वविख्यात है। उन्हें हिन्दी साहित्य का पितामह तथा खडी बोली हिन्दी का जन्मदाता कहा जाता है। उनका मूल नाम ‘हरिश्चन्द्र’ था और ‘भारतेन्दु’ उनकी उपाधि थी। हिन्दी साहित्य में आधुनिक काल का प्रारम्भ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से माना जाता है। हिन्दी को राष्ट्र-भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने की दिशा में उन्होंने अपनी असाधारण लेखन प्रतिभा का सदुपयोग किया। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। हिंदी में नाटकों का प्रारम्भ उन्होंने ही किया। ऐसी बात नहीं है कि उनके पूर्व हिन्दी में नाटक-लेखन नहीं था परन्तु भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने ही हिंदी नाटक-लेखन की नींव को और अधिक सुदृढ़ बनाया। वे आजीवन एक सफल कवि, व्यंग्यकार, नाटककार, पत्रकार तथा साहित्यकार रहे। वे मात्र ३४ वर्ष की उम्र में ही खडीबोली हिन्दी का विशाल साहित्य रचकर अमर हो गये। उनकी वैश्विक चेतना भी प्रखर थी। उन्हें अच्छी तरह पता था कि विश्व के कौन से देश कैसे और कितनी उन्नति कर रहे हैं। इसलिए उन्होंने १८८४ में उत्तरप्रदेश के बलिया के दादरी मेले में ‘भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है’ पर एक सारगर्भित तथा ओजस्वी भाषण दिया जिसमें उन्होने लोगों से कुरीतियों और अंधविश्वासों को त्यागकर अच्छी-से-अच्छी शिक्षा प्राप्त करने, उद्योग-धंधों को विकसित करने, आपसी सहयोग एवं एकता को सतत बढाने की अपील करते हुए जीवन के सभी क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बनने का आह्वान किया।देश की गरीबी, पराधीनता, अंग्रेजी शासकों के अमानवीय व्यवहार तथा शोषण का चित्रण करना ही वे अपने खडी बोली हिन्दी में साहित्य रचना का लक्ष्य बनाये। हिन्दी को राष्ट्र-भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने की दिशा में भी उन्होंने अपनी असाधारण लेखन प्रतिभा का भरपूर उपयोग किया।वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। हिंदी पत्रकारिता, नाटक और काव्य के क्षेत्र में उनका बहुमूल्य योगदान रहा। वे एक संवेदनशील साहित्यकार थे। उनका सबसे लोकप्रिय नाटक सत्य हरिश्चन्द नाटक आज भी सत्यमार्ग पर आजीवन चलने का संदेश देता है।उनका नाटक भारत दुर्दशा उन दिनों के भारत की वास्तविक झलक है। उनकी रचनाओं में प्राचीन तथा नवीन का अनोखा सामंजस्य है। एक उत्कृष्ट कवि, सशक्त व्यंग्यकार, सफल नाटककार, जागरूक पत्रकार तथा ओजस्वी गद्यकार का असामयिक निधन ६जनवरी,१८८५ हो गया।अपने साहित्यिक योगदानों के बदौलत १८५७ से लेकर १९०० तक को भारतेन्दु युग के नाम से जाना जाता है।उनकी बढती लोकप्रियता के प्रभावित होकर उन्हें बनारस के विद्वानों ने १८८० में उन्हें भारतेन्दु की उपाधि प्रदान की।वे आज भी हमारे बीच हिन्दी खडीबोली के जन्मदाता के रुप में अमर हैं।
-अशोक पाण्डेय